कादम्बिनी क्लब की मासिक गोष्ठी सुसंपन्न
कादम्बिनी क्लब, हैदराबाद के तत्वावधान में 18 दिसंबर को हिन्दी प्रचार सभा परिसर में क्लब की 232 वीं मासिक गोष्ठी का सफल आयोजन किया गया। क्लब संयोजिका डॉ. अहिल्या मिश्र एवं कार्यकारी संयोजिका मीना मूथा ने अतिथियों का स्वागत किया । भगवानदास जोपट ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की । देवेन्द्र शर्मा मुख्य अतिथि के रूप में मंचासीन हुए ।
कार्यक्रम का आरंभ ज्योति नारायण द्वारा सुमधुर सरस्वती वंदना प्रस्तुति से हुआ । प्रथम सत्र में कर्नाटक महिला हिन्दी सेवा समिति, बेंगलूर द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका 'हिन्दी प्रचार वाणी' पर समीक्षात्मक चर्चा रखी गई । डॉ. मदन देवी पोकरणा ने इस पत्रिका पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि नि:संदेह शिल्पगत सौष्ठव भाव प्रवण हिन्दी प्रचार वाणी पत्रिका दक्षिण का गौरव है । पत्रिका गागर में सागर की उक्ति को चरितार्थ करती है । 'निरालाजी एक महाकवि', 'भारतीय साहित्य की अवधारणा', 'भारत स्वतंत्रता के असली हकदार कौन' आदि आलेख निश्चित ही पठनीय है । डॉ. विभा वाजपेयी और प्रो. वीणा त्रिवेदी ने क्रमश: भारतेंदु और वृन्दावनलाल वर्मा की रचनाओं में संवेदनात्मक पक्ष, जीवन चेतना, समाज सुधार, राष्ट्र प्रेम, सुगठित कथानक एवं सशक्त चित्रांकन जैसे सशक्त तत्वों से परिपूर्ण होने की बात कही । 32 पृष्ठ की यह पत्रिका हिन्दी सेवा क्षेत्र में निश्चित स्वागताई है । कहीं-कहीं कन्नड़ भाषा का प्रभाव दिखाई देता है । प्रधान सम्पादक सुश्री बी. ए. शांताबाई एवं सम्पादक मंडल का प्रयास प्रशंसनीय है । लक्ष्मीनारायण अग्रवाल ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए अपने वक्तव्य में कहा कि विचार और समाचार दोनों इसमें हैं । डॉ. राधा कृष्णमूर्ति का संपादकीय विशेष बन पड़ा है । डॉ. डी.एम. मुल्ला का निरालाजी पर आधृत लेख हिन्दी के विद्यार्थियों के लिए निश्चित ही उपयोगी है । श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद भारतीय साहित्य जैसे विस्तृत विषय पर अपनी बात रखने में सफल हुए हैं । सुरजीत सिंह साहनी ने 'भारत स्वतंत्रता के असली हकदार कौन में 1857 के बाद के इतिहास पर प्रकाश डाला है । विनोबा भावे से जुड़ा आलेख भी सुंदर बन पड़ा है । बालकथा 'देखते रहना' पंचतंत्र की कहानियों से मेल खाती है । कुल मिलाकर प्रत्येक लेख में कुछ न कुछ है, पत्रिका पढ़ने योग्य है ।
डॉ. देवेन्द्र शर्मा ने विनोबा जी के सन्दर्भ में एक संस्मरण सुनाते हुए कहा कि चाहे संत, नेता, विचारक हो उसका बड़प्पन उसके साथ के लोग बनाते हैं आन्दोलन होते तो हैं, मगर उनके चले जाने के बाद आन्दोलन सफलता के बजाय असफलता की ओर मुड़ने लगता है । लोग स्वार्थ साधना के लिए जुड़ जाते हैं, जबकि जमीनी स्तर तक उस विचार को कार्यान्वित करना होता है ।
ज्योति नारायण ने भी इसी संदर्भ में संस्मरण सुनायीं । भगवानदास जोपट ने अध्यक्षीय बात में कहा कि पत्रिकाएँ न होती तो मनुष्य स्वेच्छाचारी होता । शांताबाई दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार प्रसार में कर्मठता से जुड़ी है । केरल ज्योति पत्रिका भी इस प्रयास में जुड़ी है विभिन्न आलेख सारगर्भित, विषयानुकूल तथा पठनीय है ।
तत्पश्चात लक्ष्मीनारायण अग्रवाल के सफल संचालन में काव्य गोष्ठी संपन्न हुई । इसमें कुंजबिहारी गुप्ता, जी. परमेश्वर, मल्लिकार्जुन, भावना पुरोहित, डॉ. सीता मिश्र, डॉ.रमा द्विवेदी, ज्योति नारायण, विनीता शर्मा, मीना मूथा, गुरुदयाल अग्रवाल, संपत देवी मुरारका, सरिता सुराणा जैन, उमा सोनी, एल.रंजना, मुकुंद दास डांगरा, नरहरि दयाल दादू, वी.वरलक्ष्मी, डॉ.देवेन्द्र शर्मा, अजीत गुप्ता, सूरज प्रसाद सोनी, पवित्र अग्रवाल, भँवरलाल उपाध्याय, ने समसामायिक विषयों पर काव्य पाठ किया
डॉ.रमा द्विवेदी ने सदस्यों को उनके जन्मदिवस व विवाह दिन की बधाई दी ।
मीना मूथा के धन्यवाद के साथ गोष्ठी का समापन हुआ । अंत में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित शीर्षस्थ विदुषी रचनाकार इंदिरा गोस्वामी एवं जाने-माने साहित्यकार आलोचक डॉ.कुमार विमल के दू:खद निधन पर क्लब की ओर से मौन रखकर श्रद्धांजली अर्पित की गई
प्रस्तुति - संपत देवी मुरारका, हैदराबाद
1 comment:
आदरणीय
आपके ब्लॉग को पड़ कर बड़ा अच्छा लगा ,और कादम्बिनी क्लब के बारेमें जानकर एक ख़ुशी सी महसूस हुई,लगा की जैसे भटके हुए मुसाफिर को रास्ता मिल गया हो, आदरणीय मैं तपन दुबे इनदिनों हैदराबाद मैं ही एक निजी सॉफ्टवेर संस्था मैं सॉफ्टवेर डेवेलोपेर के पद पर काम कर रहा हूँ इसके साथ मुझे शेरो शायरी,गजल आदि लिखने और पड़ने का बहुत शोक है,कॉलेज के वक्त अपनी गजल कई बार कॉलेज के प्रोग्राम में सुना कर वाह वाही पी है पर जब से हैदराबाद आया हूँ ऐसा लगता है जैसे सब कुछ छीन गया हो मुझसे, मेरे अन्दर एक गुब्बार सा उठता है अपने लिखे हुए को सुनाने का,आपसे ये अनुरोथ है की अब से जब भी हैदराबाद में कोई गोष्ठी हो तो मुझे भी मोंका दे कर मेरी इस परेशानी में मेरी मदद करियेगा..
आपके जवाब के इन्तेजार मैं
तपन दुबे
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