है शिकार इन्सान
दूर हुआ कर्तव्य से अधिकारों का ज्ञान।
बना शिकारी आदमी है शिकार इन्सान।।
मतलब की बातें हुईं अब तो छोड़ो साथ।
बिना स्वार्थ के आजकल कौन मिलाता हाथ।।
बाहर में सुख है कहाँ ओछे कारोबार।
अपने अन्दर झाँकिये बहुत सुखद संसार।।
चेहरे पर दुख न दिखे चिपकाया मुस्कान।
यह नकली मुस्कान क्या रोक सके तूफान।।
हमें जानवर दे रहा देखो कितनी सीख।
श्रम से हक पाते सदा कभी न माँगे भीख।।
आम लोग न खा सके बाजारों से आम।
आम हुआ है खास अब यह साजिश परिणाम।।
अमन चाहते हैं सभी बागी होता कौन।
लेकिन जो हालात हैं रहे सुमन क्यों मौन।।
कितना कठिन है यारो
इक दीप को जलाना कितना कठिन है यारो
रो करके मुस्कुराना कितना कठिन है यारो
जीवन मेरा सँवरता मुश्किल से खेलकर ही
खुद को सदा सजाना कितना कठिन है यारो
कितनों को गिरा करके महलों का सफर होता
गिरने से नित बचाना कितना कठिन है यारो
चाहा था दिल से जिसको गर दूर चला जाए
उसे रूह में बसाना कितना कठिन है यारो
पाने से त्यागना ही अच्छा लगा सुमन को
मदहोश को जगाना कितना कठिन है यारो
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