Saturday, January 24, 2009

कविता

आज राष्ट्रीय बालिका दिवस के उपलक्ष्य में बालिकाओं पर केंद्रित कविता का पुनः प्रकाशन (प्रतिक्रियाओं सहित.. ) -

बेटियाँ


- डॉ. बशीर, चेन्नै


ये गुल नहीं, गुलज़ार हैं


हर घर में बेटियाँ


ख़ुदा का उपहार हैं


महकती बसंत बहार हैं


परिवार का दुलार हैं


मोहब्बत का इज़हार हैं



ये ममता का पारावार हैं


सेवा का अवतार हैं


सुख-दुःख में भागीदार हैं


बेटियाँ हो तो...


हर घर में, हर दिन त्यौहार है


खेलती-कूदती, मचलती-महकती


ख़ुशबू की बयार हैं


हमारी संपत्ति और प्यार की


हमेशा हकदार हैं


बेटियाँ...


घर घर का सुख-सागर हैं



बेटियाँ कहीं लक्ष्मी बनकर


दौलत लाती हैं


कहीं सरस्वती बनकर


विद्या फैलाती हैं


कहीं मीरा बनकर


विष पाती हैं


कहीं हीरा बनकर


मुकुट धारण करती हैं



बेटियाँ देश की लाज़ हैं


इतिहास का साज़ हैं


गरिमामय वक़्त का राज़ हैं


गौरवशाली देश की आवाज़ हैं ।


posted by युग मानस yugmanas at 11:44 AM on Oct 18, 2008

Mrs. Asha Joglekar said...
हर घर में बेटियाँख़ुदा का उपहार हैंमहकती बसंत बहार हैंपरिवार का दुलार हैंबहुत सुंदर पंक्तियाँ । कविता भी सारी बहुत भावभरी ।
October 18, 2008 12:19 PM
Reetesh Gupta said...
बहुत सही ..अच्छा लगा...बधाई
October 18, 2008 1:32 PM
Reetesh Gupta said...
बहुत सही ..अच्छा लगा...बधाई
October 18, 2008 1:32 PM
Sherfraz said...
Bahut Khoobsurat hai. Bhavnayen lajavab hai.Sherfraz Nawaz.
October 21, 2008 8:50 AM
Shashank said...
Poem betiyaan is very nice. It shows the affection, respect for a girl child. Need of the hour.I wish this reaches the remotest of villages where girls are considered a burden even today.

N.Padmavathi
October 23, 2008 10:43 AM

आपकी प्रतिक्रियाओं का स्वागत ...

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