Tuesday, May 24, 2011

कविता - करिश्मा

करिश्‍मा

- डॉ. एस. बशीर, चेन्नै

प्‍यार, दोस्‍ती, समर्पण मानव जीवन के परमार्थ
जिंदगी के प्रयोजन के लिए है
प्‍यार हमें मौत से नहीं लेकिन जीवन को परिपूर्ण बनायेगा
मौत जीवन के लिए दीर्घ विराम
यहॉं आत्‍मा सौंदर्य को अपनाकर
अंधेरों से हमें उजाले की ओर ले जाती ।
जिंदगानिया चल रही है ये रवानिया चल रही है किस करिश्‍मों से
दुनिया चल रही है, गम के मारे लाखों सयाने भटक रहे हैं आवारा बनके
लेकिन कुदरत का करिश्‍मा कोई न जाने
यह सिलसिला सदियों से चल रहा
किसके करिश्‍मों से
ये दुनिया चल रही है
फूल और काटा
बाप और बेटा
चले रहे आशा निराशा की राह पर
अनजाने से है ये सब तमाशा
जीवन-मरण का ये कारवा चल रहा है
ये किसके करिश्‍मों से
यह दुनिया चल रही है
चल रही है ये जीवन की कश्‍ती
मकसद से न देखा किसीन ने यह रवैय्या ।
कैसे यह चक्‍कर चल रहा है
किस करिश्‍मों से यह दुनिया चल रही है
अजब है ये जीवन
गजब है यह दुनिया
न मंजिल है न ठिकाना
न मकसद न फसाना न
फिर किसके लिए यह कारवां चल रहा है
किस करिश्‍मों से यह दुनियां चल रही है

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