Friday, January 2, 2015

एक सैनिक की इच्छा (कविता)

कविता
एक सैनिक की इच्छा
-    - सी. जय शंकर बाबु 
यह धरती
मेरी सबसे प्यारी
माँ की यही धात्री है
माँ ने इसी ज़मीन पर मुझे जन्म दिया
इसी मिट्टी में मैं पला बढ़ा
इसी मिट्टी की उपज से मुझे हर पल
बल मिलता रहता है,
इसी मिट्टी के तपन से मुझे हर पल
ऊर्जा मिलती रहती है
इसी मिट्टी की महक से मुझे हर पल
स्फूर्ति मिलती रहती है,
इसी मिट्टी की हरियाली से मुझे हर पल
साहस मिलता रहता है
यह मिट्टी इतनी उपजाऊ की
सवा करोड़ मेरे भाई-बहनों को
लगातार अन्न देनेवाली यह अन्नपूर्णा है
इस मिट्टी का हर रेत कण और पत्थर
हीरे और मोती और जवाहरत हैं
अपनी संतान के पालन-पोषण में
सक्षम सुसंपन्न रत्नगर्भा है यह धरती
इसी धरती ने मुझे
बालक से किशोर बनाया
मुझे वीर बनाया, शूर बनाया
तपोनिष्ठ सैनिक बनाया
यह धरती मेरी, तेरी, हम सब की है
यह धरती प्यारी, न्यारी, इन्सानी की है
इन्सानियत की यह पोषक है
हर इन्सान के लिए यह स्वर्ग द्वार है
सबके लिए खुला मंदिर है यह धरती
यह धरती हम सबकी जननी है
माँ ने मुझे घुट्टी पिलाते हुए मेरे कानों में फूँका है -
मेरी असली माँ यह धरती है
मेरी भी असली माँ यह धरती है
जननी से जन्नत से बढ़कर
हमारी रक्षक है
हमारी शिक्षक है
आजीवन हमारी पोषक है
इसकी सेवा करना मेरा फ़र्ज़ है
इसकी रक्षा करना मेरा फ़र्ज़ है
मैं सैनिक हूँ, माँ का सच्चा सेवक
मैं सैनिक हूँ, माँ का सच्चा रक्षक
मैं अपनी आख़िरी साँस तक इस धरती की रक्षा करूँगा
मेरी इस धात्री से बढ़कर अगर कोई ईश्वर होगा तो
उनसे भी मैं यही प्रार्थना करूँगा कि
मुझे असीम, अमिट शक्ति दो
धरती माँ से मिली ऊर्जा से मैं लड़ते रहूँ आख़िरी दम तक
मेरे ख़ून की आख़िरी बूँद तक इसी मिट्टी में मिल जाए
भले ही शत्रु को मैं मुर्दा मिल जाऊँ
मेरा कण-कण इस मृदा में ही मिल जाए
मेरी इस धरती को बचाने की लड़ाई में
आख़िरी साँस तक मैं लड़ता रहूँगा,
इस धरती के ख़ातिर अगर मेरा कत्ल भी हो जाए,
मेरे शत्रु के दिमाग में ऐसी इच्छा भर दो कि
वह मेरी लाश को इसी ज़मीन पर खींचते ले जाए कि
मेरे बदन के हर कण
इसी मिट्टी में सूखते जाए
मेरे लहू की हर बूँद इसी ज़मीन को सींचते जाए
धरती माँ का मैं अंश हूँ
मैं उसी में मिल जाऊँ
मैं उस के लिए ही मर मिट जाऊँ
मैं उसी का रह जाऊँ
मैं अपने ख़ून के कण-कण से
अपनी धरती-माँ के भाल पर
सिंदूर बन जाऊँ
हार नहीं मानूँगा मैं शत्रु से
अपनी माँ की रक्षा के लिए
अपने सवा करोड़ भाई-बहनों की रक्षा के लिए
हर पल मैं अपनी बलि देने के लिए
तत्पर रहूँगा
माँ भारती की इस पावन धरती के लिए

हमेशा नतमस्तक रहूँगा ।

No comments: