भिलाई । “मेरा बचपन बहुत तनहा बीता। मैं लगभग पाँच वर्ष की बच्ची थी जब अब्बू की गिरफ़्तारी हुई थी। मेरे ज़ेहन में वह मंजर आज भी ताज़ा है, मामा (माँ) के गुस्से का इज़हार, उनकी सिसकियाँ और अब्बू का उनको समझाना, मैं और मेरी बड़ी बहन सलीमा कमरे के एक कोने दुबकी हुईं, कारों के जाने की आवाज़ ये सब कहते हुये उनका गला रुँध आया। मेरे अब्बाजान यानी फ़ैज़ साहब पंजाबी थे और माँ अँग्रेज़। इस नाते अँग्रेजी मेरी मातृभाषा हुई और पंजाबी पितृभाषा। उर्दू कुछ मैंने सीखी है। पापा से हमेशा एक भीनी ख़ुशबू आती थी और मैंने कभी भी उन्हें बेतरतीब नहीं देखा। वे एक सलीक़ेमंद शायर थे। मैं शायरी नहीं करती क्योंकि फ़ैज़ के मयार तक भला कौन पहुँच सकता है।” फ़ैज़ साहब की सुपुत्री डॉ. मुनीज़ा हाश्मी (लाहौर-पाकिस्तान) ने अपना वक्तव्य देते हुए अपने बचपन की यादों से सभागार को द्रवित कर दिया। उन्होंने प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान द्वारा 14-15 मई को इस्पात नगरी भिलाई में आयोजित फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और केदारनाथ अग्रवाल जन्मशती पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय समारोह के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए उन्होंने सभी हाज़रीन को लाहौर के फ़ैज-घर आने की दावत भी दी तथा संस्थान का शुक्रिया अदा किया। इसके पूर्व उन्होंने आयोजन का शुभारम्भ देश-विदेश के सैकड़ों वरिष्ठ साहित्यकारों की उपस्थिति में मंगलदीप प्रज्ज्वलित कर एवं फ़ैज़ साहब के चित्र पर माल्यार्पण कर विधिवत उद्घाटन किया।
फ़ैज़ प्रगतिशील आंदोलन की प्रेरणा में रहेगें – खगेंद्र ठाकुर
भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के आधारस्तम्भ एवं प्रख्यात आलोचक डॉ. खगेन्द्र ठाकुर (पटना) ने उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा कि दिल्ली में सम्पन्न प्रेमचंद इंटरनेशनल सेमीनार में उन्होंने पहली बार फ़ैज़ के दीदार किये और उनकी नज़्म सुनी। उन्होंने कहा कि कविता के इतिहास में शायर-कवियों का क़द कम होता गया है। प्रगतिशील आन्दोलन में हमने हमने हमेशा फ़ैज, केदार और नागार्जुन आदि को अपनी सोच और प्रेरणा के केन्द्र में रखा है। पूर्वज शायर-कवियों ने जो वैचारिक लड़ाइयाँ लड़ी हैं, उस दाय को, विरासत को हम सम्हाल नहीं पा रहे हैं इसलिये भी महत्वपूर्ण रचनायें और बड़े रचनाकार सामने नहीं आ पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह तो माया और ममता का समय है - इसमें ऐसे आयोजन भी संभव हैं और हो रहे हैं - यह मेरे लिये संतोष और आशा का आसमान खोलते हैं।
महत्वपूर्ण साहित्यकारों को अँधेरे से निकालना होगा - विश्वरंजन
प्रमोद वर्मा संस्थान के अध्यक्ष श्री विश्वरंजन ने स्पष्ट किया कि मुक्तिबोध, हरिशंकर परसाई, श्रीकांत वर्मा और प्रमोद वर्मा ऐसे साहित्य-साधक हुये हैं जिनसे आज भी लेखक अपनी धार लेते हैं। ऐतिहासिकता में प्रमोदजी के अनदेखे किये जाने की स्थिति में यह संस्थान एक नैतिक लेखकीय दायित्व के तहत अस्तित्व में आया। इससे हम यह संदेश भी देना चाहते हैं कि ऐसे बहुतेरे महत्वपूर्ण साहित्यकार हैं जिन्हें व्यवस्थित रूप से अँधेरे में ही रखने के कुचक्र सक्रिय हैं। अतः प्रमोद वर्मा संस्थान इस प्रवृत्ति, प्रकृति और निष्क्रियता से उपजे शून्य को भरने का एक विनम्र प्रयास है। अधिकाधिक लेखकों को प्रकाशित करना इसकी एक कड़ी है।
मेरी आश्नाई की शुरुआत फ़ैज़ से – डॉ. धनंजय वर्मा
प्रखर समालोचक डॉ. धनंजय वर्मा ने विस्तार से फ़ैज़ की शायरी और उनके द्वन्द्व पर प्रकाश डालते हुये कहा कि उर्दू शायरी से मेरी आश्नाई की शुरूआत फ़ैज़ की शायरी से ही हुई थी।
साहित्य मानवीय संस्कृति का विकास करे- डॉ. अजय तिवारी
आलोचक डॉ. अजय तिवारी ने कहा कि साहित्य को इतिहास से अलग कर के नहीं देखा जा सकता। वैयक्तिक प्रतिभा के साथ इतिहास का चक्र ही ऐसे नामचीन लेखकों को जन्म देता है। क्या कारण है कि 1910-11 एक-दो नहीं 23 महत्वपूर्ण नामी-गि़रामी लेखकों जन्मशती का वर्ष है। ये तमाम लेखक स्वतंत्रता और क्रान्तिकारी आन्दोलनों की उपज हैं। हम भारत में केदार और फ़ैज़ की जन्म शताब्दी एक मंच पर एक साथ मना रहे हैं, यह भारत की सांस्कृतिक बुनियादी विशेषता है जो साहित्य में भाषा और सरहदों की सीमाओं दरकि़नार कर लोक-कल्याण को सर्वोपरि रखती है। साहित्य की यही भूमिका भी है कि वह मानवीय संस्कृति का विकास करे।
उद्घाटन अवसर पर प्रमोद वर्मा संस्थान के महासचिव व शायर मुमताज़ ने स्वागत वक्तव्य दिया। संस्थान के उपाध्यक्ष व श्री कवि रवि श्रीवास्तव ने उद्घाटन सत्र का संचालन किया। स्वागताध्यक्ष श्री अशोक सिंघई अतिथियों का पुष्पगुच्छ से हार्दिक स्वागत किया।
नयी कृतियों का विमोचन
इस अवसर पर विश्वरंजन के सम्पादन में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ पर प्रकाशित एकाग्र ‘सच जि़न्दा है अब तक’ एवं केदारनाथ अग्रवाल पर प्रकाशित एकाग्र ‘बांदा का योगी’ का लोकार्पण हुआ। इन महत्वपूर्ण संकलनों के साथ लाला जगदलपुरी की किताब ‘गीत धन्वा’, डॉ. दयाशंकर शुक्ल की पुनर्प्रकाशित ‘छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य का अध्ययन’, शिवशंकर शुक्ल की ‘डोकरी के कहिनी’, रवि श्रीवास्तव की ‘नदी थकने नहीं देती’, सुनीता वर्मा की ‘घर घुंदिया’, शंभुलाल बसंत की ‘इंक्यावन नन्हे गीत’, विश्वरंजन/आर.के. विज़/जयप्रकाश मानस की ‘इंटरनेट, अपराध और कानून’ के साथ ही जयप्रकाश मानस की तीन अन्य कृतियों ‘विहंग’, ‘जयप्रकाश मानस की बाल कवितायें’ तथा छत्तीसगढ़ की लोककथाएँ रमेश गुप्त का कविता संकलन ‘त्रिवेणी’, आदि कृतियों के लोकार्पण विशिष्ट अतिथियों द्वारा सम्पन्न हुए।
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ पर केंद्रित प्रथम सत्र ‘क़ैद-ए-क़फ़स से पहले’ में बीज वक्तव्य दिया पाकिस्तान से पधारे अब्दूर रऊफ़ । इस सत्र में कुमार पंकज, डॉ. धनंजय वर्मा, अजय तिवारी सहित मुनीज़ा हाश्मी ने फ़ैज़ की शायरी पर व्यापक विमर्श किया । सत्र की अध्यक्षता की पाकिस्तान की वरिष्ठ आलोचक आरिफ़ा सैयदा । सत्र का सुव्यवस्थित संचालन किया युवा आलोचक पंकज पराशर ने । द्वितीय सत्र ‘शामे-सहरे-यारां’ की अध्यक्षता की आलोचक याकूब यावर ने । बीज वक्तव्य दिया मौसा बख़्श ने । इस अवसर, खगेंद्र ठाकुर, डॉ. सूर्यनारायण रणसुभे, मुनीजा हाश्मी, पंकज पराशर, फ़ज़ल इमाम मल्लिक और डॉ. रोहिताश्व आदि वक्ताओं ने अपनी बात रखी ।
दो प्रतिष्ठित कवियों का सम्मान
रात्रि कालीन आयोजन में समग्र व विशिष्ट साहित्यिक योगदान के लिये उर्दू के नामचीन वरिष्ठ शायर ज़नाब बदरुल क़ुरैशी बद्र, दुर्ग एवं भिलाई के वरिष्ठ कवि श्री हरीश वाढेर को प्रमोद वर्मा सम्मान से सम्मानित किया गया । उन्हें संस्थान की ओर से शॉल, श्रीफल, प्रतीक चिन्ह और संस्थान द्वारा प्रकाशित कृतियाँ आदि प्रदान कर अंलकृत किया गया ।
अन्तरराष्ट्रीय मुशायरा ‘महफ़िल-ए-सुख़न’ सम्पन्न
प्रगतिशील शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ जन्मशती समारोह के अंतिम और रात्रिकालीन सत्र में देश-विदेश के ख्यातिलब्ध शायरों ने अपनी शायरी से फ़ैज़ साहब को याद किया और गंगा-जमुनी संस्कृति को और भी पुख़्ता करते हुये उर्दू और हिन्दी ज़ुबानों की मिलनसारिता सिद्ध की। इस अन्तरराष्ट्रीय मुशायरे की सदारत (अध्यक्षता) पाकिस्तान की मशहूर शायरा डॉ. आरिफ़ा सैयदा साहिबा ने की। लाहौर से भिलाई पधारीं फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की साहबज़ादी डॉ. मुनीज़ा हाश्मी मुख्य अतिथि थीं। मौक़े पर पाकिस्तान के जिओ टीव्ही. के डायरेक्टर अब्दूर रऊफ़ साहब एवं दुर्ग के महापौर डॉ. एस.के. तमेर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
अध्यक्षीय आसंदी से मुबारक़बाद देते हुये डॉ. आरिफ़ा सैयदा साहिबा ने कहा कि उर्दू और हिंदी भाषायें, पाकिस्तानियों और हिन्दुस्तानियों की तरह मिलनसार हैं। यह हमारी सांस्कृतिक एकरूपता का बुनियादी और ठोस बयान है। उन्होंने फ़ैज़ साहब की रचनाओं का प्रभावी पाठ भी किया। संस्थान के निदेशक श्री जयप्रकाश मानस ने तरन्नुम में फ़ैज़ साहब की ग़ज़लों का पाठ कर महफ़िल को भाव-विभोर कर दिया। देर रात तक चले मुशायरे में बनारस विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के प्रमुख डॉ. याक़ूब यावर, दिल्ली के युवा कवि व पत्रकार फ़ज़ल इमाम मल्लिक के साथ स्थानीय तथा जाने-माने शायरों में फ़ैज़ सम्मान से सम्मानित बदरूल क़ुरैशी बद्र, अशोक शर्मा, मुकुन्द कौशल, नजीम कानपुरी, क़ाविश रायपुरी, डॉ. संजय दानी, साकेत रंजन प्रवीर, डॉ. नौशाद सिद्दीकी, रामबरन कोरी ‘क़शिश’, मोहतरमा नीता काम्बोज़ और निज़ामत कर रहे शायर मुमताज़ ने अपनी नायाब रचनायें पेश कीं।
‘जहाँ गिरा मैं, कविताओं ने मुझे उठाया’
द्वितीय दिवस 15 मई, 2011 प्रगतिशील धारा के प्रमुख कवि केदारनाथ अग्रवाल जन्मशती समारोह के अन्तर्गत को देश के ख्यातिलब्ध कवियों ने कविताओं की धार से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। भिलाई निवास में देर रात तक सम्पन्न ‘जहाँ गिरा मैं, कविताओं ने मुझे उठाया’ राष्ट्रीय काव्य गोष्ठी में देश के नामचीन कवियों ने बेहतरीन कविताओं से केदारजी को शब्दांजलि दी। इस अति महत्वपूर्ण काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ. धनंजय वर्मा (भोपाल), डॉ. खगेन्द्र ठाकुर (पटना), डॉ. अजय तिवारी (नई दिल्ली), डॉ. कृष्णदत्त पालीवाल (नई दिल्ली) एवं प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के अध्यक्ष व कवि श्री विश्वरंजन, पुलिस महानिदेशक, छत्तीसगढ़ ने की।
सर्वप्रथम संस्थान के अध्यक्ष श्री विश्वरंजन ने श्रीमती सुनीता अग्रवाल (केदारजी की पौत्री) का शॉल, श्रीफल व स्मृतिचिन्ह एवं संस्थान की कृतियाँ भेंट कर सम्मान किया।
पहले चरण में केदारजी की कविताओं का पाठ उनकी पौत्री श्रीमती सुनीता अग्रवाल, संस्थान के निदेशक श्री जयप्रकाश मानस व मुमताज ने किया। अध्यक्षीय आसंदी से डॉ. खगेन्द्र ठाकुर ने आयोजन की सफलता पर बधाई देते हुये कहा कि केदारजी की कविताओं के बरअक्स उनकी शान में आज पढ़ी गई कविताओं में आज के समय की अनुगूँज है।
इस गोष्ठी की विशेषता यह रही कि अध्यक्ष मंडल से डॉ. खगेन्द्र ठाकुर एवं श्री विश्वरंजन ने भी काव्यपाठ किया। इनके साथ प्रमोद वर्मा सम्मान से सम्मानित हरीश वाढेर (भिलाई), फ़ज़ल इमाम मलिक (दिल्ली), माताचरण मिश्र (भोपाल), डॉ. सूर्यनारायण रणसुभे (लातूर), प्रो. रोहिताश्व (गोवा), भारत भारद्वाज (नई दिल्ली), नंद भारद्वाज (जयपुर), श्री श्रीप्रकाश मिश्र (इलाहाबाद), डॉ., प्रताप राव कदम (खण्डवा), रमेश खत्री (जोधपुर), संतोष श्रीवास्तव (मुम्बई), जया केतकी (भोपाल), इला मुखोपाध्याय (भिलाई), संतोष झाँझी (भिलाई), श्री रवि श्रीवास्तव (भिलाई) एवं संचालक अशोक सिंघई ने अपनी उत्कृष्ट रचनायें प्रस्तुत कीं। संस्थान के उपाध्यक्ष व कवि अशोक सिंघई ने गोष्ठी का संचालन किया। आभार व्यक्त किया संस्थान के वरिष्ठ उपाध्यक्ष व लेखक डॉ. सुशील त्रिवेदी ने ।
बिंबों की गतिशीलता में केदार अकेले कवि हैं – अजय तिवारी
दूसरे दिन 15 मई को केदार नाथ अग्रवाल जन्मशती समारोह के अंतर्गत केदार जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर अभिकेंद्रित सत्र ‘तेज़ धार का कर्मठ पानी’ के सत्राध्यक्ष और प्रसिद्ध आलोचक अजय तिवारी ने कहा कि केदार नाथ अग्रवाल मार्क्सवादी सौंदर्य चेतना के विरल कवि हैं । जिन्होंने मार्क्सवादी सौंदर्य दृष्टि से चीज़ों को देखा है । नदी, पहाड़, केन के सौंदर्य को संश्लिष्टता प्रदान की है । केदार के बिंब स्थायी नहीं गतिशील बिंब हैं । बिंबों की गतिशीलता को लेकर प्रगतिशील हिंदी कविता के केदार अकेले कवि हैं ।
सीधे और सहज रास्ते के कवि है केदार – भारत भारद्वाज
भारत भारद्वाज ने केदार अग्रवाल पर बोलते हुए ने कहा कि अग्रवाल मार्क्सवादी चेतना के सीधे और सहज रास्ते के कवि हैं । अभिव्यक्ति की जटिलता का केदार की कविता में स्थान नहीं है । अभिव्यक्ति की जटिलता को लेकर ही केदारनाथ. ने मुक्तिबोध की कविता की कहीं-कहीं आलोचना भी की है । उन्होंने यह भी कहा कि इसे रामविलास शर्मा की दृष्टि से न देखकर केदार की कविता की दृष्टि स देखा जाना चाहिए ।
केदार सामाजिकता और समष्टि के कवि हैं – कृष्णदत्त पालीवाल
प्रख्यात आलोचक कृष्णदत्त पालीवाल ने कहा कि अग्रवाल और अज्ञेय भिन्न विचारधारा के होते हुए भी दोनों के संबंध मित्रवत थे । केदारजी ने अपनी कविताएँ तार सप्तक में नहीं दी हैं । इसके कारण इतर हो सकते हैं । केदारजी और मुक्तिबोध की मित्रता उनके पत्रों से साबित होती है । जो मेरे पास धरोहर के रूप मे हैं । के. अ. सामाजिक समष्टि के कवि हैं । और अज्ञेय व्यक्तिवादी कवि होते हुए भी हिन्दी को जो कुछ उन्होंने दिया वह कम मह्तवपूर्ण नहीं है ।
इस अवसर बोलते हुए केदार जी के नाती चेतन अग्रवाल ने कहा कि मेरे नाना केदार जी बहुत ही सरल सहज और व्यक्तित्व के स्वामी थे । उन्होंने कभी भी जीवन में अपने कार्य व्वयहार में छल-छद्म को स्थान नहीं दिया । उन्होंने जो कुछ भी लिखा और जिया वो बहुत ही ईमानदारीपूर्ण था । इस अवसर पर केदार जी की पोती सुनीता अग्रवाल जी ने भी अपने संस्मरण सुनाये ।
इसके अलावा ‘बांदा का योगी’ वाले सत्र में अध्यक्ष मंडल के डॉ. धनंजय वर्मा, खगेन्द्र ठाकुर, डॉ. अजय तिवारी के अलावा डॉ. सूर्यनारायण रणसुभे, डॉ. रोहिताश्व, डॉ. श्याम सुंदर दुबे, श्री नंद भारद्वाज, डॉ. प्रताव राव कदम, डॉ. प्रकाश त्रिपाठी, श्री नरेंद्र पुंडरीक, श्री भारत भारद्वाज, कुमार वरूण आदि ने केदार के व्यक्तित्व के कई पहलुओं पर प्रकाश डाला । सत्रों का संचालन श्रीप्रकाश मिश्र और नरेंद्र पुंडरीक ने किया । इस दो दिवसीय आयोजन में केदारनाथ अग्रवाल की पौत्री श्रीमती सुनीता अग्रवाल (दिल्ली) शिरक़त करने विशेष तौर पर उपस्थित थीं।
इस अवसर पर डॉ. सुशील त्रिवेदी, रमेश नैयर, डॉ. प्रेम दुबे, श्री आरिफ़ हुसैन, डॉ. गंगाप्रसाद बरसैया, तेजेन्दर, सतीश जायसवाल, गिरीश पंकज, डॉ. सी. जय शंकर बाबु (पांडिच्चेरी), डॉ.चितरंजन कर, डॉ. तीर्थेश्वर सिंह,संतोष झांझी, मुंकुंद कौशल, अजहर कुरैशी, सुनीता वर्मा, निर्मल आनंद, कमल बहिदार, सुजीत आर. कर, मीना महोबिया, डॉ. मांघीलाल यादव, गुलबीर भाटिया, अशोक शर्मा, रौनक जमाल, यश ओबेराय, गिरीश पंकज, डॉ. चितरंजन कर, डॉ. तीर्थेश्वर सिंह, श्री दानेश्वर शर्मा, विनोद मिश्र, सरोज प्रकाश, डॉ. पी.सी.लाल यादव, त्र्यम्बक राव साटकर, शंकर सक्सेना, लोकनाथ साहू, डॉ. राधेश्याम सिंदुरिया, बल्देव कौशिक, आर. सी. मुदलियार, सरला शर्मा, डॉ. सुधीर शर्मा, राघवेंद्र सिंह, रविशंकर शुक्ल, सहित महावीर अग्रवाल, डॉ. चित्तरंजन कर, सुशील अग्रवाल, दानेश्वर शर्मा, के.पी.सक्सेना, वीरेंद्र पटनायक, हर्षवर्धन पटनायक, रमेश पांडेय, अभय तिवारी, वर्षा रावल, गायत्री आचार्य, रानू नाग, डॉ. निरूपमा शर्मा, शीला शर्मा, प्रभुनाथ सिंह, जयशंकर प्रसाद डडसेना, दिनेश माली, शाद बिलासपुरी, शेख़ निज़ाम राही कंदर्प कर्ष, वीरेंद्र बहादुर सिंह, योगेश अग्रवाल, अजय कुमार शुक्ल, अंजनी अंकुर, हर प्रसाद निडर, मंगत रवीन्द्र, प्रतिमा श्रीवास्तव, दिलीप पाटिल, शिवमंगल सिंह, महंत कुमार शर्मा, संजीव तिवारी, सईद खान, यश प्रकाशन के शांति स्वरूप शर्मा और शिल्पायन प्रकाशन के ललित शर्मा, यश ताम्रकार, पंकज ताम्रकार, सहित कई राज्यों के साहित्यकार भारी संख्या में समुपस्थित थे ।
भोपाल से जया केतकी की रपट
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