Tuesday, March 19, 2013

बाल कविता: जल्दी आना ...


 

बाल कविता:
जल्दी आना ...


संजीव 'सलिल'
*
मैं घर में सब बाहर जाते,
लेकिन जल्दी आना… 
*
भैया! शाला में पढ़-लिखना 
करना नहीं बहाना. 
सीखो नई कहानी जब भी 
आकर मुझे सुनाना. 
*
दीदी! दे दे पेन-पेन्सिल,
कॉपी वचन निभाना.
सिखला नच्चू , सीखूँगी मैं-
तुझ जैसा है ठाना.
*
पापा! अपनी बाँहों में ले,
झूला तनिक झुलाना. 
चुम्मी लूँगी खुश हो, हँसकर-
कंधे बिठा घुमाना. 
माँ! तेरी गोदी आये बिन,
मुझे न पीना-खाना. 
कैयां में लेगा दे लोरी-
निन्नी आज कराना. 
*
दादी-दादा हम-तुम साथी,
खेल करेंगे नाना. 
नटखट हूँ मैं, देख शरारत-
मंद-मंद मुस्काना. 
***

1 comment:

Rajendra kumar said...

बहुत ही सरस बाल कविता.