शिवानी गौड़ की दो कविताएँ
जज़्ब कर लेती हैं
बारिश की बूँदें
सीढ़ियों पर बैठी लड़की की परछाई को,
लिख रहा हो जैसे कोई
चिट्ठी
किसी की आमद के इंतज़ार मे ,
सड़क पर पड़ा
निम्बोली सा धूप का एक टुकड़ा ,
इस शहर के उदास मौसम में ,
बाट जोहता है ,
हमेशा से लिखी जा रही चिट्ठियों के लिए
नाम -पते का ,
सरहुल की रात भी
नहीं लौटा पाती
हवा में घुलते शब्द
जो लिखे थे
जादुई स्याही से
दरकते मौसमो ने।
***
प्रेम से टूट कर
परछाई का एक टुकड़ा
लिपटा रहता है एडियों से ,
बैठी रहती है
उकडू
एक चीख ,
दर्द से बेरूख ,
देखे जाते हैं कुछ ख्वाब सिर्फ
आँखों के खालीपन को भरने के लिए
ताकि
बची रहे उनकी
किशमिश सी मिठास ,
देह से इतर
कुछ शब्दों को पढना
औफ़ियस के बजते इकतारे में।
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