चिंतन
भक्ति और प्रेम
"भक्ति और प्रेम से मनुष्य नि:स्वार्थी बन
सकता है। मनुष्य के मन में जब किसी व्यक्ति के प्रति श्रद्धा बढ़ती है तब
उसी अनुपात में स्वार्थपरता घट जाती है।"
- विवेकानन्द
(संकलन - डॉ. एस. बशीर, चेन्नई)
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