गायत्री जयन्ती ( 28 मई 2015 ) के अवसर पर विशेष
मां गायत्री है वेदों की जननी
ललित गर्ग
भारत भूमि की यह विशेषता है कि यह भूमि कभी भी संतों, महापुरुषों, देवज्ञों, विद्वानों से खाली नहीं हुई, रिक्त नहीं हुई। स्वामी विवेकानन्द, दयानन्द सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, टैगोर और गांधी सरीखे महापुरुष हमारे आदर्श रहे हैं। उनके कर्म अनुकरणीय हैं। उन्होंने क्या हमारा मार्गदर्शन नहीं किया ? सत्य और अहिंसा का पाठ नहीं पढ़ाया? गौतम बुद्ध और महावीर स्वामी इसी पावन धरती की उपज थे। इन्होंने सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, एकता, विश्वबन्धुत्व, समानता, भेद-भाव रहित जीवन, सद्वृत्ति, सद्ज्ञान, अहिंसा व राष्ट्रीयता का नारा दिया।
हिंदू धर्म में मां गायत्री को वेदमाता कहा जाता है अर्थात सभी वेदों की उत्पत्ति इन्हीं से हुई है। गायत्री को भारतीय संस्कृति की जननी भी कहा जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मां गायत्री का अवतरण माना जाता है। इस दिन को हम गायत्री जयंती के रूप में मनाते है। हिन्दू संस्कृति में मां गायत्री की महिमा अपरम्पार है। उनकी शक्ति अद्वितीय है, चिर नवीन है, असंदिग्ध है। वे मानव मात्र के कल्याण, उपकार, सुख, सुविधा, शान्ति, आध्यात्मिकता की ओर बढ़ने, ईश भक्ति, संस्कृत की पहचान, आनन्द, भौतिक उन्नति आदि के हेतु हैं। गायत्री मंत्र- ऊं भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्’-यह सभी मंत्रों में सर्वशक्तिमान मंत्र है। इस मंत्र का विधिपूर्वक जाप एवं गायत्री उपासना अकिंचन भी ज्ञानी-ध्यानी बन सकती है। रोगी, रोग-मुक्त हो जाता है। निर्धन, धनी बन सकता है। कुकर्मी, सुकर्मी बन सकता है। जीवन के सन्तापों से मुक्ति पा सकता है। अभावों का नाश कर खुशहाल जीवन जी सकता है। सुख-शान्ति-आनन्द, धन पा सकता है।
हिंदू धर्म में मां गायत्री को पंचमुखी माना गया है जिसका अर्थ है यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड जल, वायु, पृथ्वी, तेज और आकाश के पांच तत्वों से बना है। संसार में जितने भी प्राणी हैं, उनका शरीर भी इन्हीं पांच तत्वों से बना है। इस पृथ्वी पर प्रत्येक जीव के भीतर गायत्री प्राण-शक्ति के रूप में विद्यमान है। यही कारण है गायत्री को सभी शक्तियों का आधार माना गया है इसीलिए भारतीय संस्कृति में आस्था रखने वाले हर प्राणी को प्रतिदिन गायत्री उपासना अवश्य करनी चाहिए।
गायत्री मंत्र की महिमा महान है, आत्मसाक्षात्कार के जिज्ञासुओं के लिए यह मंत्र ईश्वर का वरदान है, केवल गायत्री मंत्र ही, बिना समर्थ गुरु के सतत सान्निध्य के बिना आत्मसाक्षात्कार करने में समर्थ है। इस मंत्र के मानसिक जप के लिए कोई बंधन नहीं होता। मानसिक जप कही भी किसी भी स्थिति में किया जा सकता है। गीता, गंगा और गायत्री प्रभु की तीन विलक्षण शक्तियां हैं जो ममतामई ,परमपवित्र और पतितपावनी हैं। इनसे मनुष्य जाति पाप मुक्त हो, शुद्ध बुद्ध होता है जिससे ईश्वर तत्व का ज्ञान प्राप्त होता है। गायत्री को गुरु मंत्र कहा गया है। माँ गायत्री इतनी ममतामई हंै की वे अपने भक्तों को ज्यादा देर बिलखते नहीं देख सकती अतः वे शीघ्र ही सुधि लेतीं हैं .वे प्रसन्न होने पर अपने भक्तों और श्रद्धालुओं को चारों पुरुषार्थ-धर्मं, अर्थ, काम और मोक्ष का तुरंत ही दान कर देतीं हैं। माँ गायत्री को कामधेनु की संज्ञा भी दी जाती है। माता गायत्री की महिमा वर्णन करना असंभव है। मां गायत्री की भक्ति की निष्पत्ति है- ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’-सब सुखी हांे। हम अच्छा बनने, अच्छा करने और अच्छा दिखने की कामना के साथ यदि मां की उपासना करते हैं तो निश्चित ही चमत्कार घटित होता है।
धर्म ग्रंथों में यह भी लिखा है कि गायत्री उपासना करने वाले की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं तथा उसे कभी किसी वस्तु की कमी नहीं होती। गायत्री से आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति, धन एवं ब्रह्मवर्चस के सात प्रतिफल अथर्ववेद में बताए गए हैं, जो विधिपूर्वक उपासना करने वाले हर साधक को निश्चित ही प्राप्त होते हैं। विधिपूर्वक की गयी उपासना साधक के चारों ओर एक रक्षा कवच का निर्माण करती है व विपत्तियों के समय उसकी रक्षा करती है।
गायत्री मां, गायत्री वेदों की माता है, जननी है। यह वेद-वेदांग आध्यात्मिक व भौतिक उन्नति, ज्ञान-विज्ञान का अक्षुण्ण भंडार अपने में समेटे है। अतः गायत्री उपासना भक्ति कल्याण का साधन है, इसी से हम उन्नति, सुखमय जीवन-भक्ति व सद्-पथगामी बन सकते हैं।
भगवान मनु कहते हैं कि जो पुरुष प्रतिदिन आलस्य त्याग कर तीन वर्ष तक गायत्री का जप करता है, आकाश की तरह व्यापक परब्रह्य को प्राप्त होता है।
मंा गायत्री की साधना और उपासना सच्चे मन से एकाग्र होकर करने वाले साधक को अमृत, पारस, कल्पवृक्ष रूपी लाभ सुनिश्चित रूप से प्राप्त होता है। गायत्री मंत्र को जगत की आत्मा माने गए साक्षात देवता सूर्य की उपासना के लिए सबसे सरल और फलदायी मंत्र माना गया है. यह मंत्र निरोगी जीवन के साथ-साथ यश, प्रसिद्धि, धन व ऐश्वर्य देने वाली होती है। लेकिन इस मंत्र के साथ कई युक्तियां भी जुड़ी है. अगर आपको गायत्री मंत्र का अधिक लाभ चाहिए तो इसके लिए गायत्री मंत्र की साधना विधि विधान और मन, वचन, कर्म की पवित्रता के साथ जरूरी माना गया है।
वेदमाता मां गायत्री की उपासना 24 देवशक्तियों की भक्ति का फल व कृपा देने वाली भी मानी गई है। इससे सांसारिक जीवन में सुख, सफलता व शांति की चाहत पूरी होती है। खासतौर पर हर सुबह सूर्योदय या ब्रह्ममुहूर्त में गायत्री मंत्र का जप ऐसी ही कामनाओं को पूरा करने में बहुत शुभ व असरदार माना गया है।
गायत्री मंत्र की सहज स्वीकारोक्ति अनेक धर्म- संप्रदायों में है। सनातनी और आर्य समाजी तो इसे सर्वश्रेष्ठ मानते ही हैं। स्वामीनारायण सम्प्रदाय की मार्गदर्शिका ‘शिक्षा पत्री’ में भी गायत्री महामंत्र का अनुमोदन किया गया है। संत कबीर ने ‘बीजक’ में परब्रह्म की व्यक्त शक्तिधारा को गायत्री कहा है। सत्साईं बाबा ने भी कहा है कि गायत्री मंत्र इतना प्रभावशाली हो गया है कि किसी को उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। उन्होंने स्वयं गायत्री मंत्र का उच्चारण करके भक्तों से उसे जपने की अपील की है। इस्लाम में गायत्री मंत्र जैसा ही महत्त्व सूरह फातेह को दिया गया है।
गायत्री जयंती पर्व गायत्री महाविद्या के अवतरण का पर्व है। यह शक्ति की उपासना का अवसर है। भगवती गायत्री आद्याशक्ति प्रकृति के पाँच स्वरूपों में एक मानी गयी हैं। इनका विग्रह तपाये हुए स्वर्ण के समान है। वास्तव में भगवती गायत्री नित्यसिद्ध परमेश्वरी हैं। किसी समय ये सविता की पुत्री के रूप में अवतीर्ण हुई थीं, इसलिये इनका नाम सावित्री पड़ गया।
कहते हैं कि सविता के मुख से इनका प्रादुर्भाव हुआ था। भगवान सूर्य ने इन्हें ब्रह्माजी को समर्पित कर दिया। तभी से इनकी ब्रह्माणी संज्ञा हुई।
कहीं-कहीं सावित्री और गायत्री के पृथक्-पृथक् स्वरूपों का भी वर्णन मिलता है। इन्होंने ही प्राणों का त्राण किया था, इसलिये भी इनका गायत्री नाम प्रसिद्ध हुआ। उपनिषदों में भी गायत्री और सावित्री की अभिन्नता का वर्णन है।
गायत्री ज्ञान-विज्ञान की मूर्ति हैं। इस प्रकार गायत्री, सावित्री और सरस्वती एक ही ब्रह्मशक्ति के नाम हैं। इस संसार में सत-असत जो कुछ हैं, वह सब ब्रह्मस्वरूपा गायत्री ही हैं। भगवान व्यास कहते हैं- जिस प्रकार पुष्पों का सार मधु, दूध का सार घृत और रसों का सार पय है, उसी प्रकार गायत्री मन्त्र समस्त वेदों का सार है। गायत्री वेदों की जननी और पाप-विनाशिनी हैं, गायत्री-मन्त्र से बढ़कर अन्य कोई पवित्र मन्त्र पृथ्वी पर नहीं है।
(ललित गर्ग)
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