Sunday, June 30, 2013

कबीर की निर्गुण उपासना


आलेख
कबीर की निर्गुण उपासना
- सिमी. एस. कुरुप, कोयंबत्तूर (तमिलनाडु)*

          भारतीय धर्म साधना के इतिहास में कबीरदास जी एक ऐसे विचारक एवं प्रतिभाशाली कवि हैं, जिन्होंने दीर्ध काल तक भारतीय जनता का पथ प्रदर्शन किया I निर्गुण माने सत्व, रजस् और तमस् आदि गुणों से मुक्त I इन तीन गुणों से ही अहंकार, बुद्धि, शरीर, जन्म-मरण आदि विकृतियों का विकास होता है I परमात्मा इन गुणों से परे, निर्गुण-निराकार हैं I निर्गुण संतों ने राम को सगुण न मानकर लौकिक गुणों से रहित निर्गुण माना I निर्गुण मत का उपदेश है कि हृदय में स्थित भगवान को न देखकर बाहर मंदिर में जाकर देवी-देवताओं की पूजा करना ठीक नहीं है I इन्होंने मूर्तिपूजा का भी विरोध किया है I निर्गुण-संप्रदाय के अनुसार अपनी जीविका के लिए भिक्षा लेना ईश्वरानुभूति में विघ्न लाता है I किसी से कुछ मांगना कबीर ने मृत्यु के समान दुखदायी बताया है I

परम्परागत रूढियों, अंधविश्वासों, बाह्य आडंबरों के विरोधी कबीरदास जी ने सभी धर्मों की मूलभूत एकता को स्वीकार किया है I निर्गुण संत होने के कारण उन्होंने मूर्तिपूजा, व्रत, उपवास आदि का विरोध करते हुए धर्म के सामान्य तत्वों-सत्य, अहिंसा, प्रेम, करूणा, संयम, सदाचार आदि का समर्थन करते हुए एक व्यापक धर्म की प्रतिष्ठा की, जिसे सब लोग समान रुप से अपना सकें । निर्गुण-निराकार ईश्वर में विश्वास रखने वाले कबीरदास संसार में ईश्वर का एक ही रूप देखते थे । जातियों और उपजातियों में विभक्त समाज के विद्वेष को दूर करने के लिए उऩ्होंने ऐकेश्वरवाद का प्रचार  किया । कबीरजी ने राम की महत्ता स्वीकार की है । किन्तु वे दशरथ पुत्र राम के उपासक नहीं थे । उनका राम निर्गुण-निराकार परब्रह्म था । कबीर ने इस राम के लिए हरि, गोविंद, केशव, माधव आदि अनेक शब्दों का प्रयोग किया है जो उसकी अनन्त गुणराशि को संकेत करने के लिए किया है । विश्व सृष्टि के रुप में व्यापक राम को विष्णु’, जीव के दस दरवाजों को खोल देनेवाले राम को करीम’, ज्ञानगम्य राम को  गोरख, अलख निरंजन राम को अल्लाह तीनों भुवन के एकमात्र योगी राम को नाथ कहते हुए उन्होंने यह प्रतिपादन करना चाहा कि राम सनातन तत्व है और वही सर्वरूपों में विद्यमान है । ऐसा प्रतीत होता है कि प्रेमवश कबीर ने अपने राम को विभिन्न नामों में पुकारा है
कबीर के अनुसार अन्योन्याश्रय भाव से परमात्मा विश्व में और विश्व परमात्मा में उपस्थित है । इसी कारण से वे मन्दिर और मूर्ति में उसे सीमित करना पसंद नहीं करते । उनके मत में परमात्मा का वर्णन किसी सीमित रूप-रेखा में असंभव है । उनका अंतिम निर्णय यही रहा कि केवल वही है, और कोई नहीं है । उनके निर्गुण का विधान और सगुण का निषेध इसी तात्पर्य से प्रेरित है ।
*सिमी. एस. कुरुप, कर्पगम विश्वविद्यालय,  कोयंबत्तूर में डॉ. पद्मावती अम्माल के निर्देशन में पीएच.डी. उपाधि के लिए शोधरत हैं ।

Tuesday, June 25, 2013

कविता - राजनीति


राजनीति

- एन. सेंदिल कुमरन, पुदुच्चेरी
               
 लोग मानते हैं, गंदी नली है राजनीति,
                पर पावन गंगा है वह ।
                पावन गंगा तो जीव नदी है,
                जीव नदी तो राजनीति क्षेत्र है ।
नदी का पानी धारा में बहती है,
राजनीति की धारा विचारों से बनती है,
जल नहीं तो जलद कहाँ ?
राजनीति न तो राज कहाँ ?
                जलद का मूलाधार जल है,
                राज का मूलाधार राजनीति है।
                अंग्रेजों की नीति रहा है विभाजन,           
                भारत की राजनीति है गुलशन ।
पसिफि़क ओशन तो अति गहरा है,
राजनीति क्षेत्र तो अत्यंत गहरा है ।
अंग्रेजों का काम है राजनीति दमन,
भारतीयों का काम है राजनीति अमन-आमन ।
                दार्शनिक अरस्तू का कहना है,
                राज, वर्ग, प्रजा तीन तंत्र है ।
                भारत का तंत्र तो प्रजातंत्र है ।
                यह दुनिया भरके उच्च तंत्र है ।
भारत के कई स्वतंत्रता-शिल्पियों ने,
अति पावन बनाया राजनीति का ।
अहिंसा का जन्मदाता है, महात्मा गांधी ।
उनके जैसे कई महान आत्माओं से,
राजनीति और भी चमकी ।
अनेक धर्म युक्त है राजनीति ।
भारत में अति श्रेष्ठ है नीति ।
                राजनीति प्रकाशयुक्त सूर्य समान है ।
                बदलता नहीं, परिवर्तित नहीं,
                परिवर्तन तो दृष्टि है,
                दृष्टि की त्रुटी पाता है दिवा-निशा ।
भारत की राजनीति तो बड़ी कहानी है,
बड़ी कहानी का आरंभ तो बलिदानी है ।
भारत में कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना जीवन ही अर्पित किया,
उन लाशों के ऊपर राजनीति का उदय हुआ ।
                राजनीति का आविर्भाव बलिदान है,
                बलिदान तो रक्त रंजित है,
                रक्त का रंग लाल है,
                लाल का चिन्ह त्याग है,
                उस त्याग का प्रतीक राजनीति है ।
                राजनीति तो त्यागमय जीवन है 
भारत की राजनीति की नीति में विविधता है,
विविधता में एकता है, एकता में भारत है।
भारत की राजनीति देख,  दाँतो तले दबाती है धरती 
अनपढ़ को सिंहासन पर बिठाती है राजनीति ।
                कुछ स्वार्थी ने बनायी गंदी नली राजनीति को,
                उसे शुद्ध करने आगे बढ़ो युवक-युवतियो !
                आप न समझे कि राजनीति हमारी अछूती है ।
                समय की मांग है, राजनीति में आपका हाथ है ।