Thursday, May 16, 2013

बुन्देली मुक्तिका:

बुन्देली मुक्तिका:

बात नें करियो

संजीव
*
बात नें करियो तनातनी की.
चाल नें चलियो ठनाठनी की..

होस जोस मां गंवा नें दइयो
बाँह नें गहियो हनाहनी की..

जड़ जमीन मां हों बरगद सी
जी न जिंदगी बना-बनी की..

घर नें बोलियों तें मकान सें
अगर न बोली धना-धनी की..

सरहद पे दुसमन सें कहियो
रीत हमारी दना-दनी की..

2 comments:

देवदत्त प्रसून said...

मुझे तो मुक्तिकाएं रोचक लगीं और सरल भी !

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

पढकर आनन्द आ गया .बुन्देली रचना बहुत कम मिल पाती है पढ़ने को ..मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है