“आओ
चलें ...”
- रोली अभिलाषा
जहाँ हम सोते थे कल
कोई और आ गया
ये तो हमारे हिस्से का था,
अपना फुटपाथ भी
अब तो
हाथ नहीं आता है
कहते हैं सभी
ये गुदडियां समेट लो
अपने सोने का बिस्तर
कहीं और ले जाएँ
आओ चलो मंगल पर
चटाई बिछाएं ...
कुछ गिद्धों की नज़रें
लगी हैं
हमसे हमारा घरौंदा छीनने में
कुछ लोग इन ग्रहों पर
गिद्ध नज़र लगाये हैं,
अगर हम बोझ हैं
इस धरती का
तो क्यों न
निकल जाएँ
आओ चलो मंगल पर
चटाई बिछाएं ...
कल शहर का
एकमुश्त
सुंदरीकरण किया जायेगा
हमारे लिए वहाँ तक
कोई राकेट न लांच होगा
न ही कोई लाइव
टेलीकास्ट किया जायेगा
अब यहाँ जीने की घुटन
और क्यों बढ़ाएं,
यार चलो मंगल तक
पैदल ही निकल जाएँ,
आओ चलो मंगल पर
चटाई बिछाएं ...
हम हैं बेघर बंजारे
कोई और क्यों जाए ।
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