जिन्दगी से अगरबत्तियों ने कहा—
- श्यामल सुमन
वो घड़ी हर घड़ी याद आती रहे
गम भुलाकर जो खुशियाँ सजाती रहे
जिन्दगी से अगरबत्तियों ने कहा
राख बन के भी खुशबू लुटाती रहे
कभी सुनता क्या बुत भी इबादत कहीं
घण्टियाँ क्यों सदा घनघनाती रहे
प्यार सागर से यूँ है कि दीवानगी
मिल के खुद को ही नदियाँ मिटाती रहे
डालियाँ सूनी है पर सुमन सोचता
काश चिड़ियाँ यहाँ चहचहाती रहे
No comments:
Post a Comment