Thursday, June 13, 2013

सतरंगी रेखाओं की सादी तसवीरः अनिता संघवी

आलेख
 
सतरंगी रेखाओं की सादी तसवीरः अनिता संघवी
 
ललित गर्ग
 
- ललित गर्ग
 
जैसे सूर्य की किरणें निर्व्याज भाव से सभी को आलोकित करती है, ऊष्मा पहुंचाती है और चांद की किरणें सभी जगह फैलती हैं तथा सभी को अपने धवल-शीतल आगोश में सहलाती और तापमुक्त करती हैं, कुछ ऐसा ही व्यक्तित्व है अनिता संघवी का। उनकी संगीत साधना, ज्ञान और स्नेह की निर्व्याज और सतत प्रवाहित स्रोतस्विनी में जिसे भी एक बार अवगाहन करने का सुयोग मिला है, वह इस अनुभूति से कृतार्थता का अनुभव किए बिना नहीं रह सका है। उनके सान्निध्य से आदमी अचानक तापमुक्त और ऊंचा अनुभव करने लगता है। अनिताजी को देखकर ही मैंने जाना कि सादगी और सरलता में आदमी इतना बड़ा ही होता है।
भारतीय शास्त्रीय संगीत की फनकार, एक असाधारण प्रतिभा और सूफी गायिका के रूप में अनिताजी पिछले तीस वर्षों से शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में साधनाशील हैं। सूफी संगीत एवं गजल गायन की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाकर अमिट छाप छोड़ने वाली अनिताजी का मानना है कि आज पाॅप-डिस्को और रि-मिक्स गीतों के जमाने में भी गजल और शास्त्रीय संगीत की महक कम नहीं हुई है। कहते हैं संगीत को किसी सरहद में नहीं बांधा जा सकता। इसी बात को चरितार्थ करते हुए अनिताजी भारत सहित कैलिफोर्निया, कराची, मध्यपूर्व, यूरोप, लंदन, अमेरिका के कई देशों में तीन सौ से ज्यादा प्रभावी एवं अलौकिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुकी हैं।
अनिताजी ने बाल्यावस्था में ही संगीत सीखना शुरू किया। इसी उम्र में उन्होंने ग्वालियर घराने के पं. क्षीरसागर के मार्गदर्शन में अपनी संगीत यात्रा शुरू की। उन्होंने पहली बार जब शादी के बाद बेगम अख्तर को सुना तो फिर उर्दू की होकर रह गई। इसके लिए उन्होंनें खासतौर पर उर्दू फारसी सीखी। उनका मानना है कि संगीत के बीज मेरे बचपन में ही बो दिये गये थे।  अपने कठिन परिश्रम और साधना के बल पर गजल, सूफियाना कलाम, दादरा और ठुमरी में उल्लेखनीय कौशल हासिल किया। उनकी इस विशेष प्रतिभा को समय-समय पर अलंकृत/पुरस्कृत किया गया। राजीव गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार, कल्पतरु अवार्ड, हुस्न-ए-आरा ट्रस्ट के फक्र-ए-हिन्द अवार्ड, भारत निर्माण अवार्ड उनमें प्रमुख हैं। उनकी जहां मीडिया ने ‘महान् बेगम अख्तर’ की याद ताजा करने के रूप में प्रशंसा की, वहीं उन्हें  मल्लिका-ए-तरन्नुम पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
अनिताजी के अब तक जो संगीत एलबम रिलीज हुए हैं उनमें पहला नक्श-ए-नूर, दूसरा सदा-ए-सूफी, तीसरा जाहे नसीब, चैथा तजाल्ली हैं। हाल ही में उनकी नई एलबम ‘रिवायत’ रिलीज हुई है, जिसमें उन्होंने देश के तमाम बड़े शायरों के कलाम शामिल किये हैं। इस एलबम में सोलह गाने हैं। इसकी विशेषता रिवायती अंदाज की गजलें हैं। रिवायती यानी रुकी हुई गजलें। उनके एलबम रिलीज के कार्यक्रम भी अनूठे और विलक्षण रहे हैं। क्योंकि इनका रिलीज कभी सोनिया गांधी ने किया तो कभी उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने, कभी फारूक शेख साहब ने तो कभी शिवराज पाटिल आदि आदि राष्ट्रीय हस्तियों ने किये हैं।
भारतीय शास्त्रीय संगीत की परम्परा में इधर कई गायिकाएं पिछले दशकों से सक्रिय हुई हैं, लेकिन उनका काम ज्यादा दिखता नहीं है। अधिकतर गायिकाओं की समस्या है कि वे या तो अपने गुरु के साथ लग कर गाती रहीं और खत्म हो गईं या किसी महान संगीतकार गायक के परिवार में होने के चलते संगीत सीखा और पिफर गाने लगीं। भारतीय शास्त्रीय संगीत में अपनी पहचान बनाने के लिए जिस स्तर पर काम होता हुआ दिखाई देना चाहिए, वैसा दिखाई नहीं दे रहा है। फिल्मों की बात अलग है। नूरजहां, सुरैया, लता, आशा, उषा, वाणी जयराम, सुलक्षणा पंडित, सलमा आगा, अलका, कविता, सुनिधि, रूना लैला, उषा उत्थुप या ऐसी अन्य कलाकारों ने लम्बा संघर्ष झेला है। शास्त्रीय संगीत में परवीन सुल्ताना, गंगू बाई हंगल से लेकर शुभा मुद्गल, अश्विनी भिडे देशपांडे या देवकी पंडित तक का लंबा संघर्ष है। इसी  शृंखला में एक नाम है अनिताजी का हैं। उनकी पहचान है अपनी ठेठ गायकी के लिए। इन्होंने कोई आडम्बर नहीं रचा, न ही कोई छद्म व्युत्पत्ति की जो इन्हें विशिष्ट बनाएं। पर जो इनका श्रमसाध्य कार्य है, वही इन्हें शास्त्रीय संगीत की दुनिया में एक अलग सम्मान और कीर्ति देता है। अनिताजी के साथ सबसे अच्छी बात यह है कि इन्होंने अपनी दुनिया खुद बनाई, न कि एक समृद्ध विरासत के भरोसे अपनी नैया पार लगाई।
अनिता संघवी भारतीय शास्त्रीय संगीत में अपने तरह की अनूठी कलाकार हैं। जब वे एक ठसके से गाती हैं तो सारा जगत छोड़ कर दिल करता है कि उन्हें सुना जाए। खासतौर पर इधर जो वे गा रही हैं, नए प्रयोग कर रही हैं और जिस तान से सुर साधती हैं, वह उनकी मौलिक विशेषताएं हैं। अनिताजी ने संगीत में लोक शैली, पारम्परिक गीतों और दिलकश धुनों का जो खजाना तैयार किया है, वह बेमिसाल है। उन्हें सुनकर यह आश्वस्ति होती है कि उनकी गायकी अर्थपूर्ण होने के साथ-साथ मन और दिल को रोमांचित करती हैं। उनकी जिंदादिली मन को भाती है। गीत-गजल  और ताल के लिए स्वभाव एक जैसा पारखी और बाल-वृद्ध को समान रूप से प्रभावित करता है। वे इतनी तल्लीनता से जो गा रही हैं या प्रयोग कर रही हैं, बेहद बारीकी से आकदमिक संगीत, शास्त्रीयता और लोक शैली के बीच महीन-सा ताना-बाना बुनकर जो कुछ भी सार्थक रच रही हैं, वह उन्हें एक सांस्कृतिक योद्धा बना देता है और जिसके माध्यम से वे आने वाले इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगी।
काल से परे होकर जब अनिताजी मंच पर सप्तसुर छेड़ती हैं तो संगीत और समष्टि का माहौल अपने आरोह-अवरोह के बीच से एकाकार होकर श्रोताओं को चकित कर देता है। यहां शब्दों का साफ उच्चारण ही नहीं, बल्कि गायकी, आलाप, स्वर की शुद्धता, लचक और सुरों के उतार-चढ़ाव के संस्कार साफ दिखाई देते हैं। कोई आडम्बर नहीं होता। न ही ऐसा लगता है कि संगीत के बहाने कोई सुर की शुद्धता को प्रभावित कर रहा है। सभी ओर स्वर लहरियां गूंजती रहती हैं और श्रोताओं को लगता है कि मुश्किल संगीत को भी वे सुन-समझ सकते हैं। वहां घुल जाता है अहं, आडम्बर या सदियों से ढोते आ रहे घरानों का बोझ और रह जाती है मिसरी-सी आवाज। उनकी संगीत साधना जितनी सधी हुई है उससे कहीं अधिक सधा हुआ है उनका मन। यही कारण है कि वे एकांत में हो या जनता के मध्य, नीरवता हो या कोलाहल उनकी संगीत साधना बाधित नहीं होती। अनिताजी एक सफल लेखिका, चित्राकार और निपुण आभुषण डिजाइनर भी हैं। उनमें चिंतन की दीप्ति और अभिव्यक्ति की रोचकता का मणिकांचन योग है।
संगीत की इस महान परम्परा में बहुत कम महिलाएं हैं लेकिन अनिताजी एक महिला होकर भी, एक पारम्परिक जैन परिवार में जन्म लेकर भी उन्होंने अपना एक स्वतंत्र मुकाम बनाया है और भारतीय शास्त्रीय संगीत को एक ऊंचाई दी है। वे अपनी प्रतिभा और क्षमता के बल पर आम लोगों को सहज संगीत से अवगत करा रही हैं, नया रच रही हैं और कालजयी संगीत को लोकप्रिय बना रही हैं। यहां ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि आखिरकार शास्त्रीय संगीत-लोक संगीत, जो मनुष्य को सुख और शांति दे, उसे लोक के अनुरूप और सहज-सरल होना ही चाहिए और जो इस बात से इनकार करता है, वह सिर्फ किताबों के सुनहरे हर्फों में बंद होकर रह जाता है।
अनिताजी भारतीय शास्त्रीय संगीत की उच्चतम परम्पराओं, संस्कारों और महत जीवन मूल्यों से प्रतिबद्ध एक महान व्यक्तित्व हैं। वे जितनी बौद्धिक-भौतिक दृष्टि से समृद्ध हैं उतनी ही उनकी आध्यात्मिक संलग्नता है। उनके जीवन में विविधता है और यही उनकी विशेषता भी है।  आचार्य श्री महाप्रज्ञ को अपना आध्यात्मिक गुरु मानती है और मेरा सौभाग्य है कि मुझे आचार्य महाप्रज्ञ की अहिंसा यात्रा के संदर्भ में उनका लंबा साक्षात्कार करने का अवसर मिला है। यों अनेक अवसरों पर उनके फन को आत्मसात करने का अवसर मिलता रहता है। उनका जीवन अथाह ऊर्जा से संचालित तथा स्वप्रकाशी है। वह एक ऐसा प्रभापुंज है जिससे निकलने वाली एक-एक रश्मि का संस्पर्श जड़ में चेतना का संचार कर सकता है।
देश के प्रख्यात कानूनविद् एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता और विलक्षण प्रतिभा के धनी डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी आपके पति है। दो बेटों की मां के रूप में वे गृहस्थी की जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही हैं। वे न केवल जैन समाज बल्कि समूचे नारी समाज की गौरव हैं।
 ललित गर्ग
ई-253, सरस्वती कुंज अपार्टमेंट
25 आई॰ पी॰ एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
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