Saturday, July 14, 2012

गीता का हिंदी काव्य अनुवाद विमोचित

गीता का हिंदी काव्य अनुवाद विमोचित



 गीताधाम, ग्वारीघाट जबलपुर में प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव विदग्धद्वारा श्रीमद भगवत गीता के समस्त संस्कृत श्लोको का हिन्दी काव्य मे श्लोकषः अनुवाद कर तैयार ग्रंथ का विमोचन महा मण्डलेश्वर नृसिंह पीठाधीश्वर डॉ. स्वामी श्यामदास जी महाराज, गीताधाम, जबलपुर, महा मण्डलेष्वर स्वामी अखिलेष्वरानंद गिरि अध्यक्ष समन्वय परिवार ट्रस्ट एवं श्री कृष्णकांत चतुर्वेदी पूर्व निदेषक कालीदास अकादमी के करकमलो से संपन्न हुआ। कार्यक्रम का संचालन श्री राजेश पाठक प्रवीण द्वारा किया गया। इस अवसर पर नगर की सक्रिय साहित्यिक संस्थाओ वर्तिका के संस्थापक श्री साज जबलपुरी महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष श्रीमती सुनीता मिश्रा, कादम्बरी के श्री भगवत दुबे एवं श्री गार्गीशरण मिश्र, पाथेय के संस्थापक एवं वरिष्ठ रचनाकार श्री राजकुमार तिवारी सुमित्त, गुजन कला सदन के श्री ओमकार श्रीवास्तव, म.प्र. साहित्य अकादमी की नगर ईकाई पाठक मंच जबलपुर के श्री विवेक रजंन श्रीवास्तव एवं गणमान्य रचानाकारो, साहित्यकारो, अध्यात्म प्रेमियो, मेडिकल कालेज के भूतपूर्व डीन डा. बी.एन. श्रीवास्तव, वरिष्ठ स्वाध्यायी श्री ए.एन. सिंग, गीताधाम के श्री स्वामी नृसिंह दास जी एवं भक्त मंडली की उपस्थिति महत्वपूर्ण रही। प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव विदग्धः ने अपने उद्बोधन मे कहा कि भगवत गीता एक विष्व ग्रंथ है जिसकी उपयोगिता सदैव बनी रही है। म.प्र. शासन ने बच्चो मे संस्कारो के लिये ही गीता के पठन पाठन को शालेय पाठ्यक्रम मे भी शामिल किया है। आज के समय मे बच्चे अंग्रेजी माध्यम से षिक्षा ग्रहण कर रहे है जिस कारण भगवत गीता जैसे महान ग्रंथो से समाज दूर होता जा रहा है। उन्होने आशा व्यक्त की कि इस हिंदी अनुवाद से गीता सामान्य व्यक्ति की समझ मे भी आ सकेगी। आयोजन मे महामण्डलेश्वर डा. स्वामी श्यामदास जी , महामण्डलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरी जी, डा. कृष्णकांत चतुर्वेदी जी को शाल श्रीफल एवं अलंकरण से सम्मानित भी किया गया। इस अवसर पर श्रीमद भगवत गीता हिंदी अनुवाद के रचियता एवं ईशाराधन, वतन को नमन, अनुगुजंन आदि अनेक ग्रंथो के लेखक कवि एवं षिक्षाषास्त्री तथा चिंतक अध्यात्म प्रेमी प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव को आध्यात्म श्री अलंकरण से सम्मानित किया गया। 

गीता विष्व मान्य अनुपम आध्यात्मिक गं्रथ है। मानव जीवन की संपूर्ण व्याख्या है। सरल, सात्विक, पवित्र जीने का भगवान कृष्ण का दिया हुआ पावन मंत्र है- गीता के कुछ महत्वपूर्ण मंत्र इस तरह है-

मंत्र-1-नहि ज्ञानेन सदृषं पवित्रम इह विधते- जीवन में ज्ञान के बिना काम चलना असभंव है। यह प्रगति का मूलमंत्र है। सही ज्ञान के बिना कर्म संभव नहीं है।

मंत्र-2-कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन् - कर्म करने से ही सफलता प्राप्त होती है। हर कर्म का फल अवश्य मिलता है। सोच समझ कर कर्म किया जाना चाहिये। मन की एकाग्रता से कर्म मे गुणवत्ता आती है। मन के भटकाव कार्य परिणाम में सफलता नहीं देते। कार्य करने पर ही व्यक्ति का पूरा अधिकार है उसके फल पर नही, इससे दत्तचित्त हो कर्म करें।

मंत्र-3-योगःकर्मसु कौषलम् - योग का आषय है जुडाव। व्यक्ति जब मन लगाकर किसी काम को करता है तो निपुणता से काम हो सकता है और निपुणता से काम करने पर ही कर्म फलदायी होता है।

मंत्र-4-आलस्य हि मनुष्यानां शरीरस्थे महानरिपुः
  आत्मैव आत्मनः बंधुः आत्मैव रिपु अत्मनः - मनुष्य का सबसे बडा शत्रु आलस्य है। व्यक्ति अपना मित्र स्वतः है और अपना शत्रु भी खुद ही है। अपने कर्मों से ही मनुष्य अपना भाग्य बनाता या बिगाडता है। जो जैसी करनी करें सो वैसा फल पाये। अपने कर्मों से ही व्यक्ति पूजा जाता है या पीटा जाता है।

मंत्र-5-ईश्वरः सर्व भूतांना हृदयेषे अर्जुन तिष्ठति
       भ्रामयन्सर्वभूतादि मंत्रारूढानि मायया- ईश्वर सभी प्राणियो के शरीर मे उपस्थित है। अपनी माया से सबको यंत्र मे बैठे हुये के समान घुमाता है। हृदय मे ही चेतना का निवास है। यह चेतना ही उर्जा के रूप मे ईश्वर है। इसी चेतना से व्यक्ति सोचना विचारता तथा सारे कर्म करता है। यह चेतना ही सर्व शक्तिमान है जो इच्छा अनिच्छा को जगाती है और प्राणी उससे प्रभावित हो सब कार्य करने मे उद्धत होता है। अर्थात इसी चेतना से ही संसार संचालित होता है। चेतना ही सबको झूले पै बैठे हुये के समान झुलाती रहती है। इसीलिये सभी संतो ने कहा है कि ईश्वर कही और जगह नही अन्तःकरण मे है। वही उसके दर्शन करना चाहिये। वही भले बुरे विचारों का जन्मदाता है। इससे ही मन की पवित्रता और पानवता की प्रार्थना की जाती है जिससे सत्कार्यो का संपादन संभव हो सके। आत्मविश्वास से बढे। ईश्ववर के प्रति श्रद्धा और विश्वास ही सदाचार और सफलता की कुंजी है।

गीता के उपदेशक श्री कृष्ण ने भी इसी से अर्जुन से सार रूप मे कहा है-
सर्वधर्मान पदित्यज्य मां एंक शरंण ब्रज
अंह त्वां सर्व पापेभ्यो मोक्षिस्यामि मा शुचः।।
सब झंझटो को छोड तू मेरी शरण मे आ जा। मै तुझे सब परेशानियों से बचा लूंगा। शोक मत कर। संसार मे ईश्वर की शरण ही सबको सब कष्टो से बचा के शांति देती है। इसके लिये शुद्ध मन से अपना कर्तव्य निष्काम भाव से करना चाहिये। सत्कर्म ही ईश्वर की सच्ची पूजा है। जगन्नियन्ता के प्रति श्रद्धा और निरंतर निष्ठा से कर्तव्य करते जाना ही जीवन मे सिद्धि प्राप्ति का मार्ग है। ऐसा करके ही उदासी, निराशा और तनाव से व भटकाव से मुक्ति संभव है।

भगवान का उपदेश है-
मन प्रसन्न रख शोक और इच्छाओं को त्याग
सम दृष्टि से भक्तिमय कर मुझमें अनुराग।

(प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव विदग्ध‘)

No comments: