Thursday, June 28, 2012

इंटरनेट पर सेंसरशिप और ऑनलाइन मीडिया के भविष्य पर बड़ी बहस






मीडिया से जुड़े लोगों ने ऑनलाइन मीडिया को नियंत्रित करने के सरकार के प्रयास की आलोचना की और आगाह किया कि जल्दबाजी में ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जाए. नोएडा में बुधवार 27 जून को आयोजित एस पी सिंह स्मृति समारोह 2012’ में मौजूद मीडिया के तमाम लोगों ने सरकार के ऐसे किसी भी प्रयास का विरोध किया. 
मीडिया खबर डॉट कॉम की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में इंटरनेट सेंसरशिप और ऑनलाइन मीडिया का भविष्यविषय पर चर्चा हुई. कार्यक्रम में आनलाइन मीडिया पर नकेल कसने के सरकार के प्रयासों की निंदा की गई.  केंद्र सरकार की ओर से सोशल साइटों को सोनिया गांधी के खिलाफ की गई एक टिप्पणी को हटाने के लिए कहना और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से उनके कार्टून प्रसारित करने वाले एक प्रोफेसर को गिरफ्तार किये जाने पर चिंता व्यक्त की गयी.
(Extreme Left)- Mr. Nimish Kumar, Mr. Jaideep Karnik,Ms. Vartika Anand(Extreme Right) at 4th SP Singh Memorial Convention 2012
बीबीसी हिंदी डॉट कॉम की पूर्व एडिटर सलमा जैदी ने कहा कि सेंसरशिप की बात तो ठीक है लेकिन एक इंटरनेट वॉच होना चाहिए.
इंटरनेट सेंसरशिप और आनलाइन मीडिया का भविष्य  विषय पर वेब दुनिया के संपादक जयदीप कार्णिक ने कहा कि ऑनलाइन मीडिया ने व्यक्तिगत अभिव्यक्ति को प्लेटफॉर्म दिया है. इंटरनेट पर सेंसरशिप के सवाल पर कार्णिक का कहना था कि बांध नदियों पर बनते हैं, समुद्र पर नही’. आज इंटरनेट एक समुद्र की तरह हो गया है जिस पर किसी प्रकार का सेंसरशिप लगाना अतार्किक और अव्यवहारिक है.
इंटरनेट सेंसरशिप के खिलाफ काम कर रही जर्मनी की कोवैक्स ने अपनी बात रखते हुए कहा कि सोशल एक्सपेटेंस भारत में ज्यादा है ?  भारत में बहुत सारे अंतर्राष्ट्रीय प्रावधान पहले से ही भारतीय संविधान में डाले गए गए हैं. जब हम सेंसेरशिप की बात करते हैं तो सिर्फ मीडिया सेंसरशिप की बात नहीं कर रहे हैं, इसके अलावे भी हमें बाकी चीजों पर बात करनी होगी. हमारी बात कहने की कोई जगह नहीं है. मेरा स्पेस नहीं है, लेस प्रोटेक्टेड. ऐसा नही है कि कोई रिस्ट्रिक्शन नहीं होनी चाहिए, लेकिन लेजिटिमेसी की बात है.


दिल्ली यूनिवर्सटी के लेडी श्रीराम कॉलेज की विभागाध्यक्ष डॉ वर्तिका नंदा का इंटरनेट पर सेंसरशिप के बारे में कहना था कि अगर सेंसरशिप का मतलब गला घोटना है तो मैं इसका समर्थन नहीं करती, अगर इसका मतलब एक लक्ष्मण रेखा है जो बताता है कि हर चीज की एक सीमा होती है तो ये गलत नहीं है.
न्यूज़ एक्सप्रेस के प्रमुख मुकेश कुमार ने कहा कि मैं ऑनलाइन और सेंसरशिप की बात को आइसोलेशन में नहीं देखना चाहता. मुझे लगता है कि ये सेंशरशिप माहौल में लगायी जा रही है. सेंसरशिप के और जो फार्म है उस पर भी बात होनी चाहिए. मैं तो देख रहा हूं कि नितिश कुमार भी एक अघोषित सेंशरशिप लगा रहे हैं. एक कंट्रोल मार्केट सेंसरशिप लगायी जा रही है.बाजार सरकार को नियंत्रित और संचालित किया जा रहा है, बाजार का जो सेंसरशिप है, उस पर भी लगाम लगाया जाना चाहिए.

वहीं छत्तीसगढ़ न्यायालय के पूर्व चीफ जस्टिस फखरुद्दीन साहब ने ऑनलाइन मीडिया की तारीफ़ करते हुए कहा कि ऑनलाइन ने जो सबसे अच्छी बात की है वो ये कि आईना सामने रख दिया. सच बात मान लीजिए,चेहरे पर धूल, इल्जाम आईने पर लगाना भूल है. हमसे बाद की पीढ़ी ज्यादा जानती है क्योंकि सोशल मीडिया ने ऐसा किया है.
महुआ ग्रुप के ग्रुप एडिटर राणा यशवंत ने इंटरनेट के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि  आज इंटरनेट बहुत जरूरी हो गया है और इसपर किसी भी तरह का सेंसर समाज के लिए ठीक नहीं. वैसे सरकार की मंशा ऐसी रही है. यह लोकतंत्र के बुनियादी अधिकार पर रोक लगाने जैसा है.

इस कार्यक्रम में बीबीसी हिंदी.कॉम की पूर्व एडिटर सलमा जैदी, वेबदुनिया के एडिटर जयदीप कार्णिक, मीडिया विश्लेषक डॉ.वर्तिका नंदा, न्यूज़ एक्सप्रेस चैनल के प्रमुख मुकेश कुमार, महुआ न्यूज़ के ग्रुप एडिटर यशवंत राणा, जर्मनी की कोवैक्स, वेबदुनिया के जयदीप कार्णिक, छत्तीसगढ़ के पूर्व चीफ जस्टिस फखरुद्दीन और इन.कॉम (हिंदी) के संपादक निमिष कुमार शामिल हुए जबकि मंच संचालन युवा मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार ने किया.


Wednesday, June 27, 2012

अनुवाद,प्रौद्योगिकी और बहुभाषी प्रसंग में वैश्वीकरण पर 3सरा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित




अनुवाद,प्रौद्योगिकी और बहुभाषी प्रसंग में वैश्वीकरण पर 3सरा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित


















अनुवाद,प्रौद्योगिकी और बहुभाषी प्रसंग में वैश्वीकरण पर 3सरा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित

भारतीय अनुवादक संघ और linguaindia के संयुक्त तत्वाधान में पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी और इंस्टिट्यूटो सर्वेंटेस के साथ निकट सहयोग में आयोजित अनुवादप्रौद्योगिकी और बहुभाषी प्रसंग में वैश्वीकरण पर  3सरा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन , 23-26जून, 2012, भारत में स्पेन के दूतावास के आधिकारिक सांस्कृतिक केन्द्र, इंस्टीट्युटो सर्वेंटेज नई दिल्लीमें भारत के अनुवादकों और दुभाषिया समुदाय के लिए नए मानक बनाते हुए. 26 जून, 2012 को सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।

संघ के अध्यक्ष रवि कुमार ने प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि सम्मेलन का उद्घाटन सत्र में इंस्टीट्युटो सर्वेंटेज द्वारा आयोजित स्पेनिश दिवस समारोह का हिस्सा बना, 23 जून, 2012 |  20से अधिक भाषा पेशेवरोंशिक्षाविदोंऔर दुनिया भर से अनुवादकों की उपस्थिति मेंमहामहिमकोलंबिया के राजदूतश्री जुआन अल्फ्रेडो पिंटो सावेद्रा ने मुख्य अतिथि के रूप मेंमेजबान इंस्टीट्यूटो सर्वेंटेज के निदेशक डॉ. ऑस्कर पुजोलडॉ. रजनीश अरोड़ावाइस चांसलरकल यूनिवर्सिटी की प्रतिनिधि डा. प्रभजोत कौरडा. ब्रज किशोर कुठियालाकुलपतिमाखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालयडा. जेन्सी जेम्सकुलपतिकेन्द्रीय विश्वविद्यालयकेरलश्री अतुल कोठारीराष्ट्रीय सचिवशिक्षा संस्कृति उत्थान न्यासश्री रवि कुमारसंस्थापक अध्यक्षभारतीय अनुवादक एसोसिएशन मंचासीन हुए | दीप प्रज्व्वलित के साथ सभी की उपस्थिति में उद्घाटन किया।

सम्मेलन के उद्घाटन के दौरान जबकि सभी गणमान्य व्यक्तियों ने देश की सामाजिक और आर्थिक प्रगति में अनुवाद के महत्व पर बल दिया, पंजाब टैक्निकल यूनिवर्सिटी की डा. प्रभजोत कौर ने इस अवसर पर पंजाब टैक्निकल यूनिवर्सिटी के मोहाली परिसर में तकनीकी अनुवाद और भाषांतरण में B.Sc तथा पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा के शुभारंभ की औपचारिक रूप से घोषणा की।

भारतीय अनुवादक एसोसिएशन के लिए भी यह गर्व का क्षण था जब श्री रवि कुमार द्वारा संपादित पुस्तक "राष्ट्र निर्माण में अनुवाद की भूमिका" को डॉ. ऑस्कर पुजोल द्वारा लोकार्पण किया गया। विचारोत्तेजक सामग्री के लिए पुस्तक ने भारी प्रशंसा प्राप्त की है और इसका उपयोग भारत में अनुवाद अध्ययन के लिए पाठ्य पुस्तक के रूप में किया जा सकता है।

इस अवसर पर मुख्य वक्ताओं के रूप में डा. मूसा न्योंग्वाकनाडाश्री पुरनेंद्र किशोरभारत और डॉ. मनीरत सवासदिवात नेक्रमशः कनाडा के अनुवाद उद्योग,अनुवाद2022 तक भारत को एक कौशल महाशक्ति बनाने वाला मुख्य संबल और अनुवाद उद्योग के एशियाई एसोसिएशन के गठन पर प्रकाश डाला।

23 जून से 26 जून, 2012 लगातार 04 दिन तक 100 से अधिक विशेषज्ञों ने अपने पत्र प्रस्तुत किए तथा वैश्वीकरणअंतर्राष्ट्रीयकरणस्थानीयकरण और अनुवाद (GILT), अनुवाद भाषाओंसंचार और जनसंपर्क माध्यमों के चैनलों के प्रति सरकार की नीतियोंअनुवाद एवं भाषांतरण में शिक्षण और प्रशिक्षणअनुवाद के प्रति सैद्धांतिक दृष्टिकोणअनुवाद में अध्यापन चुनौतियोंविशेषज्ञतायुक्त पाठ (वैज्ञानिकतकनीकीचिकित्सा आदि)अनुवाद में गुणवत्ता मानकोंशब्दावली प्रबंधन और अनुवाद में परियोजना प्रबंधनप्रकाशन उद्योग और अनुवादअनुवाद में मशीन और स्मृति उपकरणों;अनुवाद में प्रौद्योगिकी और नवीनता आदि सहित विभिन्न विषयों पर अपने दृष्टिकोण साझा किए।

सम्मेलन के समापन के दिनसम्मेलन संयोजक और भारतीय अनुवादक एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री रवि कुमार द्वारा परियोजना प्रबंधन और अनुवाद में प्रौद्योगिकी एकीकरण पर एक समर्पित कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला में 150 से अधिक अनुवादकों और शिक्षाविदों ने भाग लेकर परियोजना प्रबंधनगुणवत्ता नियंत्रण और अनुवाद सेवाओं और ग्राहकों की संतुष्टि की प्राप्ति में तकनीकी एकीकरण की मूल बातें सीखीं।

सम्मेलन के सभी सहभागी सदस्य इस आम सहमति पर पहुँचे कि अनुवादकों को व्यावसायिक प्रस्थिति प्रदान करने और अनुवाद अध्ययन के लिए पाठ्यक्रम मॉड्यूल तैयार करने के लिए कदम उठाने की तत्काल आवश्यकता है ताकि शिक्षाविदों और उद्योग के बीच की खाई को भरा जा सके।
हैदराबाद 
 
श्रीमती संपत देवी मुरारका 

Wednesday, June 20, 2012

जागरण गीत

जागरण गीत



क्यों सो रहा.....

- आचार्य संजीव 'सलिल'

*

क्यों सो रहा मुसाफिर,

उठ भोर रही है.

चिड़िया चहक-चहककर,

नव आस बो रही है.

*

मंजिल है दूर तेरी,

कोई नहीं ठिकाना.

गैरों को माने अपना-

तू हो गया दीवाना.

आये घड़ी न वापिस

जो व्यर्थ खो रही है...

*

आया है हाथ खाली,

जायेगा हाथ खाली.

नातों की माया नगरी

तूने यहाँ बसा ली.

जो बोझ जिस्म पर है

चुप रूह ढो रही है...

*

दिन सोया रात जागा,

सपने सुनहरे देखे.

नित खोट सबमें खोजे,

नपने न अपने लेखे.

आँचल के दाग सारे-

की नेकी धो रही है...

*

कादम्बिनी क्लब हैदराबाद की 238 वीं मासिक गोष्ठी सम्पन्न


कादम्बिनी क्लब हैदराबाद के तत्वावधान में रविवार दि.17 जून को हिन्दी प्रचार सभा परिसर में क्लब की 238वीं मासिक गोष्ठी का सफल आयोजन सम्पन्न हुआ. क्लब संयोजिका डॉ. अहिल्या मिश्र एवं कार्यकारी संयोजिका मीना मूथा ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया की इस अवसर पर प्रथम सत्र की अध्यक्षता जज महोदया श्रीमती वी.वरलक्ष्मी ने की श्री जी.परमेश्वर (मुख्य अतिथि), डॉ. अहिल्या मिश्र (क्लब संयोजिका) मंचासीन हुए डॉ. रमा द्विवेदी द्वारा सुमधुर सरस्वती वंदना प्रस्तुति से कार्यक्रम का आरंभ हुआ मीना मूथा ने उपस्थित सभा का स्वागत किया.
श्री ओमप्रकाश शर्मा के संपादकत्व में दिल्ली से प्रकाशित मासिक पत्रिका “युगसेतु” पर अपने विचार रखते हुए डॉ. मदन देवी पोकरणा ने कहा कि पत्रिका के रंगीन-मनमोहक मुखपृष्ठ ने इंडिया टुडे, धर्मयुग, दिनमान, साप्ताहिक हिन्दुस्तान आदि पत्रिकाओं की याद दिला दी 52 पृष्ठीय पत्रिका में विभिन्न विचार, दृष्टिकोण, स्वास्थ्य संबंधी लेख आदि का समावेश उसे पठनीय बनाता है चित्रा मुदगल, उपेंद्र अश्क, रामवृक्ष बेनी पूरी, डॉ. बाछोतिया, अवधेश कुमार, मृदुला सिन्हा आदि साहित्यकारों का योगदान इसे स्तरीय बनाने में सफल रहा है .  सौंदर्य और धर्म पत्रिका के विषय हैं.  सौंदर्य को शाश्वत अखंड मान गया है. विषयों को केंद्रित करते हुए लेख और संपादकीय प्रभावी बन पड़े हैं
श्री लक्ष्मीनारायण अग्रवाल ने अपने विचारों को रखते हुए कहा कि “युगसेतु” के पन्ने पलटकर उसे रख नहीं सकते, क्योंकि इसमें गंभीर लेखन है. धर्म और सौंदर्य दोनों ही विषयों को परिभाषित नहीं कर सकते दोनों ही अनुभव, चिंतन की चीजें हैं जो अप्रत्यक्ष है उसे परिभाषित करना दुरूह कार्य है
पत्रिका को केवल एक वर्ष ही हुआ है, यह बहुत लंबी यात्रा न होते हुए भी छोटी भी नहीं है. लंबे संपादकीय में सारे पक्ष कवर हो जाते हैं परन्तु विषय से भटकने का खतरा भी होता है संपादकीय में जरा भी भटकाव आ जाए तो वह प्रभावहीन हो जाता है. सौंदर्य की सबसे बड़ी उपयोगिता यह है कि वह हमारे अंदर पॉजिटिविटी को बढ़ाता है, मानवीयता को बढ़ाता है. सौंदर्य जीवन का मूल्य है. चित्रा मुदगल की कहानी सशक्त कहानी है. घटनाएँ अपने आप कहानी को बयां करती है जो ज्ञान-दर्शन मानवीयता को बढ़ावे वही धर्म है.
ओशो का चिंतन व्यावहारिक है. मानव के मनोविज्ञान से वह जुड़ा है. मानव जीवन विज्ञान से कम और मनोविज्ञान से ज्यादा प्रभावित होता है. अनुभूति मनोविज्ञान का बहुत बड़ा हिस्सा है. पत्रिका निश्चित ही पठनीय संग्रहणीय है .
डॉ. अहिल्या मिश्र ने कहा कि पत्रिकाएँ तो बहुत निकलती है, कुछ बंद भी हो जाती है परन्तु “युगसेतु” लीक से हटकर अपना एक चेहरा हमारे सामने रख रहा है .  1927 की “वीणा” पत्रिका और इसमें मुझे साम्य दिखाई दिया.  भारत में इस पत्रिका ने विगत एक वर्ष में अपना वर्चस्व बनाया. दर्जेदार साहित्य ने इसे अल्प समय में स्तरीय बना दिया है. जी.परमेश्वर ने कहा कि चारु चन्द्र की चंचल .....पंक्तियाँ प्रकृति में निहित सौंदर्य की अनुभूति कराती है वैसे ही जीवन में आनंद और सकारात्मकता को भर देती है. कर्म श्रम है परन्तु वही सबकुछ नहीं है.  मेहनत के सामने आकाश झुक जाता है, श्रम और समय दोनों साथ-साथ चलते हैं. जापान आज उद्योगशील देश इसलिए बना क्योंकि उन्होंने समय की कीमत को जाना. पत्रिका मुखपृष्ठ प्रेरणा व संदेश के वाहक बन पड़े हैं.  वी. वरलक्ष्मी ने अध्यक्षीय बात में कहा कि हर मजहब ने धर्म को अलग-अलग नजरिये से देखा परन्तु संदेश प्रेम-मानवता-बंधुत्व का ही दिया. साहित्य एक जरिया है जो हमारे संस्कारों को पुख्ता बनाता है

तत्पश्चात श्री गुरुदयाल अग्रवाल की अध्यक्षता एवं गोविंद मिश्र, विनय कुमार झा के आतिथ्य में तथा लक्ष्मीनारायण अग्रवाल के सफल संचालन में कविगोष्ठी का आयोजन हुआ   इसमें सूरज प्रसाद सोनी, मुकुंददास डांगर, गौतम दीवाना, डॉ.रमा द्विवेदी, डॉ.सीता मिश्र, पवित्रा अग्रवाल, सुरेश गंगाखेडकर, मीना मूथा, जी.परमेश्वर, भावना पुरोहित, संपत देवी मुरारका, सरिता सुराणा जैन, जुगल बंग जुगल, भँवरलाल उपाध्याय, सत्यनारायण काकड़ा, डॉ.अहिल्या मिश्र, वी.वरलक्ष्मी, गोविंद मिश्र, विनय कुमार झा, एस.नारायण राव ने भाग लिया
श्री गुरुदयाल अग्रवाल ने अध्यक्षीय काव्यपाठ किया. श्री भूपेंद्र ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. डॉ.रमा द्विवेदी ने क्लब सदस्यों को उनके जन्मदिन, विवाह दिन की बधाई दीं.  सरिता सुराणा जैन के धन्यवाद के साथ गोष्ठी का समापन हुआ.

- डॉ.अहिल्या मिश्र

श्यामल सुमन की दो ग़ज़ले

अनुभूति


कभी जिन्दगी ने मचलना सिखाया

मिली ठोकरें तो सम्भलना सिखाया



जीना सम्भलकर कठिन जिन्दगी में

उलझ भी गए तो निकलना सिखाया



रंगों की महफिल है ये जिन्दगी भी

गिरगिट के जैसे बदलना सिखाया



सबकी खुशी में खुशी जिन्दगी की

खुद की खुशी में बहलना सिखाया



बहुत दूर मिल के भी क्यों जिन्दगी में

सुमन फिर भ्रमर को टहलना सिखाया



बेबसी


बात गीता की आकर सुनाते रहे

आईना से वो खुद को बचाते रहे



बनते रावण के पुतले हरएक साल में

फिर जलाने को रावण बुलाते रहे



मिल्कियत रौशनी की उन्हें अब मिली

जा के घर घर जो दीपक बुझाते रहे



मैं तड़पता रहा दर्द किसने दिया

बन के अपना वही मुस्कुराते रहे



उँगलियाँ थाम कर के चलाया जिसे

आज मुझको वो चलना सिखाते रहे



गर कहूँ सच तो कीमत चुकानी पड़े

न कहूँ तो सदा कसमसाते रहे



बेबसी क्या सुमन की जरा सोचना

टूटने पर भी खुशबू लुटाते रहे

Tuesday, June 19, 2012

लघुकथा


सोच

- रमेश यादव

न जाने क्यों आज की शाम अजय को बोझिल-सी लग रही थी. वैसे तो उसे खुश होना चाहिए था, क्योंकि छ्ह महीनों बाद वह बँगलूरू से मुँबई अपने घर लौट रहा था, और उसकी शादी की बात भी चल रही थी, पर अजय नर्वस हो रहा था. उसके आने की खबर से घरवाले काफ़ी प्रसन्न थे. यह इस बात का द्योतक भी था कि वह घरवालों के इस फैसले से सहमत है .

सारे जरूरी कामकाज निपटाकर शाम को अपने माता-पिता और बहन के साथ बोरीवली जाने के लिए वह तैयार हो गया , आखिर लड़की देखने का कार्यक्रम जो बना था. देखा जाए तो आज का दिन उसके लिए बड़ा खास था, इसीलिए तो उसे बँगलूरू से बुलाया भी गया था. आफीस से छुट्टी लेना उसके लिए टेढी़ खीर थी, नाको चने चबाने जैसा था ! पर क्या करे पापा का बुलावा ही इतना आग्रहभरा था कि वह चाहते हुए भी टाल न सका. वह जानता था कि बास से छुट्टी माँगने का मतलब है उसकी खरी –खोटी सुनना. उसका यह अंदाज सही निकला. बडे़ ना - नुकुर के बाद आखिर पांच दिन की छुट्टी मंजुर हुई.

खैर लड़की देखने का कार्यक्रम तो संपन्न हो गया. रिश्ता जाति- बिरादरी से था, जो आजकल मुश्किल होते जा रहा है ! लोग बडे़ खुश थे. अजय के माता-पिता को लड़की बहुत पसंद थी. उसकी बहन अनिता भी इस रिश्ते से खुश थी. अजय के पिता राजेश्वर मेहरा सरकारी बैंक के बडे़ पद से पिछले साल ही रिटायर्ड हुए थे और वे लड़कीवालों को अच्छी तरह से जानते थे. रिश्ता भी अच्छा था. लड़की के पिता हर्दयाल बजाज जी रेल के रिटायर्ड अधिकारी और माँ रिटायर्ड शिक्षिका है .उनकी अच्छी खासी पेंशन है. अपनी इकलौती बेटी ‘जोया’ को बड़े लाड़– प्यार से उन लोगों ने पाला था. कानवेंट में पढ़ी , लंबी, गोरी, छरहरी, स्मार्ट नौकरी पेशा इंजीनियर जोया आधुनिक खयालों की है, उसकी तनख्वाह भी अच्छी है. बिजनेस टूर के सिलसिले में देश–विदेश में आना जाना उसके लिए आम बात है. अत: मेहरा जी चाहते थे कि जल्दी से अजय का घर बस जाए और हाय प्रोफ़ाइल बहू घर आए.

बहरहाल दो दिन बीत गए. बजाज जी का फोन भी आ गया कि उन्हें और जोया को अजय पसंद है, पर मेहरा जी की अभी इस विषय पर अजय से खुलकर बात नहीं हुई थी, अत: उन्होंने एक दिन का और समय माँगा और फोन रख दिया. मौका देखकर आज मेहरा परिवार ने अजय से इस बात का जिक्र छेड़ ही दिया.

अजय ने घरवालों की राय जाननी चाही. सबने एक सुर में हामी भर दी. “ जोया हम सबको पसंद है”. अजय की माँ तो लड्डू का बाक्स लेकर ही बैठी थी, उसे सिर्फ बेटे के हामी का इंतजार था. आज तक वह घरवालों की हर उम्मीद पर खरा उतरा था. उसकी बहन आँखों में सतरंगी सपने संजोए बैठी थी, पिताजी नाक से चष्मा ऊपर करते हुए अपनी छड़ी को सहलाते हुए अजय की “हाँ” सुनने के लिए आतुर हो रहे थे. सबको उस प्यारी –सी खबर का इंतजार था, जो एक औपचारिकता मात्र थी.

“आप सभी की भावनाओं का मैं सम्मान करता हूँ. जोया वास्तव में सुंदर, करीयर ओरियंटेड स्मार्ट इंजीनियर है. आधुनिक और माडर्न खयालों की भी है.” अजय के मुख से इतना सुनते ही उसकी मम्मी ने लड्डू बाँटना शुरू कर दिया. अजय ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “ एकांत में जोया से मेरी जो बातेँ हुईं उससे मैं सँतुष्ट हूँ, वह मेरे लिए सुखद रही. मैं उसके सोच की कद्र करता हूँ . मैं खुद एक मल्टीनेशनल कंपनी में बतौर ‘आई.टी.’ इंजीनियर 12 से 16 घंटे ड्यूटी करता हूँ, प्रोफेशनल हूँ. मेरे साथ जोया जैसी लड़कियाँ भी सहकर्मी के रूप में कार्य करती हैं, अत: मैं उनकी मानसिक सोच और भावनाओं से पूरी तरह वाकिफ़ हूँ. हम लोगों का जीवन यंत्रवत हो जाता है. टारगेट, प्रमोशन और सॅलरी के तनाव में हम लोग घर-परिवार और देश- दुनिया से कट जाते हैं. पापा ! मैं पैसा कमानेवाली, करीयर ओरियंटेड, प्रोफेशनल इंजीनियर नहीं, बल्कि, आप लोगों के लिए एक गृहलक्ष्मी जैसी बहू चाहता हूँ. जिसके पास इतना समय और संस्कार हो कि वो हम सबके बारे में सोच सके, हमें अपना समझकर हममें रच- बस सके . उसका दुःख हमारा और हमारा सुख उसका हो जाए. आपके पोता-पोती, आयाओं या नाना – नानी के रहमोंकरम पर नहीं, बल्कि माता- पिता की छ्त्र छाया में पले बढ़े . घर की रसोई और बगिया महके, फले- फूले. नए साज का झँकार हो. जोया के पास इतना वक्त ही कहाँ है ? उसे विदेश का आकर्षण अधिक है. देश –विदेश में मैं भी घूमता हूँ ,पर मैं अपनी मिट्टी का तिलक करता हूँ. पापा मैं उसके योग्य नहीं हूँ ! वह अपने विचारों से समझौता करने को तैयार है पर मैं उसके सपनों को मरने नहीं देना चाहता. आय एम सारी पापा, मैं अपनी ज़मीन से कटना नहीं चाहता ! फ्लाईट का वक्त हो रहा है, कुछ देर में मुझे निकलना होगा.”

481/ 161 – विनायक वासुदेव एन.एम. जोशी मार्ग
चिंचपोकली – पश्चिम,
मुंबई- 400011 फोन- 09820759088


हर दिन पिता याद आते हैं...

स्मृति गीत:


हर दिन पिता याद आते हैं...



संजीव 'सलिल'



*



जान रहे हम अब न मिलेंगे.



यादों में आ, गले लगेंगे.



आँख खुलेगी तो उदास हो-



हम अपने ही हाथ मलेंगे.



पर मिथ्या सपने भाते हैं.



हर दिन पिता याद आते हैं...



*



लाड, डांट, झिडकी, समझाइश.



कर न सकूँ इनकी पैमाइश.



ले पहचान गैर-अपनों को-



कर न दर्द की कभी नुमाइश.



अब न गोद में बिठलाते हैं.



हर दिन पिता याद आते हैं...



*



अक्षर-शब्द सिखाये तुमने.



नित घर-घाट दिखाए तुमने.



जब-जब मन कोशिश कर हारा-



फल साफल्य चखाए तुमने.



पग थमते, कर जुड़ जाते हैं



हर दिन पिता याद आते हैं...

Monday, June 18, 2012

पं. दामोदरदास चतुर्वेदी स्मृति सम्मान व रानी लक्ष्मीबाई बलिदान दिवस समारोह का आयोजन





नई दिल्ली। गत् 16 एवं 17 जून को यहां भारतीय सांस्कृतिक परिषद के सौजन्य से व सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति एवं बुन्देलखंड विकास परिषद के संयुक्त तत्वावधान में दिल्ली स्थित आजाद भवन में दामोदर दास चतुर्वेदी स्मृति सम्मान एवं महारानी लक्ष्मीबाई बलिदान दिवस समारोह का अत्यन्त सफल व प्रेरक आयोजन किया गया। दोनों दिन विभिन्न कार्यक्रमों का शुभारम्भ क्रमशः श्री दामोदर दास एवं महारानी लक्ष्मीबाई के चित्र पर पुष्प अर्पण, दीप प्रज्जवलन एवं किशोर श्रीवास्तव व साथियों के भाईचारा गीत के साथ हुआ।

पहले दिन के साहित्यिक समारोह में जहां अनेक कवियों ने समां बांधा वहीं दूसरे दिन के समारोह का मुख्य आकर्षण रहा अंकित जैन एंड पार्टी द्वारा श्री प्रदीप जैन द्वारा लिखित गीत ‘हम बुंदेले, हम बुंदेले’ का मंचन व साहित्य कला परिषद के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत रानी झांसी पर आधारित नृत्य नाटिका। इन कार्यक्रमों ने दर्शकों का खूब मन मोहा। पहले दिन के विभिन्न कार्यक्रमों का कुशल संचालन जहाँ सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के स्थानीय प्रमुख श्री सुरेश नीरव व अरविन्द पथिक ने किया वहीं दूसरे दिन के कार्यक्रम का संचालन बुन्देलखंड विकास परिषद के पदाधिकारी श्री अवधेश चौबे ने किया। पहले दिन के समारोह के मुख्य अतिथि सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी एवं दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष डा० योगानंद शास्त्री ने भाषाओं के माध्यम से देश को जोडने पर बल दिया एवं दूसरे दिन के समारोह के मुख्य अतिथि ग्रामीण विकास राज्य मंत्री श्री प्रदीप जैन एवं समाजवादी नेता रघुठाकुर, पूर्व सांसद श्री उदय प्रताप सिंह व विधायक डॉ. एस. सी. एल. गुप्ता ने अपने भाषणों में रानी झांसी की स्मृति को ताजा करते हुए राष्ट्रीय एकता का आवाह्न करके श्रोताओं का खूब दिल जीता।

दोनों अवसरों पर शिक्षा, प्रशासन, फिल्म, चिकित्सा, साहित्य एवं कला आदि क्षेत्रों की अनेक जानी-मानी हस्तियों को सम्मानित भी किया गया। जिनमें पहले दिन दामोदर दास स्मृति सम्मान से सर्वश्री बी. एल. गौड, सुभाष जैन, राजकुमार सचान होरी, प्रशांत योगी, डा. प्रदीप चतुर्वेदी, प्रवीण चौहान, अशोक शर्मा, डा. लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, शरददत्त, रिंद सागरी, डा. जया बंसल, कुंवर जावेद, ब्रजेंद्र त्रिपाठी, विजय आईदासानी, डा० रिचा सूद, अरूण सागर, जय कुमार रूसवा को नवाजा गया। इसी प्रकार से बुंदेलखंड विकास परिषद के प्रतिभा सम्मान से सर्वश्री डॉ. वी. के अग्रवाल, डॉ. ओ. पी. रावत, इंजि. वी. के. शर्मा, अरूण खरे, राजीव दुबे, डॉ. बी. एल. जैन, डॉ. वी. के. जैन, कामिनी बघेल एवं डॉ. अनिल जैन आदि को सम्मानित किया गया।

दो दिनों तक चले इस समारोह में श्री किशोर श्रीवास्तव की जन चेतना कार्टून पोस्टर प्रदर्शनी ‘खरी-खरी’ भी दर्शकों के आकर्षण का केंद्र बनी रही।
- हम सब साथ साथ डेस्क, नई दिल्ली मो. 9868709348