Saturday, May 28, 2011

श्यामल सुमन की कविताएँ

सम्वेदना ये कैसी?

सब जानते प्रभु तो है प्रार्थना ये कैसी?

किस्मत की बात सच तो नित साधना ये कैसी?

जितनी भी प्रार्थनाएं इक माँग-पत्र जैसा

यदि फर्ज को निभाते फिर वन्दना ये कैसी?

हम हैं तभी तो तुम हो रौनक तुम्हारे दर पे

चढ़ते हैं क्यों चढ़ावा नित कामना ये कैसी?

होती जहाँ पे पूजा हैं मैकदे भी रौशन

दोनों में इक सही तो अवमानना ये कैसी?

मरते हैं भूखे कितने कोई खा के मर रहा है

सब कुछ तुम्हारे वश में सम्वेदना ये कैसी?

बाजार और प्रभु का दरबार एक जैसा

बस खेल मुनाफे का दुर्भावना ये कैसी?

जहाँ प्रेम हो परस्पर क्यों डर से होती पूजा

संवाद सुमन उनसे सम्भावना ये कैसी?

***

रीति बहुत विपरीत

जीवन में नित सीखते नव-जीवन की बात।

प्रेम कलह के द्वंद में समय कटे दिन रात।।

चूल्हा-चौका संग में और हजारो काम।

इस कारण डरते पति शायद उम्र तमाम।।

झाड़ु, कलछू, बेलना, आलू और कटार।

सहयोगी नित काज में और कभी हथियार।।

जो ज्ञानी व्यवहार में करते बाहर प्रीत।

घर में अभिनय प्रीत के रीति बहुत विपरीत।।

बाहर से आकर पति देख थके घर-काज।

क्या करते, कैसे कहे सुमन आँख में लाज।।


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