Friday, December 2, 2011

भारतीय भाषाओं में महिला लेखन विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय, पुदुच्चेरी में दि.2 दिसंबर 2011 को भारतीय भाषाओं में महिला लेखन विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन एवं सत्रों के दृश्य










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भारतीय भाषाओं में महिला लेखन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

महामहिम उप राज्यपाल डॉ. इकबाल सिंह ने किया साहित्यकारों का सम्मान



दि.2-3 दिसंबर, 2011 को हिंदी विभाग, पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के सौजन्य से तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी, चेन्नै तथा तमिलनाडु बहु-भाषी हिंदी लेखिका संघ द्वारा हिंदी तथा भारतीय भाषाओं में महिला लेखन विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय, पुदुच्चेरी में सुसंपन्न हुआ । संगोष्ठी का उद्घाटन पांडिच्चेरी के उप राज्यपाल महामहिम डॉ. इकबाल सिंह जी ने किया । तदवसर पर पूर्व सांसद (राज्य सभा) डॉ. रत्नाकर पांडेय, पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के निदेशक (शिक्षण, शैक्षिक नवोत्तान ग्रामीण पुनःनिर्माण) एवं प्रति उपकुलपति प्रो. रामदास (पूर्व सांसद), संसदीय राजभाषा समिति के पूर्व सचिव कृष्ण कुमार ग्रोवर, केंद्रीय हिंदी निदेशालय के उप निदेशक डॉ. प्रदीप शर्मा, सुख्यात साहित्यकार डॉ. गंगाप्रसाद विमल, डॉ. सूर्यबाल, सुधा अरोडा, आचार्य ललितांबा, गीताश्री, और देश के कोने-कोने से पधारे विभिन्न भाषाओं के साहित्यकार, तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी की महासचिव डॉ. मधुधवन, उपाध्यक्ष रमेश गुप्त नीरद, हिंदी विभाग के आचार्यगण प्रो. विजय लक्ष्मी, डॉ. पद्मप्रिया, प्रमोद मीणा, डॉ. सी. जय शंकर बाबु उपस्थित थे ।

महामहिम उप राज्यपाल ने अपने उद्घाटन भाषण में नारी लेखन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए साहित्य लेखन से जुड़े तमाम महिला लेखिकाओं को बधाई दी । उन्होंने कहा कि पांडिच्चेरी जैसी आध्यात्मिक भूमि में ऐसे राष्ट्रीय महत्व के कार्यक्रम एक ऐतिहासिक उपलब्धि है । पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय, देश की श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में एक है जहाँ महिला अध्यापाकों का अनुपात देश के अन्य विश्वविद्यालयों की तुलना में सर्वाधिक है, ऐसे विश्वविद्यालय में महिला लेखन पर ऐसी संगोष्ठी का आयोजन बड़ा प्रासंगिक है । उप राज्यपाल ने देश के विभिन्न प्रदेशों से पधारे साहित्यकारों, साहित्य सेवियों का सम्मान किया और कई कृतियों का विमोचन किया जिसमें प्रमुख कृतियां हैं – आधनिक नारी लेखन और समकालीन समाज (सं. डॉ. मधुधवन), कर्म और कलम के उपासक गुलाबचंद कोटडिया, साइबर माँ (राजस्थानी अनुवाद), औरत की बोली (गीताश्री), वल्लुवर-वेमना कबीर और ओप्पय्यु आदि ।

विश्वविद्यालय के प्रति उपकुलपति प्रो. रामदास ने अपने स्वगत वचनों में देश के विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों का इस संगोष्ठी में बड़ी संख्या में पधारना विश्वविद्यालय के लिए विशिष्ट गौरव की बात है । महिला लेखन के महत्व के संबंध में अपने विचार प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि महिला लेखन की आज बड़ी प्रासंगिता है, मगर महिलाओं को स्त्री-समस्याओं तक अपनी लेखनी को सीमित न करके तमाम सामाजिक समस्याओं की ओर ध्यान देने से सामाजिक सुधार और विकास में उनकी भूमिका अपने आप सुनिश्चित हो जाएगी ।

विशिष्ट अतिथि पूर्व सांसद (राज्य सभा) डॉ. रत्नाकर पांडेय ने कहा कि नारी और पुरुष में भेद नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि ये समाज रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं । इन्हें अलग-अलग देखना शोषण ही है । इन दोनों के बीच के संबंधों में समरसता की जरूरत है । ऐसी समरसता के पोषण में नारी लेखन अपनी भूमिका निभाए । नारी माँ, बहिन, बेटी आदि कई रूपों में समाज में कई भूमिकाएँ निभाते हुए अपनी जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा के साथ पालन करती है, वैसे नारी लेखन में नारी एवं पुरुष का भेदभाव न करते हुए समूचे समाज के हित को ध्यान में रखने पर नारी लेखन बड़ा प्रासंगिक हो पाएगा ।

उद्घाटन सत्र में अतिथियों का स्वागत करते हुए तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी की महासचिव डॉ. मधुधवन ने कहा सुदूर दक्षिण में हिंदी के कई मौन साधक हैं, ऐसी राष्ट्रीय संगोष्ठी के माध्यम से उत्तर और दक्षिण के साहित्यकार, साहित्यसेवी, हिंदी सेवी एक मंच पर आकर एक दूसरे की सेवाओं से परिचित हो सकते हैं । उन्होंने कहा कि आज साहित्य में नारी लेखन का काफी प्रगति है, नारी लेखन से साहित्य को विशिष्ट दिशा मिल रही है । ऐसी संगोष्ठियों के माध्यम से नारी लेखन के विभिन्न आयाम जैसे भाषा, विषयवस्तु और अन्य मुद्दों पर खुलकर चर्चा हो सकती है । कई पीढ़ियों से हमारे यहाँ वाङ्मय का सृजन होता रहा है, श्रेष्ठ विचारों के संवहन में नारी लेखन का विशिष्ट महत्व है ।
दो दिवसीय इस संगोष्ठी में नारी लेखन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर विभिन्न सत्रों में परिचर्चाएँ आयोजित हुई थीं ।  रचनाकारों ने अपनी मौलिक रचनाएँ भी प्रस्तुत कीं ।  सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत डॉ. विभारानी द्वारा प्रस्तुत नाटक, डॉ. श्रावणी पांडा द्वारा प्रस्तुत रवींद्रनृत्य और श्रीमती मंजुरुस्तुकी द्वारा प्रस्तुत महादवी गीत पर आधारित नृत्य का प्रेक्षकों ने खूब प्रशंसा की ।  श्री वी.वी. सत्यमूर्ति एवं उनके सहयोगियों द्वारा प्रस्तुत कर्नाटक संगीत कार्यक्रम की भी खूब प्रशंसा हुई ।

इस संगोष्ठी में देश के विभिन्न भाषाओं एक सौ बीस साहित्यकार उपस्थित हुए । इन सबका पुदुच्चेरी के उप राज्यपाल के करकमलों से सम्मान का आयोजन किया गया । संगोष्ठी में शामिल होने वाले प्रमुख साहित्यकारों, आचार्यों में डॉ. सूर्यबाला, सुधा अरोड़ा, गीताश्री, डॉ. बिंदु भट, प्रो. दुर्गेश नंदिनी, प्रो. सैयद मेहरुन, प्रो. देवराज, संपत देवी मुरारका, विभारानी, स्वर्णज्योति, मंजुरुस्तगी, डॉ. बशीर, डॉ. पी.आर. वासुदेवन, नीर शबनम, अनिल अवस्थी, ईश्वचंद्र झा, लक्ष्मी अय्यर, डॉ. के. वत्सला, डॉ. पार्वती, आभा सिन्हा, मुकेश मिश्र, नीलप्रभा भारद्वाज, सुनीता, श्रावणी पांडा, दीप्ति कुलश्रेष्ठ, डॉ. पी.के. बाल सुब्रमणियम, डॉ. शेषन, डॉ. सुंदरम, शैरिराजन, कुलजीत कौर, कल्याणी, प्रमुख प्रकाशक बालकृष्ण तनेजा, महेश भारद्वाज आदि उपस्थित थे ।

संगोष्ठी का आयोजन डॉ.मधु धवन के नेतृत्व में हुआ संगोष्ठी का संयोजन पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ. सी. जय शंकर बाबु ने किया ।







4 comments:

dr s. basheer said...

ayojan bemisaal aur yaadgaar rahaa

aayojakoko subh kaamanaaye Dr Madhudhawanjee ke nirdesan mey puduchery ke itihaas mey meel pathar saabith huvaahai sabheeaayojako ko subh kaamanaaye

Prabodh Kumar Govil said...

mahatvpoorn jankari.

dr s. basheer said...

rangeen
tasweero kee maalaa bemisaal hai


seminaar ko chaar chand lagaaye sampaadak mahoday ko mubaarak baad

dr s. basheer said...

rangeen
tasweero kee maalaa bemisaal hai


seminaar ko chaar chand lagaaye sampaadak mahoday ko mubaarak baad