आलेख
आऴवारों की
भक्ति
-
सिमी. एस. कुरुप*
तमिऴ
का विशाल भक्ति साहित्य
दो भागों में प्राप्त
है
- वैष्णव भक्ति साहित्य और
शैव भक्ति साहित्य I तमिऴ के वैष्णव
भक्त कवि ‘आऴवार’ नाम से
प्रसिद्ध हैं I आऴवारों का काल
सामान्यतया पाँचवीं शताब्दी और
नवीं शताब्दी के बीच
में माना जाता है
I ‘आऴवार’ श्ब्द से
आशय उस व्यक्ति से
है जो भगवद्-भक्ति और
भगवद् गुणों के अनुभवों
में मग्न रहने के
कारण भगवान पर प्रेमपूर्ण
आधिपत्य करता हो I आज ‘आऴवार’ के नाम
से बारह वैष्णव भक्त
प्रसिद्ध हैं जिनके पदों
का संकलन नाथ मुनि
ने नवीं शती के
अन्त में ‘दिव्य प्रबन्धम्’
के नाम से किया
था I सभी आऴवार
तमिऴ-भाषी थे I
ग्रन्थों
में आऴवारों की जीवन-घटनाओं
से सम्बन्धित अनेक
चमत्कारपूर्ण और अलौकिक कथाएं
दी गयी हैं I वैष्णव संत कवयत्रि
अंडाऴ के बारे में
कहा जाता है कि
अंडाऴ पेरियाल्वार की
पोष्य पुत्री थी I आऴवारों के विषय
में अनेक जनश्रुतियाँ तमिऴनाड़ु
में प्रचलित हैं, जो भक्त
हृदय की श्रद्धापूर्ण कल्पनाएँ
हैं I आऴवारों के
जीवनवृत्त से यह पता
चलता है कि वे
बहुत ही उच्च आदर्शों
को लेकर जीते थे
I प्राय: सभी आऴवार
साधारण श्रेणी के मनुष्य
थे I सांसारिक वैभवादि
की ओर उनका आकर्षण
तनिक भी नहीं था
I इन भक्तों के
बीच तथाकथित ऊँच - नीच सभी
जाति के लोग थे I भगवद्-भक्ति एवं
आत्मोन्नति ही उनका परम
उद्देश्य था I उन्होंने
सभी जाति और वर्ग
के लोगों को अपनाया
था I
श्री
नाथ मुनि वैष्ण्व सम्प्रदाय
के प्रथम आचार्य माने
जाते हैं I नाथ
मुनि विष्णु मन्दिर और
आऴवार संतों को जोड़नेवाली
पहली कड़ी बने I उन्होंने आऴवार
के पदों को अनुष्ठान
की भाषा बनाया I उन्होंने प्रबन्धम्
का जो संपादन किया
उसे
‘चार सहस्र दिव्य प्रबन्धम्’ कहा जाता
है I श्री वैष्णव
सम्प्रदाय के कट्टर ब्राह्मण
इन्हें चारों वेदों की
समीक्षा मानते हैं I उन्होंने अपने
घरेलू धार्मिक कृत्य और
मन्दिर के अनुष्ठान में
प्रबन्धम् के पदों को
वेदों के समान ही
स्थान दिया है I आऴवारों का जीवन
आदर्शों का अद्भुत नमूना
था,
इसलिए भक्त उनको अवतार
तक समझते थे I दक्षिण भारत में
कई तीर्थ-स्थानों पर
आऴवार भक्तों की प्रतिमाएँ
देव मूर्तियों के
समान पूजी जाने लगीं
I
ऐसा
जान पड़ता है कि
आऴवारों की रचनाओं के
लिए जो नाम आज
हम देखते हैं, वो उनके
द्वारा दिये हुए नहीं
हैं,
क्योंकि उनकी कोई भी
रचना उनके जीवन-काल में
संग्रहीत नहीं हुई थी
I मौखिक रूप में
ही इनके पद शताब्दियों
तक जानते रहे I इसलिए ऐसा भी
अनुमान किया जा सकता
है कि इनमें से
बहुत से पद नष्ट
हो गये हो I नवीं शताब्दी के
अन्त में श्री नाथ
मुनि ने बड़े परिश्रम
से इन पदों का
संकलन किया था I इन पदों का
नाम ही ‘दिव्य प्रबन्धम्’
है I इन पदों
की संख्या ४००० के
लगभग है I अतः सुविधा के लिए
इस पद संग्रह को ‘चार
सहस्र पावन पद’ की संज्ञा
दी गयी है I
श्री
नम्माऴवार की रचना ‘तिरुवायमोलि’ समस्त आऴवार
साहित्य में महत्वपूर्ण है
I ‘तिरुवायमोलि’ का अर्थ
है
‘दिव्यवाणी’ I इसे ‘सामवेद’ भी कहते
हैं I तमिऴ भक्ति
साहित्य में सबसे मुख्य
स्थान ‘नम्माऴवार’ का है, जिसे
वैष्णव कुलपति भी कहते
हैं I कहा जाता
है कि रामानुजाचार्य ने
ब्रह्म-सूत्रों पर भाष्य
लिखते समय अपने सन्देहों
का समाधान नम्माऴवार की
रचनाओं को देखकर किया
था I तेलुगु और
कन्नड़ में तिरुवायमोलि का
अनुवाद हो चुका है
I संस्कृत में ‘सहस्र गीति’ के
नाम से वह श्ऴोकों
में अनूदित है I श्री स्वामी वेदान्त
देशिक के शब्दों में
ये कवीन्द्र थे
और इन्होंने इनको
कविमुख्योपाधि से विभूषित किया
है I
"भक्ति
द्राविड़ ऊपजी, लाये रामानन्द"
यह उक्ति तमिऴनाड़ु के
भक्ति आन्दोलन की ओर
संकेत करती है जो
वैष्णव भक्त आऴवारों के
द्वारा चलाया गया था
I आऴवार संतों ने
भक्ति का जो आन्दोलन
चलाया वह एक व्यापक
जन-आन्दोलन
बनकर पूरे भारत में
व्याप्त हो गया I आऴवारों की रचना ‘दिव्य प्रबन्धम्’
भक्ति आन्दोलन का मूल
ग्रन्थ माना जाता है
I
डॉ. ग्रियर्सन
ने पन्द्रहवीं और
सोलहवीं शताब्दीं के
उत्तर भारतीय भक्ति आन्दोलन
के विषय में कहा
है
-: "कोई भी व्यक्ति जिसे
पन्द्रहवीं तथा बाद की
शताब्दियों के साहित्य का
अध्ययन करने का अवसर
प्राप्त है, उस भारी
व्यवधान को लक्ष्य किये
बिना नहीं रह सकता, जो
प्राचीन और नूतन धार्मिक
भावनाओं में दृष्टिगोचर होता
है I हम अपने को ऐसे
धार्मिक आन्दोलन के सामने
पाते हैं जो उन
सब आन्दोलनों से
अधिक विशाल है, जिन्हें भारतवर्ष
ने कभी देखा है
I इस युग में धर्म
ज्ञान का नहीं, अपितु भावावेश
का विषय हो गया
था"I
हमें
ऐसा कहना पड़ता है
कि भक्ति आन्दोलन के
बारे में लिखनेवाले लेखकों
के सामने तमिऴ प्रदेश
के भक्ति आन्दोलन का
वास्तविक चित्र नहीं था
और आऴ्वारों के
विषय में पर्याप्त ज्ञान
भी नहीं था I अतः उन लोगों
ने आऴ्वारों के
द्वारा चलाये गये भक्ति
आन्दोलन की ओर कम
ध्यान दिया है I
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*सिमी. एस. कुरुप डॉक्टर .के.
पी.
पद्मावती अम्मा, प्रोफ्रेसर एवं
विभागाध्यक्षा (हिंदी) कर्पगम विश्वविद्यालय
(तमिऴनाडु) में पी.एचडी. की उपाधि के लिए शोधरत हैं ।
1 comment:
बहुत अच्छी जानकारी साधुवाद!
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