आलेख
संवेदनओं के
विविध धरातलः ‘रातरानी’ नाटक के विशेष संदर्भ में
* डी॰ राजेन्द्र बाबू
संवेदना क्या है?
‘संवेदन’ या ‘संवेदना’ शब्द का उद्भव संस्कृत भाषा से हुआ है ।
यानि इसका मूल रूप संस्कृत है । इसका शाब्दिक अर्थ होता है -– ‘प्रत्यक्ष ज्ञान’ । इसका व्यापक अर्थ है - ’जानकरी, तीव्र
अनुभूति, भोगना, अनुभूति देना,
आत्मसमर्पण करना’ इत्यादि । ख्यतिप्राप्त
नामलिंगानुशासन अमरकोश ‘’संवेदना’’ शब्द का अर्थ ’सम्यक ज्ञान’ देता है । उसमें स्पष्ट किया गया है कि यह शब्द सुख दुखादि अनुभवों की संज्ञा
है। ’संवेदना’ का उपसर्ग रहित ’वेदना’ शब्द दुखानुभूति का पर्यायवाची शब्द है ।
संवेदना के लिये अंग्रेजी में सेंसिबिलिटि
शब्द का प्रयोग भी होता है । मानक हिंदी-अंग्रेजी कोश
में इसका विस्तार से अर्थ विश्लेषण किया गया है ’ग्राह्यता,
इंद्रिय ग्राह्यता, एहसास, बंधन
हीनता, भावात्म प्रतीकों के प्रति विशेष निर्बंधता, अनुभूति शीलता आदि ।
चिंतामणि के कर्ता आचार्य रामचंद्र शुक्लजी ने अपने ’भावों और मनोविकारों ’ की विसतृत चिंतन में व्यक्तत किया है कि मूल अनुभूतियाँ दो ही हैं - ’सुख और दुख’ । वे लिखते हैं "सुख और दुख की मूल
अनुभूति ही विषय भेद के अनुसार प्रेम, हास, उत्साह, आश्चर्य, क्रोध, भय, करुणा, घृणा
इत्यदि मनोविकारों का जटिल रूप धारण करता है ।
शुक्लजी के ये विचार यह व्यक्त करता है कि सुख-दुखात्मक मूल अनुभूतियों से ही संवेदनाओं के विभिन्न धरातल रूपायित होते हैं । यह
अनुभूति जितनी गहरी और दृढ होती है उतनी ही गहरी संवेदनाओं भी होती है । तब
संवेदना के स्वरूप को लेकर निष्कर्ष यह निकाल जा सकता है कि स्थयी भावों की - मूल
अनुभूतियों की - साधारणीकृत होने युक्त स्थिति को ही ’संवेदना शब्द से अभिहित किया जा सकता है ।
संवेदना के विविध क्षेत्र
विभिन्न अनुभूतियों से संबद्ध इस मानवीय संवेदना के विभिन्न धरातल होते
हैं। संवेदना के विभिन्न धरातलों का वर्गीकरन निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता
है। पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, यौन
विष्यक, प्रेम विषयक इत्यादि |
डॉ. लक्ष्मिनारयण लाल के ‘रात रानी’
नाटक में संवेदना के विविध धरातल
समकालीन संवेदनओं को प्रस्तुत करनेवाले
नटककरों में डॉ.लक्ष्मिनारयण लाल का विशेष महत्वपूर्ण
स्थान है । उन्होंने अपने नाटकों में पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, नैतिक
एवं अनैतिक पक्ष को उजागर करते हुए नटक लिखे हैं । यहाँ हम उनके बहुचर्चित नाटक ‘रातरानी’ में संवेदनाओं के धरातल पर विचार करें ।
रातरानी
इस नटाक की कथावस्तु संपन्न वर्गीय पारिवरिक वातावरण से संबंधित है । जयदेव संपन्न परिवार का है जो एक प्रेस का मालिक है । जयदेव की पत्नी
कुंतल मध्य वर्ग की है । कुंतल के पिता स्थानीय वातावरण में प्रतिष्ठा प्राप्त
व्यक्ति थे । उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह अपने एक मित्र इंजिनीयर के पुत्र
जयदेव से किया । जयदेव के पिताजी ने पचहत्तर रुपये की कमाई अपने पुत्र के नाम बैंक
में रख छोड़ी है । इस नाटक के केंद्र
पात्र जयदेव और उसकी पत्नी कुंतल है । जयदेव शुद्ध अर्थवादी है । धन पर उनका अधिक
ध्यान है । धन कमाने के लिये उसने अपने घर का खर्च तक काट रखे हैं । प्रेस के
मज़दूरों को बोनस न देकर उन्होंने उस बचत को अपनी सुख-सुविधाओं के लिए लगा दिया है
। प्रेस के मज़दूर हडताल करने से प्रेस बंद हो जाता है ।
जयदेव का सारा समय होटल में और ताश खेलने में व्यतीत होता है । उसकी पत्नी कुंतल का जीवन जयदेव के जीवन से बिलकुल भिन्न हैं । वह अपने
को घर की देवी मानती है । वह अपना सारा समय घर के काम काज में बिताती है । उसका एक
फुलवारी है । जिसमें उसने अपना मन पूर्ण रूप से लगा दिया है । प्रेस के मज़दूरों से
कुंतल की बड़ी सहानुभूति है । जयदेव से छिपकर वह मज़दूरों की सहायता करती है ।
अर्थलाभ
की दृष्टि से जयदेव अपनी पत्नी को नौकरी के लिए प्रेरित करती है । कुंतल को पहले
एक यूनिवर्सिटी में संगीत अध्यपिका का पद प्राप्त होता है । लेकिन जल्दी ही उस
नौकरी से इस्तीफा दे-देकर वह एक महिला विश्वविद्यलय की नौकरी स्वीकार करती है ।
होटल का भोजन, शराब और ताश खेल में जयदेव अपने बैंक की
रकम पचहतर हजार रुपए उड़ा देता है । अंत में
ताश के खेल के मुनाफ़े के बीस रुपए तक देने में जयदेव असमर्थ हो निकलता है । कुंतल
अपने वेतन से बीस रुपए प्रकाश को देकर कर्ज अदा करती है । इतने में प्रेस के
मज़दूरों के स्ट्राइक को समाप्त करने के लिए, उन्हें बोनस देने
केलिए, कुंतल बडी कोशिश करती है । वह अपने गहने बेचकर मज़दूरों की माँग को पूरी कर
देना चाहती है
| वह अकेली विद्रोही मज़दूरों के बीच जाती है तो विद्रोहियों
का जुलूस शांत हो जाता है ।
वैयाक्तिक धरातल :
संवेदन के वैयक्तिक धरातल के अनेक पहलू होते हैं ।
स्त्री-पुरुष संबंध
डॉ. लाल ने पच्चीस से अधिक नाटक लिखे हैं । उनमें से अधिकांश नाटकों का मुख्य विषय स्त्री-पुरुष संबंध है । स्त्री और पुरुष दो स्वतंत्र इकाई
हैं । दोनों का पृथक और स्वतंत्र अस्तित्व है । स्त्री - पुरुष मिलन प्रकृति के
अस्तित्व के लिए अनिवार्य है । सृष्टि की पूर्णता के लिए स्त्री-पुरुष के बीच
समर्पण और पारस्परिक विलय होना है । लेकिन सच तो यह है कि इस समर्पित मिलन में
दोनों अपने व्यक्तित्व पर विलय नहीं कर पाते । क्योंकि दोनों वस्तुत: स्वतंत्र इकाई
है । इसका फल होता है संघर्ष । यह संघर्ष
सनातन है ।
रातरानी नाटक में भी डॉ. लाल स्त्री-पुरुष के तनाओं से बरी दाम्पत्य जीवन
की कथा कहते हैं । जयदेव ओर कुंतल के दृष्टिकोणों में अंतर होने के कारण उनका
दाम्पत्य जीवन तनावपूर्ण है । लेकिन कुंतल
का प्रेम यथार्थ प्रेम है । उसमें शंका की कोई गुंजाइश नहीं
है । एक बार हडतालियों का जुलूस जयदेव के घर की ओर आता देखकर कुंतल उन्हें समझाने
के लिये दौड़ पड़ती है। बीच में वह गिरकर घायल होती है । फिर भी वह खुशी से कहती
है _
"चोट सिर्फ मेरे माथे पर ही है और केसर का फूल (सुहाग) मेरे
आँचल में बंधा है" ।
जयदेव और कुंतल के बीच दूंदू प्ररंभ होता है , दोनों के इस वार्तालाप
से –
कुंतल : लो ये रुपए । हर चीज़ को तुम रुपए में आँकते
हो ।
जयदेव
: (रुपया पोकट में रखता हुआ ) यह अर्थयुग (एकनॉमिक एज)
यही मूल बीज है, दूंदू का जो शनै: शनै: विकसित होता है ।
जयदेव नारी के दो रूप देखना चाहते हैं - पत्नी और संपत्ति दायिनी लक्ष्मी । इसे पत्नी
के भी दो अलग - अलग रूपों की आकांक्षा है - "घर में एक बाहर दूसरा " ।
कुंतल पात्र द्वारा डॉ. लाल इस तत्व का उद्घाटन करना चाहते हैं कि घर को बनए
रखने में स्त्री का बहुत बल है, पत्नी घर रूपी बगीचे की रातरानी है जो
अपने स्नेह से पति के जीवन में सुख - सुरथि, संतोष और तृप्ती का झरना
प्रवाहित कर देता है ।
निष्कर्ष
संवेदना व्यक्ति मन की उपज है। यह देश-काल-समय और
व्यक्तिविशेष के अनुसार बद्लती रहेगी । एक ही घटना पर विभिन्न मानसिक अवस्था
रखनेवाले व्यक्तियों की संवेदना और उसकी प्रतिक्रियाएँ अलग-अलग होंगी । अर्थित
संवेदना का किसी निश्चित रूप या भाव तल नहीं होता।
* डी॰ राजेन्द्र बाबू कर्पगम विश्वविद्यालय, कोयम्बत्तूर, तमिलनाडु में डॉ. के.पी. पद्मावति अम्माल के निर्देशन में शोधरत हैं ।