"हिंदी राष्ट्र को एक सूत्र में जोड़नेवाली कड़ी है"
– कुलपति आचार्य विष्णु
पोत्ति
"हिंदी को अपनाओ - राष्ट्र गौरव बढ़ाओ"
– वक्ताओं का आह्वान
तमिलनाडु के कांचीपुरम स्थित श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती विश्वविद्यालय में
मंगलवार दि.17 सितंबर, 2013 को हिंदी दिवस समारोह हिंदी भाषाई निष्ठा एवं गरिमा के
साथ मनाया गया । विश्वविद्यालय के श्री
आदिशंकर सभागार में आयोजित समारोह की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य
वी.एस. विष्ण पोत्ति जी ने की । इस समारोह
के मुख्य अतिथि के रूप में पांडिच्चेरी केंद्रीय विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य
डॉ. सी. जय शंकर बाबु उपस्थित थे ।
कुलपति आचार्य विष्णु पोत्ति अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि हर देश की उनकी ही
राष्ट्रभाषा होती है, जो समूची जनता भावात्मक एकता का माध्यम बन जाती है । हिंदी भारत को एक सूत्र में जोड़नेवाली मझबूत
कड़ी है, इसी आलोक में भारतीय संविधान सभा ने 14 सितंबर, 1949 को हिंदी को भारत
संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकृति दी है ।
बहुभाषाई परिवेश में एक संपर्क भाषा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने
कहा कि भाषाओं की विविधता की वजह से हमारी भावनाएँ एक दूसरे से पृथक न करें, इसके
लिए एक माध्यम भाषा की जरूरत होती है जिससे एकता संभव है और भारत में ऐसी विशिष्ट
भूमिका हिंदी निभा रही है । दक्षिण में
हिंदी प्रचार-प्रसार की जरूरत एवं महत्व के आलोक में ही देश के कई विश्वविद्यालयों
में हिंदी अध्ययन विभागों की स्थापना की गई है ।
उन्होंने कहा कि श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती विश्वविद्यालय में हिंदी
विभाग की स्थापना इसी उद्देश्य से की गई है जिसका उत्तरोत्तर विकास स्नातकोत्तर
एवं शोध अध्ययन की सुविधाओं के साथ सुनिश्चित किया जाएगा । विश्वविद्यालय के मानविकी एवं संस्कृत विद्यापीठ के अध्यक्ष आचार्य नारायण जी
झा ने अपने संबोधन में कहा कि संस्कृत की सबसे प्यारी बेटी हिंदी है । हिंदी को जो स्थान व्यावहारिक धरातल पर मिलना
चाहिए वह कुछ निहित स्वार्थों की वजह से वंचित है । यह दुरवस्था हमेशा के लिए नहीं रहेगी, हिंदीतर
प्रदेश में हिंदी के प्रति आदर व लोकप्रियता ही इसका प्रमाण है कि हिंदी का भविष्य
उज्जवल है । समारोह में प्रबंधन विद्यापीठ
के अध्यक्ष आचार्य के.पी.वी. रमणकुमार, अभियांत्रिकी विद्यापीठ के अध्यक्ष आचार्य
के. श्रीनिवास, शिक्षा एवं विज्ञान विद्यापीठ के अध्यक्ष आचार्य के.वी.एस.एन.
मूर्ति, विशिष्ट अतिथि के रूप में उप स्थित श्री कांचीकामकोटि पीठाधिपति जगद्गुरु
श्री शंकराचार्य श्री मठ संस्थानम् के प्रतिनिधि श्री शर्मा जी तथा राष्ट्रीय
संस्कृत विद्यापीठ के साहित्य विभाग के अध्यक्ष, आचार्य जी.एस.आर. कृष्णमूर्ति ने
अपने वक्तव्य में हिंदी के महत्व, हिंदी के सांस्कृतिक एवं साहित्यिक विशिष्टता के
विविध आयामों पर प्रकाश डालते हुए हिंदी को अपनाने की प्रासंगिकता पर बल दिया तथा
अपील की कि हिंदी को अपनाकर राष्ट्र गौरव बढ़ाओ ।
मुख्य अतिथि एवं पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के सहायक प्रोफ़ेसर
डॉ. सी. जय शंकर बाबु ने अपने विस्तृत भाषण में हिंदी के ऐतिसाहिसिक परिप्रेक्ष्य
और बहुभाषाई परिवेश में एक संपर्क भाषा के महत्व पर प्रकाश डाला और छात्रों द्वारा
हिंदी अपनाने, हिंदी में अध्ययन व शोध के लाभों तथा रोज़गार के अवसरों से अवगत
कराया । दक्षिण में हिंदी के प्रवेश के संबंध में स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि
लगभग एक हजार वर्षों पूर्व ही तीर्थाटन के माध्यम से दक्षिण भारत में हिंदी का
प्रचलन हुआ था । दक्षिण भारत को भाषाई
सद्भावना की उर्वरभूमि के रूप में अभिहित करते हुए उन्होंने कहा कि 18 वीं सदी में
केरल तिरुवितांकूर के राजवंश में जन्म राजा रामवर्मा ने हिंदुस्तानी व ब्रज के कई
गीत रचे थे । स्वाति तिरुनाल के नाम से वे
संगीत जगत में विख्यात हुए हैं । आजादी
आंदोलन के दौरान हिंदी प्रचार-प्रसार एवं शिक्षण के प्रयासों के संबंध में स्पष्ट
करते हुए उन्होंने यह तथ्य उजागर किया कि दक्षिण में गांधी जी के आह्वान पर हिंदी
साहित्य सम्मेलन द्वारा हिंदी प्रचार अभियान शुरू होने से लगभग एक दर्जन वर्ष
पूर्व ही 1907 में ही तमिल के महाकवि सुब्रमण्य भारती ने चेन्नई के तिरुवितांकूर
(वर्तमान ट्रिप्लिकेन में) हिंदी कक्षाओं का आयोजन करवाया था और उन्होंने भाषाई
प्रेम का विशिष्ट उदाहरण उपस्थित करते हुए उसी अवधि में अपने संपादन में प्रकाशित इंडिया
अखबार में हिंदी पाठ धारावाहिक प्रकाशित करके जनता को हिंदी सीखने की प्रेरणा दी
थी । गांधीजी ने 1918 मार्च में इंदौर में संपन्न हिंदी साहित्य
सम्मेलन के वार्षिक अधिवेशन के सभापति के रूप में यह इच्छा जतायी थी कि दक्षिण
भारत में हिंदी का प्रचार-प्रसार किया जाए ।
गांधीजी मानते थे कि हिंदी भारत को एकता के सूत्र में जोड़नेवाली कड़ी है
। गांधीजी तथा आजादी आंदोलन में शामिल
लगभग समूचे नेताओं ने एक संपर्क भाषा के रूप में हिंदी के प्रचार पर बल दिया था,
जिसके परिणामस्वरूप और बड़ी संख्या में बोली व समझी जानेवाली जन भाषा होने के नाते
हिंदी को आजाद भारत की संविधान सभा ने राजभाषा के रूप में स्वीकृति दी थी । उन्होंने राजभाषा संबंधी संवैधानिक प्रावधानों
के आलोक में तत्पश्चात राजभाषा अधिनियम व नियम के बनने और देश में राजभाषा के रूप
में वर्तमान स्थिति के आलोक में युवा पीढ़ी को आह्वान दिया कि अंतर्राष्ट्रीय भाषा
के रूप में तथा संयुक्त राष्ट्र संघ की एक राजभाषा के रूप में हिंदी को स्वीकृति
दिलाने की दिशा में हमें हर किसी को अपनी भूमिका सुनिश्चत करने की जरूरत है । उपलब्ध सूचना एवं संचार तकनीकों का प्रयोग करते
हुए हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं के विकास में युवा पीढ़ी निश्चय ही योगदान दे
सकती हैं जिससे कि विविधता में एकता वाली संकल्पना साकार हो जाएगी । हिंदी में उपलब्ध रोज़गार के अवसरों पर भी
उन्होंने विस्तार से प्रकाश डाला ।
विश्वविद्यालय के कुल सचिव आचार्य डॉ. जी. श्रीनिवासु ने स्वागत भाषाण दिया और
हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. डी. नागेश्व राव ने कार्यक्रम का संचालन किया
। हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित
विविध प्रतियोगिताओं के विजेताओं को कुलपति, मुख्य अतिथि तथा कुल सचिव के करकमलों
से पुरस्कार व प्रमाणपत्र वितरित किए गए ।
हिंदीतर प्रदेश में हिंदी दिवस के इस कार्यक्रम में हिंदी के अनूठे महौल ने श्रोताओं को अभिभूत कर दिया ।
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