कवि महेंद्रभटनागर
—डॉ. सत्यनारायण व्यास (चित्तौड़गढ़-राजस्थान)
लगभग आधी शताब्दी के वक्ष पर फैले, बीस काव्य-कृतियों का रचना-कर्म किसी
भी समीक्षक या साहित्य-चिन्तक को गंभीर बना देने में सक्षम है। इतने बड़े काल-केनवस
पर, जहाँ हिन्दी-कविता के कई आन्दोलन उठे, बढ़े और गिरे, कवि महेंद्रभटनागर के दस्तख़त बराबर बने
रहे। यह कहना बेमानी होगा कि उन काव्यान्दोलनों से महेंद्रभटनागर असम्पृक्त या
अप्रभावित रहे। देश की आज़ादी से लेकर देश की जमकर बर्बादी के सजग साक्षी डॉ.
महेंद्रभटनागर ने कालजयी न सही, काल-चेतना
की आचार-संहिता का रचनात्मक ईमान अपनी कविता में जगह-जगह दर्ज़ किया है। किसी
श्रेष्ठ कवि का स्वदेश और स्वजन के प्रति यह कोई छोटा दायित्व नहीं है। कवि का
सम्पूर्ण रचना-कर्म एक साथ पढ़ने पर, उसका
सर्वाधिक प्रतिशत अपने समाज और समय के हार्दिक जुड़ाव का निकलता है और साहित्य की
निर्विवाद हो चली उपयोगितावादी दृष्टि से कवि का यह बहुत बड़ा दाय है। कहीं भी यह
ज़िम्मेदार और विश्वसनीय जन-कवि आत्म-वंचना का शिकार होता नज़र नहीं आता। यहाँ तक कि
व्यक्तिगत रोमांस की कविता में भी वह सामाजिक दायित्व की आभा से अन्तस् को उजलाए
हुए स्वस्थ प्रेम के ही उद्गार प्रकट करता है।
डॉ. महेंद्रभटनागर के काव्य का आधार सामाजिक है
और अधिरचना साहित्यिक। उनकी सोच एकदम जनवादी है और भाषा स्तरीय। वे अनपढ़-अनगढ़ जन
की बात को भी साहित्य के शाण पर तराश कर कहते हैं। इस मामले में वे अन्य जनवादी
कवियों से भिन्न हैं। भाषिक शिल्प की उत्कृष्टता को सम्भवतः उन्होंने अपनी
रचनात्मक अस्मिता से इस क़दर जोड़ लिया है कि वे फुटपाथ के संघर्षरत सर्वहारा की
तक़लीफ़ को भी असाहित्यिक अंदाज़ में नहीं कह सकते।
डॉ. महेंद्रभटनागर की कविताओं से गुज़रते हुए, हर सहृदय को यह सघन विश्वास हो जाता है
कि वे एक आस्थावान्, दायित्वशील, समय-सजग और साहित्य के क्षेत्रा में
आवश्यक हस्तक्षेप करने वाले ताक़तवर रचनाकार हैं, जो मात्र कवि कहलाने की ललक से कविता नहीं करते। महेंद्रभटनागर की कविता
मात्रा और गुणवत्ता दोनों ही दृष्टियों से भारी और श्रेष्ठ है। वे किसी ख़ास क़िस्म
की विचार-धारा से ‘प्रतिबद्ध’ या उसके अंधभक्त नहीं हैं। हाँ, प्रभावित ज़रूर हैं — समाजवाद हो, मार्क्सवाद हो, प्रयोगशील और प्रगतिशील आन्दोलन हो।
सावधान और सूक्ष्म अनुशीलन से उनकी कविता सहज भाव से मानवता में ही सम्पन्न और
परिणत होती है, न कि किसी वाद-विशेष में। यह किसी भी
अच्छे कवि की रचनात्मक स्वाधीनता और स्वायत्तता का प्रशंसनीय पहलू है।
No comments:
Post a Comment