Saturday, December 31, 2011

ग़ज़ल

ये दुनिया तो सिर्फ मुहब्बत

श्यामल सुमन

आने वाले कल का स्वागत, बीते कल से सीख लिया

नहीं किसी से कोई अदावत, बीते कल से सीख लिया



भेद यहाँ पर ऊँच नीच का, हैं आपस में झगड़े भी

ये दुनिया तो सिर्फ मुहब्बत, बीते कल से सीख लिया



हंगामे होते, होने दो, इन्सां तो सच बोलेंगे

सच कहना है नहीं इनायत, बीते कल से सीख लिया



यह कोशिश प्रायः सबकी है, हों मेरे घर सुख सारे

क्या सबको मिल सकती जन्नत, बीते कल से सीख लिया



गर्माहट टूटे रिश्तों में, कोशिश हो, फिर से आए

क्या मुमकिन है सदा बगावत, बीते कल से सीख लिया



खोज रहा मुस्कान हमेशा, गम से पार उतरने को

इस दुनिया से नहीं शिकायत, बीते कल से सीख लिया



भागमभाग मची न जाने, किसको क्या क्या पाना है

सुमन सुधारो खुद की आदत, बीते कल से सीख लिया



इसी ग़ज़ल को इस लिंक पर कवि श्यामल सुमन जी के ही स्वर में सुन सकते हैं -- http://www.youtube.com/watch?v=PXtbpwAfZK4&list=UUElf66rbpVdKwI04CDViGhw&index=1&feature=plcp



नववर्ष की असीम शुभकामनाओं के साथ हार्दिक बधाई

Thursday, December 22, 2011

अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में साहित्यकार नरेंद्र कोहली का विशेष व्याख्यान

काठमांडू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर करेंगें मीडिया के लिए नारद के भक्ति सूत्र पर खास प्रस्तुति

भोपाल,22 दिसंबर,2011। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल द्वारा ‘मीडिया में विविधता एवं अनेकताः समाज का प्रतिबिंब’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में साहित्यकार नरेंद्र कोहली एक खास व्याख्यान देंगें। जिसका विषय है “एकात्म मानवदर्शन के संदर्भ में पत्रकारिता के कार्यों व भूमिका का पुर्नवलोकन”। यह आयोजन 27 एवं 28 दिसंबर, 2011 को शाहपुरा स्थित प्रशासन अकादमी के सभागार में होगा। देश में पहली बार इस महत्वपूर्ण विषय पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हो रहा है। इस संगोष्ठी में देश और दुनिया के जाने माने दार्शनिक, समाजशास्त्री, मीडिया विशेषज्ञ, पत्रकार, मीडिया प्राध्यापक एवं मीडिया शोधार्थी हिस्सा ले रहे हैं। इस खास आयोजन के शुभारंभ सत्र में प्रख्यात पत्रकार अरूण शौरी का व्याख्यान भी होगा, जिसमें वे विषय से जुड़े मुद्दों शोधार्थियों एवं सहभागियों को संबोधित करेंगें। इस सत्र के मुख्यअतिथि राज्य के राज्यपाल महामहिम रामनरेश यादव होंगें। आयोजन के पहले दिन दोपहर दो बजे पहला सत्र प्रारंभ होगा जिसमें काठमांडू विश्वविद्यालय के प्रो. निर्मलमणि अधिकारी, नारद के भक्ति सूत्र पर आधारित पत्रकारिता के माडल की प्रस्तुति करेगें। इसी सत्र में इंटरनेशनल पब्लिक रिलेशन एसोशिएसन, ब्रिटेन के अध्यक्ष रिचर्ड लिनिंग अपना प्रजेंटेशन देंगें। यह जानकारी देते हुए कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने बताया भारतीय समाज की विविधताओं और अनेकताओं को हमारा मीडिया कितना अभिव्यक्त कर पा रहा है, यह सेमिनार की चर्चा का केंद्रीय विषय है। इस दो दिवसीय संगोष्ठी में समाज जीवन के अनेक क्षेत्रों पर मीडिया की वास्तविक प्रस्तुति पर चर्चा होगी। अगर मीडिया में इनका वास्तविक प्रतिबिंब नहीं है तो उसे ठीक करने के उपायों पर भी सुझाव दिए जाएंगें। उन्होंने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दुनिया के सभी देशों में विविधताओं और अनेकताओं को लेकर बहस चल रही है, दुनिया के सारे देश इससे उत्पन्न चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। भारत के सामने इससे जुड़ी हुयी चुनौतियां तुलनात्मक रूप से अधिक हैं। अनेक भाषाओं, पंथों, जातियों, संस्कृतियों का देश होने के बावजूद भारत ने राष्ट्रीय एकता और सहजीवन की अनोखी मिसाल पेश की है। ऐसे में भारत आज दुनिया के तमाम देशों के लिए शोध का विषय है। किंतु इस पूरी विविधता का हमारा मीडिया कैसा अक्स या प्रतिबिंब प्रस्तुत कर रहा है, यह एक विचार का मुद्दा है। प्रो. कुठियाला ने कहा कि मीडिया पूरे समाज में परस्पर संवाद बनाने की क्षमता रखता है और विभिन्न सामाजिक विषयों को भी प्रस्तुत करने का दायित्व लिए है, ऐसे में उसकी जिम्मेदारियां किसी भी क्षेत्र से ज्यादा और प्रभावी हो जाती हैं। संगोष्ठी के डायरेक्टर प्रो. देवेश किशोर ने बताया कि इस अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में लगभग 100 से अधिक शोधपत्र तथा 200 से अधिक शोध संक्षेप आ चुके हैं। इस अवसर पर एक स्मरिका का प्रकाशन भी किया जा रहा है जिसमें प्राप्त शोध संक्षेपों का प्रकाशन किया जाएगा। साथ ही प्राप्त शोध पत्रों को विश्वविद्यालय के अन्य प्रकाशन में पुस्तकाकार प्रकाशित किया जाएगा। संगोष्ठी में केन्या, इंडोनेशिया, आस्ट्रेलिया, ओमान, सूडान, ब्रिटेन, नेपाल, अमेरिका, श्रीलंका, मालदीव आदि देशों से इस अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार में जनसंचार विशेषज्ञ हिस्सा ले रहे हैं।

(संजय द्विवेदी) मोबाइलः 9893598888

Wednesday, December 21, 2011

कादम्बिनी क्लब की मासिक गोष्ठी आयोजित

कादम्बिनी क्लब की मासिक गोष्ठी सुसंपन्न





कादम्बिनी क्लब, हैदराबाद के तत्वावधान में 18 दिसंबर को हिन्दी प्रचार सभा परिसर में क्लब की 232 वीं मासिक गोष्ठी का सफल आयोजन किया गया।  क्लब संयोजिका डॉ. अहिल्या मिश्र एवं कार्यकारी संयोजिका मीना मूथा ने अतिथियों का स्वागत किया ।   भगवानदास जोपट ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की ।  देवेन्द्र शर्मा मुख्य अतिथि के रूप में मंचासीन हुए ।
कार्यक्रम का आरंभ ज्योति नारायण द्वारा सुमधुर सरस्वती वंदना प्रस्तुति से हुआ ।  प्रथम सत्र में कर्नाटक महिला हिन्दी सेवा समिति, बेंगलूर द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका 'हिन्दी प्रचार वाणी' पर समीक्षात्मक चर्चा रखी गई ।  डॉ. मदन देवी पोकरणा ने इस पत्रिका पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि नि:संदेह शिल्पगत सौष्ठव भाव प्रवण हिन्दी प्रचार वाणी पत्रिका दक्षिण का गौरव है ।  पत्रिका गागर में सागर की उक्ति को चरितार्थ करती है ।  'निरालाजी एक महाकवि', 'भारतीय साहित्य की अवधारणा', 'भारत स्वतंत्रता के असली हकदार कौन' आदि आलेख निश्चित ही पठनीय है ।  डॉ. विभा वाजपेयी और प्रो. वीणा त्रिवेदी ने क्रमश: भारतेंदु और वृन्दावनलाल वर्मा की रचनाओं में संवेदनात्मक पक्ष, जीवन चेतना, समाज सुधार, राष्ट्र प्रेम, सुगठित कथानक एवं सशक्त चित्रांकन जैसे सशक्त तत्वों से परिपूर्ण होने की बात कही ।  32 पृष्ठ की यह पत्रिका हिन्दी सेवा क्षेत्र में निश्चित स्वागताई है ।  कहीं-कहीं कन्नड़ भाषा का प्रभाव दिखाई देता है । प्रधान सम्पादक सुश्री बी. ए. शांताबाई एवं सम्पादक मंडल का प्रयास प्रशंसनीय है । लक्ष्मीनारायण अग्रवाल ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए अपने वक्तव्य में कहा कि विचार और समाचार दोनों इसमें हैं ।  डॉ. राधा कृष्णमूर्ति का संपादकीय विशेष बन पड़ा है । डॉ. डी.एम. मुल्ला का निरालाजी पर आधृत लेख हिन्दी के विद्यार्थियों के लिए निश्चित ही उपयोगी है ।  श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद भारतीय साहित्य जैसे विस्तृत विषय पर अपनी बात रखने में सफल हुए हैं । सुरजीत सिंह साहनी ने 'भारत स्वतंत्रता के असली हकदार कौन में 1857 के बाद के इतिहास पर प्रकाश डाला है । विनोबा भावे से जुड़ा आलेख भी सुंदर बन पड़ा है । बालकथा 'देखते रहना' पंचतंत्र की कहानियों से मेल खाती है  । कुल मिलाकर प्रत्येक लेख में कुछ न कुछ है, पत्रिका पढ़ने योग्य है  ।

डॉ. देवेन्द्र शर्मा ने विनोबा जी के सन्दर्भ में एक संस्मरण सुनाते हुए कहा कि चाहे संत, नेता, विचारक हो उसका बड़प्पन उसके साथ के लोग बनाते हैं आन्दोलन होते तो हैं, मगर उनके चले जाने के बाद आन्दोलन सफलता के बजाय असफलता की ओर मुड़ने लगता है ।  लोग स्वार्थ साधना के लिए जुड़ जाते हैं, जबकि जमीनी स्तर तक उस विचार को कार्यान्वित करना होता है । 
ज्योति नारायण ने भी इसी संदर्भ में संस्मरण सुनायीं  ।  भगवानदास जोपट ने अध्यक्षीय बात में कहा कि पत्रिकाएँ न होती तो मनुष्य स्वेच्छाचारी होता । शांताबाई दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार प्रसार में कर्मठता से जुड़ी है । केरल ज्योति पत्रिका भी इस प्रयास में जुड़ी है विभिन्न आलेख सारगर्भित, विषयानुकूल तथा पठनीय है ।

तत्पश्चात लक्ष्मीनारायण अग्रवाल के सफल संचालन में काव्य गोष्ठी संपन्न हुई । इसमें कुंजबिहारी गुप्ता, जी. परमेश्वर, मल्लिकार्जुन, भावना पुरोहित, डॉ. सीता मिश्र, डॉ.रमा द्विवेदी, ज्योति नारायण, विनीता शर्मा, मीना मूथा, गुरुदयाल अग्रवाल, संपत देवी मुरारका, सरिता सुराणा जैन, उमा सोनी, एल.रंजना, मुकुंद दास डांगरा, नरहरि दयाल दादू, वी.वरलक्ष्मी, डॉ.देवेन्द्र शर्मा, अजीत गुप्ता, सूरज प्रसाद सोनी, पवित्र अग्रवाल, भँवरलाल उपाध्याय, ने समसामायिक विषयों पर काव्य पाठ किया
डॉ.रमा द्विवेदी ने सदस्यों को उनके जन्मदिवस व विवाह दिन की बधाई दी । 
मीना मूथा के धन्यवाद के साथ गोष्ठी का समापन हुआ । अंत में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित शीर्षस्थ विदुषी रचनाकार इंदिरा गोस्वामी एवं जाने-माने साहित्यकार आलोचक डॉ.कुमार विमल के दू:खद निधन पर क्लब की ओर से मौन रखकर श्रद्धांजली अर्पित की गई


प्रस्तुति - संपत देवी मुरारका, हैदराबाद

UNICODE CONVERTER FOR HINDI, SANSKRIT, MARATHI, NEPALI and Other DEVNAGRI SCRIPTS

UniDev यूनिदेव (Version : 2.2.5.0) - (Unicode {Mangal} to ASCII/ISCII


यूनिदेव (यूनिकोड {मंगल} से विभिन्न अस्की/इस्की फ़ॉन्ट परिवर्तन हेतु उपकरण)  का नवीन संस्करण 2.2.5.0 जारी


नमस्कार.


आपको यह ई-मेल लिखते हुए मुझे अत्यधिक ख़ुशी हो रही है कि आज यूनिदेव का

नवीन वर्जन 2.2.5.0 जारी किया है। अब यह टेक्स्ट-तालिका (Text-Table) के

पाठ को भी पूरी शुद्धता के साथ टेक्स्ट-तालिका के रूप में परिवर्तित करने

में पूर्ण सक्षम है। साथ ही ट्रू टाइप (*.TTF) प्रकार के फ़ॉन्ट जैसे कि

कृतिदेव, चाणक्य, संस्कृत ९९, एस-डी-टीटीसुरेख एवम् टाइप-१

(*.PFB/*.PFM) प्रकार के फ़ॉन्ट जैसे कि चाणक्य, वाक-मैन चाणक्य, शिवा

आदि में परिवर्तित आउट-पुट पाठ भी पूरी शुद्धता के साथ देवनागरी एवं रोमन

युक्त पाठ में अन्तर रखते हुए एक ही पृष्ठ पर पठ्नीय रूप में प्राप्त कर

सकते हैं। छपाई का कार्य अधिकांशतः (एडोब टाइप फ़ॉन्ट) टाइप-१ फ़ॉन्ट में

ही होता है तो यूनिदेव छपाई के कार्य के लिए बहुत ही उपयोगी है। विभागीय

कार्य भी अधिकांशतः तालिका के रूप में होता है तो अब यह नवीन वर्जन

विभागीय उपयोग के लिए भी बहुत ही काम का रहेगा। इस नवीन वर्जन (DEMO

VERSION) को आप दी जा रही लिंक से डाउनलोड कर सकते हैं। कृपया इस नवीन

सॉफ़्टवेयर के बारे में अपने स्तर से अन्य मित्रों को फ़ॉरवर्ड कर

जानकारी देने की कृपा करें।



यूनिदेव : (यूनिकोड {मंगल} से विभिन्न अस्की/इस्की फ़ॉन्ट परिवर्तन हेतु

उपकरण):- यह विंडोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम आधारित सॉफ़्ट्वेयर है। इसे ऑफ़लाइन

उपयोग करने की दृष्टि से तैयार किया गया है। इस सॉफ़्ट्वेयर के माध्यम से

देवनागरी यूनिकोड (मंगल 16 बिट कोड) फ़ॉन्ट आधारित पाठ्य सामग्री को

प्रचलित विभिन्न ट्रू टाइप एवम् टाइप-१ अस्की/इस्की (8 बिट कोड) फ़ॉन्ट

जैसे कि कृतिदेव, चाणक्य, संस्कृत ९९, एस-डी-टीटीसुरेख, शिवा, वॉकमैन

चाणक्य आदि फ़ॉन्ट में पूरी शुद्धता के साथ परिवर्तित किया जा सकता है।

मानाकि आज यूनिकोड का चलन है लेकिन अभी भी कई सॉफ़्ट्वेयर ऐसे हैं जोकि

यूनिकोड का समर्थन (सपोर्ट) नहीं करते जिनमें कोरेल ड्रॉ, फोटोशॉप,

पेजमेकर, क्वार्क एक्सप्रेस प्रमुख हैं। प्रिटिंग में अभी भी पुराने

फॉन्टों का ही प्रयोग हो रहा है, इसलिए भी हम अभी तक इन फॉन्टों को छोड़

नहीं पाये हैं। उक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए ही यूनिदेव को विकसित

किया गया है। इससे हम यूनिकोड (मंगल) फ़ॉन्ट आधारित देवनागरी (हिन्दी,

मराठी, संस्कृत, नेपाली आदि) लिपि को शत-प्रतिशत (100%) शुद्धता के साथ

विभिन्न ट्रू टाइप एवम् टाइप-१ अस्की/इस्की (8 बिट कोड) फ़ॉन्ट जैसे कि

कृतिदेव, चाणक्य, संस्कृत ९९, एस-डी-टीटीसुरेख, शिवा, वॉकमैन चाणक्य आदि

फ़ॉन्ट में बदल सकते हैं।



UniDev यूनिदेव (Version : 2.2.5.0) - (Unicode {Mangal} to ASCII/ISCII

{Kruti Dev 020} Font Converter for Devanagari Script) is a latest new

UNICODE CONVERTER FOR HINDI, SANSKRIT, MARATHI, NEPALI and Other

DEVNAGRI SCRIPTS. It can easily convert Mangal Unicode font to Kruti

Dev 020 with 100% accuracy and saves your precious time. UniDev is

useful for DTP Operators and Printers because loads of DTP software

like PageMaker/Illustrator, Photoshop still does not support Hindi

Unicode



http://www.4shared.com/zip/qs8-bXyl/DangiSoftUniDev.html



धन्यवाद!

सादर

इंजी॰ जगदीप दाँगी

Profile: http://www.iiitm.ac.in/?q=users/dangijs

http://www.youtube.com/watch?v=aBLnEwg7UEo&feature=mfu_in_order&list=UL

Tuesday, December 20, 2011

माखनलाल विश्वविद्यालय में मीडिया में विभिन्नताएं विषय पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी

माखनलाल विश्वविद्यालय में मीडिया में विभिन्नताएं विषय पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी



भोपाल,20 दिसंबर,2011। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल द्वारा मीडिया में विविधता एवं अनेकताः समाज का प्रतिबिंब विषय पर एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 27 एवं 28 दिसंबर,2011 को किया गया है। यह दो दिवसीय आयोजन भोपाल के शाहपुरा स्थित प्रशासन अकादमी के सभागार में होगा। कार्यक्रम का उद्घाटन 27 दिसंबर को प्रदेश के राज्यपाल महामहिम रामनरेश यादव करेंगें। इस सत्र के मुख्यवक्ता प्रख्यात पत्रकार एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री अरूण शौरी होंगें। देश में पहली बार इस महत्वपूर्ण विषय पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हो रहा है। भारत की विशेषता ही है अनेकता में एकता। इस दृष्टि से देश एवं विदेश के मीडियाकर्मियों ने इस विषय में गहरी रूचि दिखाई है। इस संगोष्ठी में देश और दुनिया के जाने माने दार्शनिक, समाजशास्त्री, मीडिया विशेषज्ञ, पत्रकार, मीडिया प्राध्यापक एवं मीडिया शोधार्थी हिस्सा ले रहे हैं। यह जानकारी देते हुए कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने बताया भारतीय समाज की विविधताओं और अनेकताओं को हमारा मीडिया कितना अभिव्यक्त कर पा रहा है, यह सेमिनार की चर्चा का केंद्रीय विषय है। इस दो दिवसीय संगोष्ठी में समाज जीवन के अनेक क्षेत्रों पर मीडिया की वास्तविक प्रस्तुति पर चर्चा होगी। अगर मीडिया में इनका वास्तविक प्रतिबिंब नहीं है तो उसे ठीक करने के उपायों पर भी सुझाव दिए जाएंगें। उन्होंने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दुनिया के सभी देशों में विविधताओं और अनेकताओं को लेकर बहस चल रही है, दुनिया के सारे देश इससे उत्पन्न चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। भारत के सामने इससे जुड़ी हुयी चुनौतियां तुलनात्मक रूप से अधिक हैं। अनेक भाषाओं, पंथों, जातियों, संस्कृतियों का देश होने के बावजूद भारत ने राष्ट्रीय एकता और सहजीवन की अनोखी मिसाल पेश की है। ऐसे में भारत आज दुनिया के तमाम देशों के लिए शोध का विषय है। किंतु इस पूरी विविधता का हमारा मीडिया कैसा अक्स या प्रतिबिंब प्रस्तुत कर रहा है, यह एक विचार का मुद्दा है। प्रो. कुठियाला ने कहा कि मीडिया पूरे समाज में परस्पर संवाद बनाने की क्षमता रखता है और विभिन्न सामाजिक विषयों को भी प्रस्तुत करने का दायित्व लिए है, ऐसे में उसकी जिम्मेदारियां किसी भी क्षेत्र से ज्यादा और प्रभावी हो जाती हैं।

विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा. चंदर सोनाने ने बताया कि इस अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में लगभग 100 से अधिक शोधपत्र तथा 200 से अधिक शोध संक्षेप आ चुके हैं। इन शोध पत्रों को विश्वविद्यालय के प्रकाशन में प्रकाशित किया जाएगा। केन्या, इंडोनेशिया, आस्ट्रेलिया, ओमान, सूडान, ब्रिटेन, नेपाल, अमेरिका, श्रीलंका, मालदीव आदि देशों से इस अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार में जनसंचार विशेषज्ञ हिस्सा लेंगें ।

संगोष्ठी के समन्वयक प्रो. अमिताभ भटनागर ने जानकारी दी कि इंटरनेशनल पब्लिक रिलेशन एसोशिएसन, ब्रिटेन के अध्यक्ष रिचर्ड लिनिंग विशेष रूप से इस संगोष्ठी को संबोधित करेंगें। श्री लिंनिंग की बिजनेस पार्टनर श्रीमती जैक्लीन भी इस अवसर मौजूद रहेंगीं।
 
(संजय द्विवेदी) मोबाइलः 9893598888

Saturday, December 17, 2011

आकांक्षा यादव को ‘’डॉ. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011


भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा आकांक्षा यादव को ‘’डॉ. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011‘‘




भारतीय दलित साहित्य अकादमी ने युवा कवयित्री, साहित्यकार एवं चर्चिर ब्लागर आकांक्षा यादव को ‘’’डॉ. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011‘‘ से सम्मानित किया है। आकांक्षा यादव को यह सम्मान साहित्य सेवा एवं सामाजिक कार्यों में रचनात्मक योगदान के लिए प्रदान किया गया है। उक्त सम्मान भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा 11-12 दिसंबर को दिल्ली में आयोजित 27 वें राष्ट्रीय दलित साहित्यकार सम्मलेन में केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला द्वारा प्रदान किया गया.



गौरतलब है कि आकांक्षा यादव की रचनाएँ देश-विदेश की शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं. नारी विमर्श, बाल विमर्श एवं सामाजिक सरोकारों सम्बन्धी विमर्श में विशेष रूचि रखने वाली आकांक्षा यादव के लेख, कवितायेँ और लघुकथाएं जहाँ तमाम संकलनो / पुस्तकों की शोभा बढ़ा रहे हैं, वहीँ आपकी तमाम रचनाएँ आकाशवाणी से भी तरंगित हुई हैं. पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ अंतर्जाल पर भी सक्रिय आकांक्षा यादव की रचनाएँ इंटरनेट पर तमाम वेब/ई-पत्रिकाओं और ब्लॉगों पर भी पढ़ी-देखी जा सकती हैं. व्यक्तिगत रूप से ‘शब्द-शिखर’ और युगल रूप में ‘बाल-दुनिया’ , ‘सप्तरंगी प्रेम’ व ‘उत्सव के रंग’ ब्लॉग का संचालन करने वाली आकांक्षा यादव न सिर्फ एक साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं, बल्कि सक्रिय ब्लागर के रूप में भी उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है. 'क्रांति-यज्ञ: 1857-1947 की गाथा‘ पुस्तक का कृष्ण कुमार यादव के साथ संपादन करने वाली आकांक्षा यादव के व्यक्तित्व-कृतित्व पर वरिष्ठ बाल साहित्यकार डा0 राष्ट्रबन्धु जी ने ‘‘बाल साहित्य समीक्षा‘‘ पत्रिका का एक अंक भी विशेषांक रुप में प्रकाशित किया है।



मूलत: उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और गाजीपुर जनपद की निवासी आकांक्षा यादव वर्तमान में अपने पतिदेव श्री कृष्ण कुमार यादव के साथ अंडमान-निकोबार में रह रही हैं और वहां रहकर भी हिंदी को समृद्ध कर रही हैं. श्री यादव भी हिंदी की युवा पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं और सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर पदस्थ हैं. एक रचनाकार के रूप में बात करें तो सुश्री आकांक्षा यादव ने बहुत ही खुले नजरिये से संवेदना के मानवीय धरातल पर जाकर अपनी रचनाओं का विस्तार किया है। बिना लाग लपेट के सुलभ भाव भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें यही आपकी लेखनी की शक्ति है। उनकी रचनाओं में जहाँ जीवंतता है, वहीं उसे सामाजिक संस्कार भी दिया है।



इससे पूर्व भी आकांक्षा यादव को विभिन्न साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। जिसमें भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’भारती ज्योति’, ‘‘एस0एम0एस0‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था, बिजनौर द्वारा ‘‘साहित्य गौरव‘‘ व ‘‘काव्य मर्मज्ञ‘‘, श्री मुकुन्द मुरारी स्मृति साहित्यमाला, कानपुर द्वारा ‘‘साहित्य श्री सम्मान‘‘, मथुरा की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘‘आसरा‘‘ द्वारा ‘‘ब्रज-शिरोमणि‘‘ सम्मान, मध्यप्रदेश नवलेखन संघ द्वारा ‘‘साहित्य मनीषी सम्मान‘‘ व ‘‘भाषा भारती रत्न‘‘, छत्तीसगढ़ शिक्षक-साहित्यकार मंच द्वारा ‘‘साहित्य सेवा सम्मान‘‘, देवभूमि साहित्यकार मंच, पिथौरागढ़ द्वारा ‘‘देवभूमि साहित्य रत्न‘‘, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना द्वारा ‘‘उजास सम्मान‘‘, ऋचा रचनाकार परिषद, कटनी द्वारा ‘‘भारत गौरव‘‘, अभिव्यंजना संस्था, कानपुर द्वारा ‘‘काव्य-कुमुद‘‘, ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा ‘‘शब्द माधुरी‘‘, महिमा प्रकाशन, दुर्ग-छत्तीसगढ द्वारा ’महिमा साहित्य भूषण सम्मान’ , अन्तर्राष्ट्रीय पराविद्या शोध संस्था, ठाणे, महाराष्ट्र द्वारा ‘‘सरस्वती रत्न‘‘, अन्तज्र्योति सेवा संस्थान गोला-गोकर्णनाथ, खीरी द्वारा श्रेष्ठ कवयित्री की मानद उपाधि. जीवी प्रकाशन, जालंधर द्वारा 'राष्ट्रीय भाषा रत्न' इत्यादि शामिल हैं.


दुर्गविजय सिंह 'दीप'

उपनिदेशक- आकाशवाणी (समाचार)

पोर्टब्लेयर, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह.

कविता - माँ


माँ









- ज्योति शेट्टी, मंगलूर

माँ तू क्यों है इतनी प्यारी

जग में सबसे न्यारी न्यारी

दया ममता की राजदुलारी

हर सुख सुविधाओं के लिए तू खुद बलिहारी

माँ तू क्यों है इतनी प्यारी !





तेरी छत्रछाया में पली हूँ मैं

तेरी आँचल के साये में बड़ी हूँ मैं

तेरी कृपा से आज खडी हूँ मैं

तेरे आशीर्वाद से आगे बढ़ रही हूँ मैं

माँ तू क्यों है इतनी प्यारी !



हर मुश्किल में, हंसकर लड़ना सिखाया

नेक इनसान बनकर, जीना सिखाया

स्वाभिमान के राह पर चलना सिखाया

स्वच्छ सरल जीवन की राह दिखाया

चुका नहीं सकते हम तेरे उपकार

ममता की पवित्र मूरत है तू

माँ तू क्यों है इतनी प्यारी !



भगवान का वरदान हो तुम

तुम होतो इस जग में जीवन में

बस ! मेरे लिए सब कुछ हो तुम

तुमने जो कुछ किया कुर्बान

मैं सदा तेरे मेहरबान



माँ तू क्यों है इतनी प्यारी !



ये किताबें पुस्‍तकालयों, वाचनालयों, जरूरतमंद विद्यार्थियों, घनघोर पाठकों और पुस्‍तक प्रेमियों तक पहुंचें

मित्रो


मैंने मन बना लिया है कि अपने जीवन की सबसे बड़ी, अमूल्‍य और प्रिय पूंजी अपनी किताबों को अपने घर से विदा कर दूं। वे जहां भी जायें, नये पाठकों के बीच प्‍यार का, ज्ञान का और अनुभव का खजाना उसी तरह से खुले हाथों बांटती चलें जिस तरह से वे मुझे और मेरे बच्‍चों को बरसों से समृद्ध करती रही हैं। उन किताबों ने मेरे घर पर अपना काम पूरा कर लिया है बेशक ये कचोट रहेगी कि दोबारा मन होने पर उन्‍हें नहीं पढ़ पाऊंगा लेकिन ये तसल्‍ली भी है कि उनकी जगह पर नयी किताबों का भी नम्‍बर आ पायेगा जो पढ़े जाने की कब से राह तक रही हैं।

लाखों रुपये की कीमत दे कर कहां कहां से जुटायी, लायी, मंगायी और एकाध बार चुरायी गयी मेरी लगभग 4000 किताबों में से हरेक के साथ अलग कहानी जुड़ी हुई है। अब सब मेरी स्‍मृतियों का हिस्‍सा बन जायेंगी। कहानी, उपन्‍यास, जीवनियां, आत्‍मकथाएं, बच्‍चों की किताबें, अमूल्‍य शब्‍दकोष, एनसाइक्‍लोपीडिया, भेंट में मिली किताबें, यूं ही आ गयी किताबें, ‍रेफरेंस बुक्‍स सब कुछ तो है इनमें।

ये किताबें पुस्‍तकालयों, वाचनालयों, जरूरतमंद विद्यार्थियों, घनघोर पाठकों और पुस्‍तक प्रेमियों तक पहुंचें, ऐसी मेरी कामना है।

24 और 25 दिसम्‍बर 2011 को दिन में मुंबई और आस पास के मित्र मेरे घर एच 1/101 रिद्धि गार्डन, फिल्‍म सिटी रोड, मालाड पूर्व आ कर अपनी पसंद की किताबें चुन सकते हैं। बाहर के पुस्‍तकालयों, वाचनालयों, जरूरतमंद विद्यार्थियों, घनघोर पाठकों और पुस्‍तक प्रेमियों को किताबें मंगाने की व्‍यवस्‍था खुद करनी होगी या डाक खर्च वहन करना होगा।

मेरे प्रिय कथाकार रवीन्‍द्र कालिया जी ने एक बार कहा था कि अच्‍छी किताबें पतुरिया की तरह होती है जो अपने घर का रास्‍ता भूल जाती हैं और एक पाठक से दूसरे पाठक के घर भटकती फिरती हैं और खराब किताबें आपके घर के कोने में सजी संवरी अपने पहले पाठक के इंतजार में ही दम तोड़ देती हैं।

कामना है कि मेरी किताबें पतुरिया की तरह खूब लम्‍बा जीवन और खूब सारे पाठक पायें।

आमीन

सूरज


mail@surajprakash.com

भारतीय भाषाओं में महिला लेखन विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी
पांडिच्चेरी में 2-3 दिसंबर, 2011 को संपन्न राष्ट्रीय संगोष्ठी के चित्र देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए ।

http://yugmanas.blogspot.com/2011/12/blog-post.html

Friday, December 2, 2011

भारतीय भाषाओं में महिला लेखन विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय, पुदुच्चेरी में दि.2 दिसंबर 2011 को भारतीय भाषाओं में महिला लेखन विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन एवं सत्रों के दृश्य










अधिक चित्रों के लिए कृपया यहाँ क्लिक कीजिए

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भारतीय भाषाओं में महिला लेखन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

महामहिम उप राज्यपाल डॉ. इकबाल सिंह ने किया साहित्यकारों का सम्मान



दि.2-3 दिसंबर, 2011 को हिंदी विभाग, पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के सौजन्य से तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी, चेन्नै तथा तमिलनाडु बहु-भाषी हिंदी लेखिका संघ द्वारा हिंदी तथा भारतीय भाषाओं में महिला लेखन विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय, पुदुच्चेरी में सुसंपन्न हुआ । संगोष्ठी का उद्घाटन पांडिच्चेरी के उप राज्यपाल महामहिम डॉ. इकबाल सिंह जी ने किया । तदवसर पर पूर्व सांसद (राज्य सभा) डॉ. रत्नाकर पांडेय, पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के निदेशक (शिक्षण, शैक्षिक नवोत्तान ग्रामीण पुनःनिर्माण) एवं प्रति उपकुलपति प्रो. रामदास (पूर्व सांसद), संसदीय राजभाषा समिति के पूर्व सचिव कृष्ण कुमार ग्रोवर, केंद्रीय हिंदी निदेशालय के उप निदेशक डॉ. प्रदीप शर्मा, सुख्यात साहित्यकार डॉ. गंगाप्रसाद विमल, डॉ. सूर्यबाल, सुधा अरोडा, आचार्य ललितांबा, गीताश्री, और देश के कोने-कोने से पधारे विभिन्न भाषाओं के साहित्यकार, तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी की महासचिव डॉ. मधुधवन, उपाध्यक्ष रमेश गुप्त नीरद, हिंदी विभाग के आचार्यगण प्रो. विजय लक्ष्मी, डॉ. पद्मप्रिया, प्रमोद मीणा, डॉ. सी. जय शंकर बाबु उपस्थित थे ।

महामहिम उप राज्यपाल ने अपने उद्घाटन भाषण में नारी लेखन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए साहित्य लेखन से जुड़े तमाम महिला लेखिकाओं को बधाई दी । उन्होंने कहा कि पांडिच्चेरी जैसी आध्यात्मिक भूमि में ऐसे राष्ट्रीय महत्व के कार्यक्रम एक ऐतिहासिक उपलब्धि है । पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय, देश की श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में एक है जहाँ महिला अध्यापाकों का अनुपात देश के अन्य विश्वविद्यालयों की तुलना में सर्वाधिक है, ऐसे विश्वविद्यालय में महिला लेखन पर ऐसी संगोष्ठी का आयोजन बड़ा प्रासंगिक है । उप राज्यपाल ने देश के विभिन्न प्रदेशों से पधारे साहित्यकारों, साहित्य सेवियों का सम्मान किया और कई कृतियों का विमोचन किया जिसमें प्रमुख कृतियां हैं – आधनिक नारी लेखन और समकालीन समाज (सं. डॉ. मधुधवन), कर्म और कलम के उपासक गुलाबचंद कोटडिया, साइबर माँ (राजस्थानी अनुवाद), औरत की बोली (गीताश्री), वल्लुवर-वेमना कबीर और ओप्पय्यु आदि ।

विश्वविद्यालय के प्रति उपकुलपति प्रो. रामदास ने अपने स्वगत वचनों में देश के विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों का इस संगोष्ठी में बड़ी संख्या में पधारना विश्वविद्यालय के लिए विशिष्ट गौरव की बात है । महिला लेखन के महत्व के संबंध में अपने विचार प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि महिला लेखन की आज बड़ी प्रासंगिता है, मगर महिलाओं को स्त्री-समस्याओं तक अपनी लेखनी को सीमित न करके तमाम सामाजिक समस्याओं की ओर ध्यान देने से सामाजिक सुधार और विकास में उनकी भूमिका अपने आप सुनिश्चित हो जाएगी ।

विशिष्ट अतिथि पूर्व सांसद (राज्य सभा) डॉ. रत्नाकर पांडेय ने कहा कि नारी और पुरुष में भेद नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि ये समाज रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं । इन्हें अलग-अलग देखना शोषण ही है । इन दोनों के बीच के संबंधों में समरसता की जरूरत है । ऐसी समरसता के पोषण में नारी लेखन अपनी भूमिका निभाए । नारी माँ, बहिन, बेटी आदि कई रूपों में समाज में कई भूमिकाएँ निभाते हुए अपनी जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा के साथ पालन करती है, वैसे नारी लेखन में नारी एवं पुरुष का भेदभाव न करते हुए समूचे समाज के हित को ध्यान में रखने पर नारी लेखन बड़ा प्रासंगिक हो पाएगा ।

उद्घाटन सत्र में अतिथियों का स्वागत करते हुए तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी की महासचिव डॉ. मधुधवन ने कहा सुदूर दक्षिण में हिंदी के कई मौन साधक हैं, ऐसी राष्ट्रीय संगोष्ठी के माध्यम से उत्तर और दक्षिण के साहित्यकार, साहित्यसेवी, हिंदी सेवी एक मंच पर आकर एक दूसरे की सेवाओं से परिचित हो सकते हैं । उन्होंने कहा कि आज साहित्य में नारी लेखन का काफी प्रगति है, नारी लेखन से साहित्य को विशिष्ट दिशा मिल रही है । ऐसी संगोष्ठियों के माध्यम से नारी लेखन के विभिन्न आयाम जैसे भाषा, विषयवस्तु और अन्य मुद्दों पर खुलकर चर्चा हो सकती है । कई पीढ़ियों से हमारे यहाँ वाङ्मय का सृजन होता रहा है, श्रेष्ठ विचारों के संवहन में नारी लेखन का विशिष्ट महत्व है ।
दो दिवसीय इस संगोष्ठी में नारी लेखन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर विभिन्न सत्रों में परिचर्चाएँ आयोजित हुई थीं ।  रचनाकारों ने अपनी मौलिक रचनाएँ भी प्रस्तुत कीं ।  सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत डॉ. विभारानी द्वारा प्रस्तुत नाटक, डॉ. श्रावणी पांडा द्वारा प्रस्तुत रवींद्रनृत्य और श्रीमती मंजुरुस्तुकी द्वारा प्रस्तुत महादवी गीत पर आधारित नृत्य का प्रेक्षकों ने खूब प्रशंसा की ।  श्री वी.वी. सत्यमूर्ति एवं उनके सहयोगियों द्वारा प्रस्तुत कर्नाटक संगीत कार्यक्रम की भी खूब प्रशंसा हुई ।

इस संगोष्ठी में देश के विभिन्न भाषाओं एक सौ बीस साहित्यकार उपस्थित हुए । इन सबका पुदुच्चेरी के उप राज्यपाल के करकमलों से सम्मान का आयोजन किया गया । संगोष्ठी में शामिल होने वाले प्रमुख साहित्यकारों, आचार्यों में डॉ. सूर्यबाला, सुधा अरोड़ा, गीताश्री, डॉ. बिंदु भट, प्रो. दुर्गेश नंदिनी, प्रो. सैयद मेहरुन, प्रो. देवराज, संपत देवी मुरारका, विभारानी, स्वर्णज्योति, मंजुरुस्तगी, डॉ. बशीर, डॉ. पी.आर. वासुदेवन, नीर शबनम, अनिल अवस्थी, ईश्वचंद्र झा, लक्ष्मी अय्यर, डॉ. के. वत्सला, डॉ. पार्वती, आभा सिन्हा, मुकेश मिश्र, नीलप्रभा भारद्वाज, सुनीता, श्रावणी पांडा, दीप्ति कुलश्रेष्ठ, डॉ. पी.के. बाल सुब्रमणियम, डॉ. शेषन, डॉ. सुंदरम, शैरिराजन, कुलजीत कौर, कल्याणी, प्रमुख प्रकाशक बालकृष्ण तनेजा, महेश भारद्वाज आदि उपस्थित थे ।

संगोष्ठी का आयोजन डॉ.मधु धवन के नेतृत्व में हुआ संगोष्ठी का संयोजन पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ. सी. जय शंकर बाबु ने किया ।