बेटियाँ
-अशोक जांगड़ा
ओस की बूंदों सी होती हैं बेटियाँ !
खुरदरा हो स्पर्श तो रोती हैं बेटियाँ !!
रौशन करेगा बेटा बस एक ही वंश को !
दो - दो कुलों की लाज ढोतीं हैं बेटियाँ !!
कोई नहीं है दोस्तों एक दूसरे से कम !
हीरा अगर है बेटा तो मोती हैं बेटियाँ !!
काँटों की राह पर खुद चलती रहेंगी !
औरों के लिए फूल ही बोती हैं बेटियाँ !!
विधि का है विधान या दुनिया की है रीत !
क्यों सबके लिए भार होती हैं बेटियाँ !!
धिक्कार है उन्हें जिन्हें बेटी बुरी लगे !
सबके लिए बस प्यार ही संजोती है बेटियाँ
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