अनुरोध
- महेंद्रभटनागर
परिपक्व आम्र हूँ —
तीव्र पवन के झोंकों से
कब गिर जाऊँ!
आतुर है
धरती की कोख
प्रसविनी,
शायद —
जीवन फिर पाऊँ!
आया तो
और मधुर रस दूंगा,
बरस-बरस दूंगा!
अपने प्रिय सपनों में
रखना मुझे सुरक्षित,
भूली-बिसरी यादों में
चिर-संचित!¤
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DR. MAHENDRA BHATNAGAR
Retd. Professor
110, BalwantNagar, Gandhi Road,GWALIOR — 474 002 [M.P.] INDIAPh. 0751- 4092908
E-Mail : drmahendra02@gmail.com
http://pustakaalay.blogspot.com/2011/04/0.html
1 comment:
जीवन की क्षणभंगुरता व कर्तव्य बोध को दर्शानेवालीआप की चोटीसी मार्मिक कविता -अनुरोध -अत्यंत सारगर्भित है शुभ कामनाए
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