Friday, April 16, 2010

ग़ज़ल

कर रहे थे मौज-मस्ती.........

-डॉ० डंडा लखनवी

कर रहे थे मौज-मस्ती जो वतन को लूट के।
रख दिया कुछ नौजवानों ने उन्हें कल कूट के।।

सिर छिपाने की जगह सच्चाई को मिलती नहीं,
सैकडों शार्गिद पीछे चल रहे हैं झूट के।।

तोंद का आकार उनका और भी बढता गया,
एक दल से दूसरे में जब गए वे टूट के।।

मंत्रिमंडल से उन्हें किक जब पड़ी ऐसा लगा-
गगन से भू पर गिरे ज्यों बिना पैरासूट के।।

शाम से चैनल उसे हीरो बनाने पे तुले,
कल सुबह आया जमानत पे जो वापस छूट के।।

फूट के कारण गुलामी देश ये ढ़ोता रहा-
तुम भी लेलो कुछ मजा अब कालेजों से फूट के।।

अपनी बीवी से झगड़ते अब नहीं वो भूल के-
फाइटिंग में गिर गए कुछ दाँत जबसे टूट के।।

फोन पे निपटाई शादी फोन पे ही हनीमून,
इस क़दर रहते बिज़ी नेटवर्क दोनों रूट के॥

यूँ हुआ बरबाद पानी एक दिन वो आएगा-
सैकड़ों रुपए निकल जाएंगे बस दो घूट के।।

2 comments:

Randhir Singh Suman said...

nice

Dr. C S Changeriya said...

bahuUT KHUB

SHEKHAR KUMAWAT

http://kavyawani.blogspot.com/