Sunday, September 13, 2009

हिंदी दिवस की शुभकामनाएँ

हिंदी दिवस का संकल्प


भारतीय संस्कृति एवं विरासत की रक्षा तथा भारत की सार्थक उन्नति के लिए संकल्पबद्ध भारतीय संविधान की मूलभावना भारतीय भाषाओं की श्रीवृद्धि के पक्ष में है । आइए आज हम संकल्प करें भारतीय भाषाओं के विकास के लिए प्रतिबद्ध होने का, भारतीय भाषाओं का निष्ठापूर्वक प्रयोग, प्रचार एवं प्रसार करने का । हमारे प्रयासों से जनमानस की भाषाएं विकसित हो, भारत की एकता एवं अखंडता बनी रहे ।

हिंदी का अभिवंदन

डा.स.बशीर चेन्नै


वीणा का नाद है
वाणी का वाद है
सब का आकर्षण है
राष्ट्र की शान है

समाज का दर्पण है
साहित्य का सृजन है
ज्ञान की धरा है
सब ने इसे वारा है -ये हिंदी है
विनय की भाषा है
संस्कृति की परिभाषा है
आत्मा का निवेदन है
दिलों की धड़कन है-ये हिंदी है

सब वाखिफ हैं इसकी गरिमा
विश्व में ये भाषा सरताज है
इस का भविष्य है बड़ा उज्ज्वल
करते हैं इस भाषा का शत-शत
अभिवंदन

शत-शत नमन-हिंदी को

मु.सादिक चेन्नै

तन-मन की भाषा है हिंदी
भारत की आशा है हिंदी
भारत का दर्शन है हिंदी
हमसब संप्रेषण हैं हिंदी

सभी भाषाओँ की आकर्षण है हिंदी
भारत का उत्कर्षण है
राष्ट्र चेतना का स्वर है
हिमालय का सर है –हिंदी

शायरों के दिलों की धड़कन
भक्तों के लिए नमन है
कविओं का अमन है
हरा भरा देश का चमन है हिंदी


मेल्बर्न में हिन्दी दिवस

-हरिहर झा

साहित्य-सन्ध्या के तत्वावधान में ५ सितम्बर शनिवार को क्यू-लाइब्रेरी में हिन्दी दिवस मनाया गया । इसके प्रथम चरण का संचालन प्रोफेसर नलिन शारदा ने किया । श्री दिनेश जी श्रीवास्तव ने दीप प्रज्ज्वलित किया । मंच की अध्यक्षता करते हुये अपने भाषण में उन्होने संस्कृति को बनाये रखने के लिये हिन्दी की आवश्यकता पर बल दिया । उन्होने बताया कि आस्ट्रेलिया में हिन्दी को उसका स्थान दिलाने के लिये किन किन कठिनाइयों से गुजरना पड़ा ।

तत्पश्चात सुभाष शर्मा ने मधुर कंठ से मातृभाषा हिन्दी पर गीत गाया व हिन्दी दिवस के उपलक्ष में कवितायें सुनाई ।मैंने एक हिन्दी-गज़ल सुनाई व ’बिखरा पड़ा है’ - नवगीत का पाठ किया । राजेन्द्र चोपड़ा ने रक्षा-बन्धन के पर्व पर इस युग की मजबूर परिस्थितियों की पृष्ठ-भूमि में भाई-बहन के प्रेम-भाव का ह्दय विदारक चित्र खींचा । प्रोफेसर सुरेश भार्गव ने हास्य और करूण रस का अनोखा संगम कर दिया जब बताया कि क्या हुआ जब एक सिपाही को कविता लिखने का शौख चर्राया ।

दूसरा सत्र – “अपने लोग –अपनी बातें” के संचालन का कार्य-भार मुझे सौपा गया । मैंने फादर कामिल बुल्के के हिन्दी प्रेम, तुलसी-प्रेम व उनके हिन्दी-साहित्य में योगदान के विषय में बताया ।

रतनजी मूलचन्दानी ने कुछ चुटकुलों से हँसाने के पश्चात ’अभिव्यक्ति’ में प्रकाशित मुकेश पोपली की कहानी ’अपील’ की विवेचना की तथा बताया कि किस तरह छोटे छोटे प्रयास किसी गरीब की जिन्दगी बदलने में सहायक हो सकते हैं और छोटे छोटे प्रयास दीन-हिन बनी हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में सहायक हो सकते हैं ।

सुमनजी ने एक जादूगर के माध्यम से आधुनिक युग की स्वार्थी भावनाओं के कटु-यथार्थ पर व्यंग्य किया । अनीताजी ने कहा कि भारत में जो विविधता में एकता दिखाई पड़ती है वह अन्यत्र दुर्लभ है और इस विषय में उन्होने मातृभाषाओं की भूमिका को सराहा । सर्वेश कुमार सोनी की कविता के बाद हरिजी झुल्का ने एक जवाब के साथ सौ सवाल खड़े हो जाने की परिस्थीति का चित्रण किया । राजेश रामनाथन ने “टू द साईलेन्ट ग्रेव” कविता सुनाई जिसके प्रत्युत्तर में मुझे अपनी दो पंक्तिया याद आ गई – “काल ने विकराल सी खींची जो रेखा है । मौत को निकट तक आते हुये देखा है ।“

सुभाष शर्मा के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ गुरजिन्दर जी कौर ने देश-प्रेम के गीत से कार्यक्रम का समापन किया ।

अपना हर पल है हिन्दीमय

- आचार्य संजीव सलिल

अपना हर पल
है हिन्दीमय
एक दिवस
क्या खाक मनाएँ?
बोलें-लिखें
नित्य अंग्रेजी
जो वे
एक दिवस जय गाएँ...
निज भाषा को
कहते पिछडी.
पर भाषा
उन्नत बतलाते.
घरवाली से
आँख फेरकर
देख पडोसन को
ललचाते.
ऐसों की
जमात में बोलो,
हम कैसे
शामिल हो जाएँ?...
हिंदी है
दासों की बोली,
अंग्रेजी शासक
की भाषा.
जिसकी ऐसी
गलत सोच है,
उससे क्या
पालें हम आशा?
इन जयचंदों
की खातिर
हिंदीसुत
पृथ्वीराज बन जाएँ...
ध्वनिविज्ञान-
नियम हिंदी के
शब्द-शब्द में
माने जाते.
कुछ लिख,
कुछ का कुछ पढने की
रीत न हम
हिंदी में पाते.
वैज्ञानिक लिपि,
उच्चारण भी
शब्द-अर्थ में
साम्य बताएँ...
अलंकार,
रस, छंद बिम्ब,
शक्तियाँ शब्द की
बिम्ब अनूठे.
नहीं किसी
भाषा में मिलते,
दावे करलें
चाहे झूठे.
देश-विदेशों में
हिन्दीभाषी
दिन-प्रतिदिन
बढ़ते जाएँ...
अन्तरिक्ष में
संप्रेषण की
भाषा हिंदी
सबसे उत्तम.
सूक्ष्म और
विस्तृत वर्णन में
हिंदी है
सर्वाधिक
सक्षम.
हिंदी भावी
जग-वाणी है
निज आत्मा में
'सलिल' बसाएँ...

No comments: