Wednesday, December 31, 2014

जाते हुए साल का विदागीत!

जाते हुए साल का विदागीत !

-संजय द्विवेदी
    जाते हुए साल को विदाई देते हुए हम उम्मीदों से भरे हुए हैं, यह मानकर कि 2015 भारत के लिए कुछ ज्यादा रोशनी लेकर आएगा। देश उम्मीदों से भरा हुआ है और दुनिया भर में बसे भारतवंशी भी अपने देश से शिकायतें नहीं कर रहे हैं, उन्हें भी लगने लगा है कि कुछ अच्छा हो सकता है। इसलिए 2014 को थैंक्स कि उसने हमें सपने देखने लायक बनाया। उसने हमें पिछले दस सालों के अवसाद, पीड़ा और सत्ता की मदांध शैली से मुक्त किया ।  आज देश संवाद करता हुआ, बोलता हुआ, अपने सपनों की तरफ दौड़ लगाता हुआ, कुछ करने का भाव लिए हुए दिखता है ।  यह उम्मीदें ऐसे ही नहीं आयी हैं ।  ये आई हैं एक राजनीतिक परिवर्तन के नाते जिसके लिए 2014 को हम भूल नहीं सकते। साल-2014 भारत से भारत के परिचय का साल है। थके हुए लोगों और हारे हुए मन को दिलासा देने का साल है ।  हिंदुस्तान ही वह देश है, जिसे कभी राजसत्ता ने बहुत आंदोलित नहीं किया ।  हमारा समाज अपने स्वाभिमान और स्वावलंबन पर भरोसा करने वाला समाज है। हमारा समाज सत्ता की ओर देखने वाला समाज नहीं है, ना ही वह सत्ता के बल पर आगे बढने वाला समाज है ।  इस समाज की जिजीविषा सालों साल से उसके साथ है। शासक और शासन की भूमिका को हमेशा हमने बहुत सीमित माना। किंतु यह अच्छे और बुरे का फर्क जानने वाला समाज जरूर है। उसे पता है कि सत्ता को कितना मान देना और कब बदल देना।

     आप कल्पना करें कि यूपीए-3 के हाथ इस देश की सत्ता लगी होती तो क्या हम 2014 को माफ कर पाते। आने वाला साल क्या उम्मीदों का साल होता। सत्ता की सीमित भूमिका के बावजूद उसका सकारात्मक और ऊर्जावान होना जरूरी है। उसकी ऊर्जा से ही समाज निश्चिंत होकर अपने सपनों में रंग भरता है। आप मानें या न मानें वह उत्साह और सकारात्मकता 2014 हमें देकर जा रहा है। यह सकारात्मकता बनाए रखना, सत्ता के नए सवारों का काम है। हमें अनूकूलता चाहिए, हम अपना श्रेष्ठतम देने के लिए आतुर समाज हैं। दुनिया इसीलिए हमें एक नई नजर से देख रही है। 2014 की सबसे बड़ी देन यही है कि वह एक ऐसे परिवर्तन का वाहक बना है, जिसका यह देश लंबे समय से इंतजार कर रहा था। समाज जीवन ऐसी ही सूचनाओं से ताकत पाता है। हम एक राष्ट्र हैं यह भावना भी हममें आज दिखने लगी है। जम्मू-काश्मीर की विकराल बाढ़ हो या सीमापार पाकिस्तान बच्चों की सामूहिक हत्या, देश का मन विचलित हुआ और उसने भावनाओं के माध्यम से इस दर्द को बांटा। यही इस भूभाग की विशेषता है। हम अपने और पड़ोसी दोनों के दुख में दुखी होते हैं और उसकी खुशी में खुश होते हैं। 2014 की बुरी सूचनाएं भी एक भावनात्मक क्षण थी, जिसमें देश एक दिखा। यही अपनी माटी और अपने लोगों से एकात्म होना है। अगर हमें अपनी धरती और अपने लोगों से प्रेम हो जाए तो सारा कुछ गलत होता हुआ रूक जाएगा। सवाल यह है कि क्या हम अपने देश से प्यार करते हैं। सवाल यह भी है कि क्या हम कुछ करने से पहले यह सवाल करते हैं कि इससे मेरा देश कैसा बनेगा? 2014 ने हमें वह नजर दी है जब हम देश की सोचने लगे हैं।

    युवा शक्ति के हाथों में स्वच्छता अभियान की झाड़ू बहुत प्रतीकात्मक प्रयास है, किंतु इसके बड़े मायने हैं। प्रधानमंत्री द्वारा लगातार आकाशवाणी पर देशवासियों से संवाद और उसमें हर बार किसी नए विषय पर बात बहुत प्रतीकात्मक है किंतु इसके मायने हैं ।  यह देश तो संवाद ही चाहता था। किंतु नेतृत्व दस वर्षों तक मौन रहा ।  बड़ी से बड़ी घटना पर मौन और अवश। आखिर यह देश चलता कैसे? लोग सत्ता से चाहते क्या हैं ?  वह उन्हें चैन से काम करने, जीने और आगे बढ़ने का वातावरण उपलब्ध कराए ।  2014 के आखिरी दिन काम को प्रतिष्ठा देने वाले दिन हैं। ये दिन अवसाद और काहिली के विदाई के भी दिन हैं ।  उत्साह और स्वाभिमान के संचार के दिन हैं। आज लोगों को लगने लगा है कि कुछ बदल रहा है, बदल सकता है। इसके पहले के मंत्र सुनें इस देश का कुछ नहीं हो सकता, कुछ नहीं बदलेगा, भगवान ही मालिक – ऐसा कहने वाले लोग घट रहे हैं। नकारात्मकता का भाव घटा है। परिर्वतन को किस तरह स्वीकारा गया इसे समझना हो तो नोबेल विजेता अर्थशास्त्री श्री अर्मत्य सेन की सुन लीजिए। वे कहते हैं-मैं श्री मोदी का आलोचक हूं,लेकिन मुझको कहना पड़ेगा कि उन्होंने जन-मन में यह आस्था पैदा कर दी है कि कुछ किया जा सकता है। मेरे विचार से यह  खासी बड़ी उपलब्धि है। यह उनके लिए मेरी तरफ से एक प्रशस्ति है, लेकिन इससे धर्मनिरपेक्षता और अन्य मुद्दों पर हमारा मतभेद खत्म नहीं हो जाता।
      अफसोस यह नकारात्मकता राजनीति ने पैदा की थी। नौकरशाही ने पैदा की थी। सेवकों के मालिक की तरह व्यवहार ने पैदा की थी। आज भी हमें इस तंत्र में बहुत कुछ बदलने की जरूरत है। आने वाले सालों में हमें सोचना होगा कि आखिर हम कैसे सरकार की सोच में आम लोगों के संवेदना भर सकते हैं? कैसे मालिक और शासक की तरह आचरण कर रही सरकारी नौकरशाही को बदल सकते हैं? कैसे इस मशीनरी में लगी जंग को साफ कर सकते हैं? 2014 हमें सपने देकर जा रहा है। अब हमें इसमें रंग भरने का काम करना है। उसने सपने जगाए हैं और देश ने अब अपने सपनों की तरफ दौड़ लगा दी है।
   
 सरकारें आज सुशासन की बात करने लगी हैं। संभव है कि वे बातों से आगे भी बढ़ें, क्योंकि देश आगे बढ़ चुका है, जनता आगे बढ़ चुकी है। कांग्रेस के ऐतिहासिक पराभव को साधारण सूचना मत मानिए- यह राजनीतिक संस्कृति में भी बदलाव की भी सूचना है। समाज अब बदला हुयी सरकार से बदले हुए तंत्र की भी अपेक्षा कर रहा है। सत्ता में जो लोग आए हैं, वे सत्ता के स्वाभाविक अधिकारी नहीं है, उन्हें जनता ने यह सत्ता अपनी घोर निराशा में सौंपी है। जाहिर तौर पर उनका दायित्व बहुत बढ़ गया है ।  उनके सामने भारत की विशाल जनता के मन के अनुरूप आचरण का दबाव है। जातियों, वर्गों, उपवर्गों और क्षेत्रीयताओं के नारों के बीच राष्ट्र की आत्मा को स्वर देने वाला नेतृत्व अरसे बाद मिला है। वह संवाद को कृति में बदलने का आह्वान कर रहा है, अपने पस्तहाल तंत्र को सक्रिय कर रहा है। काम के लिए प्रेरित कर रहा है। ऐसे में समाज की निष्क्रिय प्रतिक्रिया से आगे बढ़ने की जरूरत है। समाज को तय करना होगा कि आखिर वह कैसा देश देखना चाहते हैं? पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम विजन-2020 की बात करते हैं। अब इसमें वक्त कम बचा है। जाते हुए साल का संदेश है कि हम अपनी गति बढ़ाएं। ज्यादा तेजी से अपनी कमियों का परिष्कार करते हुए देश की जरूरतों को पूरा करें। बाजार और मीडिया के शोर में वास्तविकताओं का आकलन करें। छूट रहे लोगों और क्षेत्रों को भी साथ लें। एक ऐसा भारत बनाने की ओर बढ़ें जिसमें सबका साथ-सबका विकास का नारा हकीकत में बदलता हुआ दिखे। देश का समाज वास्तव में बहुत स्वावलंबी और कर्मठ समाज है। सरकारी तंत्र और नौकरशाही की अकर्मण्यता के बावजूद यह देश धड़क रहा है और अपने सपनों में रंग भरने के लिए आतुर है। लोगों की कर्मठता और लगातार अच्छा काम करने के कारण ही दुनिया की मंदी का असर भारत में नहीं दिखता। सरकारी नीतियों की विफलता के वावजूद देश ने अपनी विकास की गति बनाए रखी है। सन् 2015 की देहरी पर खड़े होकर हम यह कह सकते हैं कि जाते हुए साल ने हमें इस लायक तो बना ही दिया है कि हम नए साल के स्वागत में दिल से कह सकें- हैप्पी न्यू ईयर।


(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष हैं।)

Friday, December 26, 2014

विदेशों में हिंदी पत्रकारिता

विदेशों में हिंदी पत्रकारिता 


-डॉ. मुन्नी, मछलीपट्टणम

 उर्दू के प्रसिद्ध शायरअकबर इलाहाबादीजी का कथन है कि
खीचो कमानो को, तलवार निकालो
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो ।।
पत्रकारिता अभिव्यक्ति की एक मनोरम कला है पत्र शब्द् सेपत्रकारिताबना है पत्रकारिता को अग्रेजी में Journalism कहा जाता है फ्रेन्च़ शब्द्जर्नीसे इस Journalism का रूपातर हुआ है लेटिन भाषा में इसेडियुर्नल् कहा जाता है हिंदी में इसका नामपत्रकारिताहै खाडिलकरके मत  में  घ्नान और विचार, श्ब्दो तथा चित्रो के रूप में दूसरे तक पहुँचाना पत्र कला है आजकल  पत्रकारिता क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर् से राषट्रीय और अन्त्राषट्रीय स्तर तक पहुँच गयी है मनोर्æजन् के प्रचार साधनो  में एक समय् में टेलिविज़न् और रेडियो का ही अधिक मह्त्व् था मगर् आज़् पत्रकारिता सब से आगे है एक अग्रेजी उक्ती के अनुसार Journalism is the systematic and reliable dissemination in of public information, public opinion and public entertainment by modern mass communication”-Ronald E.Woloseky.
   प्रेमच्द गोस्वामी जी ने भी इसी प्रकार का विचार प्रकट् किये है पत्रकारिता एक ऎसा दर्पण् है जिस में समाज, जन जीवन की विविध छवियो और रग रेखाओ की स्पषटता उभरता हुआ देखा जा सकता है एक अग्रेजी कहावत है कि स्वर्ण् से भी जल्दी सुन्दरता आकर्शित करती हैं ( Beauty Provokth sooner than Gold) आजकल् पत्रकारिता इसी दौर में चल रही हैं । पाठकों को आकर्शित करने के लिए हर् दिन नयेनये तरीकों को अनुकरण कर् रही है । निःसंदेह आज एकएक पत्रिका लाखों और करोडों की संख्या में प्रकाशित हो रही है । सेकन्डों और मिनटों में ही हर जगह का समाचार मिल जाता हैं । आज सौ प्रतिशत् में नब्बे प्रतिशत् लोगों को पत्रिकाएँ पढने की आदत हैं । आज प्रत्येक आदमी का दिन सिर्फ़् पत्रिका से ही शुरु होता है । यह सच् है कि किसी ने दुनिया को जानना चाहे तो घूमने की आवश्यकता नही है, सिर्फ़् आखबार खोलने से सब् कुछ सामने पेश हो जाता है । आजकल् हिंदी पत्रकारिता अन्त्राषट्रीय स्तर् पर लागू है ।
   हिंदी भाषा भारत के सीमाओं को पार कर विदेशों में अपना प्रभाव दिखा रही हैं । इस ऎतिहासिक घटना  19 वीं शताब्दी के आरंभ में हुई थी । विदेशों में हिंदी पत्रकारिता का आर्थ् ये है कि विदेशों में समाचार को संकलन करके वहॉ के स्थानीय पत्रिकाओं में प्रसार करना । आज़कल हिंदी विश्व मंच पर खडी है और उस महत्तर कार्य् में पत्रकारिता की भूमिका सराहनीय है । विदेशों में पत्रकारिता के कई रूप विकसित हुये है । इस पत्रकारिता प्रवासी भारतीयों को मनोरंजन देने में प्रमुख पात्र् निभा रही है । सौरभ्पत्रिका के सुप्रसिद्द् पत्रकार श्री धनुंजयसिंह जी का अभिप्राय है कि अपने आसपास से लेकर दूरदूर तक् के देश, काल वातावरण को जानने समझने की आकांक्षा, स्वग्त मनोभावों और विचारों को अभिव्यक्ति दे कर दूसरों तक् सम्प्रेशित करने की लालसा और देश, काल वातावरण की बदलती स्थितियों से तालमेल बैटाने और किसी सीमा तक उन्हें नियमित करने की अभिलाशा ने मनुश्य को भाषा और तदुपरान्त समाचार पत्र के आविस्कार और उपयोग केलिए बाध्य् किया ।
   समाचार पत्र ने आजकल विश्व एनसाइक्लोपीडिया का रुप धारण कर लिया है । जैसे हर देश के हर तरह के समाचार को हमारे सामने वह पेश कर रहे है । हम को विश्व दर्शन् कराने में सदा उत्सुक रहे है । आजकल विश्व मंच पर हिंदी की व्रुद्दि हो रही है । उस के अंतर्गत् पत्रकारिता की सेवा गणनीय हैं । हिंदी पत्रकारिता को विदेश में भी अधिक प्रोत्साहन मिल रहा है ।
   मॉरिशस् में 15 मार्च् 1909 में सर्व् प्रथम हिन्दुद्तानीनाम से एक साप्ताहिक पत्रिका निकली थी । यह पत्रिका एक साथ में तीन भाषाओं में प्रकाशित होती थी, जैसी हिंदी, अंग्रेजी तथा गुजराती । इस पत्रिका का प्रथम संपादकडॉ.मणिलाल जी थे । उन्होंने अपने पत्र के माध्यम से सामाजिक, राजनैतिक चेतना के साथ भाषा उन्नति के लिए भी सक्षम रहे है । मणिलाल जी ने जब भारत लौटे तब से यह पत्रिका बंद हो गया था । यहाँ यह कहना उचित होगा किनिज भाषा उन्नति अहै, निज उन्नति को मूल बिन निज भाषा घ्नान के, मिटै न हिये की सूल ।डॉ.मणिलाल जी ने 1910 में आर्यससमाज और एक प्रेस भी खोला था । सन 1911 मेंमॉरिशस आर्यपत्रिकाका प्रकाशन् साप्ताहिक पत्र के रूप में आरम्भ् हुआ था । सन 1916 मेंपं.काशीनाथ किश्टोइसके संपादक बने । 1916 में रामलालजी के संपादन में ओरियंटल गजेट् नाम का एक पत्र प्रकाशित हुआ था । सन 1920 में इन्डो मॉरिशस संघ के तत्वाधान में मॉरिशस इण्डियन टाइम्सका प्रकाशन् हुआ था । सन 1924 में श्री गजाधर राजकुमार के संपादन मेंमॉरिशस मित्र्नाम से एक पत्र निकलता था । सन 1924 मेंआर्यवीर्नामक द्विभाशिक साप्ताहिक पत्र निकला था । हिन्दू धर्म् और रीतीरिवाजों पर बल् देनेवाली धार्मिक पत्रिकासनातन धर्मांकसन् 1933 मेंश्री रामासामी नरसीमुलके संपादन में निकलता था ।डॉ.के.हजारी सिंहजी के संपादन में सन 1936 मेंइण्डियन कल्चर्ल्  एसोसिऎशननामक एक संस्था के द्वाराइण्डियन कल्चर्ल् रिव्यू नामक एक पत्र निकलता था । सन 1936 में रिव्यू के एक पूरक हिंदी पत्रवसंत्का प्रकाशन हुआ । जिसके संपादकपं.गिरिजानन उमाशंकरथा । कुछ वर्श् प्रकाशित होने के बाद यह बंद हो गया था । फ़िर वसंत पुनरांकन किया गया है । प्रस्तुत संपादक मॉरिशस के सुप्रसिद्द् लेखकअभिमन्यु अनत्जी है । यह मासिक पत्र है और महात्मा गाँधी संस्थान के तत्वाधान में प्रकाशित होनेवाली साहित्य धारा की पत्रिका भी है ।
   इन पत्रिकाओं के अतिरिक्त् सन् 1942 में पब्लिक रिलेशंस आफ़िस से मासिक चिट्टि, 1945 मेंआर्यवीर जाग्रुति,1948 मेंजमाना,आर्य् सभा के द्वाराआर्योदय्,1953 मेंमजदूर्आदि पत्रिकाओं का प्रकाशन् होता था । सन् 1959 मेंनवजीवन् और 1960 में मॉरिशस हिंदी परिषद की त्रैमासिक पत्रिकाअनुराग्का प्रकाशन हुआ । मॉरिशस के प्रमुख हिंदी पत्रकारों में पं.विश्वनाथ आत्माराम, पं.काशी नाथ किश्टो, सोमदत्त् बिखोरी, पं.ब्रजनाथ माधव वाजपेयी, पं.राम अवध शर्मा, डॉ.मणिलाल उल्लेखनीय है । विश्व् हिंदी सचिवालय से विश्व् हिंदी समाचार्नाम से एक त्रैमासिक पत्रिका निकल रहा है । इस संस्था ने हिंदी सम्मेलनों के देखबाल के साथसाथ हिंदी भाषा और साहित्य् विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभा रही है । मॉरिशस में अधिक रूप से साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन् हुआ है । इनमें साहित्य् की संबंधित सामाग्री को अधिक रूप से हम देख सकते है । मॉरिशस में हिंदी भाषा की विकास में इन पत्रिकाओं की भूमिका अविस्मरणीय हैं ।
   सूरिनाम में प्रथ्म् पत्रिका के रूप मेंआर्य् दिवाकर्को माना जाता है । यह पत्रिका आर्य् समाज द्वारा सन् 1964 से प्रकाशित हो रही है । आज भी यह पत्रिका कार्यरत है । सन् 1964 से सरस्वतीनामक मासिक पत्रिका पं.शिवरतन जी के संपादन में प्रकाशित हो रहा है । यह पूर्ण् रूप से साहित्यिक पत्रिका है । इसका संपादन सरस्वती प्रेस के द्वारा हो रहा है । यह लघु पत्रिका है पर भी साहित्य् की क्षेत्र् में अपना भूमिका निभा रही है । सूरिनाम के निकेरी शहर से भारतोदय प्रेस के द्वाराभारतोदय्नामक पत्रिका निकलती थी । मगर आर्थिक कारणों से वह प्रेस और पत्रिका दो भी बन्द् हो गये थे । सन 1975 में धर्म् प्रकाशनऔर वैदिक संदेश्नामक् दो पत्रिकाएँ निकलते थे । मगर ये भी कुछ ही दिनों में बन्द् हो गए थे ।श्री प्रेमचन्द्के संपादन मेंप्रेम् संदेश्नामक् मासिक पत्रिका का प्रकाशन हुआ था और यह पत्रिका दोतीन साल चलते ही बन्द् हो गया था ।श्री महातम सिंह के संपादन में शान्ति दूत् नाम से मासिक और साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन होता था । अविरल प्रयत्न् करने पर् भी यह कालांतर हो गया था । गाँधी सांस्क्रुतिक भवन सेप्रकाश्र्शीषक एक साप्ताहिक पत्र निकल रहा है । 1984 में सूरिनाम दर्पण्नामक पत्रिका सूरिनाम हिंदी परिषद के द्वारा प्रकाश हो रहा है । इस पत्रिका का मुख्य् उद्देश्य् ये है किहिंदी पढो ही नहीं, वरन लिखो भीहै ।
   मास्को से सन 1972 सेसोवियत संघका प्रकाशन प्रारंभ हुआ है । भारत और सोवियत संघ से संबंधित अनेक लेख इसमें प्रकाशित हुये है । यह पत्रिका हिंदी के अतिरिक्त् 20 भाषाओं में एक साथ प्रकाशित होता है । इसके प्रधान संपाद्क हैश्री निकालोई ग्रिबाचोव्। मास्को में..फ़ेदोतोवाके संपादन मेंसोवियत नारिनाम से एक मासिक पत्र निकलती थी । इसके अंतर्ग्त हिंदी संपाद्क कार्य्श्री..पा.गोलुबेन्जी करते थे । इस पत्रिका में सोवियत नारी जीवन का सजीव चित्रण् मिलता था । इसके अतिरिक्त् एशिया व आफ़्रिका संस्थान के द्वारादीवार समाचार्पत्र का संपादन किया जाता था ।वी,एफ़.शकाल्याबिन्के संपादन में सोवियत संघ्के भारत में स्थित दूतवास के सूचना विभाग द्वारासोवियत दर्पण्का प्रकाशन दिल्ली से हो रहा है । इस पत्रिका सोवियत और भारत के मित्रता में अधिक प्रोत्साहन दे रही है । तज़किस्तान के अंबासिडर द्वारा आईनन हिन्द्नाम से मासिक पत्रिका प्रकाशित हो रही है ।डॉ.राजाबौव हबीबुल्लौजी ने इस पत्रिका का संपादन कार्य् कर् रहे है । इनके अतिरिक्त्युन्स्स्को(हिंदी), युवक दर्पण्(हिंदी),सोवियत भूमिआदि उल्लेखनीय पत्रिकाएँ है ।
  इंग्लैंण्ड में सन् 1883 में कालालंकार नरेश् के संपादकत्व् में हिन्दुस्थान्नामक पत्रिका का प्रकाशन  हुआ था । आर्य् समाज द्वारा वैदिक पब्लिकेशन्,श्री.जे.एस.कौशलके संपादन में लंदन सेअमर दीप्का प्रकाशन होता था । लंदन में हिंदी परिषद द्वारा सन् 1964 में हिंदी त्रैमासिक पत्रिकाप्रवासिनीका प्रकाशन प्रारंभ हुआ है । इस पत्रिका का संपादकश्री धर्मेन्द्र् गौतम्जी है । हिंदी एवं राश्ट्रीय चेतना को बढानेवाली यह पत्रिका आज भी कार्यरत है । सन् 1915 में श्रीबंकट लाल ओंझाके संपादन मेंयुद्दसमाचार्प्रकाशित होता था ।
   नार्वे में प्रथम् हिंदी पत्रिकापरिचय्द्वैमासिक हिंदी पत्रिका है । इसका प्रकाशन् 1979 मेंश्री सुरेश चन्द्र् शुक्ल्के संपादन में चला था । सन् 1990 मेंशान्तीदूत्नामक पत्रिका कोडॉ.शंकर दयाल शर्माजी ने दिल्ली में लोकार्पण किया है । इसका प्रकाशन् ओसलो से हो रहा है । यह 50 प्रुश्टों की समाचार पत्र हैं । इनमें 38 प्रुश्टों की सामाग्री हिंदी और 12 प्रुश्टों नार्वेजियन और अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित होते है । सन् 1964 में अंक्नामक एक मासिक पत्रिका प्रकाशित होता था ।
   जापानभारत मित्रता संघ का मासिक पत्र है सर्वोदय्। वस्तुतः यह धार्मिक पत्रिका होने पर भी हिंदी संबंधी समाचार प्रकाशित  होते थे । जापान में प्रथम हिंदी पत्रज्वालामुखीहै । यह त्रैमासिक पत्रिका है । यह टोक्यो जापान से प्रकाशित होती है । इस पत्रिका का संपादक सुप्रसिद्द् विद्वान श्रीयोशिआकि सुजुतिजी है । इस पत्रिका का विशेशांक भी समयसमय पर प्रकाशित होता है । जापानी हिंदी कवियों की हिंदी कविताएँ इस पत्रिका में प्रकाशित होते है । इस पत्रिका में साहित्य्, संस्क्रुति एवं राजनैतिक सामग्री के साथसाथ समय् समय् पर महत्वपूर्ण् सूचनाएँ भी प्रकाशित होती रहती है । सन् 1981 के एक अंक में 1980 में जापान में प्रकाशित भारतीय साहित्य् एवं भारतीय भाषा संबंधी निबन्धों की सूची प्रकाशित की गई है ।
   चीनी में चीनी सचित्र्नामक एक हिंदी मासिक पत्रिका निकलता है । यह विश्व् के 19 भाषाओं में एक साथ प्रकाशित होता है । इसका मुद्र्ण एवं प्रकाशन् पीकिंग से होता है । गयाना में हिंदी पत्रकारिता का आरंभ अंग्रेजी दैनिकआर्गोसीके द्वारा हुआ है । इस पत्र के रविवारीय अंक में एक प्रुश्ट् में हिंदी की वार्ताएँ छपते थे । यहाँ आर्य समाज द्वाराआर्य ज्योतिऔर सनातन धर्म् सभा द्वारा अमर ज्योतिनामक पत्रिकाएँ प्रकाशित होते है । गयाना के प्रसिद्द् हिंदी पत्रिकाघ्नानदाहै, यह पत्रिकाश्री योगिराज शर्माजी के संपादन में मासिक रूप में निकल रहा है । यह पूर्ण् रूप से साहित्य् पत्रिका है ।
   ट्रिनिडाड एवं टोबैगो में प्रथम हिंदी पत्रिकाकोहिनूर अखबार्है । यह दैनिक पत्रिका है । इसके अतिरिक्त्ज्योतिनाम से मासिक पत्रिका का प्रकाशन सन् 1968 से हो रहा है । इसके संस्थापक और संपादकप्रो.हरिशंकर आदेश्जी है । पहले में यह हिंदी शिक्षा संघ द्वारा प्रकाशित होता रहा परन्तु  संघ बन्द हो जाने से अब यह पत्रिका भारतीय विद्या संस्थान के मुख्य् पत्र के रूप में प्रकाशित हो रहा है । इस पत्रिका से नवोदित हिंदी लेखकों को काफ़ी प्रोत्साहन मिल रहा है ।
   फ़िजी में सर्व् प्रथम् हिंदी पत्रिकासेटलर्सन् 1913 मेंपं.शिवदत्त् शर्माजी के देखरेख मेंडॉ.मणिलालजी के संपादन में प्रकाशित होता था । सन् 1923 में साप्ताहिक पत्रिकाफ़िजी समाचार्का प्रकाशन  हुआ था । कुछ दिनों के बाद यह बन्द् हो गया था । इसके अतिरिक्त् भारत पुत्र्,बुद्दि,बुद्दिवाणीआदि पत्रिकाओं निकले थे । मगर तुरंत ही वे काल कवलित हो गये थे ।श्री क्रुश्ण शर्मा के संपादन में वैदिक सन्देश् तथा सनातन धर्मनामक मासिक पत्रिकाएँ सन् 1930 – 40 के मध्य प्रकाशित हुये थे । ये भी कुछ कारणों से बन्द् हो गये थे । सन् 1935 मेंशान्तिदूत् साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन् आरंभ हुआ ।पं.गुरुदयाल शर्मा जी इस पत्रिका का संस्थापक एवं संपादक है । यह फ़िजी का सर्वाधिक प्रसारवाला हिंदी पत्रिका है । इसमें साहित्यिक, राजनीतिक विषयों पर भरपूर सामग्री रहती है । सन् 1940 के आसपास कई पत्रिकाएँ निकले है । उनमें श्री.पी.वी.डी.लक्ष्मण के संपादन मेंकिसान, अखिल फ़िजी क्रुषक महा संघ के तत्वाधान में दीनबन्धु, श्री घ्नानदास के संपादन में घ्नान और तारा(मासिक्), आर्य् पुस्तकालय के अंतर्ग्त पुस्तकालय,श्री रामखेलावन के संपादन मेंप्रकाशआदि उल्लेखनीय पत्रिकाएँ हैं ।
   पं.राघवानन्द् शर्माके संपादन में जाग्रुतिनामक पत्रिका निकलती थी । इसमें अधिक रूप से किसानों से संबंधित समाचार छपता था । इसका मुद्र्ण शारदा प्रेस नांदी फ़िजी से होता था । यह भी कुछ कारणों से बन्द् हो गया था । सन् 1953 मेंआवाज़्नामक एक साप्ताहिक पत्र निकला । इसके बाद श्री घ्नानदासके संपादन मेंझंकारसाप्ताहिक का प्रकाशन् हुआ था । इसका मुद्र्णताराप्रेस द्वारा सुवा केन्द्र् से होता था । मगर कुछ कारणों से सन् 1958 में यह बन्द् हो गया था । सन् 1960 में जय फ़िजीपत्रिकापं.कमला प्रसाद मिश्रजी के संपादन में प्रकाशित हुआ था । यह फ़िजी का लोकप्रिय साप्ताहिक पत्र था । पं.कमला प्रसाद मिश्र जी की हिंदी सेवा और फ़िजी में हिंदी पत्रकारिता में उनका योगदान के आधार पर भारत सरकार ने उन्हें विदेशी हिंदीसेवी पुरस्कार से भी पुरस्क्रुत किया है, वे स्वयं कवि भी थे । स्व्.श्री.नंदकिशोर्जी के संपादन में किसान मित्र्, श्री वेणीलाल मौरिस् के संपादन में फ़िजी संदेश्(साप्ताहिक), प्रकाशन हो रहे थे । ये भी कुछ ही दिनों में ही बन्द् हो गये थे । फ़िजी में सन् 1974 में पं.विवेकानंद शर्माके संपादन मेंसनातन संदेश्का प्रकाशन् हुआ था । यह फ़िजी की सनातन धर्म् सभा का प्रमुख पत्र था । यह फ़िजी में प्रथम् पत्रिका का गौरव भी पाया है । सन् 1918 से 1926 तक्राजपूतनामक  पत्रिका का प्रकाशन हुआ था । फ़िजी के सूचना मंत्रालय द्वाराफ़िजी व्रुत्तांत्औरशंखानाम से दो पत्रिकाएँ निकलते थे । 
   सन् 1917 में डॉ.मणिक जी के संपादन में सायंकालीन पत्रिका इण्डियन सेंटलर्का प्रकाशन् हुआ था । यह पत्र फ़िजी के सरस्वती प्रेस द्वारा मुद्रित होती थी । फ़िजी के प्रमुख हिंदी पत्रकारों में पं.तोताराम सनाढ्य, पं.राघवानन्द्, श्रीमती निर्मला पथिक, चंद्र्देव सिंह, एस.एम.विदेशी, पं.गुरूदयाल शर्मा आदि  उल्लेखनीय है । हिंदी भाषा की विकास में इन सारे पत्रकारों की सेवाएँ सराहनीय  है ।
    इन सारे पत्रिकाओं के अतिरिक्त हालैंण्ड मेंलल्लारूख्और्भारतीका प्रकाशन् हो रहा है । रघुवीर सिंह जी के संपादन मेंविश्व् भारतीपाक्षिक पत्र का प्रकाशन् कनाडा(Canada) से हो रहा है । यह पत्रिका राश्ट्र्भाशा हिंदी एवं भारतीय संस्क्रुति की संवाहिका के रूप में विख्यात है । सन् 1982 से टोरन्टो से एक नया मासिक पत्रिका जीवन ज्योतिप्रकाशित हो रही है । प्रसिद्ध प्रवासी हिंदी कवि और संगीतघ्न्प्रो.हरिशंकर आदेशजी इसका संपादक है । केनडा सेचेतनाऔर आस्ट्रेलिया सेभारतभारतीनाम से वेब पत्रिकाओं का प्रकाशन् हो रहा है । अमेरिका मेंविश्व हिंदी न्याससंस्था द्वाराहिंदी जगत् नाम से त्रैमासिक हिंदी पत्रिका प्रकाशित हो रही है । इस संस्था ने तीन प्रतियाँ निकाल रही है । आज़कल वेब पत्रिकाएँ अधिक रूप से निकल रहे है । उन पत्रिकाओं को ईपत्रिकाएँ भी कहा जाता है । जैसे दैनिक जागरण, अभिव्यक्ति, अनुभूति आदि ।
   इसी तरह विदेशों में हिंदी पत्रकारिता का विकास दिनदिन बढ्ता जा रहा है । हिंदी भाषा की विकास में इन सारे पत्रिकाएँ अपना योगदान दे रहे है । कुछ पत्रिकाएँ बन्द् हो जाने के पीछे कई कारण होते है । जैसे पाटकों का अभाव, आर्थिक प्रोत्साहन न मिलना, मुद्र्ण की अनुपलब्धियाँ आदि । विदेशी भूमि पर हिंदी भाषा की विकास में पत्रकारिता की भूमिका सराहनीय है । आशा है कि भविष्य में इस कार्य ओर बढ़ता जाएगा ।
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संदर्भ् :
1.   हिंदी पत्रकारिता की दिशाएँ                 : डॉ.जोगेन्द्र् सिंह
2.   विदेशी रिपोर्टिंग                          : रामशरण जोशी
3.   हिंदी पत्रकारिता उद्भव और विकास         : रचना भोला यामिनी
4.   आज़ का हिंदी पत्रकारिता                       : डॉ.सुरेश निर्मल
5.   हिंदी पत्रकारिता के नये प्रतिमान           : बच्चन सिंह
6.   हिंदी की वैश्विक परिदृश्य                       : डॉ.पंडित बन्ने
7.   विश्व में हिंदी                            : हरिबाबु कंसल
8.   विदेशों में हिंदी पत्रकारिता                : डॉ.पवन कुमार जैन
                           
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