Sunday, February 28, 2010

होली की शुभकामनाएँ

होली पर्व पर विशेष कविताएँ

रंगों का नव पर्व बसंती

-संजीव सलिल

रंगों का नव पर्व बसंती
सतरंगा आया
सद्भावों के जंगल गायब
पर्वत पछताया

आशा पंछी को खोजे से
ठौर नहीं मिलती.
महानगर में शिव-पूजन को
बौर नहीं मिलती.
चकित अपर्णा देख, अपर्णा
है भू की काया.
सद्भावों के जंगल गायब
पर्वत पछताया

कागा-कोयल का अंतर अब
जाने कैसे कौन?
चित्र किताबों में देखें,
बोली अनुमानें मौन.
भजन भुला कर डिस्को-गाना
मंदिर में गाया.
सद्भावों के जंगल गायब
पर्वत पछताया

है अबीर से उन्हें एलर्जी,
रंगों से है बैर
गले न लगते, हग करते हैं
मना जान की खैर
जड़ विहीन जड़-जीवन लखकर
'सलिल' मुस्कुराया
सद्भावों के जंगल गायब
पर्वत पछताया ।

गिरगिट

- श्यामल सुमन

होली हम भी मनाते हैं,

और हमारे रहनुमा भी मनाते हैं।

लेकिन दोनों के होली में फर्क है,

जिसके लिए प्रस्तुत यह तर्क है।।

सब जानते हैं कि

होली रंगों का त्योहार है।

एक दूसरे के चेहरे पर,

रंग लगाने का व्यवहार है।।

रंगों में असली चेहरा,

कुछ देर के लिए छुप जाता है।

पर अफसोस, ऐसा दिन हमारे लिए,

साल में बस एकबार ही आता है।।

लेकिन हमारे रहनुमा,

पूरे साल होली मनाते हैं।

बिना रंग लगाये, सिर्फ रंग बदलकर

अपना असली चेहरा छुपाते हैं।।

देखकर इन रहनुमाओं की,

रंग बदलने की रफ्तार।

गिरगिटों में छायी बेकारी,

और वे करने लगे आत्महत्या लगातार।।

होलियाए दोहे

- श्यामल सुमन


होली तो अब सामने खेलेंगे सब रंग।
मँहगाई ऐसी बढ़ी फीका हुआ उमंग।।

पैसा निकले हाथ से ज्यों मुट्ठी से रेत।
रंग दिखे ना आस की सूखे हैं सब खेत।।

एक रंग आतंक का दूजा भ्रष्टाचार।
सभी सुरक्षा संग ले चलती है सरकार।।

मौसम और इन्सान का बदला खूब स्वभाव।
है वसंत पतझड़ भरा आदम हृदय न भाव।।

बना मीडिया आजकल बहुत बड़ा व्यापार।
खबरों के कम रंग हैं विज्ञापन भरमार।।

रंग सुमन का उड़ गया देख देश का हाल।
जनता सब कंगाल है नेता मालामाल।।

Saturday, February 27, 2010

रंगों का पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ


कवि कुलवंत सिंह के चार होली गीत

1. होली के रंग

रंग होली के कितने निराले,
आओ सबको अपना बना लें,
भर पिचकारी सब पर डालें,
पी को अपने गले लगा लें ।

रक्तिम कपोल आभा से दमकें,
कजरारे नैना शोखी से चमकें,
अधर गुलाबी कंपित दहकें,
पलकें गिरगिर उठ उठ चहकें ।

पीत अंगरिया भिगी झीनी,
सुध बुध गोरी ने खो दीनी,
धानी चुनर सांवरिया छीनी,
मादकता अंग अंग भर दीनी ।

हरे रंग से धरा है निखरी,
श्याम वर्ण ले छायी बदरी,
छन कर आती धूप सुनहरी,
रंग रंग की खुशियां बिखरीं ।

नीला नीला है आसमान,
खुशियों से बहक रहा जहान,
मस्ती से चहक रहा इंसान,
होली भर दे सबमें जान ।



2. किससे खेलूं होली रे !

पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
रंग हैं चोखे पास
पास नही हमजोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
देवर ने लगाया गुलाल
मै बन गई भोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
ननद ने मारी पिचकारी,
भीगी मेरी चोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
जेठानी ने पिलाई भांग,
कभी हंसी कभी रो दी रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !

सास नहीं थी कुछ कम,
की उसने खूब ठिठोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मैं किससे खेलूं होली रे !

देवरानी ने की जो चुहल
अंगिया मेरी खोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
बेसुध हो मै भंग में
नन्दोई को पी बोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !


3. होली का त्यौहार

होली का त्यौहार ।
रंगों का उपहार ।

प्रकृति खिली है खूब ।
नरम नरम है दूब ।

भांत भांत के रूप।
भली लगे है धूप ।

गुझिया औ मिष्ठान ।
खूब बने पकवान ।

भूल गये सब बैर ।
अपने लगते गैर ।

पिचकारी की धार ।
पानी भर कर मार ।

रंगों की बौछार ।
मस्ती भरी फुहार ।

मीत बने हैं आज
खोल रहे हैं राज ।

नीला पीला लाल
चेहरों पे गुलाल ।

खूब छनी है भांग ।
बड़ों बड़ों का स्वांग ।

मस्ती से सब चूर ।
उछल कूद भरपूर ।

आज एक पहचान ।
रंगा रंग इनसान ।

4. होली आई

हम बच्चों की मस्ती आई
होली आई होली आई ।
झूमें नाचें मौज करं सब
होली आई होली आई ।

रंग रंग में रंगे हैं सब
सबने एक पहचान पाई ।
भूल गए सब खुद को आज
होली आई होली आई ।

अबीर गुलाल उड़ा उड़ा कर
ढ़ोल बजाती टोली आई ।
अब अपने ही लगते आज
होली आई होली आई ।

दही बड़ा औ चाट पकोड़ी
खूब दबा कर हमने खाई ।
रसगुल्ले गुझिया मालपुए
होली आई होली आई ।

लाल हरा और नीला पीला
है रंगों की बहार आई ।
फागुन में रंगीनी छाई
होली आई होली आई ।

Friday, February 26, 2010

ईद-ए-मिलाद-उन-नबी एवं होली की शुभकामनाएँ...

श्यामल सुमन, जमशेदपुर

श्यामल सुमन की दो कविताएँ


खून से मँहगा लगता पानी

जब आँखों से रिसता पानी
कुछ न कुछ तब कहता पानी

प्रियतम दूर अगर हो जाए
तब आँखों से बहता पानी

पानी पानी होने पर भी
कम लोगों में रहता पानी

कभी कीमती मोती बनकर
टपके बूंद लरजता पानी

तीन भाग पानी पर देखो
न पीने को मिलता पानी

चीर के धरती के सीने को
कितना रोज निकलता पानी

ऐसे हैं हालात देश के
खून से मँहगा लगता पानी

कुम्हलाता है रोज सुमन अब
जड़ से दूर खिसकता पानी


माँ


मेरे गीतों में तू मेरे ख्वाबों में तू,
इक हकीकत भी हो और किताबों में तू।
तू ही तू है मेरी जिंदगी ।
क्या करूँ माँ तेरी बंदगी ।।

तू न होती तो फिर मेरी दुनिया कहाँ?
तेरे होने से मैंने ये देखा जहाँ।
कष्ट लाखों सहे तुमने मेरे लिए,
और सिखाया कला जी सकूँ मैं यहाँ।
प्यार की झिरकियाँ और कभी दिल्लगी।
क्या करूँ माँ तेरी बंदगी ।।

तेरी ममता मिली मैं जिया छाँव में।
वही ममता बिलखती अभी गाँव में।
काटकर के कलेजा वो माँ का गिरा,
आह निकली उधर, क्या लगी पाँव में?
तेरी गहराइयों में मिली सादगी।
क्या करूँ माँ तेरी बंदगी ।।

गोद तेरी मिले है ये चाहत मेरी।
दूर तुमसे हूँ शायद ये किस्मत मेरी।
है सुमन का नमन माँ हृदय से तुझे,
सदा सुमिरूँ तुझे हो ये आदत मेरी।
बढ़े अच्छाइयाँ दूर हो गंदगी ।
क्या करूँ माँ तेरी बंदगी ।।

Sunday, February 21, 2010

काव्य संकलन 'गुंजन' का विमोचन


काव्य संकलन 'गुंजन' का विमोचन समारोह


कवि कुलवंत सिंह, मुंबई एवं श्रीमती सी. आर. राजश्री, कोयंबतूर द्वारा संपादित पुस्तक ’गुंजन’ का विमोचन समारोह मुंबई में श्री कीर्तन केंद्र, जुहू में प्रसिद्ध उद्योगपति एवं समाजसेवी श्री महावीर सराफ जी के कर कमलों द्वारा 2 फरवरी की संध्या को संपन्न हुआ. कार्यक्रम का प्रारंभ मां सरस्वती का आवाहन करते हुए नमन कर, दीप प्रज्ज्वलन एवं माल्यार्पण के साथ हुआ. कार्यक्रम का संचालन देश की सुप्रसिद्ध बुद्धिजीवी, लेखिका, अध्यापक, चिंतक, संपादक (कुतुबनुमा - त्रैमासिक पत्रिका) डा. राजम नटराजम पिल्लई ने किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता की - प्रसिद्ध स्क्रिप्ट लेखक, कहानीकार श्री जगमोहन कपूर ने, जिनकी कई फिल्में सिल्वर जुबली रही हैं (नागिन, नगीना, निगाहें इत्यादि). मंच पर उपस्थित अन्य विशिष्ट सम्माननीय व्यक्तित्व थे डा. गिरिजाशंकर त्रिवेदी (पूर्व मुख्य संपादक नवनीत), शायर एवं कवि श्री खन्ना मुजफ्फरपुरी, श्री कपिल कुमार (अभिनेता, कुंडलियों के सम्राट, उनका एक गीत हंसने की चाह ने इतना मुझे रुलाया है, जिसे मन्ना डे ने गाया था, बहुत प्रसिद्ध हुआ था).
गुंजन पुस्तक की खास विशेषता यह है कि यह दक्षिण भारत के एक शहर कोयंबतूर के जी.आर. दामोदरन विज्ञान महाविद्यालय में पढ़ रहे विद्यार्थियों द्वारा लिखी रचनाओं का संकलन है. हिंदी को एक विषय के रूप में पढ़ रहे इन छात्रों की रचनात्मक प्रतिभा को बढ़ावा देने वाली और कोई नहीं एक दक्षिण भारतीय हिंदी अध्यापिका ही हैं. जिनका नाम है श्रीमती सी आर राजश्री; जिनकी जितनी प्रशंसा की जाए, कम है. छात्रों की रचनात्मक प्रतिभा को बढ़ावा देने के लिये एवं उनमें संवेदनशीलता को उभारने के लिये उन्होंने कालेज में एक रचनात्मक कार्यशाला आयोजित की और उनके सभी छात्रों ने इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. साथ ही कालेज के प्रिंसिपल, सलाहकार (संस्थापक) एवं विभागाध्यक्ष भी अनुशंसा के पात्र हैं जिन्होंने इस कार्यशाला के आयोजन के लिये न ही केवल राजश्री को प्रोत्साहन ही दिया अपितु सभी सुविधायें भी प्रदान कीं.
इन छात्रों की रचनात्मकता देखते ही बनती है. उनमें कई त्रुटियां होंगी पर उन्हें नज़रअंदाज करके ही हमें देखना होगा. छात्रों की संवेदनशीलता देखते ही बनती है. 66 छात्रों की रचनओं में से लगभग 13 कविताएं माँ पर हैं. माँ एक विषय नही अपितु संसार है जिसमें सभी कुछ समाहित होता है. इससे सिद्ध होता है कि हम भारतीय अपनी संस्कृति के ह्रास को लेकर दिनरात जो रोना रोते हैं वह कितना खोखला है. जब तक भारतीय माँ जिंदा है, हमारी संस्कृति बहुत ही अच्छे तरीके से सहेजी हुई है, सुरक्षित है.
विमोचन कार्यक्रम के उपरांत काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसका सुंदर संचालन विख्यात श्री कुमार जैन ने अपने निराले अंदाज में किया. कवियों ने अपनी मधुर वाणी एवं विचारों से उपस्थित श्रोताओं का मन मोह लिया. उपस्थित प्रमुख कवि एवं विचारक थे - सर्वश्री त्रिलोचन अरोडा, नंदलाल थापर, रवि यादव, कुलदीप दीप, हरि राम चौधरी, सुरेश जैन, जयंतीलाल जैन, जवाहरलाल निर्झर, गिरीश जोशी, भजन गायक हरिश्चंद्र जी, राजेश्वर उनियाल, डा. जमील, लोचन सक्सेना, मुरलीधर पाण्डेय, डा. तारा सिंह, श्रीमती शुभकीर्ति माहेश्वरी, श्रीमती मंजू गुप्ता, श्रीमती नीलिमा पाण्डे, श्रीमती शकुंतला शर्मा, डा. सुषमा सेनगुप्ता.
कार्यक्रम के उपरांत कुलवंत सिंह ने माँ शारदा के साथ साथ सभी अतिथियों, श्रोताओं, संचालक एवं महानुभावों का तहे दिल से शुक्रिया अदा किया.

प्रस्तुति - कवि कुलवंत सिंह, मुंबई

Friday, February 19, 2010

शोध-लेख


दोहे की प्राचीन परंपरा: 1

आचार्य संजीव 'सलिल'



भाषा सागर मथ मिला, गीति काव्य रस कोष.
समय शंख दोहा करे, शाश्वतता का घोष..

हिंदी के वर्तमान रूप का उद्भव संस्कृत तथा अपभ्रंश से हुआ. समय प्रवाह के साथ हिंदी ने भारतीय भू भाग के विविध अंचलों में प्रचलित भाषाओँ-बोलिओं के शब्द-भंडार तथा व्याकरण-पिंगल को अंगीकार कर स्वयं को समृद्ध किया. संस्कृत-प्राकृत के पिंगल कोष से दोहा रत्न प्राप्त कर हिंदी ने उसे सजाया,

सँवारा, महिमा मंडित किया.

ललित छंद दोहा अमर, छंदों का सिरमौर.
हिंदी माँ का लाडला, इस सा छंद न और..


आरम्भ में 'दूहा' से हिंदी भाषा के पद्य का आशय लिया जाता था तथा प्रत्येक प्रकार के पद्य या छंद काव्य 'दूहा; ही कहलाते थे.१. कालांतर में क्रमशः दोहा का मानक रूप आकारित, परिभाषित तथा रूपायित होता गया.
लगभग दो सहस्त्र वर्ष पूर्व अस्तित्व में आये दोहा छंद को दूहा, दूहरा, दोहरा, दोग्धक, दुवअह, द्विपथा, द्विपथक, द्विपदिक, द्विपदी, दो पदी, दूहड़ा, दोहड़ा, दोहड़, दोहयं, दुबह, दोहआ आदि नामों संबोधित किया गया. आरंभ में इसे वर्णिक किन्तु बाद में मात्रिक छंद माना गया. दोहा अपने अस्तित्व काल के आरंभ से ही लोक जीवन, लोक परंपरा तथा लोक मानस से संपृक्त रहा है. २
दोहा में काव्य क्षमता का समावेश तो रहता ही है, संघर्ष और विचारों का तीखा स्वाद भी रहता है. दोहा छंद शास्त्र की अद्भुत कलात्मक देन है. ३
संस्कृत के द्विपदीय श्लोकों को दोहा-लेखन का मूल माना जा सकता है किन्तु लचीले छंद अनुष्टुप के प्रभाव तथा संस्कृत व्याकरण के अनुसार हलंत व् विसर्ग को उच्चारित करने पर मात्र गणना में न गिनने के कारण इस काल में रची गयी द्विपदियाँ दोहा के वर्तमान मानकों पर खरी नहीं उतरतीं. श्रीमदभगवत की निम्न तथा इसी तरह की अन्य द्विपदियाँ वर्तमान दोहा की पूर्वज कही जा सकती हैं.

नाहं वसामि वैकुंठे, योगिनां हृदये न च.
मद्भक्ता यात्रा गायंति, तत्र तिष्ठामि नारद..

बसूँ न मैं बैकुंठ में, योगी-उर न निवास.
नारद! गएँ भक्त जहँ, वहीं करूँ मैं वास..

नारद रचित 'संगीत मकरंद' में कवि के गुण-धर्म वर्णित करती निम्न पंक्तियाँ दोहा के निकट प्रतीत होती हैं.

शुचिर्दक्षः शान्तः सुजनः, विनतः सूनृततरः.
कलावेदी विद्वानति मृदु पदः काव्य चतुरः..

रसज्ञौ दैवज्ञः सरस हृदयः, सत्कुलभवः.
शुभाकारश्ददं दो गुण गण विवेकी सच कविः..

नम्र निपुण सज्जन विनत, नीतिवान शुचि शांत.
काव्य-चतुर मृदुपद रचे, कहलाये कवि कांत..

जो रसज्ञ-दैवज्ञ है, सरस ह्रदय सुकुलीन.
गुणी-विवेकी कुशल कवि, छवि-यश हो न मलीन..

______________________________
सन्दर्भ: १. बरजोर सिंह 'सरल', हिंदी दोहा सार, २. डॉ. देवेन्द्र शर्मा 'इंद्र', भूमिका शब्दों के संवाद- आचार्य भगवत दुबे, ३. आचार्य पूनमचंद तिवारी, समीक्षा दृष्टि.

Thursday, February 18, 2010

सुधीर शुल्का ‘सावन’* की दो कविताएँ

सुधीर शुक्ला ‘सावन’* की दो कविताएँ

आज की ज़िंदगी

आज की ज़िंदगी ने किसको क्या है दिया
हमसे पूछो न अगर आज तो बेहतर होगा
कुछ को रंगीनियाँ मेहफिल की मिली, कुछ को ग़म
इस पर करो न शिकवा, तो बेहतर होगा
आज की ज़िंदगी परेशान है खुद अपनों से
छोड़ दो साथ न कहना, तो बेहतर होगा
शक्स से शक्स जुदा, रहते फिर भी पास में है
कहना उनसे न कभी, आज तो बेहतर होगा
आज की ज़िंदगी में सच ही तो बुरा होता है
कडुवा सच न तुम कहो तो बेहतर होगा ।

*****

बहुत प्यारा

तेरा हमदम ऐ दोस्त बहुत प्यारा
पास आकर के शर्माना भी बहुत प्यारा है
आँखों में उसकी सिर्फ़ चाहत तेरी
दिल में सिर्फ़ प्यार का छुपाना बहुत प्यारा है
देखा ‘सावन’ ने प्यार करते बहुत लोगों को
उसका खुद में शर्माना बहुत प्यारा है
हवाँ के झोंकों से लगता है कि वो आए हैं
पलट के देखना भी उसका बहुत प्यारा है
आज मैं उसकी तारीफ़ करूँ तो कम है
तुम तो बहुत भोले हो, कह जाना बहुत प्यारा है
सोचते हम तो हैं कि हो कोई अपना भी
जिसको मैं कह सकता, तू तो बहुत प्यारा है ।

*****

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*हवलदार मेजर (तकनीकी), 14 कार्फ जोन वर्कशाप, द्वारा 56 एपीओ, लेह

Sunday, February 14, 2010

आलेख


नारी की प्रगति-यात्रा

- श्रीमती रोशनी*


महान भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल के नाम का उच्चारण करते समय ही हरेक महिला भी सुगर्वित होती है और उसका मन यह घोषणा करना चाहता है कि ये हमारी जाती की है। श्रीमती सानिया गांधी देश की प्रधान पार्टी की अध्यक्षा के रूप में सुशोभित हैं और अन्य अनेक महिलाएँ भी उच्च पदों पर पर आसीन होकर प्रगति के रास्ते में दिन-ब-दिन बढती जा रही हैं । क्या ऐसा गौरवपूर्ण स्थान पहले से महिला को मिला था? पहले औरत की दशा क्या थी, और इस परिणाम का मूल क्या है? इस विषयों पर आगे की पंक्तियों प्रकाश डालने की कोशिश मैंने की है ।
पौराणिक काल की महिला से लेकर आज की राष्ट्रपति तक स्त्री की प्रगति-यात्रा चलती आ रही है। आज तो स्त्री को समाज में समान अधिकार मिला है, पर इसे पाने के लिए हमें लड़ना पड़ा। सच में देखे तो उन्नत कहे जानेवाले पश्चिमी देशों में भी स्त्रियों के लिए अधिकार पाने अधिक लड़ना पड़ा। उनके साथ तुलना करके देखे तो हमें यह अधिकार पाने के लिए अलग संघर्ष नहीं करना पड़ा। यह एक आश्चर्यजनक घटना और अभूतपूर्व सफलता है।
पुरुष और स्त्री समाज-निर्माण के दो परस्पर पूरक तत्व होते हैं। पर समाज-संचालन में एक की सक्रियता और दूसरे को बाध्यता। इस मनोभाव को दूर कराने के लिए स्त्री को वैदिक युग से लेकर आज तक समाज में सक्रिय संघर्ष करना पड़ा।

वैदिक युग

वेदों में नारी की शिक्षा, गुण, कर्तव्य और अधिकारों का विशद वर्णन है। आर्यों के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में हमें यह जानकारी मिलती है कि उस काल में नारियों की स्थिति उन्नत थी । उस काल की मूर्तियों में देवत्व पद पर भी स्त्री के सुशोभित होने का प्रमाण है। उस समय सर्वोच्च शिक्षा प्राप्त करने में भी स्त्रियों पर कोई प्रतिबंध न था। चारों वेदों में सैकडों नारी विषयक मंत्र दिए गए हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि वैदिक काल में समाज में नारी का भी बराबर स्थान था। चारों वेदों में सावित्री मंत्र, गायत्री मंत्र, इंद्राणी मंत्र आदि सैकडों नारी विषयक मंत्र दिए गए हैं। वेदों में स्त्री को गृहलक्ष्मी, कुलपालक, परिवार की स्वामिनी, सबला, सरस्वती के तुल्य प्रतिष्ठित - ऐसे अनेक नाम दिए गए हैं।
वैदिक काल में भारतीय नारी लड़कों की तरह ब्रह्मचर्य का पालन करके शिक्षा प्राप्त करती थीं। गुरुओं के आश्रमों में गुरु पत्नी के संरक्षण में रहकर उच्च शिक्षा प्राप्त करती थीं। बाल विवाह की प्रथा नहीं थी। वे स्वयंवर के द्वारा अपना जीवन साथी चुनती थीं। पति-पत्नी दोनों के लिए प्रचलित 'दंपति' शब्द से सिध्द होता है कि नारी धार्मिक जीवन में भी पति की सहयोगिनी थी। पूजा पाठ के कार्यों में दोनों मिलकर भाग लेते थे। धार्मिक उपासना के कर्मकांड दंपति मिलकर करते थे। पारिवारिक यज्ञों में भी नारी का क्रियात्मक सहयोग मिलता था।

रामायाण और महाभारत में नारी का महत्व


रामायण और महाभारत आदि महाकाव्यों के समय नारी के अधिकार कुछ कम हो गया था। उस समय स्त्रियों का प्रमुख गुणों में कर्तव्य, पति-सेवा और आज्ञापालन जुड़ गए थे । महाकाव्यों में नारी को विदुषी के रूप में कम चित्रित करते थे पर तप, त्याग, नम्रता, पति सेवा आदि गुणों विभूषित गृहस्वामिनी के रूप में अधिक प्रमाण मिलते हैं। तुलसीदास कृत 'रामचरितमानस' में इसका उदाहरण मिलता है। राम वनवास निकलते समय अपनी पत्नी सीता को ऐसा आदेश देते हैं कि,
'राजकुमारी। सिखावनु सुन हूँ।
आन भांति जिय जनि कछु गुन हूँ।
आपन मोर नीक जौं बह हूँ।
बचनु हमार मानि गृह रह हूँ।
आयसु मोर सासु सेवकाई।
सब विधि भामिनि भवन भलाई॥
अर्थात् - राजकुमारी मेरी बात सुन। यदि तुम अपना और मेरा कल्याण चाहती हो तो मेरी बात मानकर वन चलने का हठ छोड़ो, घर पर ही बनी रहो। मेरी तो यही आज्ञा है कि तुम घर पर रहकर सास-ससुर की सेवा करो। पर उसमें ही कैकेयी को विदूषी के रूप में चित्रित किया गया है। वह दशरथ के साथ युद्धभूमि जाकर उनको बचाती है। रामायण काल में धोबी द्वारा संदेह व्यक्त करने पर राम जैसे महापुरुष भी सीता को वनवास भेजना, सीता अग्निप्रवेश करना आदि पुरुषों के मनोभाव के प्रमाण हैं। महाभारत में भी अपनी पत्नी की अनुमति के बिना युधिष्ठर अपनी पत्ना द्रौपदी को जुए के दाँव पर लगा देना पुरुषों के मनमाने अधिकारों की पुष्टि करता है।
प्राचीन काल में नारी का स्थान विदुषी के रूप में भी चित्रित है। तमिल की एक महान कवयित्री अव्वई की नीति कविताओं में तमिल जीवन की सुंदर अभिव्यक्ति है।

मध्य युग

मध्य युग में विशेष रूप से भारत पर मुसलमानों के आक्रमणों और मुगलों के राज्य-स्थापन के बाद भारत में स्त्रियों की स्थिति में गिरावट आई। लड़कियों की शिक्षा समाप्त हो गई। पर्दा-प्रथा प्रारंभ होने लगा। विवाह की आयु घटती रही। बहुत कम उम्र में ही उनकी विवाह किए जाने लगा। स्त्री का जीवन का दायरा घर की चारदीवारी तक सीमित हो गया। मध्ययुग में साधारण स्त्रियों का हाल ऐसा होने पर भी रजिया बेगम, चाँद बीबी, ताताबाई आदि स्त्रियों के नाम चमकने लगे।
यह ग़लत धारणा है कि मुसलमान नारियों की स्वतंत्रता सीमित है। इस्लाम धर्म नारी उद्धार के विरुद्ध नहीं है। मुस्लिम पर्सनल लॉ ने मुस्लिम महिलाओं को जो अधिकार दिए हैं, उसकी मिसाल दूसरे धर्मों में कहीं नहीं मिलती। उदाहरण के लिए दूसरे धर्मों में विवाह एक धार्मिक कृत्य और पवित्र बंधन माना गया, इस्लाम में वह समझौता मात्र माना जाता है। कुरान में महिला के संपत्ति-अधिकार, शादी के समय इजाजत के साथ शादी, विवाह के अवसर पर लड़की की सुरक्षा के लिए 'मेहर' या स्त्री धन की व्यवस्था कर दी जाती है। आधुनिक मुस्लिम परिवारों की लड़कियाँ तो अब रूढ़ियाँ तोड, परदे से बाहर आकर नौकरी करने लगी हैं। नजमा हेपतुल्ला, पतन सैयीद आदि महिलाएँ उदाहरण हैं।

नवजागरण काल

स्त्रियों के सभी समस्याओं का मूल उनकी निरक्षरता, अंधविश्वास और अज्ञानता है। इसलिए राजा राम मोहनराय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, पंडिता रमाबाई, स्वामी दयानंद सरस्वती, महात्मा गांधी आदि समाज-सुधारकों का ध्यान स्त्री शिक्षा पर पड़ा। मोहनराय द्वारा सती प्रथा का उन्मूलन हुआ, बाल-विवाह पर प्रतिबंध, विधवा विवाह की स्वीकृति, स्त्रियों को संपत्ति अधिकार आदि पर बल दिया गया । इसी समय सभी लोग स्त्री शिक्षा को महत्व देने लगे। वे समझ गए कि स्त्री शिक्षा से घरों का सुधार होता है और मानवीय संसाधनों का पूर्ण विकास भी।

ब्रिटिश काल

ब्रिटिश काल में शिक्षा की व्यवस्था होने लगी। लड़कियों के लिए अलग विद्यालय या कालेजों खोले गये। शिक्षण के लिए प्रशिक्षण दिया गया। 1922 से 1947 तक समाजसुधार एवं गांधीजी द्वारा संचालित आंदोलनों से लड़कियों के प्रति माता-पिता के मन में समानता की भावना का प्रादुर्भाव हुआ।

स्वतंत्रता संग्राम में नारी

हमारे पूर्व इतिहास में रानी दुर्गावती, माता जीजाबाई, पन्ना दाई, रानी पद्मिनी आदि वीर नारियाँ थीं जिन्होंने मातृभूमि और अपनी अस्मिता की रक्षा में अपनी जान की परवाह नहीं की। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भी रानी लक्ष्मीबाई, जीनत महल, नाना की पलिता बेटी मैना, फिरोजशाह की पत्नी आदि अनेक स्त्रियाँ अंग्रेज़ों के विरुद्ध लड़े थे। मार्गरेट नोबल, एनी बेसंट आदि विदेशी महिलाओं का हाथ नारी की प्रगति यात्रा में था। 1925 में श्रीमती सरोजिनी नायुडु कांग्रेस अध्यक्ष की गद्दी पर सुशोभित हुई। गांधीजी के आश्रम में स्त्रियों को पुरुषों के समान दर्जा दिया गया। 1930 में नमक-सत्याग्रह आंदोलन में अनेक महिलाओं ने सक्रिय भागदारी लीं। 1942 में असहयोग आंदोलन के समय अनेक पुरुषों को अपना व्यवसाय और नौकरियाँ छोड़नी पड़ी। इस पर महिलाओं ने उस बोझ को हर्ष के साथ स्वीकार किया। इस आंदोलन में अनेक नारियों को गिरफ़्तार होकर जेल में रहना पड़ा। 1942 का 'भारत छोड़ो' स्वतंत्रता संग्राम का अंतिम आंदोलन था। इसमें माता कस्तूरबा भी गांधीजी के साथ गिरफ़्तार होकर जेल चली गईं, वहाँ से वह फिर जीवित नहीं लौटीं।
स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्माण में भी महिलाओँ का हाथ था। स्वतंत्रता के तुरंत बाद भारत संविधान में स्त्री-पुरुषों को समान अधिकार का आश्वासन दिया गया। आज़ादी से पूर्व आई.सी.एस. सूची में एक भी महिला का नाम नहीं मिलता। कुमारी अन्ना जार्ज 1950 में प्रथम आई.ए.एस. बनकर सामने आईं। प्रथम आई.पी.एस. किरण बेदी थी। पर आज अनेक स्त्रियाँ इन पदों पर सुशोभित हैं। यह नारी उन्नति का विकास है। प्रधानमंत्री के पद पर इंदिरा गांधी का आरूढ़ होना महिलाओं की सबसे बड़ा उपलब्धि है।
आज यद्यपि हमारे देश में महिला अभियंता, वैज्ञानिक, विशेषज्ञ, विमानचालक, व्यापार-व्यवसाय संचालक बनकर होने पर भी नए क्षेत्रों में और उच्च पदों में उनकी संख्या अभी भी संतोषजनक नहीं है। पर आजकल यह संख्या भी बढ़ती जा रही है और जरूर कुछ ही सालों में ऐसी स्थिति उत्पन्न होगी कि नारियों का हाथ पुरुषों से भी बढ़कर रहेगा। राजनीति में गिरते हुए चारित्रिक व नैतिक मूल्यों के कारण भारतीय संस्कृति में पली नारी इसके प्रति उदासीन हो गई है। इसलिए राजनीति में महिलाओं की संख्या कम है। पर यह हाल आगे चलकर सुधरेगा। आजकल केंद्रीय केबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री, उपमंत्री, मुख्यमंत्री और राज्यपाल के रूप में इतनी महिलाओं के नाम सामने आ चुके हैं, इन्हें गिनना संभव नहीं।
समाज-कल्याण के क्षेत्र में भी नारी का स्थान उनकी दयालु और ममतामयी प्रकृति के कारण महत्वपूर्ण है। सहानुभूति, सेवा, त्याग और दूसरों के लिए कष्टसहन की भावनाओं की जड़ें हमारी संस्कृति में बहुत गहरी हैं। इन गुणों के कारण ही नारी का स्थान आदरणीय है। इन गुणों के कारण ही नारी के पास अद्वितीय क्षमता है। अगर नारी अपनी आंतरिक शक्ति को पहचान लेगी तो ज़रूर उनकी प्रगति बहुत आसान होगी। इसी प्रकार उन्नति के रास्ते में आत्मविश्वास के साथ बढ़े तो कुछ ही सालों में शिखर तक पहुँचेंगे और देश की उन्नति भी ज़रूर संभव होगा। हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्दुलकलाम का सपना हासिल होगा।

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*प्रवक्ता, हिंदी विभाग, के.एस.आर. कला एवं विज्ञान महाविद्यालय, तिरुचेंगोड

Friday, February 12, 2010

महाशिवरात्री की शुभकामनाओं सहित...

शिव भजन


स्व. शांति देवि वर्मा
*

शिवजी की आयी बरात

शिवजी की आयी बरात,
चलो सखी देखन चलिए...
भूत प्रेत बेताल जोगिनी'
खप्पर लिए हैं हाथ.

चलो सखी देखन चलिए
शिवजी की आयी बरात....
कानों में बिच्छू के कुंडल सोहें,
कंठ में सर्पों की माला.

चलो सखी देखन चलिए
शिवजी की आयी बरात....
अंग भभूत, कमर बाघम्बर'
नैना हैं लाल विशाल.


चलो सखी देखन चलिए
शिवजी की आयी बरात....
कर में डमरू-त्रिशूल सोहे,
नंदी गण हैं साथ.

शिवजी की आयी बरात,
चलो सखी देखन चलिए...
कर सिंगार भोला दूलह बन के,
नंदी पे भए असवार.

शिवजी की आयी बरात,
चलो सखी देखन चलिए...
दर्शन कर सुख-'शान्ति' मिलेगी,
करो रे जय-जयकार.


शिवजी की आयी बरात,
चलो सखी देखन चलिए...
******

गिरिजा कर सोलह सिंगार

गिरिजा कर सोलह सिंगार
चलीं शिव शंकर हृदय लुभांय...
मांग में सेंदुर, भाल पे बिंदी,
नैनन कजरा लगाय.

वेणी गूंथी मोतियन के संग,
चंपा-चमेली महकाय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...
बांह बाजूबंद, हाथ में कंगन,
नौलखा हार सुहाय.

कानन झुमका, नाक नथनिया,
बेसर हीरा भाय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...
कमर करधनी, पाँव पैजनिया,
घुँघरू रतन जडाय.

बिछिया में मणि, मुंदरी मुक्ता,
चलीं ठुमुक बल खांय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...
लंहगा लाल, चुनरिया पीली,
गोटी-जरी लगाय.

ओढे चदरिया पञ्च रंग की ,
शोभा बरनि न जाय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...
गज गामिनी हौले पग धरती,
मन ही मन मुसकाय.
नत नैनों मधुरिम बैनों से
अनकहनी कह जांय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...
****

मोहक छटा पार्वती-शिव की

मोहक छटा पार्वती-शिव की
देखन आओ चलें कैलाश....
ऊँचो बर्फीलो कैलाश पर्वत,
बीच बहे गैंग-धार.

मोहक छटा पार्वती-शिव की...
शीश पे गिरिजा के मुकुट सुहावे
भोले के जटा-रुद्राक्ष.
मोहक छटा पार्वती-शिव की...
माथे पे गौरी के सिन्दूर-बिंदिया
शंकर के नेत्र विशाल.
मोहक छटा पार्वती-शिव की......
उमा के कानों में हीरक कुंडल,
त्रिपुरारी के बिच्छू कान
मोहक छटा पार्वती-शिव की.....
कंठ शिवा के मोहक हरवा,
नीलकंठ के नाग.

मोहक छटा पार्वती-शिव की......
हाथ अपर्णा के मुक्ता कंगन,
बैरागी के डमरू हाथ.
मोहक छटा पार्वती-शिव की...

सती वदन केसर-कस्तूरी,
शशिधर भस्मी राख़.
मोहक छटा पार्वती-शिव की.....
महादेवी पहने नौ रंग चूनर,
महादेव सिंह-खाल.
मोहक छटा पार्वती-शिव की......
महामाया चर-अचर रच रहीं,
महारुद्र विकराल.

मोहक छटा पार्वती-शिव की......
दुर्गा भवानी विश्व-मोहिनी,
औढरदानी उमानाथ.

मोहक छटा पार्वती-शिव की...
'शान्ति' शम्भू लख जनम सार्थक,
'सलिल' अजब सिंगार.

मोहक छटा पार्वती-शिव की...
****


भोले घर बाजे बधाई

मंगल बेला आयी, भोले घर बाजे बधाई ...
गौर मैया ने लालन जनमे,
गणपति नाम धराई.

भोले घर बाजे बधाई ...
द्वारे बन्दनवार सजे हैं,
कदली खम्ब लगाई.

भोले घर बाजे बधाई ...
हरे-हरे गोबर इन्द्राणी अंगना लीपें,
मोतियन चौक पुराई.

भोले घर बाजे बधाई ...
स्वर्ण कलश ब्रम्हाणी लिए हैं,
चौमुख दिया जलाई.


भोले घर बाजे बधाई ...
लक्ष्मी जी पालना झुलावें,

झूलें गणेश सुखदायी.
भोले घर बाजे बधाई ...
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Tuesday, February 9, 2010

FREE TREATMENT

If you know anyone who has met with a fire accident or people who are born with problems / disabilities such as jointed ear, nose and mouth, please note they can avail free plastic surgery at Pasam Hospital, KODAIKANAL from March 23rd to 4th April 2010 by German Doctors.>>
Address:>Pasam Hospital>M.M. Street,>Kodaikanal,>>
Phone: (04542) 240778 (04542) 240778 , 240668, 245732>
e-mail: pasam.vision@ gmail.com
>You can check the news on this link http://www.thehindu .com/2009/ 01/11/stories/ 2009011151570300 .htm>>Every thing is free!!( SBF - IS )
- RAMESH PRABHU, COCHIN

Sunday, February 7, 2010

नवगीत

नवगीत
- आचार्य संजीव 'सलिल'

चले श्वास-चौसर पर
आसों का शकुनी नित दाँव.
मौन रो रही कोयल
कागा हँसकर बोले काँव...

*

संबंधों को अनुबंधों ने
बना दिया बाज़ार.
प्रतिबंधों के धंधों के
आगे दुनिया लाचार.
कामनाओं ने भावनाओं को
करा दिया नीलाम.
बाद को अच्छा माने दुनिया,
कहे बुरा बदनाम.
ठंडक देती धूप,
ताप रही बाहर बेहद छाँव.
मौन रो रही कोयल
कागा हँसकर बोले काँव...

*

सद्भावों की सती तजी,
वर राजनीति रथ्या.
हरिश्चंद्र ने त्याग सत्य,
चुन लिया असत मिथ्या..
सत्ता-शूर्पनखा हित लड़ते
हाय! लक्ष्मण-राम.
खुद अपने दुश्मन बन बैठे
कहें- विधाता वाम..
मोह शहर का किया
उजड़े अपने सुन्दर गाँव.
मौन रो रही कोयल
कागा हँसकर बोले काँव...

*

'सलिल' समय पर न्याय न होता,
करे देर अंधेर.
मार-मारकर बाज खा रहे
कुर्सी बैठ बटेर..
बेच रहे निष्ठाएँ अपनी,
बिना मोल बेदाम.
और कह रहे बेहयाई से
'भला करेंगे राम'.
अपने हाथों तोड़ खोजते
कहाँ खो गया ठाँव?
मौन रो रही कोयल
कागा हँसकर बोले काँव...

Saturday, February 6, 2010

कविता

नर्मदा नामावली

आचार्य संजीव 'सलिल'






पुण्यतोया सदानीरा नर्मदा.

शैलजा गिरिजा अनिंद्या वर्मदा.

शैलपुत्री सोमतनया निर्मला.

अमरकंटी शांकरी शुभ शर्मदा.

आदिकन्या चिरकुमारी पावनी.

जलधिगामिनी चित्रकूटा पद्मजा.

विमलहृदया क्षमादात्री कौतुकी.

कमलनयनी जगज्जननि हर्म्यदा.

शाशिसुता रौद्रा विनोदिनी नीरजा.

मक्रवाहिनी ह्लादिनी सौंदर्यदा.

शारदा वरदा सुफलदा अन्नदा.

नेत्रवर्धिनि पापहारिणी धर्मदा.

सिन्धु सीता गौतमी सोमात्मजा.

रूपदा सौदामिनी सुख-सौख्यदा.

शिखरिणी नेत्रा तरंगिणी मेखला.

नीलवासिनी दिव्यरूपा कर्मदा.

बालुकावाहिनी दशार्णा रंजना.

विपाशा मन्दाकिनी चित्रोंत्पला.

रुद्रदेहा अनुसूया पय-अंबुजा.

सप्तगंगा समीरा जय-विजयदा.

अमृता कलकल निनादिनी निर्भरा.

शाम्भवी सोमोद्भवा स्वेदोद्भवा.

चन्दना शिव-आत्मजा सागर-प्रिया.

वायुवाहिनी कामिनी आनंददा.

मुरदला मुरला त्रिकूटा अंजना.

नंदना नम्माडिअस भव मुक्तिदा.

शैलकन्या शैलजायी सुरूपा.

विपथगा विदशा सुकन्या भूषिता.

गतिमयी क्षिप्रा शिवा मेकलसुता.

मतिमयी मन्मथजयी लावण्यदा.

रतिमयी उन्मादिनी वैराग्यदा.

यतिमयी भवत्यागिनी शिववीर्यदा.

दिव्यरूपा तारिणी भयहांरिणी.

महार्णवा कमला निशंका मोक्षदा.

अम्ब रेवा करभ कालिंदी शुभा.

कृपा तमसा शिवज सुरसा मर्मदा.

तारिणी वरदायिनी नीलोत्पला.

क्षमा यमुना मेकला यश-कीर्तिदा.

साधना संजीवनी सुख-शांतिदा.

सलिल-इष्टा माँ भवानी नरमदा.

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रायपुर से एक नई हिंदी पत्रिका....पांडुलिपि

पांडुलिपि में प्रकाशनार्थ रचनाएँ आमंत्रित