पेनांग
द्वीप की ओर
संपत देवी मुरारका
हैदराबाद
क्रूज यात्रा के क्रम में तीसरा पड़ाव बनने वाला था और जलयान उसी यात्रा की ओर अग्रसर था | प्रातः नींद खुल गई और मैं चुपके से अपना केबिन छोड़ कर डेक पर निकल आई | एक अद्भुत और आह्लादकारी दृश्य मेरी दृष्टि के चारों ओर पसरा हुआ मिला | ऐसा दृश्य कि मैं भाव-विमुग्ध अवस्था में पूरे दृश्य को अपनी दृष्टि से आचमन कर जाना चाहती थी | समुद्र का अनंत विस्तार दुर्दम स्वर में हर-हर निनाद करता दूर-दूर तक पसरा हुआ था | रात की काली चादर पर अब धीरे-धीरे उषा सुंदरी
सुनहरी किरणों का जाल बुनने में जुट गई थी और इसी लहरों के आलोड़न से
गर्जन करते असीम विस्तार में मेरा जलयान तैरता चला जा रहा था | जलयान का इस तरह तैरते जाना आभास यही दे रहा था जैसे कोई दुर्द्धष पक्षी अपने पंख खोले नीले आकाश में अबाध उड़ता चला जा रहा है, और छोर नाप लेने के एक दुर्दम्य संकल्प के साथ |
समुद्र की छाती पर पंख फैलाती प्रभात की सुषमा का शनैः-शनैः विस्तारित होते जाना मुझे एक अलौकिकता की धारा में बहाये ले जा रहा था | मैं सोच रही थी कि प्रकृति-माता सौन्दर्य-सुषमा
पेनांग पहुँचते-पहुँचते आखिरकार सुबह का सूरज दोपहरी तक पहुँच गया मैं अपनी घड़ी देखी तो एक बज रहे थे | २७- ६- ०८ को शुक्रवार का दिन था जब हमारे जलयान ने प्राकृतिक सुषमा से भरपूर इस द्वीप के समुद्र तट से कुछ दुरी पर अपना लंगर डाला | अब लगभग हर यात्री के मन में द्वीप के सुन्दर और रमणीय स्थलों का अवलोकन करने की जिज्ञासा हिलौरे मारने लगी थी | सबने झटपट नाश्ता किया और अपने-अपने कार्ड की इंट्री कराने में जुट गये | इतने ही कई छोटे-छोटे जलयान हमारे क्रूज के नजदीक आते दिखाई दिये | हमें इन्हीं पर बैठकर द्वीप के मुख्य बंदरगाह तानजुंग मरीन जेट्टी तक पहुंचना था | पेनांग भ्रमण का हमारा कार्यक्रम भी समया-वाधित था |यहाँ हमारे क्रूज को सिर्फ ३-४ घंटे ही रुकना था और इसी समयावधि में हमें पेनांग के सभी दर्शनीय स्थलों का अवलोकन भी कर लेना था | इस समयावधि के बाद आगे की यात्रा प्रारंभ होनी थी |
सारा खाना
पूरी करने के बाद हमारा यात्री दल तट पर खड़ी बसों में सवार हो गया | प्रत्येक बस में एक गाइड की भी व्यवस्था की गई थी | मेरी बस में जो गाइड था वह आन था | बस खुली नहीं की आन ने पेनांग द्वीप की जानकारियाँ हमें देनी शुरू कर दी | उसने बताया कि पेनांग मलेशिया के सभी द्वीपों में सर्वाधिक सुन्दर द्वीप माना जाता है | इसकी राजधानी जॉर्ज टाऊन है | जिसे आगामी ७ जुलाई को निकटवर्ती मलक्का के साथ ' वर्ल्ड हेरिटेज साईट ' के तौर पर मान्यता मिलाने को थी | मलय भाषा में पेनांग को जम्बाटन पुलाव पेनांग और पुलाव मुटियार कहा जाता है | इसका असली नाम नेगेरी पुलाव पेनांग है | इसका मतलब है पुंगी फल के वृक्षों से आच्छादित द्वीप | इसके अलावा पेनांग की पहचान पूर्व के द्वार, पूर्व
देशियमोती तथा मंदिरों के द्वीप के रूप होती है | स्थानीय मलय लोग इसे पुलाव का प्रथम द्वीप भी मानते हैं | ऐतिहासिकता इस रूप में भी व्याख्यायित होती है कि १५ वीं शताब्दी में चीन के मींग साम्राज्य के एक
राजा जब अपनी समुद्री-यात्रा के दौरान इस द्वीप के दक्षिणी-तट पर उतरे थे, तो इसे उन्होंने 'विनलेंग ज्यू ' कहकर पुकारा था | वैसे पेनांग के संस्थापक
फ्रांसिस लाइट का पदार्पण जब पहली बार जब इस द्वीप में ११ अगस्त १७८६ में हुआ था, तब उन्होंने इसका नाम पेनांग से बदलकर 'प्रिंस आफ वेल्स' कर दिया था |
पेनांग भौगोलिक रूप से दो भागो में विभाजित है | इसका विस्तार २९३ वर्ग किलोमीटर भूमि में प्रसारित है | उत्तर-पश्चि
पेनांग का मौसम मलेशिया के अन्य द्वीपों की अपेक्षा सामान्य रहता है | यहाँ की जलवायु पर समुद्र का प्रभाव पड़ता है और वर्षा भी अधिक मात्रा में होती है | वातावरण स्वच्छ तो रहता ही है , जलवायु भी स्वास्थ्यवर्धक मानी जाती है | यही कारण है कि द्वीप पर सैलानियों का आगमन बारहों मास हमेशा जारी रहता है | दिन का तापमान २७ से ३० तथा रात का २२ से २४ सेंटीग्रेड के बीच बना रहता है | औसत वार्षिक वर्षा २६७० मि.मी.होती है | वैसे झुलसाने वाली गर्मी भले न हो लेकिन वातावरण में उमस हमेशा रहती
है | अप्रेल से सितंबर तक उत्तर-पश्चिमी मानसूनी हवाओं के कारण यहाँ बरसात होती है | गाइड ऑन के अनुसार १९६९ तक इस द्वीप कि यात्रा निः शुल्क होती
थी, लेकिन उसके बाद इसे विश्व-पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर सरकार भारी मात्रा में राजस्व बटोरने लगी | औधोगिक रूप से इस द्वीप को विकसित करने के लिए १९७० से १९९० के बीच यहाँ एशिया के सबसे बड़े इलेक्ट्रानिक केन्द्र कि स्थापना कि गई जो द्वीप के दक्षिणी ओर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के नजदीक है | पेनांग द्वीप से मुख्य भूमि को मिलाने वाला १३.५ कि.मी. लम्बाई का पेनांग ब्रिज सन् १९८५ में निर्मित हुआ था | अपनी लम्बाई के कारण इस ब्रिज कि गणना पुरे विश्व में सातवें नंबर पर की जाती है |
हम अपने गाइड ऑन की बातें बड़े ध्यान से सुनते जा रहे थे और तीब्रगामी बस की खिड़की से हरीतिमा ओढे पर्वतीय-विस्तार को विमुग्ध-भाव से निहारते भी जा रहे थे | इस पहाड़ी विस्तार के साथ ही ढलानों और घाटियों की शोभा जो हर तरफ हरीतिमा से ढकी दिखाई देती थी निहारना भी अत्यंत मनभावन लगता था | पूरा द्वीप इसी तरह की दृश्यावलियों का खजाना है | यूँ पहाड़ी श्रृंखलाओं के बीच ही समतल मैदान भी दिखाई देते थे जिनमें धान के खेत दूर-दूर तक लहलहाते दृष्टि-पथ को बाँध लेते थे | पूरा द्वीप नारियल के अलावा अन्य फलदार वृक्षों की सुषमा से आच्छादित दिखाई देता था | बस काफी तेज रफ्तार से भागी जा रही थी और कुछ ही देर बाद हम उस क्षेत्र में आग गये जहाँ से पश्चिमी-क्षेत्र की सर्वाधिक ऊँची श्रृंखलायें हमें स्पष्ट दिखाई देने लगी | इस पर्वत
श्रृंखलाओं की ऊँचाई गाइड के अनुसार समुद्रतल से ८३० मीटर है |
पेनांग लगभग १५ लाख ३५ हजार की जनसंख्या वाला राज्य है | यहाँ की समस्त ऐतिहासिक कलाकृतियाँ जॉर्ज टाऊन में संग्रहित है | द्वीप की सांस्कृतिक कलाकृतियों को पुरे दक्षिण-पूर्व एशिया में अद्वितीय माना जाता है | एक खूबी यह भी है कि मुख्य शहर में १०० साल पुराने घर और दुकानें | हमें पुरानी दुकानों का रंग उतरा हुआ समझ में आ रहा था और दीवारें नंगी नजर आ रही थी | बस में बैठे-बैठे ही हमने यहाँ की सबसे पुरानी मस्जिद का अवलोकन किया | गाइड ऑन ने बताया कि यह द्वीप उच्चकोटि की फिल्मों के निर्माण का एक नव स्थापित केन्द्र के रूप में जाना जाता है | यहाँ निर्मित कुछ फिल्में काफी चर्चित हुई है, जिनमें ' अन्ना एण्ड दी-किंग ' और 'इन्डोचेना' काफी प्रसिद्द हुई है | इसके अलावा यह द्वीप कई मुख्य फसलों का प्रमुख निर्यात का केंद्र भी माना जाता है | रबड़, पॉम आयल, कोको, धान, कई प्रकार के फल और नारियल तथा शब्जियों का व्यवसाय यहाँ बहुतायत होता है | मलेशिया की आर्थिक समृद्धि में इनका महत्वपूर्ण स्थान है | जॉर्ज टाऊन के बंदरगाह से भारी मात्रा में इन वस्तुओं का निर्यात होता है |
पेनांग में वैसे तो कई सम्प्रदाय के लोग रहते हैं, लेकिन मुस्लिम आबादी सर्वाधिक होने के नाते घोषित रूप से एक इस्लामिक राज्य माना जाता है | बावजूद इसके धार्मिक सदभावना यहाँ की संस्कृति में रची बसी है | यहाँ सभी संप्रदायों के पूजा स्थल है और सबको अपनी धार्मिक परंपरा के अनुसार पूजा पाठ करने तथा उत्सव-त्योंहार मनाने की छूट है | इस्लाम का प्रधान यांग डीपरत्वान एगोंग है तथा यहाँ सबसे छोटी आबादी यहूदियों की है | जेविश स्ट्रीट पर इनकी घनी आबादी है | अपनी इस यात्रा में मैंने
जितना संभव हो सका लगभग सभी संप्रदायों के महत्त्वपूर्ण तथा प्रसिद्ध पूजा स्थलों का दर्शन करने के अलावा अन्य स्थापित्यों को भी देखने का प्रयास किया |
यात्रा की शुरुआत हमने पेनांग के वनस्पति-उद्यान से की | उद्यान पेनांग पर्वत-श्रृंखलाओं की तलहटी में स्थित है | उद्यान में प्रवेश के साथ हमारे यात्री दल का स्वागत यहाँ के मेकाकू जाति के बंदरों ने एक विचित्र किस्म के अभिवादन के साथ किया | ३० हेक्टेयर के क्षेत्रफ़ल में फैले इस उद्यान में जैविक और वानस्पतिक विविधता का स्पष्ट अवलोकन किया जा सकता है | सुन्दर छायादार वृक्षों के बीच से पर्वतीय उपत्यका का दृश्यावलोकन अत्यंत मनोहारी प्रतीत होता है | रंग-बिरंगे फूल न सिर्फ अपनी शोभा का विस्तार करते हैं, अपितु अपनी मादक सुगंधियों से थके तन-मन को तरोताजा भी कर देते हैं | उद्यान के मध्य एक १०० मीटर ऊँचा झरना है जिसके कारण इस उद्यान को झरने का उद्यान भी कहा जाता है | पर्यटकों के लिए अब यह क्षेत्र निषिद्ध कर दिया गया है फिर भी दूर से अवलोकन कर इससे स्त्रवित होने वाली दुग्ध-धवल जलराशि के कल-कल निनाद का आनन्द लिया जा सकता है | उद्यान की सुषमा से मैं इतनी विमुग्ध हो गई कि घूमते-घूमते बहुत दूर निकल आई | सभी साथी पीछे छूट गये थे अतः जी घबड़ाने लगा, लेकिन पूछते-पूछते आखिर मैं अपनी बस तक पहुँच ही गई | इस उद्यान के बारे में यह भी बताया गया कि साल में एक बार एक सप्ताह के लिए सरकार यहाँ एक प्रसिद्द वानस्पतिक मेले का आयोजन करती है |
हमारी बस आगे बढ़ी और हमने बस में बैठे-बैठे पेनांग के सुन्दर बागों, चीनी मंदिरों, मुसलमानों के मकबरों तथा ईसाइयों के आलिशान गिरजाघरों के दर्शन किये | इन दर्शनीय स्थलों के सारे विवरण हमारा गाइड ऑन हमें परोसता चल रहा था | इसी क्रम में उसने यहाँ के सर्वाधिक प्रसिद्द बौद्ध मंदिर के बारे में बताया | इस बौद्ध मंदिर को केक लोक सी बौद्ध मंदिर के नाम से पुकारा जाता है | पुरे दक्षिण-पूर्व एशिया में पेनांग के इस बौद्ध मंदिर को सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है | मंदिर जॉर्ज टाऊन के शहरी इलाके से बाहर वर्मा लेन के आधे मार्ग पर वेट छायामंगाकालारम ( थाई बौद्ध मंदिर ) स्थित है | मंदिर का परिसर बहुत विस्तारित है | थाईलैंड के लोगों से अच्छा सम्बन्ध कायम करने के लिए मंदिर कि भूमि क्वीन विक्टोरिया ने प्रदान कि थी | मंदिर कि भव्यता ने मेरे ही साथ यात्रीदल के सभी सदस्यों को मंत्रमुग्ध कर दिया | मंदिर में बौद्ध-प्रतिमा कि स्थापना शयनमुद्रा में कि गई है और मूर्ति पर सोने का पत्तर चढ़ाया गया है | अपनी इस मुद्रा में बुद्ध उत्तराभिमुख दाहिनी करवट लेटे हुए हैं | भगवान बुद्ध का सिर उनकी हथेली पर स्थित है | उनकी यह मुद्रा उनके महापरिनिर्वान का बोध कराती है | गौरतलब है कि उनका महानिर्वाण उत्तर प्रदेश ( भारत ) के एक स्थान कुशीनगर में घटित हुआ था | मंदिर में प्रतिमा की स्थापना सन् १८४५ ई. में हुई थी | मूर्ति की कुल लम्बाई ३३ मीटर है | सर्वाधिक स्थापित लम्बी प्रतिमाओं में इस मूर्ति की गणना चौदहवें स्थान पर की जाती है |कुछ लोग इसे तीसरा- चौथा स्थान भी देते हैं | प्रतिमा का दर्शन करते ही मुझे पल भर में बेंकाक ( थाईलैंड )के वेट पो मंदिर में प्रतिष्ठित बुद्ध- प्रतिमा की याद आ गई | उस प्रतिमा की लम्बाई ४६ मीटर की थी और उसकी मान्यता लम्बी प्रतिमाओं में नौवाँ माना जाता है | इसी मंदिर में बाईं तरफ प्रार्थना हॉल में भगवान बुद्ध की एक अन्य भव्य प्रतिमा बैठी हुई मुद्रा में प्रतिष्ठित है | जिस पर्वत पर यह बौद्ध मंदिर स्थित है बताया जाता है की यह प्राचीन काल से ' क्रेन ' और ' ही सी ' पर्वत के नाम से प्रसिद्द है | मान्यता यह है कि इस पर्वत पर कि गई तपस्या मोक्षदायिनी होती है | थोड़ा आगे जाने पर पर्वत पर ही एक अन्य पगोड़ा ( मंदिर ) है | इस मंदिर से इटाम शहर का दृश्यावलोकन बहुत स्पष्ट होता है और एसा प्रतीत होता है कि यह मंदिर इतनी ऊँचाई पर खड़ाशहर को एकटक निहार रहा है इस पगोड़ा का निर्माण एक थाई राजा रामा छठे ने कराया और मंदिर १८९३ से १९३० तक बन कर पूरी तरह तैयार हो गया | मंदिर के बाहर चीनी शैली में निर्मित एक अष्टभुज चबूतरा है | इसका मध्य भाग थाई शैली में एक के ऊपर एक मंजिल बनाकर अति आकर्षक बनाया गया है | इसका मुकुट वर्मा शैली में निर्मित है | इस शैली में महायाना और थेरावाडा बौद्धावलम्बियों का भी सम्मिश्रण है इस मिश्र शैलियों के कारण मंदिर अत्यन्त आकर्षक और भव्य दिखाई देता है | मंदिर में बौद्धग्रंथो का एक संग्रहालय भी है जिसमें मांचू राजा कोंग हसी ने बौद्ध सूत्रों को संग्रहित करने वाली ७० हजार पुस्तकें भेंट की है |
पगोड़ा के ऊपरी हिस्से में पहाड़ी की ओर ३०.२ मीटर ऊँची काँसे से निर्मित अवलोकतेश्वरी (कृपालु-भगवती ) की प्रतिमा स्थापित है जो बिल्कुल नया स्थापत्य है | इस प्रतिमा को स्थानीय भाषा में क्वान यीन भी कहते हैं | प्रतिमा-दर्शन २००२ के बाद दर्शनार्थियों के लिए सार्वजनिक कर दिया गया है | दर्शनार्थियों को निकट से प्रतिमा-दर्शन के लिए काँच से निर्मित एक लिफ्ट के जरिये ऊपर जाना होता है | प्रतिमा की भव्यता अभिभूत तो करती है, एकदम सजीव और जागृत भी प्रतीत होती है | यह हमारी पेनांग यात्रा का अंतिम पड़ाव था | इस द्वीप ने मुझे अपने सौम्य-सुषमा से काफी प्रभावित किया | समय बहुत संक्षिप्त था, इस कारण भ्रमण मनचाहा नहीं हो सका | मैंने मन ही मन संकल्प लिया कि अवसर मिलने पर एक बार फिर इस द्वीप के पर्यटन का मनचाहा आनंद उठाऊँगी |
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