Wednesday, February 29, 2012

युग मानस के संपादक को मातृ-वियोग

न मातु: दैवतं परम

स्वर्गीय मातृश्री सी. नारायणम्मा

युग मानस के संपादक डॉ. सी. जय शंकर बाबु की माताश्री सी. नारायणम्मा (76 वर्ष) का निधन दि.28 फरवरी, 2012 की सुबह 8.40 को (उनके निवास गुंतकल, आंध्रप्रदेश में) हो गया ।  पिछले एक महीने से वे अस्वथ थी ।  युग मानस पत्रिका के मुद्रण व प्रकाशन में संपादक की व्यस्तता और जरूरतों की पूर्ति में उन्हें माताजी का मदद मिलती रही है ।  आत्मीयतापूर्ण ममतामय गुणों से परिपूर्ण माताजी के निधन से उनका पूरा परिवार शोक संतप्त है ।

उनके अंतिम संस्कार दि.29 फरवरी, 2012 पूर्वाह्न 11 बजे गुंतकल में पूरे हो गए हैं ।

स्वर्गस्थ आत्मा को अपार शांति मिले, इन्हीं कामनाओं के साथ...

शोक सभा का आयोजन दि.10 मार्च, 2012 को उनके निवास में होगा ।

Sunday, February 26, 2012

गोपी गीत दोहानुवाद


गोपी गीत दोहानुवाद

संजीव 'सलिल'
*
(श्रीमदभागवत दशम स्कंध के  इक्तीसवें अध्याय में वर्णित पावन गोपी गीत का भावानुवाद प्रस्तुत है.)

धन्य-धन्य है बृज धरा, हुए अवतरित श्याम.
बसीं इंदिरा, खोजते नयन, बसो अभिराम.. 

जय प्रियतम घनश्याम की, काटें कटें न रात.
खोज-खोज हारे तुम्हें, कहाँ खो गये तात??

हम भक्तन तुम बिन नहीं, रातें सकें गुजार.
खोज रहीं सर्वत्र हम, दर्शन दो बलिहार.. 

कमल सरोवर पराजित, मनहर चितवन देख.
शरद लहर शतदलमयी, लज्जित आभा लेख..

बिना मोल तुम पर नयन, न्यौछावर हैं तात.
घायल कर क्यों वध करें?, वरदाता अवदात..

मय अघ तृण विष सूत जल, असुरों से हर बार.
साधिकार रक्षा करी, बहु-प्रकार करतार!. 

जो हो जसुदा-पुत्र तो, करो सहज व्यवहार.
बसे विदेही देह में, जग के तारणहार..

विधि ने वंदनकर किया, आमंत्रित जग-नूर.
हुए बचाने अवतरित, रहो न हमसे दूर..

कमल-करों से थामते, कमला-कर रस-खान. 
वृष्णिधुर्य! दो अभय रख, सिर पर कर गुणवान..

बृजपुरियों के कष्ट हर, कर दो भव से पार.
हे माधव! हे मुरारी!, मुरलीधर सरकार..

तव कोमल मुस्कान ले, हर मिथ्या अभिमान.
मुख-दर्शन को तरसतीं, हम भक्तन भगवान..

गौ-संवर्धन हित उठे, रमा-धाम-पग नाथ.
पाप-मुक्त देहज सभी, हों पग पर रख माथ..

सर्प कालिया का दमन, किया शीश-धर पैर.
हरें वासना काम की, उर पग धर, हो खैर..

कमलनयन! मृदु वाक् से, करते तुम आकृष्ट.
अधर अमृत-वाणी पिला, दें जीवन उत्कृष्ट..

जग-लीला जो आपकी, कहिये समझे कौन?
कष्ट नष्ट कर मूल से, जीवन देते मौन..

सचमुच वही महान जो, करते तव गुणगान.
जय करते जीवन-समर, पाते-देते ज्ञान..

गूढ़ वचन, चितवन मधुर, हर पल आती याद.
विरह वियोगी, क्षुब्ध उर, सुन छलिया! फ़रियाद..

गाय चराने प्रभु! गये, सोच भरे मम नैन.
कोमल पग तृण-चोटसे, आहत- मिली न चैन..

धूल धूसरित केश-मुख, दिवस ढले नीलाभ.
दर्शन की मन-कामना, जगा रहे अमिताभ..

ब्रम्हापूजित पगकमल, भूषण भू के भव्य.
असंतोष-आसक्ति हर, मनचाहा दें दिव्य..

मृदु-पग रखिए वक्ष पर, मिटे शोक-संताप.
अधर माधुरी हर्ष-रस, हमें पिलायें आप..

क्या हम हीन सुवेणु से?,  हम पर दिया न ध्यान.
बिन अघाए धर अधर पर, उसे सुनाते गान..

वन जाते प्रियतम! लगे, हर पल कल्प समान.
कुंतल शोभित श्याम मुख, सुंदरता की खान..

सृष्टा ने क्यों सृष्टि में, रची मूर्ति मति-मंद.
देखें आनंदकंद को, कैसे नैना बंद..

अर्ध रात्रि दीदार को, आयी तज घर-द्वार.
'मन अर्पण कर' टेरता, वेणु गीत छलकार..

स्निग्ध दृष्टि, स्नेहिल हँसी, प्रेमिल चितवन शांत. 
करूँ वरण की कामना,  हर पल लक्ष्मीकांत.. 

रमानिवासित वक्ष तव, सुंदर और विशाल.
आये न क्यों?, कब आओगे??, ओ जसुदा के लाल!. 

गहन लालसा मिलन की, प्रगटो हर लो कष्ट.
विरह रोग, सँग औषधी, पीड़ा कर दो नष्ट..

हम विरहिन चिंतित बहुत, कंकड़ चुभें न पाँव.
पग कोमल रख वक्ष पर, दूँ आँचल की छाँव..

विवेचन

गो इन्द्रिय, पी पान कर, गोपी इन्द्रियजीत. 
कृष्ण परम आनंद हैं, जगसृष्टा सुपुनीत..

इन्द्रिय निग्रह प्रभु मिलन, पथ है गोपी गीत.
मोह-वासना त्यागकर, प्रभु पाओ मनमीत..

तजकर माया-मोह के, सब नश्वर सम्बन्ध.
मन कर लो एकाग्र हो, वंशी से अनुबंध..

प्रभु से चिर अनुराग बिन, व्यर्थ जन्म यह मान.
मनमोहन को मन बसा, हैं अमोल यह जान.. 

अमल भक्ति से मिट सकें, मन के सभी विकार.
विषधर कल्मष नष्ट कर, प्रभु करते उपकार..  

लोभ मोह मद दूर कर, तज दें माया-द्वेष.
हरि पग-रज पाकर तरो, तारें हरि देवेश..
 

Friday, February 24, 2012

दिल्ली सरकार की हिन्दी अकादमी एवं अहिन्दी भाषी हिन्दी लेखक संघ के संयुक्त तत्त्वावधान में...

नांदेड़ में संपन्न हुआ अ. भा. हिंदी लेखक सम्मेलन




नांदेड, महाराष्ट्र। दिल्ली सरकार की हिन्दी अकादमी एवं अहिन्दी भाषी हिन्दी लेखक संघ के संयुक्त तत्त्वावधान में महान साहित्यकार, चिंतक, समाज सुधारक गुरु गोविंद सिंह महाराज की कर्मभूमि नांदेड में आयोजित त्रिदिवसीय अखिल भारतीय हिन्दी लेखक सम्मेलन में देशभर से पधारे विद्वानों ने हिन्दी को एकता के सूत्र में बांधने वाली शक्ति बताते हुए इसके अधिकाधिक प्रयोग पर बल दिया गया। स्वामी रामानंद तीर्थ विश्वविद्यालय के सायन्स कॉलेज के भव्य सभागार में विभिन्न सत्रों में चर्चाए कवि सम्मेलन, प्रदर्शनी, तथा सम्मान समारोह के दौरान बहुत बड़ी संख्या में स्थानीय लेखक पत्रकार, अध्यापक, राजभाषा अधिकारी, शोध छात्र तथा विभिन्न सरकारी तथा गैर सरकारी कार्यालयों के प्रतिनिधि व हिन्दी प्रेमी लगातार उपस्थित रहे।

        
प्रथम दिवस के उद्घाटन सत्र में गुरुद्वारा हजूर साहिब सचखंड के मुख्यग्रन्थी प्रतापसिंह की उपस्थिति में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य एवं पूर्व सांसद लेखक स. हरविंदर सिंह हंसपाल कालेज अध्यक्ष डाण् व्यंकटेश काब्दे, हिन्दी अकादमी के उपसचिव डाण् हरिसुमन बिष्ट, प्राचार्य डा. जीएम कलमसे तथा संस्था के अध्यक्ष डॉ. हरमहेन्दर सिंह बेदी ने दीप प्रज्वलित कर सम्मेलन का शुभारम्भ किया। स्थानीय संयोजिका सायन्स कालेज हिन्दी विभागाध्यक्ष डा. अरुणा राजेन्द्र शुक्ल ने गुरु गोविंद सिंह के साथ निजाम के अत्याचारी शासन के विरूद्ध संघर्ष करने वाले, क्षेत्र के मुक्तिदाता के रूप में स्थापित स्वामी रामानंद तीर्थ को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए सभी अतिथियों का स्वागत किया। हजूर साहिब सचखंड के मुख्यग्रन्थी ने गुरुजी की अंतिम कर्मभूमि नांदेड़ के विषय में अनेक ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी दी वहीं स. हंसपाल एवं अन्य सभी वक्ताओं ने हिन्दी और गुरुगोविंद सिंह के साहित्य दर्शन को राष्ट्रीय एकता का पर्याय बताया। संयोजक सुरजीत सिंह जोबन ने देश के विभिन्न भागों से पधारे हिन्दी विद्वानों व हिंदी साहित्यकारों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की।



चायकाल के बाद जानेमाने कवि महेन्द्र शर्मा द्वारा संचालित कवि सम्मेलन का आगाज देवबंद के डा. महेन्द्रपाल काम्बोज के ओजस्वी स्वर में गुरुजी की यशोगान से हुआ।  देर रात तक चले कवि सम्मेलन में सर्वश्री हर्षकुमार, नरेन्द्रसिंह होशियार पुरी, मनोहर देहलवी, किशोर श्रीवास्तव, विनोद बब्बर, डा. रामनिवास मानव, डा. कीर्तिवर्द्धन, अतुल त्रिपाठी, ओमप्रकाश हयारण दर्द, डा. अहिल्या मिश्र, डा. अरुणा शुक्ल, संतोष टेलवीकर, ज्योति मुंगल, संगमलाल भंवर, डा. हरिसुमन बिष्ट आदि कवियों ने राष्ट्रीय एकता के विभिन्न रंग बिखेरे।



द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र में हजूर साहिब के मुख्य कथाकार ज्ञानी अमरसिंह की उपस्थिति में ‘गुरु गोविंदसिंह और उनका हिंदी साहित्य’ विषय पर परिचर्चा के दौरान अमृतसर के नानकदेव विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष रहे डॉ. हरमेन्दर सिंह बेदी ने गुरुजी रचित ‘विचित्र नाटक’ को प्रथम आत्मकथा बताया। अन्य वक्ताओं में अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी शिक्षण केन्द्र शिमला की अध्यक्षा प्रो. जोगेश कौर, इन्दौर के डॉ. प्रताप सिंह सोढ़ी, हैदराबाद की अहिल्या मिश्र, नांदेड़ की छात्रा श्रीमती पूनम शुक्ल तथा डा. परमेन्दर कौर भी शामिल थे। इसी सत्र में स. सुरजीत सिंह जोबन के अभिनंदन ग्रन्थ ‘खुश्बु बन कर जिऊंगा’ एवं डा. अरुणा राजेन्द्र शुक्ल के शोधग्रन्थ ‘नरेश मेहता के उपन्यासों में व्यक्त अवदान’ का लोकार्पण किया गया। इस सत्र का संचालन राष्ट्रकिंकर के संपादक श्री विनोद बब्बर ने किया। अध्यक्षता रामनिवास मानव ने की।
    
भोजनोपरान्त द्वितीय सत्र में ‘अहिन्दीभाषी प्रदेशों का हिन्दी लेखन’ विषय पर परिचर्चा में मुख्य वक्ता विनोद बब्बर ने हिन्दुस्तान की आजादी के 65 वर्ष बाद भी यहाँ  अहिन्दीभाषी शब्द के प्रयोग को अपमानजनक और दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उन्होंने मातृभाषा और राष्ट्रभाषा को दोनों आंखें बताते हुए इनमें संतुलन की आवश्यकता बताई। इस सत्र में डा. हरि सिंह पाल, डा. शहाबुद्दीन शेख, डा. रेखा मोरे, डा.ज्योति टेलवेकर ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये। 



तीसरे दिन के प्रथम सत्र में क्षेत्र के लोकप्रिय विधायक श्री ओमप्रकाश पोकार्णा ने नांदेड की पवित्र भूमि पर सभी का स्वागत करते हुए सम्मेलन को राष्ट्रीय एकता का महाकुम्भ घोषित किया। विधायक महोदय ने हिन्दी के प्रति समर्पण के लिए स. सुरजीत सिंह जोबन तथा विनोद बब्बर को सम्मानित करते हुए उनके साहित्यिक अवदान की प्रशंसा की। इसी सत्र में ‘अंतर्राज्यीय भाषायी संवाद’ विषय पर हिन्दी अकादमी के उपसचिव डा. हरिसुमन बिष्ट ने मुख्य वक्ता के रूप में आदिकाल से आधुनिक काल तक के इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम व बाद में राष्ट्रभाषा बनने तक हिन्दी की राष्ट्रीय पहचान को रेखांकित करते हुए आज के वैश्वीकरण के दौर में हिन्दी को सम्पूर्ण राष्ट्र की आवश्यकता बताया। डा. रामनिवास मानव की अध्यक्षता एवं डा. अरूणा के संचालन में डॉ. बेदी, आकाशवाणी दिल्ली के पूर्व राजभाषा निदेशक डा. कृष्ण नारायण पाण्डेय, डा. मान, डा. रमा येवले प्रमुख वक्ता थे। 



अंतिम सत्र में स. हंसपाल, डा. बेदी नांदेड़ एजुकेशन सो. के उपाध्यक्ष श्री सदाशिवराव पाटिल, प्राचार्य डा. कलमसे ने देश भर से पधारे विभिन्न हिंदी विद्वानों को ‘भाषा रत्न’ सम्मान प्रदान कर उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। सम्मेलन के दौरान दिल्ली के श्री किशोर श्रीवास्तव की राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रेरक स्लोगनों एवं सामाजिक, सांप्रदायिक विसंगतियों व सद्भाव पर निर्मित कार्टूनों, लघु रचनाओं  की पोस्टर प्रदर्शनी ष्खरी.खरीष् का आयोजन भी किया गया, जिसे अपार जनसमूह ने काफी सराहा।



रपटः इरफान राही, पत्रकार, नई दिल्ली 
Hum Sab Sath Sath Desk, Mo. 9868709348

बस्ती में साहित्यकारों का सम्मान


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निराला साहित्य एवं संस्कृति संस्थान की पहल

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निराला साहित्य एवं संस्कृति संस्थान बस्ती (उत्तर प्रदेश ) के अध्यक्ष डॉ. रामकृष्ण लाल जगमग ने सूचित किया हैं कि आगामी २८ मार्च को एक भव्य सारस्वत सम्मान का आयोजन किया जा रहा हैं l जिसमे देश के अनेक प्रान्तों के साहित्य सर्जक भाग लेंगे l इस अवसर पर पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. बालशौरी रेड्डी (चेन्नई ),श्री अजय कुमार गुप्ता (सम्पादक गगनांचल ) ,दिल्ली एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. राजेंद्र परदेसी (लखनऊ ) को निराला शिखर सम्मान से सम्मानित किया जाएगा l सम्मान स्वरुप इन्हें स्मृति चिन्ह ,शाल एवं इक्कावन सौ (५१००.०० ) रूपये की राशि भेट किया जाएगा तथा डॉ.कंचन शर्मा (इम्फाल),डॉ.सकीना अख्तर , (श्रीनगर ),डॉ.रीता सिंह 'सर्जना '(तेजपुर ,असम) एवं डॉ. रतिलाल शाहीन (मुंबई ) कोआशीर्वाद (कहानी) निराला सृजन सम्मान से सम्मानित किया जाएगा l सम्मान स्वरुप इन्हें स्मृति चिन्ह,शाल एवं ग्यारह सौ रूपये की नगद राशि भेट किया जाएगा l

Tuesday, February 21, 2012

आज भी ज़मीन से जुड़ी है साहित्यिक पत्रकारिता



पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति पत्रकारिता सम्मान से अलंकृत हुए डॉ. हेतु भारद्वाज





‘मीडिया विमर्श परिवार’ द्वारा प्रतिवर्ष दिया जाने वाला पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान इस वर्ष ‘अक्सर’ (जयपुर) के सम्पादक एवं प्रख्यात साहित्यकार डॉ. हेतु भारद्वाज को प्रदान किया गया। भोपाल के भारत भवन में आयोजित इस समारोह में देश के जाने माने साहित्यकार डॉ. विजय बहादुर सिंह ने डॉ. हेतु भारद्वाज को इस पुरस्कार से सम्मानित किया। इस सम्मान के अंतर्गत एक स्मृति चिन्ह, प्रमाणपत्र, शॉल-श्रीफल एवं 11 हजार रुपये नगद राशि दी गयी। गौरवमयी परंपरा का सम्मानः इस अवसर पर उपस्थित डॉ. हेतु भारद्वाज ने कहा कि यह पुरस्कार उनका व्यक्तिगत सम्मान नहीं अपितु उस गौरवमयी परंपरा का सम्मान है जो प्रेमचंद और महावीर प्रसाद द्विवेदी से प्रारंभ होकर ज्ञानरंजन तक आती है। साहित्यिक पत्रकारिता आज भी माखनलाल चतुर्वेदी और पराड़कर की परंपरागत नीतियों का निर्वाह निर्भयता से कर रही है जबकि मुख्यधारा की पत्रकारिता व्यावसायिक होकर अपने पथ से विचलित हुई है। उन्होंने कहा कि सम्पादक किसी भी समाचार पत्र और पत्रिका की धुरी होता है, जो स्वयं ही एक संस्था है। परंतु वर्तमान समय में सम्पादक, संस्था न होकर मात्र एक व्यक्ति रह गया है, क्योंकि संपादक नामक इस संस्था ने ग्लैमर और भौतिकता की चकाचौंध में पाठक के प्रति अपने उत्तरदायित्व से मुँह मोड़ लिया है। इसी का परिणाम है कि स्वयं के अंतर्विरोधों को भी चिन्हित करने का मूल अधिकार संपादक के पास अब नहीं रहा। साहित्यिक पत्रकारिता इस मामले में अभी तक स्वच्छंद और निर्भीक है। यही कारण है कि इस धारा की पत्रकारिता की जड़ें आज भी माखनलाल चतुर्वेदी, पराड़कर, गणेश शंकर विद्यार्थी और माधवराव सप्रे के विचारों की ज़मीन से जुड़ी है।क्षेत्रीय भाषाओं से अंतरसंवाद जरूरीः आयोजन की अध्यक्षता करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि हमारी नई पीढ़ी के समक्ष नई चुनौतियां एवं नई समस्याएं हैं। नई तकनीक ने जिस प्रकार मानवता को जोड़ने की संभावना जगाई है वह धर्म, जाति व भौगोलिक सीमाओं से परे है। इस पीढ़ी को सौभाग्य से अत्यंत विकसित तकनीक एवं संचार प्रणाली मिली है, जिसने मार्शल मैकलुहान की ‘ग्लोबल विलेज’ की अवधारणा को सार्थक कर दिया है। परंतु इस पीढ़ी को तकनीक का उपयोग नहीं, बल्कि विवेकपूर्ण सदुपयोग करना होगा, अन्यथा भविष्य में विज्ञान का चमत्कार हमारे लिए विनाश का समाचार बनकर रह जाएगा। उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे अंग्रेजी भाषा के साथ-साथ अपनी राष्ट्रभाषा एवं क्षेत्रीय भाषाओं में भी अंतरसंवाद बनाए रखें। प्रो. कुठियाला ने कहा कि अब समय आ गया है कि साहित्य और पत्रकारिता दोनों को अपने आपसी मतभेदों को भुलाकर साथ मिलकर वही कार्य करना चाहिए जो दोनों ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान किया था। दोनों एक ही सृजनात्मकता के दो पहलू हैं, इसलिए दोनों को देश के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होना चाहिए। अटूट रिश्ता है साहित्य व पत्रकारिता काः इस अवसर पर कार्यक्रम के विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित हुए वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर ने बताया कि साहित्य और पत्रकारिता तो बहुत बाद में एक-दूसरे से अलग हुए। एक समय था जब पत्रकारिता साहित्य से अलग नहीं थी और वही हिंदी साहित्य और पत्रकारिता का स्वर्णिम काल था। जहां एक तरफ हिंदी में सरस्वती, धर्मयुग और दिनमान जैसी पत्रिकाओं से नई परंपरा का प्रारंभ हुआ, वहीं पराड़कर जी जैसे पत्रकारों ने मुद्रास्फीति, राष्ट्रपति, श्री, सर्वश्री जैसे शब्द देकर हिंदी के शब्दकोष को और पुष्ट किया। श्री श्रीधर ने कहा कि ‘जर्नलिस्ट’ के लिए हम जिस ‘पत्रकार’ शब्द का प्रयोग करते हैं, वह स्वयं माखनलाल चतुर्वेदी जी द्वारा दिया गया। साथ ही साथ हिंदी साहित्यिक पत्रकारिता ने अन्य भारतीय भाषाओं के लेखकों को भारत के कोने-कोने तक पहुंचाया। शरतचंद्र, बंकिमचंद्र और रविन्द्रनाथ टैगोर जैसे श्रेष्ठ बांग्ला लेखकों की पहुंच हिंदी-भाषी पाठकों तक बनाने में साहित्यिक पत्रकारिता का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उपभोक्तावादी समय का संकटः कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रख्यात साहित्यकार डॉ. विजय बहादुर सिंह ने कहा कि ‘मीडिया विमर्श’ द्वारा साहित्यिक पत्रकारिता को दिया जाने वाला यह पुरस्कार उन मूल्यों की माँग और पहचान का पुरस्कार है, जिनकी समाज को महती आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता में दूरी इसलिए आई है क्योंकि हम रिश्तों व मूल्यों की कद्र करने वाले समय से निकलकर उपभोगवादी समय में आ गये हैं। ‘मीडिया विमर्श’ के कार्यकारी संपादक संजय द्विवेदी ने इस अवसर पर कहा कि साहित्यिक पत्रकारिता के क्षेत्र में डॉ. हेतु भारद्वाज जी को सम्मानित किए जाने से भारतेंदु हरिश्चंद, महावीर प्रसाद द्विवेदी, अज्ञेय, रघुवीर सहाय एवं धर्मवीर भारती जैसे मूर्धन्य साहित्यकारों की परंपरा का सम्मान हुआ है। उन्होंने कहा कि डॉ. श्याम सुंदर व्यास, डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी एवं श्री हरिनारायण जी जैसे श्रेष्ठ एवं स्तरीय साहित्यिक पत्रकारों की श्रृंखला में डॉ. हेतु भारद्वाज को यह पुरस्कार देते हुए समस्त ‘मीडिया विमर्श परिवार’ तथा वह स्वयं गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। श्री द्विवेदी ने कहा कि साहित्य एवं पत्रकारिता के बीच यदि हमारा सेतु बनने का यह प्रयास सफल रहा तो वह समझेंगे कि पत्रकारिता पर साहित्य का जो ऋण था, उसे चुकाने का प्रयास किया गया है।इस अवसर पर साहित्यकार कैलाशचंद्र पंत, छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यसचिव ए.के. विजयवर्गीय, एडवोकेट एवं लेखक जी.के. छिब्बर, पत्रकार शिवअनुराग पटैरया, दीपक तिवारी, बृजेश राजपूत, राखी झंवर, दिनकर सबनीस, नरेंद्र जैन, अमरदीप मौर्य, विवेक सारंग, डा. आरती सारंग, प्रो. आशीष जोशी, डा. पवित्र श्रीवास्तव, डा. पी. शशिकला, प्रो. अमिताभ भटनागर, राघवेंद्र सिंह, साधना सिंह, डा. मोनिका वर्मा, सुरेंद्र पाल, लालबहादुर ओझा, डा. अविनाश वाजपेयी, अभिजीत वाजपेयी, सुरेंद्र बिरवा सहित मीडिया विमर्श के संपादक डॉ. श्रीकांत सिंह, प्रकाशक श्रीमती भूमिका द्विवेदी तथा नगर के मीडिया से जुड़े शिक्षक एवं विद्यार्थी भी उपस्थित थे। भारत भवन में गूंजा भारती बंधु का कबीर रागः पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान की यह शाम कबीर के नाम रही। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कबीर गायक भारती बंधु ने कबीर राग की ऐसी तान छेड़ी कि भारत भवन के ‘अंतरंग’ का वह समां दर्शकों के मानस पटल पर आजीवन संचित रहेगा। अपने चिर-परिचित अंदाज में भारती बंधु ने कबीर के दोहों और साखियों की ऐसी तान छेड़ी कि पूरा सभागार झूम उठा। भारती बंधु की शेरो-शायरी ने दर्शकों को कभी खूब हँसाया तो कभी सोचने के लिए मजबूर कर दिया। इस अवसर पर भारती बंधु ने युवाओं से कहा कि पाश्चात्य संगीत सुनकर भले ही आप पश्चिम के क्षणिक रंग में रंग जाएं, लेकिन अगर आपको मानसिक और आत्मिक शांति चाहिए तो भारतीय संगीत के अलावा आपके पास कोई विकल्प नहीं है। इस सत्र के मुख्यअतिथि साहित्यकार कैलाशचंद्र पंत ने कार्यक्रम के प्रारंभ में भारती बंधु और साथी कलाकारों का शाल श्रीफल से सम्मान किया और कहा कि भारती बंधु की प्रस्तुति सुनना एक विरल अनुभव है यूं लगता है जैसे कबीर स्वयं हमारे बीच उतर आए हों।


प्रस्तुतिः शालिनी एवं सुमित कुमार सिंह

Saturday, February 18, 2012

यात्रा

 पेनांग द्वीप की ओर
संपत देवी मुरारका 
हैदराबाद
 
 
क्रूज यात्रा के क्रम में तीसरा पड़ाव बनने वाला था और जलयान उसी यात्रा की ओर अग्रसर था प्रातः नींद खुल गई और मैं चुपके से अपना केबिन छोड़ कर डेक पर निकल आई एक अद्भुत और आह्लादकारी दृश्य मेरी दृष्टि के चारों ओर पसरा हुआ मिला ऐसा दृश्य कि मैं भाव-विमुग्ध अवस्था में पूरे दृश्य को अपनी दृष्टि से आचमन कर जाना चाहती थी समुद्र का अनंत विस्तार दुर्दम स्वर में हर-हर निनाद करता दूर-दूर  तक पसरा हुआ था रात की काली चादर पर अब धीरे-धीरे उषा  सुंदरी सुनहरी किरणों का जाल बुनने में जुट गई थी और इसी लहरों के आलोड़न से गर्जन करते असीम विस्तार में मेरा जलयान तैरता चला जा रहा था जलयान का इस तरह तैरते जाना आभास यही दे रहा था जैसे कोई दुर्द्धष पक्षी अपने पंख खोले नीले आकाश में अबाध उड़ता चला जा रहा है, और छोर नाप लेने के एक दुर्दम्य संकल्प के साथ 

समुद्र की छाती पर पंख फैलाती प्रभात की सुषमा का शनैः-शनैः  विस्तारित होते जाना मुझे एक अलौकिकता की धारा में बहाये ले जा रहा था मैं सोच रही थी कि प्रकृति-माता  सौन्दर्य-सुषमा  की कितनी मनोरम दृश्यावलियों का सृजन निरंतर और क्षण-क्षण  किये जाती है और हम है कि आँख-मूंदे  अपने ही मन की अँधेरी गुफाओं में भटकते रहते हैं प्रभात की लालिमा से उर्जस्वित   होते आकाश और उसकी उजास भरी छाया को समुद्र की नीलिमा के साथ अठखेलियाँ करते मैं अपलक निहारे जा रही थी मेरा मन इस सुंदर वातावरण का अवलोकन करता स्वच्छ प्राणवायु से प्रफुल्लित हो रहा था भोर  की इस संवेदना ने मुझे विमोहित सा कर लिया था और जीवन अपनी पीठिका पर एक नये विन्यास की रचना का रचनाकार बन गया था इस नव-स्फूर्ति  की आत्म-चेतना  मेरे रोम-रोम  में रक्त-प्रवाह के साथ घुलमिल गई थी और जलयान अपने गंतव्य पथ पर निरंतर बढ़ता चला जा रहा था वह गंतव्य था मलेशिया का पेनांग द्वीप जो मलेशिया का एक प्रमुख पर्यटन-स्थल  माना जाता है और जिसके स्वादिष्ट व्यंजनों का स्वाद चखने मलेशिया तथा सिंगापुर से तो भारी संख्या में पर्यटक आते ही हैं, दुनिया के कोने-कोने  से पर्यटक इन स्वादिष्ट व्यंजनों की खुशबु पाने को लालायित रहते हैं पेनांग में छुट्टियाँ मनाना आस-पास  के लोगों के लिए बड़ा सुखकर अनुभव होता है अतः उन दिनों में पेनांग की गहमा-गहमी  देखने लायक होती है वैसे यहाँ यह बता देना भी उचित होगा कि जिसे हम मलेशिया के नाम से जानते हैं वस्तुतः वह कई द्वीपों का एक सुंदर गुलदस्ता है और पेनांग उस गुलदस्ते का सबसे सुंदर फूल है कहना न होगा कि हमारी इस यात्रा का तीसरा पड़ाव पेनांग को ही बनाना था |

पेनांग पहुँचते-पहुँचते आखिरकार सुबह का सूरज दोपहरी तक पहुँच गया मैं अपनी घड़ी देखी तो एक बज रहे थे २७- ६- ०८ को शुक्रवार का दिन था जब हमारे जलयान ने प्राकृतिक सुषमा से भरपूर इस द्वीप के समुद्र तट से कुछ दुरी पर अपना लंगर डाला | अब लगभग हर यात्री के मन में द्वीप के सुन्दर और रमणीय स्थलों का अवलोकन करने की जिज्ञासा हिलौरे मारने लगी थी सबने झटपट नाश्ता किया और अपने-अपने कार्ड की इंट्री कराने में जुट गये इतने ही कई छोटे-छोटे जलयान हमारे क्रूज के नजदीक आते दिखाई दिये हमें इन्हीं पर बैठकर द्वीप के मुख्य बंदरगाह तानजुंग मरीन जेट्टी तक  पहुंचना था पेनांग भ्रमण का हमारा कार्यक्रम भी समया-वाधित था |यहाँ हमारे क्रूज को सिर्फ ३-४ घंटे ही रुकना था और इसी समयावधि में हमें पेनांग के सभी दर्शनीय स्थलों का अवलोकन भी कर लेना था इस समयावधि के बाद आगे की यात्रा प्रारंभ होनी थी |

सारा खाना पूरी करने के बाद हमारा यात्री दल तट पर खड़ी बसों में सवार हो गया प्रत्येक बस में एक गाइड की भी व्यवस्था की गई थी मेरी बस में जो गाइड था वह आन था बस खुली नहीं की आन ने पेनांग द्वीप की जानकारियाँ हमें देनी शुरू कर दी उसने बताया कि पेनांग मलेशिया के सभी द्वीपों में सर्वाधिक सुन्दर द्वीप माना जाता है इसकी राजधानी जॉर्ज टाऊन है जिसे आगामी ७ जुलाई को निकटवर्ती मलक्का   के साथ वर्ल्ड हेरिटेज साईट के तौर पर मान्यता मिलाने को थी मलय भाषा में पेनांग को जम्बाटन पुलाव पेनांग और पुलाव मुटियार कहा जाता है इसका असली नाम नेगेरी पुलाव पेनांग है इसका मतलब है पुंगी फल के वृक्षों से आच्छादित द्वीप इसके अलावा पेनांग की पहचान पूर्व के द्वारपूर्व देशियमोती तथा मंदिरों के द्वीप के रूप होती है स्थानीय मलय लोग इसे पुलाव का प्रथम द्वीप भी मानते हैं ऐतिहासिकता इस रूप में भी व्याख्यायित होती है कि १५ वीं शताब्दी में चीन के मींग साम्राज्य के एक राजा जब अपनी समुद्री-यात्रा के दौरान इस द्वीप के दक्षिणी-तट पर उतरे थेतो इसे उन्होंने 'विनलेंग ज्यू कहकर पुकारा था वैसे पेनांग के संस्थापक फ्रांसिस लाइट का पदार्पण जब पहली बार जब इस द्वीप में ११ अगस्त १७८६ में हुआ था, तब उन्होंने इसका नाम पेनांग से बदलकर 'प्रिंस आफ वेल्सकर दिया था |

पेनांग भौगोलिक  रूप से दो भागो में विभाजित है इसका विस्तार २९३ वर्ग किलोमीटर भूमि में प्रसारित  है उत्तर-पश्चिम मलेशियन पेनिनसुला समुद्री तट से स्ट्रेट्स आफ मलक्का तट तक एक भाग है और दूसरा भाग वेलेस्सली प्रोविंस ( सेवरेंग पेराई ) कहलाता है इस दुसरे भाग का भी क्षेत्रफ़ल ७६० वर्ग किलोमीटर का है इसका सबसे कम चौडाई वाला भाग ४ किलोमीटर का है इसके उत्तर-पुर्व की ओर केदाह तथा दक्षिण की ओर पेराक है एशिया के अन्य शहरों की तरह यहाँ के नए मकान भी काँच और कंकरीट से बने है पुराने मकान सागौन की लकड़ी और टाइल्स से बने मिलते है लकड़ी पर नक्काशियाँ की गई मिलती हैजिनमें चीनी कला की झलक मिलती है जिसे कुंगसी कहा जाता है यहाँ चीनी दुकानदार तो है हीभारतीय व्यंजनों के भी कई रेस्तराँहै तथा यहाँ तीन पहियों वाले रिक्शे भी चलते हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में त्रिशास कहा जाता है राजधानी जॉर्ज टाऊन का नामकरण ब्रिटिश शासक जॉर्ज तृतीय के मरणोपरांत उनके ही नाम पर किया गया था मलय भाषी इसे टेंजांग भी कहते हैं जो चीन के एक शहर के नाम पर है पेनांग में अंग्रेजीहोकियनतमिलमलय और चीनी भाषा बोली जाती है |
 
पेनांग का मौसम मलेशिया के अन्य द्वीपों की अपेक्षा सामान्य रहता है यहाँ की जलवायु पर समुद्र का प्रभाव पड़ता है और वर्षा भी अधिक मात्रा में होती है वातावरण स्वच्छ तो रहता ही है जलवायु भी स्वास्थ्यवर्धक मानी जाती है यही कारण है कि द्वीप पर सैलानियों का आगमन बारहों मास हमेशा जारी रहता है दिन का तापमान २७ से ३० तथा रात का २२ से २४ सेंटीग्रेड के बीच बना रहता है औसत वार्षिक वर्षा २६७० मि.मी.होती है वैसे झुलसाने वाली गर्मी भले न हो लेकिन वातावरण में उमस हमेशा रहती है अप्रेल से सितंबर तक उत्तर-पश्चिमी मानसूनी हवाओं के कारण यहाँ बरसात होती है गाइड ऑन के अनुसार १९६९ तक इस द्वीप कि यात्रा निः शुल्क होती थीलेकिन उसके बाद इसे विश्व-पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर सरकार भारी मात्रा में राजस्व बटोरने लगी औधोगिक रूप से इस द्वीप को विकसित करने के लिए १९७० से १९९० के बीच यहाँ एशिया के सबसे बड़े इलेक्ट्रानिक केन्द्र कि स्थापना कि गई जो द्वीप के दक्षिणी ओर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के नजदीक है पेनांग द्वीप से मुख्य भूमि को मिलाने वाला १३.५ कि.मी. लम्बाई का पेनांग ब्रिज सन् १९८५ में निर्मित हुआ था अपनी लम्बाई के कारण इस ब्रिज कि गणना पुरे विश्व में सातवें नंबर पर की जाती है |
 
 हम अपने गाइड ऑन की बातें बड़े ध्यान से सुनते जा रहे थे और तीब्रगामी बस की खिड़की से हरीतिमा ओढे पर्वतीय-विस्तार को विमुग्ध-भाव से निहारते भी जा रहे थे इस पहाड़ी विस्तार के साथ ही ढलानों और घाटियों की शोभा जो हर तरफ हरीतिमा से ढकी दिखाई देती थी निहारना भी अत्यंत मनभावन लगता था पूरा द्वीप इसी तरह की दृश्यावलियों का खजाना है यूँ पहाड़ी श्रृंखलाओं के बीच ही समतल मैदान भी दिखाई देते थे जिनमें धान के खेत दूर-दूर तक लहलहाते दृष्टि-पथ को बाँध लेते थे पूरा द्वीप नारियल के अलावा अन्य फलदार वृक्षों की सुषमा से आच्छादित दिखाई देता था बस काफी तेज रफ्तार से भागी जा रही थी और कुछ ही देर बाद हम उस क्षेत्र में आग गये जहाँ से पश्चिमी-क्षेत्र की सर्वाधिक ऊँची श्रृंखलायें हमें स्पष्ट दिखाई देने लगी इस पर्वत श्रृंखलाओं की ऊँचाई गाइड के अनुसार समुद्रतल से ८३० मीटर है 

 
पेनांग लगभग १५ लाख ३५ हजार की जनसंख्या वाला राज्य है यहाँ की समस्त ऐतिहासिक कलाकृतियाँ जॉर्ज टाऊन में संग्रहित है द्वीप की सांस्कृतिक कलाकृतियों को पुरे दक्षिण-पूर्व एशिया में अद्वितीय माना जाता है एक खूबी यह भी है कि मुख्य शहर में १०० साल पुराने घर और दुकानें हमें पुरानी दुकानों का रंग उतरा हुआ समझ में आ रहा था और दीवारें नंगी नजर आ रही थी बस में बैठे-बैठे ही हमने यहाँ की सबसे पुरानी मस्जिद का अवलोकन किया गाइड ऑन ने बताया कि यह द्वीप उच्चकोटि की फिल्मों के निर्माण का एक नव स्थापित केन्द्र के रूप में जाना जाता है यहाँ निर्मित कुछ फिल्में काफी चर्चित हुई हैजिनमें अन्ना एण्ड दी-किंग और 'इन्डोचेनाकाफी प्रसिद्द हुई है इसके अलावा यह द्वीप कई मुख्य फसलों का प्रमुख निर्यात का केंद्र भी माना जाता है रबड़पॉम आयलकोकोधानकई प्रकार के फल और नारियल तथा शब्जियों का व्यवसाय यहाँ बहुतायत होता है मलेशिया की आर्थिक समृद्धि में इनका महत्वपूर्ण स्थान है जॉर्ज टाऊन के बंदरगाह से भारी मात्रा में इन वस्तुओं का निर्यात होता है |
 
 पेनांग में वैसे तो कई सम्प्रदाय के लोग रहते हैंलेकिन मुस्लिम आबादी सर्वाधिक होने के नाते घोषित रूप से एक इस्लामिक राज्य माना जाता है बावजूद इसके धार्मिक सदभावना यहाँ की संस्कृति में रची बसी है यहाँ सभी संप्रदायों के पूजा स्थल है और सबको अपनी धार्मिक परंपरा के अनुसार पूजा पाठ करने तथा उत्सव-त्योंहार मनाने की छूट  है इस्लाम का प्रधान यांग डीपरत्वान एगोंग है तथा यहाँ सबसे छोटी आबादी यहूदियों की है जेविश स्ट्रीट पर इनकी घनी आबादी है अपनी इस यात्रा में मैंने जितना संभव हो सका लगभग सभी संप्रदायों के महत्त्वपूर्ण तथा प्रसिद्ध पूजा स्थलों का दर्शन करने के अलावा अन्य स्थापित्यों को भी देखने का प्रयास किया |

यात्रा की शुरुआत हमने पेनांग के वनस्पति-उद्यान से की उद्यान पेनांग पर्वत-श्रृंखलाओं की तलहटी में स्थित है उद्यान में प्रवेश के साथ हमारे यात्री दल का स्वागत यहाँ के मेकाकू जाति के बंदरों ने एक विचित्र किस्म के अभिवादन के साथ किया ३० हेक्टेयर के क्षेत्रफ़ल में फैले इस उद्यान में जैविक और वानस्पतिक विविधता का स्पष्ट अवलोकन किया जा सकता है सुन्दर छायादार वृक्षों के बीच से पर्वतीय उपत्यका का दृश्यावलोकन अत्यंत मनोहारी प्रतीत होता है रंग-बिरंगे फूल न सिर्फ अपनी शोभा का विस्तार करते हैंअपितु अपनी मादक सुगंधियों से थके तन-मन को तरोताजा भी कर देते हैं उद्यान के मध्य एक १०० मीटर ऊँचा झरना है जिसके कारण इस उद्यान को झरने का उद्यान भी कहा जाता है पर्यटकों के लिए अब यह क्षेत्र निषिद्ध कर दिया गया है फिर भी दूर से अवलोकन कर इससे स्त्रवित होने वाली दुग्ध-धवल जलराशि के कल-कल निनाद का आनन्द लिया जा सकता है उद्यान की सुषमा से मैं इतनी विमुग्ध हो गई कि घूमते-घूमते बहुत दूर निकल आई सभी साथी पीछे छूट गये थे अतः जी घबड़ाने लगालेकिन पूछते-पूछते आखिर मैं अपनी बस तक पहुँच ही गई इस उद्यान के बारे में यह भी बताया गया कि साल में एक बार एक सप्ताह के लिए सरकार यहाँ एक प्रसिद्द वानस्पतिक मेले का आयोजन करती है |

हमारी बस आगे बढ़ी और हमने बस में बैठे-बैठे पेनांग के सुन्दर बागोंचीनी मंदिरोंमुसलमानों के मकबरों तथा ईसाइयों के आलिशान गिरजाघरों के दर्शन किये इन दर्शनीय स्थलों के सारे विवरण हमारा गाइड ऑन हमें परोसता चल रहा था इसी क्रम में उसने यहाँ के सर्वाधिक प्रसिद्द बौद्ध मंदिर के बारे में बताया इस बौद्ध मंदिर को केक लोक सी बौद्ध मंदिर के नाम से पुकारा जाता है पुरे दक्षिण-पूर्व एशिया में पेनांग के इस बौद्ध मंदिर को  सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है मंदिर जॉर्ज टाऊन के शहरी इलाके से बाहर वर्मा लेन  के आधे मार्ग पर वेट छायामंगाकालारम ( थाई बौद्ध मंदिर ) स्थित है मंदिर का परिसर बहुत विस्तारित है थाईलैंड के लोगों से अच्छा सम्बन्ध कायम करने के लिए मंदिर कि भूमि क्वीन विक्टोरिया ने प्रदान कि थी मंदिर कि भव्यता ने मेरे ही साथ यात्रीदल के सभी सदस्यों को मंत्रमुग्ध कर दिया मंदिर में बौद्ध-प्रतिमा कि स्थापना शयनमुद्रा में कि गई है और मूर्ति पर सोने का पत्तर चढ़ाया गया है अपनी इस मुद्रा में बुद्ध उत्तराभिमुख दाहिनी करवट लेटे हुए हैं भगवान बुद्ध का सिर उनकी हथेली पर स्थित है उनकी यह मुद्रा उनके महापरिनिर्वान का बोध कराती है गौरतलब है कि उनका महानिर्वाण उत्तर प्रदेश ( भारत ) के एक स्थान कुशीनगर में घटित हुआ था मंदिर में प्रतिमा की स्थापना सन् १८४५ ई. में हुई थी मूर्ति की कुल लम्बाई ३३ मीटर है सर्वाधिक स्थापित लम्बी प्रतिमाओं में इस मूर्ति की गणना चौदहवें स्थान पर की जाती  है |कुछ लोग इसे तीसरा- चौथा स्थान भी देते हैं प्रतिमा का दर्शन करते ही मुझे पल भर में बेंकाक  ( थाईलैंड )के वेट पो मंदिर में प्रतिष्ठित बुद्ध- प्रतिमा की याद आ गई उस प्रतिमा की लम्बाई ४६ मीटर की थी और उसकी मान्यता लम्बी प्रतिमाओं में नौवाँ माना जाता है इसी मंदिर में बाईं तरफ प्रार्थना हॉल में भगवान बुद्ध की एक अन्य भव्य प्रतिमा बैठी हुई मुद्रा में प्रतिष्ठित है जिस पर्वत पर यह बौद्ध मंदिर स्थित है बताया जाता है की यह प्राचीन काल से क्रेन और ही सी पर्वत के नाम से प्रसिद्द है मान्यता यह है कि इस पर्वत पर कि गई तपस्या मोक्षदायिनी होती है थोड़ा आगे जाने पर पर्वत पर ही एक अन्य पगोड़ा ( मंदिर ) है इस मंदिर से इटाम शहर का दृश्यावलोकन बहुत स्पष्ट होता है और एसा प्रतीत होता है कि यह मंदिर इतनी ऊँचाई पर खड़ाशहर को एकटक निहार रहा है इस पगोड़ा का निर्माण एक थाई राजा रामा छठे ने कराया और मंदिर १८९३ से १९३० तक बन कर पूरी तरह तैयार हो गया मंदिर के बाहर चीनी शैली में निर्मित एक अष्टभुज चबूतरा है इसका मध्य भाग थाई शैली में एक के ऊपर एक मंजिल बनाकर अति आकर्षक बनाया गया है इसका मुकुट वर्मा शैली में निर्मित है इस शैली में महायाना और थेरावाडा बौद्धावलम्बियों का भी सम्मिश्रण है इस मिश्र शैलियों के कारण मंदिर अत्यन्त आकर्षक और भव्य दिखाई देता है मंदिर में बौद्धग्रंथो का एक संग्रहालय भी है जिसमें मांचू राजा कोंग हसी ने बौद्ध सूत्रों को संग्रहित करने वाली ७० हजार पुस्तकें भेंट की है |

पगोड़ा के ऊपरी हिस्से में पहाड़ी की ओर ३०.२ मीटर ऊँची काँसे से निर्मित अवलोकतेश्वरी (कृपालु-भगवती ) की प्रतिमा स्थापित है जो बिल्कुल नया स्थापत्य है इस प्रतिमा को स्थानीय भाषा में क्वान यीन भी कहते हैं प्रतिमा-दर्शन २००२ के बाद दर्शनार्थियों के लिए सार्वजनिक कर दिया गया है दर्शनार्थियों को निकट से प्रतिमा-दर्शन के लिए काँच से निर्मित एक लिफ्ट के जरिये ऊपर जाना होता है प्रतिमा की भव्यता अभिभूत तो करती हैएकदम सजीव और  जागृत भी प्रतीत होती है यह हमारी पेनांग यात्रा का अंतिम पड़ाव था इस द्वीप ने मुझे अपने सौम्य-सुषमा से काफी प्रभावित किया समय बहुत संक्षिप्त था, इस कारण भ्रमण मनचाहा नहीं हो सका मैंने मन ही मन संकल्प लिया कि अवसर मिलने  पर एक बार फिर इस द्वीप के पर्यटन का मनचाहा आनंद उठाऊँगी