भाषा एवं रोजगार का सम्बन्ध जोड़ने की आवश्यकता-
प्रो. कपिल कपूर
एल.एन.सी.टी. महाविद्यालय में दो दिवसीय ‘भारतीय भाषा सम्मेलन’ का समापन
भोपाल] 15 फरवरी । भाषा एवं रोजगार के सम्बन्ध को जोड़ने की आवश्यकता है। अंग्रेजी का वर्चस्व इसलिए बना हुआ है क्योंकि अंग्रेजी का रोजगार के साथ सीधा सम्बन्ध है। यदि हम इस सम्बन्ध को तोड़ने में सफल होते हैं एवं भारतीय भाषाओं के साथ रोजगार के सम्बन्धों को जोड़ते हैं, तो निश्चित ही हिन्दी एवं भारतीय भाषाएँ विकसित होंगी। शिक्षा, विधि एवं न्याय के क्षेत्र में बने भाषायी पिरामिड को भी खत्म करने की आवश्यकता है। यह विचार माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली तथा लक्ष्मीनारायण कालेज आफ टेक्नोलाजी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय "भारतीय भाषा सम्मेलन" के समापन समारोह में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलाधिपति प्रो. कपिल कपूर ने व्यक्त किए। वे रायसेन रोड स्थित एल.एन.सी.टी. कालेज के सभागार में सम्मेलन के समापन सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
उन्होंने कहा कि आज के बुद्धिजीवी भाषाओं को लेकर चिंताग्रस्त एवं हीन भावना से ग्रसित नजर आते हैं। उन्होंने बताया कि हमारे देश के पुराने शिक्षा संस्थानों एवं पुस्तकालयों को विध्वंस किया गया, उसके बाद भी हमारी भाषा एवं संस्कृति नष्ट नहीं हुई है। हमें यह याद रखना चाहिए कि दुनिया को पहला ग्रंथ एवं पहला गणितज्ञ भारत ने दिया है। हमें संस्कृत भाषा का सम्मान करते हुए उसे अनिवार्य करना चाहिए। 1947 से पूर्व संस्कृत का इतना विनाश नहीं हुआ, जितना आजादी के बाद हुआ है। हमें संस्कृत एवं भारतीय भाषाओं को मृत भाषा मानने के भ्रम से बाहर आना चाहिए। संस्कृत एवं भारतीय भाषाओं का विशाल समृद्ध साहित्य आज भी उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि देश के 72 प्रतिशत लोग हिन्दी जानते हैं केवल 4 प्रतिशत लोग ही अंग्रेजी भाषी हैं, उसके बाद भी हमारे देश में अंग्रेजी का वर्चस्व बना हुआ है। हमें इस भ्रम को तोड़ना है। हमें अपने देश को उन लोगों को वापस करना है जिनका यह देश है, और यह तब सम्भव होगा जब हम भारतीय भाषाओं को पूर्ण सम्मान दिला पाने में सफल होंगे।
सम्मेलन के सामूहिक सत्र में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के भाषा सलाहकार आचार्य चम्मू कृष्ण शास्त्री ने कहा कि भाषा के क्षेत्र में सफलता लोगों का मन एवं हृदय जीतकर प्राप्त की जा सकती है। भाषा के उत्थान के लिए सरकारी प्रयास की तुलना में समाज के प्रयास अधिक होना चाहिए। उन्होंने आगामी 21 फरवरी को आयोजित हो रहे मातृभाषा दिवस को पूरे गौरव के साथ मनाये जाने की अपील की। उन्होंने कहा कि देश में भाषा उत्सव मनाया जाना चाहिए साथ ही भाषा शिक्षण के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए। भाषा विशेषज्ञ श्री प्रेमनाथ पाण्डेय ने कहा कि अभ्यास पूर्वक ही भाषा को जीवित रखा जा सकता है। हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मोहनलाल छीपा ने कहा कि भारत की चिति स्वरोजगार करने की रही है। भारत में असंगठित क्षेत्र के 94 प्रतिशत लोग हिन्दी बोलते हैं और स्वरोजगार कर रहे हैं। अतः यह धारणा गलत है कि अंग्रेजी से ही रोजगार की संभावनाएं बढ़ती हैं। पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि व्यक्तिगत एवं संस्थागत स्तर पर कार्य कर हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं को बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए हमें प्रयास और तेज करने होंगे। विकिपीडिया में हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं को कैसे बढ़ाया जाए और उस पर कैसे कार्य किया जाए, इस पर कार्ययोजना बनाने की आवश्यकता है। हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं में विकिपीडिया पर कार्य करने के प्रशिक्षण में पत्रकारिता विश्वविद्यालय सहयोग करेगा। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं के मध्य आपसी संवाद को बढ़ाकर भी भाषाओं के प्रति सम्मान एवं प्रेम विकसित किया जा सकता है। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के श्री अतुल कोठारी ने कहा कि भाषा के स्वाभिमान से ही भाषा को जीवित रखा जा सकता है। उन्होंने बताया कि इस सम्मेलन में हुए विमर्श के आधार पर एक आगामी कार्ययोजना बनाई जायेगी, जिसे केन्द्र एवं राज्य सरकार के समक्ष क्रियान्वयन हेतु रखा जाएगा।
सम्मेलन के समापन सत्र के दौरान शिक्षा एवं भाषा सत्र का वृत्त प्रतिवेदन हिन्दी विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका डा. रेखा राय ने रखा। विधि एवं न्याय क्षेत्र में भारतीय भाषाएँ का प्रतिवेदन डा. आनंद पालीवाल,वित्तीय क्षेत्र में भारतीय भाषाएँ डा. मोनिका वर्मा तथा संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय भाषाएँ का प्रतिवेदन श्री बृजेन्द्र शुक्ला ने प्रस्तुत किया।
डा. पवित्र श्रीवास्तव
निदेशक, जनसंपर्क
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