Thursday, April 23, 2009

कविता

प्यार की कुण्डली

- संजीव सलिल

भुला न पाता प्यार को, कभी कोई इंसान.

पाकर-देकर प्यार सब जग बनता रस-खान

जग बनता रस-खान, नेह-नर्मदा नाता.

बन अपूर्ण से पूर्ण, नया संसार बसाता.

नित्य 'सलिल' कविराय, प्यार का ही गुण गाता.

खुद को जाये भूल, प्यार को भुला न पाता.

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