विदेशों में हिंदी पत्रकारिता
-डॉ. मुन्नी, मछलीपट्टणम
उर्दू के प्रसिद्ध शायर‘अकबर इलाहाबादी’जी का कथन है कि –
“खीचो न कमानो को, न तलवार निकालो ।
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो ।।
पत्रकारिता अभिव्यक्ति की एक मनोरम कला है । पत्र शब्द् से‘पत्रकारिता’बना है । पत्रकारिता को अग्रेजी में Journalism कहा जाता है । फ्रेन्च़ शब्द्‘जर्नी’से इस Journalism का रूपातर हुआ है । लेटिन भाषा में इसे‘डियुर्नल्’ कहा जाता है । हिंदी में इसका नाम‘पत्रकारिता’है ।‘खाडिलकर’के मत में घ्नान और विचार, श्ब्दो तथा चित्रो के रूप में दूसरे तक पहुँचाना पत्र कला है ।’आजकल पत्रकारिता क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर् से राषट्रीय और अन्त्राषट्रीय स्तर तक पहुँच गयी है । मनोर्æजन् के प्रचार साधनो में एक समय् में टेलिविज़न् और रेडियो का ही अधिक मह्त्व् था । मगर् आज़् पत्रकारिता सब से आगे है । एक अग्रेजी उक्ती के अनुसार –“ Journalism is the systematic and reliable
dissemination in of public information, public opinion and public entertainment
by modern mass communication”-Ronald E.Woloseky.
प्रेमच्द गोस्वामी जी ने भी इसी प्रकार का विचार प्रकट् किये है – “पत्रकारिता एक ऎसा दर्पण् है जिस में समाज, जन जीवन की विविध छवियो और रग रेखाओ की स्पषटता उभरता हुआ देखा जा सकता है ।’ एक अग्रेजी कहावत है कि ‘स्वर्ण् से भी जल्दी सुन्दरता आकर्शित करती हैं ।’( Beauty Provokth sooner than Gold) आजकल् पत्रकारिता इसी दौर में चल रही
हैं । पाठकों को आकर्शित करने के लिए हर् दिन नये – नये तरीकों को अनुकरण कर् रही
है । निःसंदेह आज एक – एक पत्रिका लाखों और करोडों की संख्या
में प्रकाशित हो रही है । सेकन्डों और मिनटों में ही हर जगह का समाचार मिल जाता हैं
। आज सौ प्रतिशत् में नब्बे प्रतिशत् लोगों को पत्रिकाएँ पढने की आदत हैं । आज प्रत्येक
आदमी का दिन सिर्फ़् पत्रिका से ही शुरु होता है । यह सच् है कि किसी ने दुनिया को जानना
चाहे तो घूमने की आवश्यकता नही है, सिर्फ़् आखबार खोलने से सब्
कुछ सामने पेश हो जाता है । आजकल् हिंदी पत्रकारिता अन्त्राषट्रीय
स्तर् पर लागू है ।
हिंदी
भाषा भारत के सीमाओं को पार कर विदेशों में अपना प्रभाव दिखा रही हैं । इस ऎतिहासिक
घटना 19 वीं शताब्दी के आरंभ में हुई थी । विदेशों में
हिंदी पत्रकारिता का आर्थ् ये है कि विदेशों में समाचार को संकलन करके वहॉ के स्थानीय
पत्रिकाओं में प्रसार करना । आज़कल हिंदी विश्व मंच पर खडी है और उस महत्तर कार्य् में
पत्रकारिता की भूमिका सराहनीय है । विदेशों में पत्रकारिता के कई रूप विकसित हुये है
। इस पत्रकारिता प्रवासी भारतीयों को मनोरंजन देने में प्रमुख पात्र् निभा रही है ।
‘सौरभ्’ पत्रिका
के सुप्रसिद्द् पत्रकार ‘श्री धनुंजयसिंह’ जी का अभिप्राय
है कि ‘अपने आस – पास से
लेकर दूर – दूर तक् के देश, काल वातावरण
को जानने समझने की आकांक्षा, स्वग्त मनोभावों और विचारों को अभिव्यक्ति
दे कर दूसरों तक् सम्प्रेशित करने की लालसा और देश, काल वातावरण
की बदलती स्थितियों से ताल – मेल बैटाने और किसी सीमा तक उन्हें
नियमित करने की अभिलाशा ने मनुश्य को भाषा और तदुपरान्त समाचार पत्र के आविस्कार और
उपयोग केलिए बाध्य् किया ।’
समाचार
पत्र ने आजकल विश्व एनसाइक्लोपीडिया का रुप धारण कर लिया है । जैसे हर देश के हर तरह
के समाचार को हमारे सामने वह पेश कर रहे है । हम को विश्व दर्शन् कराने में सदा उत्सुक
रहे है । आजकल विश्व मंच पर हिंदी की व्रुद्दि हो रही है । उस के अंतर्गत् पत्रकारिता
की सेवा गणनीय हैं । हिंदी पत्रकारिता को विदेश में भी अधिक प्रोत्साहन मिल रहा है
।
मॉरिशस्
में 15 मार्च् 1909 में सर्व् प्रथम ‘हिन्दुद्तानी’नाम से एक साप्ताहिक पत्रिका निकली थी । यह पत्रिका एक साथ में तीन भाषाओं में
प्रकाशित होती थी, जैसी हिंदी, अंग्रेजी तथा गुजराती । इस पत्रिका
का प्रथम संपादक‘डॉ.मणिलाल जी थे । उन्होंने अपने पत्र के माध्यम से सामाजिक, राजनैतिक चेतना के साथ भाषा उन्नति के लिए भी सक्षम रहे है । मणिलाल जी ने
जब भारत लौटे तब से यह पत्रिका बंद हो गया था । यहाँ यह कहना उचित होगा कि
– ‘निज भाषा उन्नति अहै, निज उन्नति
को मूल बिन निज भाषा घ्नान के, मिटै न हिये की सूल ।’
डॉ.मणिलाल जी ने 1910 में
आर्यससमाज और एक प्रेस भी खोला था । सन 1911 में‘मॉरिशस आर्यपत्रिका’का प्रकाशन् साप्ताहिक पत्र के रूप में आरम्भ् हुआ था । सन 1916 में‘पं.काशीनाथ किश्टो’इसके संपादक बने । 1916 में ‘रामलाल’जी के संपादन में ‘ओरियंटल गजेट्’ नाम का एक
पत्र प्रकाशित हुआ था । सन 1920 में इन्डो मॉरिशस संघ के तत्वाधान
में ‘मॉरिशस इण्डियन टाइम्स’का प्रकाशन् हुआ था । सन 1924 में ‘श्री गजाधर राजकुमार’ के संपादन में‘मॉरिशस मित्र्’नाम से एक पत्र निकलता था
। सन 1924 में‘आर्यवीर्’नामक द्विभाशिक साप्ताहिक पत्र निकला था । हिन्दू धर्म् और रीती – रिवाजों
पर बल् देनेवाली धार्मिक पत्रिका‘सनातन धर्मांक’सन् 1933 में
‘श्री रामासामी नरसीमुल’के संपादन में निकलता था ।‘डॉ.के.हजारी सिंह’जी के संपादन में सन 1936 में‘इण्डियन कल्चर्ल् एसोसिऎशन’नामक एक संस्था के द्वारा‘इण्डियन कल्चर्ल् रिव्यू’ नामक एक पत्र निकलता था । सन 1936 में रिव्यू के एक पूरक
हिंदी पत्र‘वसंत्’का प्रकाशन हुआ । जिसके संपादक‘पं.गिरिजानन उमाशंकर’था । कुछ वर्श् प्रकाशित होने के बाद यह बंद हो गया था । फ़िर
वसंत पुनरांकन किया गया है । प्रस्तुत संपादक मॉरिशस के सुप्रसिद्द् लेखक ‘अभिमन्यु
अनत्’जी है । यह मासिक पत्र है
और महात्मा गाँधी संस्थान के तत्वाधान में प्रकाशित होनेवाली साहित्य धारा की पत्रिका
भी है ।
इन
पत्रिकाओं के अतिरिक्त् सन् 1942 में पब्लिक रिलेशंस आफ़िस से
‘मासिक चिट्टि’, 1945 में‘आर्यवीर जाग्रुति’,1948
में‘जमाना’,आर्य् सभा
के द्वारा ‘आर्योदय्’,1953
में‘मजदूर्’ आदि पत्रिकाओं का प्रकाशन् होता था । सन् 1959 में‘नवजीवन्’ और 1960 में मॉरिशस हिंदी
परिषद की त्रैमासिक पत्रिका‘अनुराग्’ का प्रकाशन हुआ । मॉरिशस के प्रमुख हिंदी पत्रकारों में “पं.विश्वनाथ आत्माराम, पं.काशी नाथ किश्टो, सोमदत्त् बिखोरी, पं.ब्रजनाथ माधव वाजपेयी, पं.राम अवध शर्मा, डॉ.मणिलाल” उल्लेखनीय है । विश्व् हिंदी सचिवालय से ‘विश्व् हिंदी समाचार्’नाम से एक त्रैमासिक पत्रिका निकल रहा है । इस संस्था ने हिंदी सम्मेलनों के देखबाल
के साथ – साथ हिंदी भाषा और साहित्य् विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभा रही है । मॉरिशस
में अधिक रूप से साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन् हुआ है । इनमें साहित्य् की संबंधित
सामाग्री को अधिक रूप से हम देख सकते है । मॉरिशस में हिंदी भाषा की विकास में इन पत्रिकाओं
की भूमिका अविस्मरणीय हैं ।
सूरिनाम
में प्रथ्म् पत्रिका के रूप में‘आर्य् दिवाकर्’को माना जाता है । यह पत्रिका
आर्य् समाज द्वारा सन् 1964 से प्रकाशित हो रही है । आज भी यह पत्रिका कार्यरत है । सन्
1964 से ‘सरस्वती’नामक मासिक पत्रिका ‘पं.शिवरतन’ जी के संपादन में प्रकाशित हो रहा है । यह पूर्ण्
रूप से साहित्यिक पत्रिका है । इसका संपादन सरस्वती प्रेस के द्वारा हो रहा है । यह
लघु पत्रिका है पर भी साहित्य् की क्षेत्र् में अपना भूमिका निभा रही है । सूरिनाम
के निकेरी शहर से भारतोदय प्रेस के द्वारा‘भारतोदय्’नामक पत्रिका निकलती थी ।
मगर आर्थिक कारणों से वह प्रेस और पत्रिका दो भी बन्द् हो गये थे । सन 1975 में
‘धर्म् प्रकाशन’और ‘वैदिक संदेश्’नामक् दो पत्रिकाएँ निकलते
थे । मगर ये भी कुछ ही दिनों में बन्द् हो गए थे ।‘श्री प्रेमचन्द्’के संपादन में‘प्रेम् संदेश्’नामक् मासिक पत्रिका का प्रकाशन हुआ था और यह पत्रिका दो – तीन साल
चलते ही बन्द् हो गया था ।‘श्री महातम सिंह’ के संपादन
में ‘शान्ति दूत्’ नाम से मासिक और साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन
होता था । अविरल प्रयत्न् करने पर् भी यह कालांतर हो गया था । गाँधी सांस्क्रुतिक भवन
से‘प्रकाश्’ र्शीषक एक
साप्ताहिक पत्र निकल रहा है । 1984 में ‘सूरिनाम दर्पण्’ नामक पत्रिका सूरिनाम हिंदी परिषद के द्वारा
प्रकाश हो रहा है । इस पत्रिका का मुख्य् उद्देश्य् ये है कि‘हिंदी पढो ही नहीं, वरन लिखो भी’है ।
मास्को
से सन 1972 से‘सोवियत संघ’का प्रकाशन प्रारंभ हुआ है
। भारत और सोवियत संघ से संबंधित अनेक लेख इसमें प्रकाशित हुये है । यह पत्रिका हिंदी
के अतिरिक्त् 20 भाषाओं में एक साथ प्रकाशित होता है । इसके प्रधान संपाद्क है‘श्री निकालोई ग्रिबाचोव्’। मास्को में‘व.ई.फ़ेदोतोवा’के संपादन में‘सोवियत नारि’नाम से एक मासिक पत्र निकलती थी । इसके अंतर्ग्त हिंदी संपाद्क
कार्य्‘श्री.ई.पा.गोलुबेन्’जी करते थे । इस पत्रिका में सोवियत नारी जीवन का सजीव चित्रण् मिलता था । इसके
अतिरिक्त् एशिया व आफ़्रिका संस्थान के द्वारा‘दीवार समाचार्’पत्र का संपादन किया जाता
था ।‘वी,एफ़.शकाल्याबिन्’के संपादन में ‘सोवियत संघ्’के भारत में स्थित दूतवास के सूचना विभाग द्वारा‘सोवियत दर्पण्’ का प्रकाशन दिल्ली से हो रहा है । इस पत्रिका
सोवियत और भारत के मित्रता में अधिक प्रोत्साहन दे रही है । तज़किस्तान के अंबासिडर
द्वारा ‘आईनन हिन्द्’नाम से मासिक पत्रिका प्रकाशित हो रही है ।‘डॉ.राजाबौव हबीबुल्लौ’जी ने इस पत्रिका का संपादन कार्य् कर् रहे है । इनके अतिरिक्त्‘युन्स्स्को’(हिंदी), ‘युवक दर्पण्’(हिंदी),‘सोवियत भूमि’आदि उल्लेखनीय पत्रिकाएँ है ।
इंग्लैंण्ड
में सन् 1883 में ‘कालालंकार नरेश्’ के संपादकत्व्
में ‘हिन्दुस्थान्’ नामक पत्रिका
का प्रकाशन हुआ था ।
आर्य् समाज द्वारा ‘वैदिक पब्लिकेशन्’,‘श्री.जे.एस.कौशल’के संपादन में लंदन से‘अमर दीप्’ का प्रकाशन होता था । लंदन में हिंदी परिषद
द्वारा सन् 1964 में हिंदी त्रैमासिक पत्रिका‘प्रवासिनी’का प्रकाशन प्रारंभ हुआ है । इस पत्रिका का संपादक ‘श्री धर्मेन्द्र्
गौतम्’जी है । हिंदी एवं राश्ट्रीय
चेतना को बढानेवाली यह पत्रिका आज भी कार्यरत है । सन् 1915 में
श्री‘बंकट लाल ओंझा’के संपादन में‘युद्दसमाचार्’प्रकाशित होता था ।
नार्वे
में प्रथम् हिंदी पत्रिका‘परिचय्’द्वैमासिक हिंदी पत्रिका
है । इसका प्रकाशन् 1979 में ‘श्री सुरेश चन्द्र् शुक्ल्’के संपादन में चला था । सन् 1990 में ‘शान्तीदूत्’नामक पत्रिका को‘डॉ.शंकर दयाल
शर्मा’जी ने दिल्ली में लोकार्पण
किया है । इसका प्रकाशन् ओसलो से हो रहा है । यह 50 प्रुश्टों की समाचार पत्र
हैं । इनमें 38 प्रुश्टों की सामाग्री हिंदी और 12 प्रुश्टों नार्वेजियन और अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित होते है । सन्
1964 में ‘अंक्’ नामक एक मासिक पत्रिका प्रकाशित होता था ।
जापान
– भारत मित्रता संघ का मासिक पत्र है ‘सर्वोदय्’। वस्तुतः यह धार्मिक पत्रिका होने पर भी हिंदी संबंधी समाचार प्रकाशित होते थे । जापान में प्रथम हिंदी
पत्र‘ज्वालामुखी’है । यह त्रैमासिक पत्रिका है । यह टोक्यो जापान से प्रकाशित
होती है । इस पत्रिका का संपादक सुप्रसिद्द् विद्वान श्री‘योशिआकि सुजुति’जी है । इस पत्रिका का विशेशांक भी समय – समय पर प्रकाशित होता है । जापानी हिंदी कवियों
की हिंदी कविताएँ इस पत्रिका में प्रकाशित होते है । इस पत्रिका में साहित्य्,
संस्क्रुति एवं राजनैतिक सामग्री के साथ – साथ
समय् समय् पर महत्वपूर्ण् सूचनाएँ भी प्रकाशित होती रहती है । सन् 1981 के एक अंक में 1980 में जापान में प्रकाशित भारतीय साहित्य्
एवं भारतीय भाषा संबंधी निबन्धों की सूची प्रकाशित की गई है ।
चीनी
में ‘चीनी सचित्र्’नामक एक हिंदी मासिक पत्रिका निकलता है । यह विश्व् के 19 भाषाओं
में एक साथ प्रकाशित होता है । इसका मुद्र्ण एवं प्रकाशन् पीकिंग से होता है । गयाना
में हिंदी पत्रकारिता का आरंभ अंग्रेजी दैनिक‘आर्गोसी’के द्वारा हुआ है । इस पत्र के रविवारीय अंक में एक प्रुश्ट् में हिंदी की वार्ताएँ
छपते थे । यहाँ आर्य समाज द्वारा‘आर्य ज्योति’और सनातन धर्म् सभा द्वारा
‘अमर ज्योति’नामक पत्रिकाएँ प्रकाशित होते है । गयाना के प्रसिद्द् हिंदी
पत्रिका‘घ्नानदा’है, यह पत्रिका‘श्री योगिराज शर्मा’जी के संपादन में मासिक रूप में निकल रहा है । यह पूर्ण् रूप से साहित्य् पत्रिका
है ।
ट्रिनिडाड
एवं टोबैगो में प्रथम हिंदी पत्रिका‘कोहिनूर अखबार्’है । यह दैनिक पत्रिका है
। इसके अतिरिक्त्‘ज्योति’नाम से मासिक पत्रिका का प्रकाशन सन् 1968 से हो
रहा है । इसके संस्थापक और संपादक‘प्रो.हरिशंकर आदेश्’जी है । पहले में यह हिंदी शिक्षा संघ द्वारा प्रकाशित होता रहा परन्तु संघ बन्द हो जाने से अब यह पत्रिका
भारतीय विद्या संस्थान के मुख्य् पत्र के रूप में प्रकाशित हो रहा है । इस पत्रिका
से नवोदित हिंदी लेखकों को काफ़ी प्रोत्साहन मिल रहा है ।
फ़िजी
में सर्व् प्रथम् हिंदी पत्रिका‘सेटलर्’सन् 1913 में‘पं.शिवदत्त् शर्मा’जी के देखरेख में‘डॉ.मणिलाल’जी के संपादन में प्रकाशित होता था । सन् 1923 में साप्ताहिक पत्रिका‘फ़िजी समाचार्’का प्रकाशन हुआ था । कुछ दिनों के बाद
यह बन्द् हो गया था । इसके अतिरिक्त् ‘भारत पुत्र्’,’बुद्दि’,’बुद्दिवाणी’आदि पत्रिकाओं निकले थे । मगर तुरंत ही वे काल कवलित हो गये थे ।‘श्री क्रुश्ण शर्मा’ के संपादन में ‘वैदिक सन्देश्’ तथा ‘सनातन धर्म’नामक मासिक पत्रिकाएँ सन् 1930 – 40 के मध्य प्रकाशित हुये थे । ये भी
कुछ कारणों से बन्द् हो गये थे । सन् 1935 में‘शान्तिदूत्’ साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन् आरंभ हुआ ।‘पं.गुरुदयाल शर्मा’ जी इस पत्रिका का संस्थापक एवं संपादक है । यह
फ़िजी का सर्वाधिक प्रसारवाला हिंदी पत्रिका है । इसमें साहित्यिक, राजनीतिक विषयों पर भरपूर सामग्री रहती है । सन् 1940 के आसपास कई पत्रिकाएँ निकले है । उनमें ‘श्री.पी.वी.डी.लक्ष्मण’ के संपादन में‘किसान’, अखिल फ़िजी
क्रुषक महा संघ के तत्वाधान में ‘दीनबन्धु’, ‘श्री घ्नानदास’ के संपादन में ‘घ्नान’ और ‘तारा’(मासिक्), आर्य् पुस्तकालय के अंतर्ग्त ‘पुस्तकालय’,‘श्री रामखेलावन’ के संपादन में‘प्रकाश’आदि उल्लेखनीय पत्रिकाएँ
हैं ।
‘पं.राघवानन्द् शर्मा’के संपादन में ‘जाग्रुति’नामक पत्रिका निकलती थी ।
इसमें अधिक रूप से किसानों से संबंधित समाचार छपता था । इसका मुद्र्ण शारदा प्रेस नांदी
फ़िजी से होता था । यह भी कुछ कारणों से बन्द् हो गया था । सन् 1953 में
‘आवाज़्’ नामक एक साप्ताहिक पत्र निकला । इसके बाद
‘श्री घ्नानदास’के संपादन में‘झंकार’साप्ताहिक का प्रकाशन् हुआ
था । इसका मुद्र्ण‘तारा’प्रेस द्वारा सुवा केन्द्र् से होता था । मगर कुछ कारणों से
सन् 1958 में यह बन्द् हो गया था । सन् 1960 में ‘जय फ़िजी’पत्रिका‘पं.कमला प्रसाद
मिश्र’जी के संपादन में प्रकाशित
हुआ था । यह फ़िजी का लोकप्रिय साप्ताहिक पत्र था । पं.कमला प्रसाद
मिश्र जी की हिंदी सेवा और फ़िजी में हिंदी पत्रकारिता में उनका योगदान के आधार पर भारत
सरकार ने उन्हें ‘विदेशी हिंदीसेवी’ पुरस्कार से भी पुरस्क्रुत किया है, वे स्वयं कवि भी
थे । ‘स्व्.श्री.नंदकिशोर्’जी के संपादन में ‘किसान मित्र्’, श्री ‘वेणीलाल मौरिस्’ के संपादन में ‘फ़िजी संदेश्’(साप्ताहिक),
प्रकाशन हो रहे थे । ये भी कुछ ही दिनों में ही बन्द् हो गये थे । फ़िजी
में सन् 1974 में ‘पं.विवेकानंद शर्मा’के संपादन में‘सनातन संदेश्’ का प्रकाशन्
हुआ था । यह फ़िजी की सनातन धर्म् सभा का प्रमुख पत्र था । यह फ़िजी में प्रथम् पत्रिका
का गौरव भी पाया है । सन् 1918 से 1926 तक्‘राजपूत’नामक पत्रिका का प्रकाशन
हुआ था । फ़िजी के सूचना मंत्रालय द्वारा‘फ़िजी व्रुत्तांत्’और‘शंखा’नाम से दो पत्रिकाएँ निकलते थे ।
सन्
1917 में ‘डॉ.मणिक’ जी के संपादन
में सायंकालीन पत्रिका ‘इण्डियन सेंटलर्’का प्रकाशन् हुआ था । यह
पत्र फ़िजी के सरस्वती प्रेस द्वारा मुद्रित होती थी । फ़िजी के प्रमुख हिंदी पत्रकारों
में “पं.तोताराम सनाढ्य,
पं.राघवानन्द्, श्रीमती निर्मला
पथिक, चंद्र्देव सिंह, एस.एम.विदेशी, पं.गुरूदयाल शर्मा” आदि उल्लेखनीय है । हिंदी भाषा की विकास
में इन सारे पत्रकारों की सेवाएँ सराहनीय है
।
इन
सारे पत्रिकाओं के अतिरिक्त हालैंण्ड में‘लल्लारूख्’और्‘भारती’का प्रकाशन् हो रहा है । रघुवीर सिंह जी के संपादन में‘विश्व् भारती’पाक्षिक पत्र का प्रकाशन् कनाडा(Canada) से हो रहा है । यह पत्रिका राश्ट्र्भाशा हिंदी एवं भारतीय संस्क्रुति
की संवाहिका के रूप में विख्यात है । सन् 1982 से टोरन्टो से
एक नया मासिक पत्रिका ‘जीवन ज्योति’प्रकाशित हो रही है । प्रसिद्ध
प्रवासी हिंदी कवि और संगीतघ्न्‘प्रो.हरिशंकर आदेश’जी इसका संपादक है । केनडा से‘चेतना’और आस्ट्रेलिया से‘भारत – भारती’नाम से वेब पत्रिकाओं का प्रकाशन् हो रहा है । अमेरिका में‘विश्व हिंदी न्यास’संस्था द्वारा‘हिंदी जगत्’ नाम से त्रैमासिक हिंदी पत्रिका प्रकाशित हो
रही है । इस संस्था ने तीन प्रतियाँ निकाल रही है । आज़कल वेब पत्रिकाएँ अधिक रूप से
निकल रहे है । उन पत्रिकाओं को ई – पत्रिकाएँ भी कहा जाता है
। जैसे दैनिक जागरण, अभिव्यक्ति, अनुभूति
आदि ।
इसी
तरह विदेशों में हिंदी पत्रकारिता का विकास दिन – ब –
दिन बढ्ता जा रहा है । हिंदी भाषा की विकास में इन सारे पत्रिकाएँ अपना
योगदान दे रहे है । कुछ पत्रिकाएँ बन्द् हो जाने के पीछे कई कारण होते है । जैसे पाटकों
का अभाव, आर्थिक प्रोत्साहन न मिलना, मुद्र्ण
की अनुपलब्धियाँ आदि । विदेशी भूमि पर हिंदी भाषा की विकास में पत्रकारिता की भूमिका
सराहनीय है । आशा है कि भविष्य में इस कार्य ओर बढ़ता जाएगा ।
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संदर्भ् :
1. हिंदी पत्रकारिता
की दिशाएँ : डॉ.जोगेन्द्र्
सिंह
2. विदेशी रिपोर्टिंग : रामशरण जोशी
3. हिंदी पत्रकारिता
उद्भव और विकास :
रचना भोला यामिनी
4. आज़ का हिंदी पत्रकारिता : डॉ.सुरेश निर्मल
5. हिंदी पत्रकारिता
के नये प्रतिमान : बच्चन सिंह
6. हिंदी की वैश्विक
परिदृश्य : डॉ.पंडित बन्ने
7. विश्व में हिंदी : हरिबाबु कंसल
8. विदेशों में हिंदी
पत्रकारिता : डॉ.पवन कुमार जैन
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