Saturday, December 31, 2011

ग़ज़ल

ये दुनिया तो सिर्फ मुहब्बत

श्यामल सुमन

आने वाले कल का स्वागत, बीते कल से सीख लिया

नहीं किसी से कोई अदावत, बीते कल से सीख लिया



भेद यहाँ पर ऊँच नीच का, हैं आपस में झगड़े भी

ये दुनिया तो सिर्फ मुहब्बत, बीते कल से सीख लिया



हंगामे होते, होने दो, इन्सां तो सच बोलेंगे

सच कहना है नहीं इनायत, बीते कल से सीख लिया



यह कोशिश प्रायः सबकी है, हों मेरे घर सुख सारे

क्या सबको मिल सकती जन्नत, बीते कल से सीख लिया



गर्माहट टूटे रिश्तों में, कोशिश हो, फिर से आए

क्या मुमकिन है सदा बगावत, बीते कल से सीख लिया



खोज रहा मुस्कान हमेशा, गम से पार उतरने को

इस दुनिया से नहीं शिकायत, बीते कल से सीख लिया



भागमभाग मची न जाने, किसको क्या क्या पाना है

सुमन सुधारो खुद की आदत, बीते कल से सीख लिया



इसी ग़ज़ल को इस लिंक पर कवि श्यामल सुमन जी के ही स्वर में सुन सकते हैं -- http://www.youtube.com/watch?v=PXtbpwAfZK4&list=UUElf66rbpVdKwI04CDViGhw&index=1&feature=plcp



नववर्ष की असीम शुभकामनाओं के साथ हार्दिक बधाई

Thursday, December 22, 2011

अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में साहित्यकार नरेंद्र कोहली का विशेष व्याख्यान

काठमांडू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर करेंगें मीडिया के लिए नारद के भक्ति सूत्र पर खास प्रस्तुति

भोपाल,22 दिसंबर,2011। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल द्वारा ‘मीडिया में विविधता एवं अनेकताः समाज का प्रतिबिंब’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में साहित्यकार नरेंद्र कोहली एक खास व्याख्यान देंगें। जिसका विषय है “एकात्म मानवदर्शन के संदर्भ में पत्रकारिता के कार्यों व भूमिका का पुर्नवलोकन”। यह आयोजन 27 एवं 28 दिसंबर, 2011 को शाहपुरा स्थित प्रशासन अकादमी के सभागार में होगा। देश में पहली बार इस महत्वपूर्ण विषय पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हो रहा है। इस संगोष्ठी में देश और दुनिया के जाने माने दार्शनिक, समाजशास्त्री, मीडिया विशेषज्ञ, पत्रकार, मीडिया प्राध्यापक एवं मीडिया शोधार्थी हिस्सा ले रहे हैं। इस खास आयोजन के शुभारंभ सत्र में प्रख्यात पत्रकार अरूण शौरी का व्याख्यान भी होगा, जिसमें वे विषय से जुड़े मुद्दों शोधार्थियों एवं सहभागियों को संबोधित करेंगें। इस सत्र के मुख्यअतिथि राज्य के राज्यपाल महामहिम रामनरेश यादव होंगें। आयोजन के पहले दिन दोपहर दो बजे पहला सत्र प्रारंभ होगा जिसमें काठमांडू विश्वविद्यालय के प्रो. निर्मलमणि अधिकारी, नारद के भक्ति सूत्र पर आधारित पत्रकारिता के माडल की प्रस्तुति करेगें। इसी सत्र में इंटरनेशनल पब्लिक रिलेशन एसोशिएसन, ब्रिटेन के अध्यक्ष रिचर्ड लिनिंग अपना प्रजेंटेशन देंगें। यह जानकारी देते हुए कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने बताया भारतीय समाज की विविधताओं और अनेकताओं को हमारा मीडिया कितना अभिव्यक्त कर पा रहा है, यह सेमिनार की चर्चा का केंद्रीय विषय है। इस दो दिवसीय संगोष्ठी में समाज जीवन के अनेक क्षेत्रों पर मीडिया की वास्तविक प्रस्तुति पर चर्चा होगी। अगर मीडिया में इनका वास्तविक प्रतिबिंब नहीं है तो उसे ठीक करने के उपायों पर भी सुझाव दिए जाएंगें। उन्होंने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दुनिया के सभी देशों में विविधताओं और अनेकताओं को लेकर बहस चल रही है, दुनिया के सारे देश इससे उत्पन्न चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। भारत के सामने इससे जुड़ी हुयी चुनौतियां तुलनात्मक रूप से अधिक हैं। अनेक भाषाओं, पंथों, जातियों, संस्कृतियों का देश होने के बावजूद भारत ने राष्ट्रीय एकता और सहजीवन की अनोखी मिसाल पेश की है। ऐसे में भारत आज दुनिया के तमाम देशों के लिए शोध का विषय है। किंतु इस पूरी विविधता का हमारा मीडिया कैसा अक्स या प्रतिबिंब प्रस्तुत कर रहा है, यह एक विचार का मुद्दा है। प्रो. कुठियाला ने कहा कि मीडिया पूरे समाज में परस्पर संवाद बनाने की क्षमता रखता है और विभिन्न सामाजिक विषयों को भी प्रस्तुत करने का दायित्व लिए है, ऐसे में उसकी जिम्मेदारियां किसी भी क्षेत्र से ज्यादा और प्रभावी हो जाती हैं। संगोष्ठी के डायरेक्टर प्रो. देवेश किशोर ने बताया कि इस अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में लगभग 100 से अधिक शोधपत्र तथा 200 से अधिक शोध संक्षेप आ चुके हैं। इस अवसर पर एक स्मरिका का प्रकाशन भी किया जा रहा है जिसमें प्राप्त शोध संक्षेपों का प्रकाशन किया जाएगा। साथ ही प्राप्त शोध पत्रों को विश्वविद्यालय के अन्य प्रकाशन में पुस्तकाकार प्रकाशित किया जाएगा। संगोष्ठी में केन्या, इंडोनेशिया, आस्ट्रेलिया, ओमान, सूडान, ब्रिटेन, नेपाल, अमेरिका, श्रीलंका, मालदीव आदि देशों से इस अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार में जनसंचार विशेषज्ञ हिस्सा ले रहे हैं।

(संजय द्विवेदी) मोबाइलः 9893598888

Wednesday, December 21, 2011

कादम्बिनी क्लब की मासिक गोष्ठी आयोजित

कादम्बिनी क्लब की मासिक गोष्ठी सुसंपन्न





कादम्बिनी क्लब, हैदराबाद के तत्वावधान में 18 दिसंबर को हिन्दी प्रचार सभा परिसर में क्लब की 232 वीं मासिक गोष्ठी का सफल आयोजन किया गया।  क्लब संयोजिका डॉ. अहिल्या मिश्र एवं कार्यकारी संयोजिका मीना मूथा ने अतिथियों का स्वागत किया ।   भगवानदास जोपट ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की ।  देवेन्द्र शर्मा मुख्य अतिथि के रूप में मंचासीन हुए ।
कार्यक्रम का आरंभ ज्योति नारायण द्वारा सुमधुर सरस्वती वंदना प्रस्तुति से हुआ ।  प्रथम सत्र में कर्नाटक महिला हिन्दी सेवा समिति, बेंगलूर द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका 'हिन्दी प्रचार वाणी' पर समीक्षात्मक चर्चा रखी गई ।  डॉ. मदन देवी पोकरणा ने इस पत्रिका पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि नि:संदेह शिल्पगत सौष्ठव भाव प्रवण हिन्दी प्रचार वाणी पत्रिका दक्षिण का गौरव है ।  पत्रिका गागर में सागर की उक्ति को चरितार्थ करती है ।  'निरालाजी एक महाकवि', 'भारतीय साहित्य की अवधारणा', 'भारत स्वतंत्रता के असली हकदार कौन' आदि आलेख निश्चित ही पठनीय है ।  डॉ. विभा वाजपेयी और प्रो. वीणा त्रिवेदी ने क्रमश: भारतेंदु और वृन्दावनलाल वर्मा की रचनाओं में संवेदनात्मक पक्ष, जीवन चेतना, समाज सुधार, राष्ट्र प्रेम, सुगठित कथानक एवं सशक्त चित्रांकन जैसे सशक्त तत्वों से परिपूर्ण होने की बात कही ।  32 पृष्ठ की यह पत्रिका हिन्दी सेवा क्षेत्र में निश्चित स्वागताई है ।  कहीं-कहीं कन्नड़ भाषा का प्रभाव दिखाई देता है । प्रधान सम्पादक सुश्री बी. ए. शांताबाई एवं सम्पादक मंडल का प्रयास प्रशंसनीय है । लक्ष्मीनारायण अग्रवाल ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए अपने वक्तव्य में कहा कि विचार और समाचार दोनों इसमें हैं ।  डॉ. राधा कृष्णमूर्ति का संपादकीय विशेष बन पड़ा है । डॉ. डी.एम. मुल्ला का निरालाजी पर आधृत लेख हिन्दी के विद्यार्थियों के लिए निश्चित ही उपयोगी है ।  श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद भारतीय साहित्य जैसे विस्तृत विषय पर अपनी बात रखने में सफल हुए हैं । सुरजीत सिंह साहनी ने 'भारत स्वतंत्रता के असली हकदार कौन में 1857 के बाद के इतिहास पर प्रकाश डाला है । विनोबा भावे से जुड़ा आलेख भी सुंदर बन पड़ा है । बालकथा 'देखते रहना' पंचतंत्र की कहानियों से मेल खाती है  । कुल मिलाकर प्रत्येक लेख में कुछ न कुछ है, पत्रिका पढ़ने योग्य है  ।

डॉ. देवेन्द्र शर्मा ने विनोबा जी के सन्दर्भ में एक संस्मरण सुनाते हुए कहा कि चाहे संत, नेता, विचारक हो उसका बड़प्पन उसके साथ के लोग बनाते हैं आन्दोलन होते तो हैं, मगर उनके चले जाने के बाद आन्दोलन सफलता के बजाय असफलता की ओर मुड़ने लगता है ।  लोग स्वार्थ साधना के लिए जुड़ जाते हैं, जबकि जमीनी स्तर तक उस विचार को कार्यान्वित करना होता है । 
ज्योति नारायण ने भी इसी संदर्भ में संस्मरण सुनायीं  ।  भगवानदास जोपट ने अध्यक्षीय बात में कहा कि पत्रिकाएँ न होती तो मनुष्य स्वेच्छाचारी होता । शांताबाई दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार प्रसार में कर्मठता से जुड़ी है । केरल ज्योति पत्रिका भी इस प्रयास में जुड़ी है विभिन्न आलेख सारगर्भित, विषयानुकूल तथा पठनीय है ।

तत्पश्चात लक्ष्मीनारायण अग्रवाल के सफल संचालन में काव्य गोष्ठी संपन्न हुई । इसमें कुंजबिहारी गुप्ता, जी. परमेश्वर, मल्लिकार्जुन, भावना पुरोहित, डॉ. सीता मिश्र, डॉ.रमा द्विवेदी, ज्योति नारायण, विनीता शर्मा, मीना मूथा, गुरुदयाल अग्रवाल, संपत देवी मुरारका, सरिता सुराणा जैन, उमा सोनी, एल.रंजना, मुकुंद दास डांगरा, नरहरि दयाल दादू, वी.वरलक्ष्मी, डॉ.देवेन्द्र शर्मा, अजीत गुप्ता, सूरज प्रसाद सोनी, पवित्र अग्रवाल, भँवरलाल उपाध्याय, ने समसामायिक विषयों पर काव्य पाठ किया
डॉ.रमा द्विवेदी ने सदस्यों को उनके जन्मदिवस व विवाह दिन की बधाई दी । 
मीना मूथा के धन्यवाद के साथ गोष्ठी का समापन हुआ । अंत में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित शीर्षस्थ विदुषी रचनाकार इंदिरा गोस्वामी एवं जाने-माने साहित्यकार आलोचक डॉ.कुमार विमल के दू:खद निधन पर क्लब की ओर से मौन रखकर श्रद्धांजली अर्पित की गई


प्रस्तुति - संपत देवी मुरारका, हैदराबाद

UNICODE CONVERTER FOR HINDI, SANSKRIT, MARATHI, NEPALI and Other DEVNAGRI SCRIPTS

UniDev यूनिदेव (Version : 2.2.5.0) - (Unicode {Mangal} to ASCII/ISCII


यूनिदेव (यूनिकोड {मंगल} से विभिन्न अस्की/इस्की फ़ॉन्ट परिवर्तन हेतु उपकरण)  का नवीन संस्करण 2.2.5.0 जारी


नमस्कार.


आपको यह ई-मेल लिखते हुए मुझे अत्यधिक ख़ुशी हो रही है कि आज यूनिदेव का

नवीन वर्जन 2.2.5.0 जारी किया है। अब यह टेक्स्ट-तालिका (Text-Table) के

पाठ को भी पूरी शुद्धता के साथ टेक्स्ट-तालिका के रूप में परिवर्तित करने

में पूर्ण सक्षम है। साथ ही ट्रू टाइप (*.TTF) प्रकार के फ़ॉन्ट जैसे कि

कृतिदेव, चाणक्य, संस्कृत ९९, एस-डी-टीटीसुरेख एवम् टाइप-१

(*.PFB/*.PFM) प्रकार के फ़ॉन्ट जैसे कि चाणक्य, वाक-मैन चाणक्य, शिवा

आदि में परिवर्तित आउट-पुट पाठ भी पूरी शुद्धता के साथ देवनागरी एवं रोमन

युक्त पाठ में अन्तर रखते हुए एक ही पृष्ठ पर पठ्नीय रूप में प्राप्त कर

सकते हैं। छपाई का कार्य अधिकांशतः (एडोब टाइप फ़ॉन्ट) टाइप-१ फ़ॉन्ट में

ही होता है तो यूनिदेव छपाई के कार्य के लिए बहुत ही उपयोगी है। विभागीय

कार्य भी अधिकांशतः तालिका के रूप में होता है तो अब यह नवीन वर्जन

विभागीय उपयोग के लिए भी बहुत ही काम का रहेगा। इस नवीन वर्जन (DEMO

VERSION) को आप दी जा रही लिंक से डाउनलोड कर सकते हैं। कृपया इस नवीन

सॉफ़्टवेयर के बारे में अपने स्तर से अन्य मित्रों को फ़ॉरवर्ड कर

जानकारी देने की कृपा करें।



यूनिदेव : (यूनिकोड {मंगल} से विभिन्न अस्की/इस्की फ़ॉन्ट परिवर्तन हेतु

उपकरण):- यह विंडोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम आधारित सॉफ़्ट्वेयर है। इसे ऑफ़लाइन

उपयोग करने की दृष्टि से तैयार किया गया है। इस सॉफ़्ट्वेयर के माध्यम से

देवनागरी यूनिकोड (मंगल 16 बिट कोड) फ़ॉन्ट आधारित पाठ्य सामग्री को

प्रचलित विभिन्न ट्रू टाइप एवम् टाइप-१ अस्की/इस्की (8 बिट कोड) फ़ॉन्ट

जैसे कि कृतिदेव, चाणक्य, संस्कृत ९९, एस-डी-टीटीसुरेख, शिवा, वॉकमैन

चाणक्य आदि फ़ॉन्ट में पूरी शुद्धता के साथ परिवर्तित किया जा सकता है।

मानाकि आज यूनिकोड का चलन है लेकिन अभी भी कई सॉफ़्ट्वेयर ऐसे हैं जोकि

यूनिकोड का समर्थन (सपोर्ट) नहीं करते जिनमें कोरेल ड्रॉ, फोटोशॉप,

पेजमेकर, क्वार्क एक्सप्रेस प्रमुख हैं। प्रिटिंग में अभी भी पुराने

फॉन्टों का ही प्रयोग हो रहा है, इसलिए भी हम अभी तक इन फॉन्टों को छोड़

नहीं पाये हैं। उक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए ही यूनिदेव को विकसित

किया गया है। इससे हम यूनिकोड (मंगल) फ़ॉन्ट आधारित देवनागरी (हिन्दी,

मराठी, संस्कृत, नेपाली आदि) लिपि को शत-प्रतिशत (100%) शुद्धता के साथ

विभिन्न ट्रू टाइप एवम् टाइप-१ अस्की/इस्की (8 बिट कोड) फ़ॉन्ट जैसे कि

कृतिदेव, चाणक्य, संस्कृत ९९, एस-डी-टीटीसुरेख, शिवा, वॉकमैन चाणक्य आदि

फ़ॉन्ट में बदल सकते हैं।



UniDev यूनिदेव (Version : 2.2.5.0) - (Unicode {Mangal} to ASCII/ISCII

{Kruti Dev 020} Font Converter for Devanagari Script) is a latest new

UNICODE CONVERTER FOR HINDI, SANSKRIT, MARATHI, NEPALI and Other

DEVNAGRI SCRIPTS. It can easily convert Mangal Unicode font to Kruti

Dev 020 with 100% accuracy and saves your precious time. UniDev is

useful for DTP Operators and Printers because loads of DTP software

like PageMaker/Illustrator, Photoshop still does not support Hindi

Unicode



http://www.4shared.com/zip/qs8-bXyl/DangiSoftUniDev.html



धन्यवाद!

सादर

इंजी॰ जगदीप दाँगी

Profile: http://www.iiitm.ac.in/?q=users/dangijs

http://www.youtube.com/watch?v=aBLnEwg7UEo&feature=mfu_in_order&list=UL

Tuesday, December 20, 2011

माखनलाल विश्वविद्यालय में मीडिया में विभिन्नताएं विषय पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी

माखनलाल विश्वविद्यालय में मीडिया में विभिन्नताएं विषय पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी



भोपाल,20 दिसंबर,2011। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल द्वारा मीडिया में विविधता एवं अनेकताः समाज का प्रतिबिंब विषय पर एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 27 एवं 28 दिसंबर,2011 को किया गया है। यह दो दिवसीय आयोजन भोपाल के शाहपुरा स्थित प्रशासन अकादमी के सभागार में होगा। कार्यक्रम का उद्घाटन 27 दिसंबर को प्रदेश के राज्यपाल महामहिम रामनरेश यादव करेंगें। इस सत्र के मुख्यवक्ता प्रख्यात पत्रकार एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री अरूण शौरी होंगें। देश में पहली बार इस महत्वपूर्ण विषय पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हो रहा है। भारत की विशेषता ही है अनेकता में एकता। इस दृष्टि से देश एवं विदेश के मीडियाकर्मियों ने इस विषय में गहरी रूचि दिखाई है। इस संगोष्ठी में देश और दुनिया के जाने माने दार्शनिक, समाजशास्त्री, मीडिया विशेषज्ञ, पत्रकार, मीडिया प्राध्यापक एवं मीडिया शोधार्थी हिस्सा ले रहे हैं। यह जानकारी देते हुए कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने बताया भारतीय समाज की विविधताओं और अनेकताओं को हमारा मीडिया कितना अभिव्यक्त कर पा रहा है, यह सेमिनार की चर्चा का केंद्रीय विषय है। इस दो दिवसीय संगोष्ठी में समाज जीवन के अनेक क्षेत्रों पर मीडिया की वास्तविक प्रस्तुति पर चर्चा होगी। अगर मीडिया में इनका वास्तविक प्रतिबिंब नहीं है तो उसे ठीक करने के उपायों पर भी सुझाव दिए जाएंगें। उन्होंने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दुनिया के सभी देशों में विविधताओं और अनेकताओं को लेकर बहस चल रही है, दुनिया के सारे देश इससे उत्पन्न चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। भारत के सामने इससे जुड़ी हुयी चुनौतियां तुलनात्मक रूप से अधिक हैं। अनेक भाषाओं, पंथों, जातियों, संस्कृतियों का देश होने के बावजूद भारत ने राष्ट्रीय एकता और सहजीवन की अनोखी मिसाल पेश की है। ऐसे में भारत आज दुनिया के तमाम देशों के लिए शोध का विषय है। किंतु इस पूरी विविधता का हमारा मीडिया कैसा अक्स या प्रतिबिंब प्रस्तुत कर रहा है, यह एक विचार का मुद्दा है। प्रो. कुठियाला ने कहा कि मीडिया पूरे समाज में परस्पर संवाद बनाने की क्षमता रखता है और विभिन्न सामाजिक विषयों को भी प्रस्तुत करने का दायित्व लिए है, ऐसे में उसकी जिम्मेदारियां किसी भी क्षेत्र से ज्यादा और प्रभावी हो जाती हैं।

विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा. चंदर सोनाने ने बताया कि इस अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में लगभग 100 से अधिक शोधपत्र तथा 200 से अधिक शोध संक्षेप आ चुके हैं। इन शोध पत्रों को विश्वविद्यालय के प्रकाशन में प्रकाशित किया जाएगा। केन्या, इंडोनेशिया, आस्ट्रेलिया, ओमान, सूडान, ब्रिटेन, नेपाल, अमेरिका, श्रीलंका, मालदीव आदि देशों से इस अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार में जनसंचार विशेषज्ञ हिस्सा लेंगें ।

संगोष्ठी के समन्वयक प्रो. अमिताभ भटनागर ने जानकारी दी कि इंटरनेशनल पब्लिक रिलेशन एसोशिएसन, ब्रिटेन के अध्यक्ष रिचर्ड लिनिंग विशेष रूप से इस संगोष्ठी को संबोधित करेंगें। श्री लिंनिंग की बिजनेस पार्टनर श्रीमती जैक्लीन भी इस अवसर मौजूद रहेंगीं।
 
(संजय द्विवेदी) मोबाइलः 9893598888

Saturday, December 17, 2011

आकांक्षा यादव को ‘’डॉ. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011


भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा आकांक्षा यादव को ‘’डॉ. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011‘‘




भारतीय दलित साहित्य अकादमी ने युवा कवयित्री, साहित्यकार एवं चर्चिर ब्लागर आकांक्षा यादव को ‘’’डॉ. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011‘‘ से सम्मानित किया है। आकांक्षा यादव को यह सम्मान साहित्य सेवा एवं सामाजिक कार्यों में रचनात्मक योगदान के लिए प्रदान किया गया है। उक्त सम्मान भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा 11-12 दिसंबर को दिल्ली में आयोजित 27 वें राष्ट्रीय दलित साहित्यकार सम्मलेन में केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला द्वारा प्रदान किया गया.



गौरतलब है कि आकांक्षा यादव की रचनाएँ देश-विदेश की शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं. नारी विमर्श, बाल विमर्श एवं सामाजिक सरोकारों सम्बन्धी विमर्श में विशेष रूचि रखने वाली आकांक्षा यादव के लेख, कवितायेँ और लघुकथाएं जहाँ तमाम संकलनो / पुस्तकों की शोभा बढ़ा रहे हैं, वहीँ आपकी तमाम रचनाएँ आकाशवाणी से भी तरंगित हुई हैं. पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ अंतर्जाल पर भी सक्रिय आकांक्षा यादव की रचनाएँ इंटरनेट पर तमाम वेब/ई-पत्रिकाओं और ब्लॉगों पर भी पढ़ी-देखी जा सकती हैं. व्यक्तिगत रूप से ‘शब्द-शिखर’ और युगल रूप में ‘बाल-दुनिया’ , ‘सप्तरंगी प्रेम’ व ‘उत्सव के रंग’ ब्लॉग का संचालन करने वाली आकांक्षा यादव न सिर्फ एक साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं, बल्कि सक्रिय ब्लागर के रूप में भी उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है. 'क्रांति-यज्ञ: 1857-1947 की गाथा‘ पुस्तक का कृष्ण कुमार यादव के साथ संपादन करने वाली आकांक्षा यादव के व्यक्तित्व-कृतित्व पर वरिष्ठ बाल साहित्यकार डा0 राष्ट्रबन्धु जी ने ‘‘बाल साहित्य समीक्षा‘‘ पत्रिका का एक अंक भी विशेषांक रुप में प्रकाशित किया है।



मूलत: उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और गाजीपुर जनपद की निवासी आकांक्षा यादव वर्तमान में अपने पतिदेव श्री कृष्ण कुमार यादव के साथ अंडमान-निकोबार में रह रही हैं और वहां रहकर भी हिंदी को समृद्ध कर रही हैं. श्री यादव भी हिंदी की युवा पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं और सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर पदस्थ हैं. एक रचनाकार के रूप में बात करें तो सुश्री आकांक्षा यादव ने बहुत ही खुले नजरिये से संवेदना के मानवीय धरातल पर जाकर अपनी रचनाओं का विस्तार किया है। बिना लाग लपेट के सुलभ भाव भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें यही आपकी लेखनी की शक्ति है। उनकी रचनाओं में जहाँ जीवंतता है, वहीं उसे सामाजिक संस्कार भी दिया है।



इससे पूर्व भी आकांक्षा यादव को विभिन्न साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। जिसमें भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’भारती ज्योति’, ‘‘एस0एम0एस0‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था, बिजनौर द्वारा ‘‘साहित्य गौरव‘‘ व ‘‘काव्य मर्मज्ञ‘‘, श्री मुकुन्द मुरारी स्मृति साहित्यमाला, कानपुर द्वारा ‘‘साहित्य श्री सम्मान‘‘, मथुरा की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘‘आसरा‘‘ द्वारा ‘‘ब्रज-शिरोमणि‘‘ सम्मान, मध्यप्रदेश नवलेखन संघ द्वारा ‘‘साहित्य मनीषी सम्मान‘‘ व ‘‘भाषा भारती रत्न‘‘, छत्तीसगढ़ शिक्षक-साहित्यकार मंच द्वारा ‘‘साहित्य सेवा सम्मान‘‘, देवभूमि साहित्यकार मंच, पिथौरागढ़ द्वारा ‘‘देवभूमि साहित्य रत्न‘‘, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना द्वारा ‘‘उजास सम्मान‘‘, ऋचा रचनाकार परिषद, कटनी द्वारा ‘‘भारत गौरव‘‘, अभिव्यंजना संस्था, कानपुर द्वारा ‘‘काव्य-कुमुद‘‘, ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा ‘‘शब्द माधुरी‘‘, महिमा प्रकाशन, दुर्ग-छत्तीसगढ द्वारा ’महिमा साहित्य भूषण सम्मान’ , अन्तर्राष्ट्रीय पराविद्या शोध संस्था, ठाणे, महाराष्ट्र द्वारा ‘‘सरस्वती रत्न‘‘, अन्तज्र्योति सेवा संस्थान गोला-गोकर्णनाथ, खीरी द्वारा श्रेष्ठ कवयित्री की मानद उपाधि. जीवी प्रकाशन, जालंधर द्वारा 'राष्ट्रीय भाषा रत्न' इत्यादि शामिल हैं.


दुर्गविजय सिंह 'दीप'

उपनिदेशक- आकाशवाणी (समाचार)

पोर्टब्लेयर, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह.

कविता - माँ


माँ









- ज्योति शेट्टी, मंगलूर

माँ तू क्यों है इतनी प्यारी

जग में सबसे न्यारी न्यारी

दया ममता की राजदुलारी

हर सुख सुविधाओं के लिए तू खुद बलिहारी

माँ तू क्यों है इतनी प्यारी !





तेरी छत्रछाया में पली हूँ मैं

तेरी आँचल के साये में बड़ी हूँ मैं

तेरी कृपा से आज खडी हूँ मैं

तेरे आशीर्वाद से आगे बढ़ रही हूँ मैं

माँ तू क्यों है इतनी प्यारी !



हर मुश्किल में, हंसकर लड़ना सिखाया

नेक इनसान बनकर, जीना सिखाया

स्वाभिमान के राह पर चलना सिखाया

स्वच्छ सरल जीवन की राह दिखाया

चुका नहीं सकते हम तेरे उपकार

ममता की पवित्र मूरत है तू

माँ तू क्यों है इतनी प्यारी !



भगवान का वरदान हो तुम

तुम होतो इस जग में जीवन में

बस ! मेरे लिए सब कुछ हो तुम

तुमने जो कुछ किया कुर्बान

मैं सदा तेरे मेहरबान



माँ तू क्यों है इतनी प्यारी !



ये किताबें पुस्‍तकालयों, वाचनालयों, जरूरतमंद विद्यार्थियों, घनघोर पाठकों और पुस्‍तक प्रेमियों तक पहुंचें

मित्रो


मैंने मन बना लिया है कि अपने जीवन की सबसे बड़ी, अमूल्‍य और प्रिय पूंजी अपनी किताबों को अपने घर से विदा कर दूं। वे जहां भी जायें, नये पाठकों के बीच प्‍यार का, ज्ञान का और अनुभव का खजाना उसी तरह से खुले हाथों बांटती चलें जिस तरह से वे मुझे और मेरे बच्‍चों को बरसों से समृद्ध करती रही हैं। उन किताबों ने मेरे घर पर अपना काम पूरा कर लिया है बेशक ये कचोट रहेगी कि दोबारा मन होने पर उन्‍हें नहीं पढ़ पाऊंगा लेकिन ये तसल्‍ली भी है कि उनकी जगह पर नयी किताबों का भी नम्‍बर आ पायेगा जो पढ़े जाने की कब से राह तक रही हैं।

लाखों रुपये की कीमत दे कर कहां कहां से जुटायी, लायी, मंगायी और एकाध बार चुरायी गयी मेरी लगभग 4000 किताबों में से हरेक के साथ अलग कहानी जुड़ी हुई है। अब सब मेरी स्‍मृतियों का हिस्‍सा बन जायेंगी। कहानी, उपन्‍यास, जीवनियां, आत्‍मकथाएं, बच्‍चों की किताबें, अमूल्‍य शब्‍दकोष, एनसाइक्‍लोपीडिया, भेंट में मिली किताबें, यूं ही आ गयी किताबें, ‍रेफरेंस बुक्‍स सब कुछ तो है इनमें।

ये किताबें पुस्‍तकालयों, वाचनालयों, जरूरतमंद विद्यार्थियों, घनघोर पाठकों और पुस्‍तक प्रेमियों तक पहुंचें, ऐसी मेरी कामना है।

24 और 25 दिसम्‍बर 2011 को दिन में मुंबई और आस पास के मित्र मेरे घर एच 1/101 रिद्धि गार्डन, फिल्‍म सिटी रोड, मालाड पूर्व आ कर अपनी पसंद की किताबें चुन सकते हैं। बाहर के पुस्‍तकालयों, वाचनालयों, जरूरतमंद विद्यार्थियों, घनघोर पाठकों और पुस्‍तक प्रेमियों को किताबें मंगाने की व्‍यवस्‍था खुद करनी होगी या डाक खर्च वहन करना होगा।

मेरे प्रिय कथाकार रवीन्‍द्र कालिया जी ने एक बार कहा था कि अच्‍छी किताबें पतुरिया की तरह होती है जो अपने घर का रास्‍ता भूल जाती हैं और एक पाठक से दूसरे पाठक के घर भटकती फिरती हैं और खराब किताबें आपके घर के कोने में सजी संवरी अपने पहले पाठक के इंतजार में ही दम तोड़ देती हैं।

कामना है कि मेरी किताबें पतुरिया की तरह खूब लम्‍बा जीवन और खूब सारे पाठक पायें।

आमीन

सूरज


mail@surajprakash.com

भारतीय भाषाओं में महिला लेखन विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी
पांडिच्चेरी में 2-3 दिसंबर, 2011 को संपन्न राष्ट्रीय संगोष्ठी के चित्र देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए ।

http://yugmanas.blogspot.com/2011/12/blog-post.html

Friday, December 2, 2011

भारतीय भाषाओं में महिला लेखन विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय, पुदुच्चेरी में दि.2 दिसंबर 2011 को भारतीय भाषाओं में महिला लेखन विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन एवं सत्रों के दृश्य










अधिक चित्रों के लिए कृपया यहाँ क्लिक कीजिए

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भारतीय भाषाओं में महिला लेखन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

महामहिम उप राज्यपाल डॉ. इकबाल सिंह ने किया साहित्यकारों का सम्मान



दि.2-3 दिसंबर, 2011 को हिंदी विभाग, पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के सौजन्य से तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी, चेन्नै तथा तमिलनाडु बहु-भाषी हिंदी लेखिका संघ द्वारा हिंदी तथा भारतीय भाषाओं में महिला लेखन विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय, पुदुच्चेरी में सुसंपन्न हुआ । संगोष्ठी का उद्घाटन पांडिच्चेरी के उप राज्यपाल महामहिम डॉ. इकबाल सिंह जी ने किया । तदवसर पर पूर्व सांसद (राज्य सभा) डॉ. रत्नाकर पांडेय, पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के निदेशक (शिक्षण, शैक्षिक नवोत्तान ग्रामीण पुनःनिर्माण) एवं प्रति उपकुलपति प्रो. रामदास (पूर्व सांसद), संसदीय राजभाषा समिति के पूर्व सचिव कृष्ण कुमार ग्रोवर, केंद्रीय हिंदी निदेशालय के उप निदेशक डॉ. प्रदीप शर्मा, सुख्यात साहित्यकार डॉ. गंगाप्रसाद विमल, डॉ. सूर्यबाल, सुधा अरोडा, आचार्य ललितांबा, गीताश्री, और देश के कोने-कोने से पधारे विभिन्न भाषाओं के साहित्यकार, तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी की महासचिव डॉ. मधुधवन, उपाध्यक्ष रमेश गुप्त नीरद, हिंदी विभाग के आचार्यगण प्रो. विजय लक्ष्मी, डॉ. पद्मप्रिया, प्रमोद मीणा, डॉ. सी. जय शंकर बाबु उपस्थित थे ।

महामहिम उप राज्यपाल ने अपने उद्घाटन भाषण में नारी लेखन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए साहित्य लेखन से जुड़े तमाम महिला लेखिकाओं को बधाई दी । उन्होंने कहा कि पांडिच्चेरी जैसी आध्यात्मिक भूमि में ऐसे राष्ट्रीय महत्व के कार्यक्रम एक ऐतिहासिक उपलब्धि है । पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय, देश की श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में एक है जहाँ महिला अध्यापाकों का अनुपात देश के अन्य विश्वविद्यालयों की तुलना में सर्वाधिक है, ऐसे विश्वविद्यालय में महिला लेखन पर ऐसी संगोष्ठी का आयोजन बड़ा प्रासंगिक है । उप राज्यपाल ने देश के विभिन्न प्रदेशों से पधारे साहित्यकारों, साहित्य सेवियों का सम्मान किया और कई कृतियों का विमोचन किया जिसमें प्रमुख कृतियां हैं – आधनिक नारी लेखन और समकालीन समाज (सं. डॉ. मधुधवन), कर्म और कलम के उपासक गुलाबचंद कोटडिया, साइबर माँ (राजस्थानी अनुवाद), औरत की बोली (गीताश्री), वल्लुवर-वेमना कबीर और ओप्पय्यु आदि ।

विश्वविद्यालय के प्रति उपकुलपति प्रो. रामदास ने अपने स्वगत वचनों में देश के विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों का इस संगोष्ठी में बड़ी संख्या में पधारना विश्वविद्यालय के लिए विशिष्ट गौरव की बात है । महिला लेखन के महत्व के संबंध में अपने विचार प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि महिला लेखन की आज बड़ी प्रासंगिता है, मगर महिलाओं को स्त्री-समस्याओं तक अपनी लेखनी को सीमित न करके तमाम सामाजिक समस्याओं की ओर ध्यान देने से सामाजिक सुधार और विकास में उनकी भूमिका अपने आप सुनिश्चित हो जाएगी ।

विशिष्ट अतिथि पूर्व सांसद (राज्य सभा) डॉ. रत्नाकर पांडेय ने कहा कि नारी और पुरुष में भेद नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि ये समाज रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं । इन्हें अलग-अलग देखना शोषण ही है । इन दोनों के बीच के संबंधों में समरसता की जरूरत है । ऐसी समरसता के पोषण में नारी लेखन अपनी भूमिका निभाए । नारी माँ, बहिन, बेटी आदि कई रूपों में समाज में कई भूमिकाएँ निभाते हुए अपनी जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा के साथ पालन करती है, वैसे नारी लेखन में नारी एवं पुरुष का भेदभाव न करते हुए समूचे समाज के हित को ध्यान में रखने पर नारी लेखन बड़ा प्रासंगिक हो पाएगा ।

उद्घाटन सत्र में अतिथियों का स्वागत करते हुए तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी की महासचिव डॉ. मधुधवन ने कहा सुदूर दक्षिण में हिंदी के कई मौन साधक हैं, ऐसी राष्ट्रीय संगोष्ठी के माध्यम से उत्तर और दक्षिण के साहित्यकार, साहित्यसेवी, हिंदी सेवी एक मंच पर आकर एक दूसरे की सेवाओं से परिचित हो सकते हैं । उन्होंने कहा कि आज साहित्य में नारी लेखन का काफी प्रगति है, नारी लेखन से साहित्य को विशिष्ट दिशा मिल रही है । ऐसी संगोष्ठियों के माध्यम से नारी लेखन के विभिन्न आयाम जैसे भाषा, विषयवस्तु और अन्य मुद्दों पर खुलकर चर्चा हो सकती है । कई पीढ़ियों से हमारे यहाँ वाङ्मय का सृजन होता रहा है, श्रेष्ठ विचारों के संवहन में नारी लेखन का विशिष्ट महत्व है ।
दो दिवसीय इस संगोष्ठी में नारी लेखन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर विभिन्न सत्रों में परिचर्चाएँ आयोजित हुई थीं ।  रचनाकारों ने अपनी मौलिक रचनाएँ भी प्रस्तुत कीं ।  सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत डॉ. विभारानी द्वारा प्रस्तुत नाटक, डॉ. श्रावणी पांडा द्वारा प्रस्तुत रवींद्रनृत्य और श्रीमती मंजुरुस्तुकी द्वारा प्रस्तुत महादवी गीत पर आधारित नृत्य का प्रेक्षकों ने खूब प्रशंसा की ।  श्री वी.वी. सत्यमूर्ति एवं उनके सहयोगियों द्वारा प्रस्तुत कर्नाटक संगीत कार्यक्रम की भी खूब प्रशंसा हुई ।

इस संगोष्ठी में देश के विभिन्न भाषाओं एक सौ बीस साहित्यकार उपस्थित हुए । इन सबका पुदुच्चेरी के उप राज्यपाल के करकमलों से सम्मान का आयोजन किया गया । संगोष्ठी में शामिल होने वाले प्रमुख साहित्यकारों, आचार्यों में डॉ. सूर्यबाला, सुधा अरोड़ा, गीताश्री, डॉ. बिंदु भट, प्रो. दुर्गेश नंदिनी, प्रो. सैयद मेहरुन, प्रो. देवराज, संपत देवी मुरारका, विभारानी, स्वर्णज्योति, मंजुरुस्तगी, डॉ. बशीर, डॉ. पी.आर. वासुदेवन, नीर शबनम, अनिल अवस्थी, ईश्वचंद्र झा, लक्ष्मी अय्यर, डॉ. के. वत्सला, डॉ. पार्वती, आभा सिन्हा, मुकेश मिश्र, नीलप्रभा भारद्वाज, सुनीता, श्रावणी पांडा, दीप्ति कुलश्रेष्ठ, डॉ. पी.के. बाल सुब्रमणियम, डॉ. शेषन, डॉ. सुंदरम, शैरिराजन, कुलजीत कौर, कल्याणी, प्रमुख प्रकाशक बालकृष्ण तनेजा, महेश भारद्वाज आदि उपस्थित थे ।

संगोष्ठी का आयोजन डॉ.मधु धवन के नेतृत्व में हुआ संगोष्ठी का संयोजन पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ. सी. जय शंकर बाबु ने किया ।







Tuesday, November 29, 2011

ममता को सराहौं या सराहौं रमन सिंह को


नक्सलवाद के पीछे खतरनाक इरादों को कब समझेगा देश

नक्सलवाद के सवाल पर इस समय दो मुख्यमंत्री ज्यादा मुखर होकर अपनी बात कह रहे हैं एक हैं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह और दूसरी प.बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी। अंतर सिर्फ यह है कि रमन सिंह का स्टैंड नक्सलवाद को लेकर पहले दिन से साफ था, ममता बनर्जी अचानक नक्सलियों के प्रति अनुदार हो गयी हैं। सवाल यह है कि क्या हमारे सत्ता में रहने और विपक्ष में रहने के समय आचरण अलग-अलग होने चाहिए। आप याद करें ममता बनर्जी ने नक्सलियों के पक्ष में विपक्ष में रहते हुए जैसे सुर अलापे थे क्या वे जायज थे?


-संजय द्विवेदी



मुक्तिदाता कैसे बने खलनायकः आज जब इस इलाके में आतंक का पर्याय रहा किशन जी उर्फ कोटेश्वर राव मारा जा चुका है तो ममता मुस्करा सकती हैं। झाड़ग्राम में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस में सैकड़ों की जान लेने वाला यह खतरनाक नक्सली अगर मारा गया है तो एक भारतीय होने के नाते हमें अफसोस नहीं करना चाहिए।सवाल सिर्फ यह है कि कल तक ममता की नजर में मुक्तिदूत रहे ये लोग अचानक खलनायक कैसे बन गए। दरअसल यही हमारी राजनीति का असली चेहरा है। हम राजनीतिक लाभ के लिए खून बहा रहे गिरोहों के प्रति भी सहानुभूति जताते हैं और साथ हो लेते हैं। केंद्र के गृहमंत्री पी. चिदंबरम के खिलाफ ममता की टिप्पणियों को याद कीजिए। पर अफसोस इस देश की याददाश्त खतरनाक हद तक कमजोर है। यह स्मृतिदोष ही हमारी राजनीति की प्राणवायु है। हमारी जनता का औदार्य, भूल जाओ और माफ करो का भाव हमारे सभी संकटों का कारण है। कल तक तो नक्सली मुक्तिदूत थे, वही आज ममता के सबसे बड़े शत्रु हैं । कारण यह है कि उनकी जगह बदल चुकी है। वे प्रतिपक्ष की नेत्री नहीं, एक राज्य की मुख्यमंत्री जिन पर राज्य की कानून- व्यवस्था बनाए रखने की शपथ है। वे एक सीमा से बाहर जाकर नक्सलियों को छूट नहीं दे सकतीं। दरअसल यही राज्य और नक्सलवाद का द्वंद है। ये दोस्ती कभी वैचारिक नहीं थी, इसलिए दरक गयी।

राजनीतिक सफलता के लिए हिंसा का सहाराः नक्सली राज्य को अस्थिर करना चाहते थे इसलिए उनकी वामपंथियों से ठनी और अब ममता से उनकी ठनी है। कल तक किशनजी के बयानों का बचाव करने वाली ममता बनर्जी पर आरोप लगता रहा है कि वे राज्य में माओवादियों की मदद कर रही हैं और अपने लिए वामपंथ विरोधी राजनीतिक जमीन तैयार कर रही हैं लेकिन आज जब कोटेश्वर राव को सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ में मार गिराया है तो सबसे बड़ा सवाल ममता बनर्जी पर ही उठता है। आखिर क्या कारण है कि जिस किशनजी का सुरक्षा बल पूरे दशक पता नहीं कर पाये वही सुरक्षाबल चुपचाप आपरेशन करके किशनजी की कहानी उसी बंगाल में खत्म कर देते हैं, जहां ममता बनर्जी मुख्यमंत्री बनी बैठी हैं? कल तक इन्हीं माओवादियों को प्रदेश में लाल आतंक से निपटने का लड़ाका बतानेवाली ममता बनर्जी आज कोटेश्वर राव के मारे जाने पर बयान देने से भी बच रही हैं। यह कथा बताती थी सारा कुछ इतना सपाट नहीं है। कोटेश्लर राव ने जो किया उसका फल उन्हें मिल चुका है, किंतु ममता का चेहरा इसमें साफ नजर आता है- किस तरह हिंसक समूहों का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने राजनीतिक सफलताएं प्राप्त कीं और अब नक्सलियों के खिलाफ वे अपनी राज्यसत्ता का इस्तेमाल कर रही हैं। निश्चय ही अगर आज की ममता सही हैं, तो कल वे जरूर गलत रही होंगीं। ममता बनर्जी का बदलता रवैया निश्चय ही राज्य में नक्सलवाद के लिए एक बड़ी चुनौती है, किंतु यह उन नेताओं के लिए एक सबक भी है जो नक्सलवाद को पालने पोसने के लिए काम करते हैं और नक्सलियों के प्रति हमदर्दी रखते हैं।

छत्तीसगढ़ की ओर देखिएः यह स्वीकार करने में कोई हर्ज नहीं कि देश के मुख्यमंत्रियों में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने इस समस्या को इसके सही संदर्भ में पहचाना और केंद्रीय सत्ता को भी इसके खतरों के प्रति आगाह किया। नक्सल प्रभावित राज्यों के बीच समन्वित अभियान की बात भी उन्होंने शुरू की। इस दिशा परिणाम को दिखाने वाली सफलताएं बहुत कम हैं और यह दिखता है कि नक्सलियों ने निरंतर अपना क्षेत्र विस्तार ही किया है। किंतु इतना तो मानना पड़ेगा कि नक्सलियों के दुष्प्रचार के खिलाफ एक मजबूत रखने की स्थिति आज बनी है। नक्सलवाद की समस्या को सामाजिक-आर्थिक समस्या कहकर इसके खतरों को कम आंकने की बात आज कम हुयी है। डा. रमन सिंह का दुर्भाग्य है कि पुलिसिंग के मोर्चे पर जिस तरह के अधिकारी होने चाहिए थे, उस संदर्भ में उनके प्रयास पानी में ही गए। छत्तीसगढ़ में लंबे समय तक पुलिस महानिदेशक रहे एक आला अफसर, गृहमंत्री से ही लड़ते रहे और राज्य में नक्सली अपना कार्य़ विस्तार करते रहे। कई बार ये स्थितियां देखकर शक होता था कि क्या वास्तव में राज्य नक्सलियों से लड़ना चाहता है ? क्या वास्तव में राज्य के आला अफसर समस्या के प्रति गंभीर हैं? किंतु हालात बदले नहीं और बिगड़ते चले गए। ममता बनर्जी की इस बात के लिए तारीफ करनी पड़ेगी कि उन्होंने सत्ता में आते ही अपना रंग बदला और नए तरीके से सत्ता संचालन कर रही हैं। वे इस बात को बहुत जल्दी समझ गयीं कि नक्सलियों का जो इस्तेमाल होना था हो चुका और अब उनसे कड़ाई से ही बात करनी पड़ेगी। सही मायने में देश का नक्सल आंदोलन जिस तरह के भ्रमों का शिकार है और उसने जिस तरह लेवी वसूली के माध्यम से अपनी एक समानांतर अर्थव्यवस्था बना ली है, देश के सामने एक बड़ी चुनौती है। संकट यह है कि हमारी राज्य सरकारें और केंद्र सरकार कोई रास्ता तलाशने के बजाए विभ्रमों का शिकार है। नक्सल इलाकों का तेजी से विकास करते हुए वहां शांति की संभावनाएं तलाशनी ही होंगीं। नक्सलियों से जुड़े बुद्धिजीवी लगातार भ्रम का सृजन कर रहे हैं। वे खून बहाते लोगों में मुक्तिदाता और जनता के सवालों पर जूझने वाले सेनानी की छवि देख सकते हैं किंतु हमारी सरकार में आखिर किस तरह के भ्रम हैं? हम चाहते क्या हैं? क्या इस सवाल से जूझने की इच्छाशक्ति हमारे पास है?


देशतोड़कों की एकताः सवाल यह है कि नक्सलवाद के देशतोड़क अभियान को जिस तरह का वैचारिक, आर्थिक और हथियारों का समर्थन मिल रहा है, क्या उससे हम सीधी लडाई जीत पाएंगें। इस रक्त बहाने के पीछे जब एक सुनियोजित विचार और आईएसआई जैसे संगठनों की भी संलिप्पता देखी जा रही है, तब हमें यह मान लेना चाहिए कि खतरा बहुत बड़ा है। देश और उसका लोकतंत्र इन रक्तपिपासुओं के निशाने पर है। इसलिए इस लाल रंग में क्रांति का रंग मत खोजिए। इनमें भारतीय समाज के सबसे खूबसूरत लोगों (आदिवासियों) के विनाश का घातक लक्ष्य है। दोनों तरफ की बंदूकें इसी सबसे सुंदर आदमी के खिलाफ तनी हुयी हैं। यह खेल साधारण नहीं है। सत्ता,राजनीति, प्रशासन,ठेकेदार और व्यापारी तो लेवी देकर जंगल में मंगल कर रहे हैं किंतु जिन लोगों की जिंदगी हमने नरक बना रखी है, उनकी भी सुध हमें लेनी होगी। आदिवासी समाज की नैसर्गिक चेतना को समझते हुए हमें उनके लिए, उनकी मुक्ति के लिए नक्सलवाद का समन करना होगा। जंगल से बारूद की गंध, मांस के लोथड़ों को हटाकर एक बार फिर मांदर की थाप पर नाचते-गाते आदिवासी, अपना जीवन पा सकें, इसका प्रयास करना होगा। आदिवासियों का सैन्यीकरण करने का पाप कर रहे नक्सली दरअसल एक बेहद प्रकृतिजीवी और सुंदर समाज के जीवन में जहर घोल रहे हैं। जंगलों के राजा को वर्दी पहनाकर और बंदूके पकड़ाकर आखिर वे कौन सा समाज बनना चाहते हैं, यह समझ से परे है। भारत जैसे देश में इस कथित जनक्रांति के सपने पूरे नहीं हो सकते, यह उन्हें समझ लेना चाहिए। ममता बनर्जी ने इसे देर से ही सही समझ लिया है किंतु हमारी मुख्यधारा की राजनीति और देश के कुछ बुद्धिजीवी इस सत्य को कब समझेंगें, यह एक बड़ा सवाल है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

पत्रकारिता विश्वविद्यालय के सांध्यकालीन पाठयक्रमों में आवेदन करने की अंतिम तिथि कल



भोपाल, 28 नवम्बर । माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा प्रारम्भ किये गये सांध्यकालीन पाठयक्रमों के इच्छुक उम्मीदवार कल सायं 5 बजे तक प्रवेश हेतु आवेदन कर सकते हैं। विश्वविद्यालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार सांध्यकालीन पाठयक्रमों में आवेदन करने की अंतिम तिथि 30 नवम्बर 2011 निर्धारित की गई है। विश्वविद्यालय ने शैक्षणिक सत्र 2011-12 में वेब संचार, वीडियो प्रोडक्शन, पर्यावरण संचार, भारतीय संचार परम्पराएँ तथा योगिक स्वास्थ्य प्रबंधन एवं आध्यात्मिक संचार जैसे विषयों में सांध्यकालीन पी.जी. डिप्लोमा पाठयक्रम प्रारम्भ किये गये हैं। यह पाठयक्रम विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थियों के साथ-साथ नौकरीपेशा व्यक्तियों, सेवानिवृत्त लोगों, सैन्य अधिकारियों तथा गृहणियों के लिए भी उपलब्ध होंगे।



विश्वविद्यालय द्वारा पाँच सम्भावनाओं से भरे क्षेत्रों में सांध्यकालीन पी.जी.डिप्लोमा पाठयक्रम प्रारम्भ किये गये हैं। विश्वविद्यालय का सांध्यकालीन वेब संचार पाठयक्रम अखबारों के ऑनलाईन संस्करण, वेब पोर्टल, वेब रेडियो एवं वेब टेलीविजन जैसे क्षेत्रों के लिए कुशलकर्मी तैयार करने के उद्देश्य से प्रारम्भ किया गया है। वीडियो कार्यक्रम के निर्माण सम्बन्धी तकनीकी एवं सृजनात्मक पक्ष के साथ स्टूडियो एवं आउटडोर शूटिंग, नॉनलीनियर सम्पादन, डिजिटल उपकरणों के संचालन आदि के सम्बन्ध में कुशल संचारकर्मी तैयार करने के उद्देश्य से वीडियो प्रोडक्शन का सांध्यकालीन पाठयक्रम प्रारम्भ किया गया है। पर्यावरण आज समाज में ज्वलंत विषय है। पर्यावरण के विविध पक्षों की जानकारी प्रदान करने एवं इस क्षेत्र के लिए विशेष लेखन-कौशल विकसित करने के उद्देश्य से पर्यावरण संचार का सांध्यकालीन पाठयक्रम तैयार किया गया है। योग, स्वास्थ्य और आध्यात्म के क्षेत्र में व्यवहारिक प्रशिक्षण प्रदान करने तथा इस क्षेत्र के लिए कुशल कार्यकर्ता को तैयार करने के उद्देश्य से योगिक स्वास्थ्य प्रबंधन एवं आध्यात्मिक संचार का सांध्यकालीन पाठयक्रम प्रारम्भ किया गया है। भारतीय दर्शन एवं प्राचीन भारतीय धर्मग्रंथों में मौजूद संचार के विभिन्न स्वरूपों की शिक्षा एवं वर्तमान सामाजिक परिदृश्य में उनके सार्थक उपयोग की दृष्टि विकसित करने के उद्देश्य से भारतीय संचार परम्पराओं में सांध्यकालीन पाठयक्रम तैयार किया गया है।



पाठयक्रमों में प्रवेश स्नातक परीक्षा में प्राप्त अंकों की मेरिट के आधार पर दिया जायेगा। पाठयक्रमों की अवधि एक वर्ष है। प्रत्येक पाठयक्रम का शुल्क 10,000 रुपये रखा गया है जो विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित किश्तों में देय होगा। प्रवेश हेतु विवरणिका एवं आवेदन पत्र विश्वविद्यालय के भोपाल परिसर में 150/- रुपये (अ.ज./अ.ज.जा. के लिए 100/- रुपये) जमा कर प्राप्त किये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय की वेबसाईट www.mcu.ac.in से विवरणिका एवं आवेदन पत्र डाउनलोड कर निर्धारित राशि के डी.डी. के साथ आवेदन जमा किया जा सकता है। अधिक जानकारी के लिए टेलीफोन नम्बर 0755-2553523 पर सम्पर्क किया जा सकता है।



(डॉ. पवित्र श्रीवास्तव)निदेशक- प्रवेश

Monday, November 21, 2011

गोवा में मिला ‘हम सब साथ साथ’ के सदस्यों को सम्मान



गोवा में मिला ‘हम सब साथ साथ’ के सदस्यों को सम्मान



गोवा। पिछले दिनों कर्नाटक की प्रसिद्ध शैक्षिक, सामाजिक व सांस्कृतिक संस्था शिक्षक विकास परिषद ने ज्ञानदीप मंडल एवं शिक्षक विकास प्रतिष्ठान के साथ मिलकर गोवा में 17वें राष्ट्रीय शैक्षिक सम्मेलन का 2 दिवसीय आयोजन किया। इस आयोजन की मुख्य अतिथि थीं दिल्ली निवासी प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. राज बुद्धिराजा। अन्य विशिष्ट अतिथियों में सर्वश्री पांडुरंग नाइक, मोहन नाइक, डॉ दिवाकर गौर, विजय पंडित, डॉ. विजयेन्द्र शर्मा, डॉ. आर. एल. शिवहरे आदि शामिल रहे। सम्मेलन के पहले दिन उद्घाटन सत्र में अनेक वक्ताओं ने अपने सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए। संस्था के अध्यक्ष श्री आर. वी. कुलकर्णी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्था की गतिविधियों का परिचय दिया। इस सम्मेलन में कला प्रदर्शनी, शैक्षिक विचार-विमर्श एवं विभिन्न सांस्कृतिक व साहित्यिक कार्यक्रमों का सुदर व भव्य आयोजन किया गया। इसमें ढेर सारे स्कूली बच्चों ने भी भाग लिया।

सम्मेलन के विभिन्न सत्रों में देश के दूर दराज क्षेत्रों से पधारी विभिन्न साहित्यिक, सामाजिक, शैक्षिक व सांस्कृतिक क्षेत्र की अनेक प्रतिभाओं को राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय सम्मान भी प्रदान किया गया। इसमें जहाँ लाइफ टाइम अचीवमेंट राष्ट्रीय अवार्ड से डॉ. राज बुद्धिराजा को सम्मानित किया गया वहीं हम सब साथ साथ के सदस्यों सर्वश्री अखिलेश द्धिवेदी अकेला (दिल्ली) व डॉ. जगदीश चंद्र शर्मा (राजस्थान) को राष्ट्रीय साहित्य भूषण तथा डॉ. दिवाकर दिनेश गौड़ (गुजरात) को राष्ट्रीय शिक्षक भूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया। सम्मेलन के दौरान हम सब साथ साथ के सदस्यों सर्वश्री नमिता राकेश (फरीदाबाद) व किशोर श्रीवास्तव ( दिल्ली ) को भी विशेष सम्मान प्रदान किया गया।

रपटः इरफान सैफी राही, नई दिल्ली

Saturday, November 19, 2011

नेतृत्व ईमानदार हो तो भारत बनेगा सुपरपावरः डा. गुप्त


पत्रकारिता विश्वविद्यालय में “विविधता और अनेकता में एकता के सूत्र” पर व्याख्यान

प्रख्यात अर्थशास्त्री व दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे डा. बजरंगलाल गुप्त का कहना है कि भारत को अगर ईमानदार, नैतिक और आत्मविश्वासी नेतृत्व मिले तो देश सुपरपावर बन सकता है। वे यहां माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में "विविधता व अनेकता में एकता के सूत्र" विषय पर आयोजित व्याख्यान में मुख्यवक्ता की आसंदी से बोल रहे थे । उन्होंने कहा कि दुनिया के अंदर बढ़ रहे तमाम तरह के संघर्षों से मुक्ति का रास्ता भारतीय संस्कृति ही दिखलाती है क्योंकि यह विविधता में विश्वास करती है। सबको साथ लेकर चलने का भरोसा जगाती है। सभी संस्कृतियों के लिए परस्पर सम्मान व अपनत्व का भाव ही भारतीयता की पहचान है। उनका कहना था कि सारी विचारधाराएं विविधता को नष्ट करने और एकरूपता स्थापित करने पर आमादा हैं, जबकि यह काम अप्राकृतिक है। उन्होंने कहा कि एक समय हमारे प्रकृति प्रेम को पिछड़ापन कहकर दुत्कारने वाले पश्चिमी देश भी आज भारतीय तत्वज्ञान को समझने लगे हैं । जहाँ ये देश एक धर्म के मानक पर एकता की बात करते हैं, वहीं भारत समस्त धर्मों का सम्मान कर परस्पर अस्मिता के विचार को चरितार्थ करता आया है । शिकागो में अपने भाषण में स्वामी विवेकानंद ने भी इसी बात की पुष्टि की थी । उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति की प्रासंगिकता आज भी है, क्योंकि यह वसुधैव कुटुम्बकम की बात करती है। जबकि पश्चिमी देश तो हमेशा से पूंजीवाद व व्यक्तिवाद पर जोर देते आए हैं जो 2007 के सबसे बड़े आर्थिक संकट का कारण बना । वाल स्ट्रीट के खिलाफ चल रहे नागरिक संघर्ष भी इसकी पुष्टि करते हैं। सोवियत संघ का विघटन भी साम्यवाद की गलत आर्थिक पद्धति को अपनाने से ही हुआ। श्री गुप्त ने यह भी कहा कि गरीबों का अमीर देश कहा जाने वाला भारत जैव-विविधता से संपन्न है, जिस पर पश्चिम की बुरी नज़र है । अपनी इसी निधि का संरक्षण हमारा कर्तव्य है, जिससे हम भविष्य में भी स्वावलंबी व मज़बूत बने रहेंगे ।


कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि हमें विकास का नया रास्ता तलाशना होगा। भारतीय जीवन मूल्य ही विविधता स्वीकार्यता और सम्मान देते हैं। इसका प्रयोग मीडिया, मीडिया शिक्षा और जीवन में करने की आवश्यक्ता है। उनका कहना था कि मानवता के हित में हमें अपनी यह वैश्विक भूमिका स्वीकार करनी होगी। कार्यक्रम का संचालन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया। कार्यक्रम के प्रारंभ में कुलपति प्रो.बृजकिशोर कुठियाला ने शाल-श्रीफल पुष्पगुच्छ एवं पुस्तकों का सेट भेंट करके डा.बजरंगलाल गुप्त का अभिनदंन किया। व्याख्यान के बाद डॉ. गुप्त ने श्रोताओं के प्रश्नों के भी उत्तर दिए । कार्यक्रम में प्रो. अमिताभ भटनागर, प्रो. आशीष जोशी, डा. श्रीकांत सिंह, डा. पवित्र श्रीवास्तव, पुष्पेंद्रपाल सिंह, डा. आरती सारंग, दीपेंद्र सिंह बधेल, डा. अविनाश वाजपेयी मौजूद रहे।


संजय द्विवेदी

Wednesday, November 16, 2011

सबसे कम उम्र में 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' Akshitaa honoured as youngest ‘National Child Award’ Winner



सबसे कम उम्र में 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' प्राप्त कर नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) ने बनाया कीर्तिमान

आज के आधुनिक दौर में बच्चों का सृजनात्मक दायरा बढ़ रहा है. वे न सिर्फ देश के भविष्य हैं, बल्कि हमारे देश के विकास और समृद्धि के संवाहक भी. जीवन के हर क्षेत्र में वे अपनी प्रतिभा का डंका बजा रहे हैं. बेटों के साथ-साथ बेटियाँ भी जीवन की हर ऊँचाइयों को छू रही हैं. ऐसे में वर्ष 1986 से हर वर्ष शिक्षा, संस्कृति, कला, खेल-कूद तथा संगीत आदि के क्षेत्रों में उत्कृष्ट उपलब्धि हासिल करने वाले बच्चों हेतु हेतु महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' आरम्भ किये गए हैं। चार वर्ष से पन्द्रह वर्ष की आयु-वर्ग के बच्चे इस पुरस्कार को प्राप्त करने के पात्र हैं.

वर्ष 2011 के लिए 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' 14 नवम्बर 2011 को विज्ञानं भवन, नई दिल्ली में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में भारत सरकार की महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती कृष्णा तीरथ द्वारा प्रदान किये गए. विभिन्न राज्यों से चयनित कुल 27 बच्चों को ये पुरस्कार दिए गए, जिनमें मात्र 4 साल 8 माह की आयु में सबसे कम उम्र में पुरस्कार प्राप्त कर अक्षिता (पाखी) ने एक कीर्तिमान स्थापित किया. गौरतलब है कि इन 27 प्रतिभाओं में से 13 लडकियाँ चुनी गई हैं. सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भारतीय डाक सेवा के निदेशक और चर्चित लेखक, साहित्यकार, व ब्लागर कृष्ण कुमार यादव एवं लेखिका व ब्लागर आकांक्षा यादव की सुपुत्री और पोर्टब्लेयर में कारमेल सीनियर सेकेंडरी स्कूल में के. जी.- प्रथम की छात्रा अक्षिता (पाखी) को यह पुरस्कार कला और ब्लागिंग के क्षेत्र में उसकी विलक्षण उपलब्धि के लिए दिया गया है. इस अवसर पर जारी बुक आफ रिकार्ड्स के अनुसार- ''25 मार्च, 2007 को जन्मी अक्षिता में रचनात्मकता कूट-कूट कर भरी हुई है। ड्राइंग, संगीत, यात्रा इत्यादि से सम्बंधित उनकी गतिविधियाँ उनके ब्लाॅग ’पाखी की दुनिया (http://pakhi-akshita.blogspot.com/) पर उपलब्ध हैं, जो 24 जून, 2009 को आरंभ हुआ था। इस पर उन्हें अकल्पनीय प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं। 175 से अधिक ब्लाॅगर इससे जुडे़ हैं। इनके ब्लाॅग 70 देशों के 27000 से अधिक लोगों द्वारा देखे गए हैं। अक्षिता ने नई दिल्ली में अप्रैल, 2011 में हुए अंतर्राष्ट्रीय ब्लाॅगर सम्मेलन में 2010 का ’हिंदी साहित्य निकेतन परिकल्पना का सर्वोत्कृष्ट पुरस्कार’ भी जीता है।इतनी कम उम्र में अक्षिता के एक कलाकार एवं एक ब्लाॅगर के रूप में असाधारण प्रदर्शन ने उन्हें उत्कृष्ट उपलब्धि हेतु 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार, 2011' दिलाया।''इसके तहत अक्षिता को भारत सरकार की महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती कृष्णा तीरथ द्वारा 10,000 रूपये नकद राशि, एक मेडल और प्रमाण-पत्र प्रदान किया गया.

यही नहीं यह प्रथम अवसर था, जब किसी प्रतिभा को सरकारी स्तर पर हिंदी ब्लागिंग के लिए पुरस्कृत-सम्मानित किया गया. अक्षिता का ब्लॉग 'पाखी की दुनिया' (www.pakhi-akshita.blogspot.com/) हिंदी के चर्चित ब्लॉग में से है और इस ब्लॉग का सञ्चालन उनके माता-पिता द्वारा किया जाता है, पर इस पर जिस रूप में अक्षिता द्वारा बनाये चित्र, पेंटिंग्स, फोटोग्राफ और अक्षिता की बातों को प्रस्तुत किया जाता है, वह इस ब्लॉग को रोचक बनता है.

Akshitaa honoured as youngest ‘National Child Award’ Winner

Coming events cast their shadows before. All that's required afterwards is nurturing of talent. It’s come true for Akshitaa, a 4 year 8 months old girl. Studying in KG-I grade of Carmel Sr. Secondary School, Port Blair, Akshitaa's exceptional performance as an artist and as a blogger at such a young age, has earned her the ‘National Child Award’ for Exceptional Achievement, 2011. The award was presented by Hon'ble Smt. Krishna Tirath, Minister of State for Women and Child Development, Government of India on 14th November, 2011 on Children's Day at Vigyan Bhavan, New Delhi.

It is mentionworthy that The Government of India instituted the National Child Awards for Exceptional Achievement in 1996 to give recognition to children with exceptional abilities who have achieved outstanding status in fields such as academics, culture, arts, sports, music, etc. Children in the age group of 4-15 years are eligible for this award. This year Award was given to 27 Awardees from different states/UTs of India and Andaman-Nicobar Islands was represented by Akshitaa. Among 27 awardees Akshitaa was youngest child. Hon'ble Minister Smt. Krishna Tirath was so impressed to see such a young girl as Awardee and she blessed her wishes for her bright future. Akshitaa was not only youngest child to get the award but she also created history as this was the first time when any award for exceptional performance as a blogger was given by Govt. of India. The Award carries a cash prize of Rs. 10,000/- , a silver medal and a Certificate.

Akshita is a very small aged girl, but she has an inner self lit with creativity which shall be seen by her drawings and imagination in that. Not only that, she is a very famous blogger too. Being in a very small age It can’t think that she will write herself, but in her blog all the thoughts are given by Akshitaa and it is expressed in words by her parents. In the beginning, when her first drawing was seen by her parents they thought of it only as rubbish as every parents think. But they became serious when they got an appeal in her drawing. Her drawing is not only appreciated in India but also abroad. Her father Mr. K.K Yadav is Director of Postal Services in A&N islands and mother Mrs. Akanksha is a lecturer in College. Both of them are well known writers, poets & bloggers . Name of Akshitaa’s blog is – ‘Pakhi Ki Dunia’ (http://pakhi-akshita.blogspot.com). By this name itself someone can feel how the blog will be; and in real it is so sweet and exciting with many colorful things like her drawing, her curiosity to know everything, variety of knowledge etc. By seeing that so many people think whether it is possible for a 4 year 8 months old girl, but it’s true that talent is beyond any rule and regulation like age. It needs only the right way to express itself.


Monday, November 14, 2011

माखनलाल विवि के पराक्रम ने दिल्ली में दिखाया पराक्रम



राष्ट्रीय वाद-विवाद प्रतियोगिता में जीता प्रथम पुरस्कार


राष्ट्रीय वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाने वाले पराक्रम सिंह शेखावत को पुरस्कृत करते हुए संसद सदस्य एवं भारतीय संसदीय संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ. पी.के. पटासानी।



भोपाल 14 नवंबर । माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के विद्यार्थी पराक्रम सिंह शेखावत ने दिल्ली में आयोजित सातवीं सतपाल मित्तल अंतर विश्वविद्यालयीन राष्ट्रीय वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार जीतकर विश्वविद्यालय का ही नहीं, बल्कि पूरे मध्यप्रदेश का नाम रौशन किया है। भारतीय संसदीय संस्थान – जनसंख्या एवं विकास (आईएपीपीडी) के तत्त्वावधान में आयोजित इस अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालयीन प्रतियोगिता में देश भर के 42 विश्वविद्यालयों ने भाग लिया। इस वर्ष प्रतियोगिता का विषय ‘पर्यावरण संरक्षण के प्रति महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अधिक सचेत हैं’, था।

एमबीए (मनोरंजन संचार) पाठ्यक्रम के विद्यार्थी पराक्रम सिहं ने विषय के पक्ष में विचार रखते हुए न केवल बार-बार दर्शकों व प्रतिभागियों की तालियां बटोरीं, बल्कि निर्णायक मंडल ने भी उसकी प्रस्तुति की खुलकर प्रशंसा की। प्रथम पुरस्कार के रूप में पराक्रम सिंह को एक ट्रॉफी और प्रमाणपत्र के अलावा 15000 रुपये की राशि का चैक प्राप्त हुआ है। विश्वविद्यालय की टीम में पराक्रम सिंह के अलावा एमए विज्ञापन एवं जनसंपर्क पाठ्यक्रम के विद्यार्थी शुभ तिवारी शामिल हुए और टीम इन्चार्ज और मार्गदर्शक के रूप में विश्वविद्यालय के शिक्षक श्री सुरेन्द्र पॉल ने टीम का प्रतिनिधित्व किया।

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने प्रथम पुरस्कार प्राप्त करने पर पराक्रम सिंह को हार्दिक बधाई और आशीर्वाद दिया है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में सांस्कृतिक और सृजनात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय ने विशेष योजना बनाई है। इसके तहत विश्वविद्यालय विद्यार्थियों को विशेष सुविधाएं मुहैया करा रहा है। पराक्रम सिंह की उपलब्धि विश्वविद्यालय के अन्य विद्यार्थियों को भी सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करेगी।

भारतीय संसदीय संस्थान ने देश भर के विश्वविद्यालयों को वाद-विवाद प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए पत्र लिखा था। जिसके तहत प्रत्येक विश्वविद्यालय से एक विद्यार्थी को पक्ष में और एक विद्यार्थी को विपक्ष में नामांकित किया जाना था एवं विश्वविद्यालय स्तर पर संपन्न होने वाली अंतर विभागीय वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को भी पुरस्कृत करने का प्रावधान था। विश्वविद्यालय द्वारा 10 अक्टूबर 2011 को आयोजित वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर पराक्रम सिंह शेखावत, द्वितीय स्थान पर शुभ तिवारी एवं तृतीय स्थान पर एमजे पाठ्यक्रम की छात्रा अंशु सिन्हा रही। भारतीय संसदीय संस्थान –जनसंख्या एवं विकास ने इन छात्रों को क्रमशः प्रथम स्थान के लिए रूपये 3000 द्वितीय स्थान के लिए रूपये 2000 एवं तृतीय स्थान के लिए 1500 रूपये का पुरस्कार एवं प्रमाणपत्र भी प्रदान किया है। इसी तारतम्य में पराक्रम सिहं शेखावत एवं शुभ तिवारी ने अखिल भारतीय स्तर पर विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया।

(डॉ. पवित्र श्रीवास्तव)

अध्यक्ष विज्ञापन एवं जनसंपर्क विभाग

पत्रकारिता विश्वविद्यालय में सांध्यकालीन पाठयक्रम प्रारम्भ

पत्रकारिता विश्वविद्यालय में सांध्यकालीन पाठयक्रम प्रारम्भ




माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा मीडिया एवं संचार शिक्षा के क्षेत्र में नई पहल करते हुये अंशकालिक सांध्यकालीन पाठयक्रम प्रारम्भ किये हैं। यह पाठयक्रम विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थियों के साथ-साथ नौकरीपेशा व्यक्तियों, सेवानिवृत्त लोगों, सैन्य अधिकारियों तथा गृहणियों के लिए भी उपलब्ध होंगे। विश्वविद्यालय द्वारा वैब संचार, वीडियो प्रोडक्शन, पर्यावरण संचार, भारतीय संचार परम्पराएँ तथा योगिक स्वास्थ्य प्रबंधन एवं आध्यात्मिक संचार जैसे विषयों में सांध्यकालीन पी.जी. डिप्लोमा पाठयक्रम प्रारम्भ किये गये हैं।

विश्वविद्यालय द्वारा पाँच सम्भावनाओं से भरे क्षेत्रों में सांध्यकालीन पी.जी.डिप्लोमा पाठयक्रम प्रारम्भ किये गये हैं। विश्वविद्यालय का सांध्यकालीन वैब संचार पाठयक्रम अखबारों के ऑनलाईन संस्करण, वैब पोर्टल, वैब रेडियो एवं वैब टेलीविजन जैसे क्षेत्रों के लिए कुशलकर्मी तैयार करने के उद्देश्य से प्रारम्भ किया गया है। वीडियो कार्यक्रम के निर्माण सम्बन्धी तकनीकी एवं सृजनात्मक पक्ष के साथ स्टुडियो एवं आउटडोर शूटिंग, नॉनलीनियर सम्पादन, डिजिटल उपकरणों के संचालन आदि के सम्बन्ध में कुशल संचारकर्मी तैयार करने के उद्देश्य से वीडियो प्रोडक्शन का सांध्यकालीन पाठयक्रम प्रारम्भ किया गया है। पर्यावरण आज समाज में ज्वलंत विषय है। पर्यावरण के विविध पक्षों की जानकारी प्रदान करने एवं इस क्षेत्र के लिए विशेष लेखन-कौशल विकसित करने के उद्देश्य से पर्यावरण संचार का सांध्यकालीन पाठयक्रम तैयार किया गया है। योग, स्वास्थ्य और आध्यात्म के क्षेत्र में व्यवहारिक प्रशिक्षण प्रदान करने तथा इस क्षेत्र के लिए कुशल कार्यकर्ता को तैयार करने के उद्देश्य से योगिक स्वास्थ्य प्रबंधन एवं आध्यात्मिक संचार का सांध्यकालीन पाठयक्रम प्रारम्भ किया गया है। भारतीय दर्शन एवं प्राचीन भारतीय धर्मग्रंथों में मौजूद संचार के विभिन्न स्वरूपों की शिक्षा एवं वर्तमान सामाजिक परिदृश्य में उनके सार्थक उपयोग की दृष्टि विकसित करने के उद्देश्य से भारतीय संचार परम्पराओं में सांध्यकालीन पाठयक्रम तैयार किया गया है।

सांध्यकालीन पाठयक्रमों के सम्बन्ध में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.के.कुठियाला ने बताया कि विश्वविद्यालय में अपनी अकादमिक विस्तार योजना के तहत अंशकालिक सांध्यकालीन पाठयक्रम प्रारम्भ किये हैं। आज के प्रतिस्पर्धापूर्ण दौर में युवाओं को सामान्य डिग्री के साथ विशेषीकृत शिक्षा की आवश्यकता है। इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए विश्वविद्यालय में सांध्यकालीन पाठयक्रम प्रारम्भ करने का निर्णय लिया है। यह पाठयक्रम विभिन्न विषयों का अध्ययन कर रहे विद्यार्थियों को अपनी नियमित पढ़ाई के साथ ही सांध्यकालीन समय में उपलब्ध होंगे। साथ-साथ नौकरीपेशा व्यक्ति, सेवानिवृत्त व्यक्ति, गृहणियाँ तथा सैन्य अधिकारी भी इन पाठयक्रमों में प्रवेश ले सकते हैं।

पाठयक्रमों में प्रवेश स्नातक परीक्षा में प्राप्त अंकों की मेरिट के आधार पर दिया जायेगा। पाठयक्रमों की अवधि एक वर्ष है। प्रत्येक पाठयक्रम का शुल्क 10,000रुपये रखा गया है जो विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित किश्तों में देय होगा। प्रवेश हेतु विवरणिका एवं आवेदन पत्र विश्वविद्यालय के भोपाल परिसर में 150रुपये जमा कर प्राप्त किये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय की वेबसाईट www.mcu.ac.in से विवरणिका एवं आवेदन पत्र डाउनलोड कर 150 रुपये का डी.डी. के साथ आवेदन जमा किया जा सकता है। आवदेन करने की अंतिम तिथि 19 नवम्बर 2011 है। अधिक जानकारी के लिए टेलीफोन नम्बर 0755-2553523 पर सम्पर्क किया जा सकता है।



(डॉ. पवित्र श्रीवास्तव)निदेशक, प्रवेश

नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' हेतु चयनित

नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' हेतु चयनित



प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती. तभी तो पाँच वर्षीया नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) को वर्ष 2011 हेतु राष्ट्रीय बाल पुरस्कार (National Child Award) के लिए चयनित किया गया है. सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भारतीय डाक सेवा के निदेशक और चर्चित लेखक, साहित्यकार, व ब्लागर कृष्ण कुमार यादव एवं लेखिका व ब्लागर आकांक्षा यादव की सुपुत्री अक्षिता को यह पुरस्कार 'कला और ब्लागिंग' (Excellence in the Field of Art and Blogging) के क्षेत्र में शानदार उपलब्धि के लिए बाल दिवस, 14 नवम्बर 2011 को विज्ञानं भवन, नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में भारत सरकार की महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती कृष्णा तीर्थ जी द्वारा प्रदान किया जायेगा. इसके तहत अक्षिता को 10,000 रूपये नकद राशि, एक मेडल और प्रमाण-पत्र दिया जायेगा.



यह प्रथम अवसर होगा, जब किसी प्रतिभा को सरकारी स्तर पर हिंदी ब्लागिंग के लिए पुरस्कृत-सम्मानित किया जायेगा. अक्षिता का ब्लॉग 'पाखी की दुनिया' (www.pakhi-akshita.blogspot.com/) हिंदी के चर्चित ब्लॉग में से है. फ़िलहाल अक्षिता पोर्टब्लेयर में कारमेल सीनियर सेकेंडरी स्कूल में के. जी.- प्रथम की छात्रा हैं और उनके इस ब्लॉग का सञ्चालन उनके माता-पिता द्वारा किया जाता है, पर इस पर जिस रूप में अक्षिता द्वारा बनाये चित्र, पेंटिंग्स, फोटोग्राफ और अक्षिता की बातों को प्रस्तुत किया जाता है, वह इस ब्लॉग को रोचक बनता है.



नन्हीं ब्लागर अक्षिता (पाखी) को इस गौरवमयी उपलब्धि पर अनेकोंनेक शुभकामनायें और बधाइयाँ !!



- दुर्ग विजय सिंह 'दीप'


उपनिदेशक-आकाशवाणी (समाचार प्रभाग)


, आल इण्डिया रेडियो, पोर्टब्लेयर


अंडमान-निकोबार द्वीप समूह.

Sunday, November 13, 2011

सुधीर, गीताश्री और संदीप को सृजनगाथा सम्मान


बैंकाक में सम्मानित होंगे हिन्दी के रचनाकार







रायपुर । वरिष्ठ कवि व 'दुनिया इन दिनों' के प्रधान संपादक डॉ. सुधीर सक्सेना,

भोपाल को उनकी कविता संग्रह 'रात जब चंद्रमा बजाता है' तथा स्त्री विमर्श के

लिए प्रतिबद्ध लेखिका व आउटलुक, हिन्दी की सहायक संपादिका, गीताश्री को उनकी

संपादित कृति 'नागपाश में स्त्री' तथा युवा पत्रकार, दैनिक भारत भास्कर

(रायपुर) के संपादक श्री संदीप तिवारी 'राज' की पहली कृति 'ये आईना मुझे बूढ़ा

नहीं होने देता' के लिए वर्ष 2011 के सृजनगाथा सम्मान (www.srijangatha.com )

से नवाजा गया है । यह निर्णय देश के चुनिंदे 1000 युवा साहित्यकार-पाठकों की

राय पर निर्धारित किया गया । यह सम्मान उन्हें चौंथे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन,

बैंकाक, थाईलैंड में 17 दिसंबर, 2011 को दी जायेगी । सम्मान स्वरूप उन्हें

11-11 हजार का चेक, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह और साहित्यिक कृतियां भेंट की

जायेंगी ।

ज्ञातव्य हो कि साहित्य, संस्कृति और भाषा के लिए प्रतिबद्ध साहित्यिक संस्था

(वेब पोर्टल )सृजन गाथा डॉट कॉम पिछले पाँच वर्षों से ऐसी युवा विभूतियों को

सम्मानित कर रही है जो कला, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय

योगदान दे रहे हैं । इसके अलावा वह तीन अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलनों का

संयोजन भी कर चुकी है जिसका पिछला आयोजन मॉरीशस में किया गया था ।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी और हिंदी-संस्कृति को प्रतिष्ठित करने के लिए

संस्था द्वारा, किये जा रहे प्रयासों और पहलों के अनुक्रम में आगामी 15 से 21

दिसंबर तक थाईलैंड में चतुर्थ अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया जा

रहा है । सम्मेलन में हिंदी के आधिकारिक विद्वान, अध्यापक, लेखक, भाषाविद्,

पत्रकार, टेक्नोक्रेट एवं हिंदी प्रचारक भाग ले रहे हैं । सम्मेलन का मूल

उद्देश्य स्वंयसेवी आधार पर हिंदी-संस्कृति का प्रचार-प्रसार, भाषायी

सौहार्द्रता एवं सांस्कृतिक अध्ययन-पर्यटन का अवसर उपलब्ध कराना है। उक्त अवसर

पर आयोजित संगोष्ठी – हिन्दी की वैश्वकिता पर प्रतिभागी अपना आलेख पाठ कर

सकेंगे । इसके अलावा प्रतिभागियों के लिए बैंकाक, पटाया, कोहलर्न आईलैंड थाई

कल्चरल शो, गोल्डन बुद्ध मंदिर, विश्व की सबसे बड़ी जैम गैलरी, सफारी वर्ल्ड

आदि स्थलों का सांस्कृतिक पर्यटन का अवसर भी उपलब्ध होगा । आयोजन

संयोजकजयप्रकाश मानस व डॉ. सुधीर शर्मा ने बताया है कि इस वर्ष इसके

अलावा मुंबई की

कथाकार संतोष श्रीवास्तव, संस्कृति कर्मी सुमीता केशवा, हिन्दी ब्लॉगिंग के

लिए प्रतिबद्ध रवीन्द्र प्रभात (लखनऊ), आधारशिला के संपादक दिवाकर भट्ट

(देहरादून), सिनेमा लेखन के लिए प्रमोद कुमार पांडेय (मेरठ), नागपुर विवि के

हिंदी विभागाध्यक्ष प्रमोद कुमार शर्मा, प्रवासी लेखिका देवी नागरानी (यूएसए),

ओडिया से हिन्दी अनुवादक श्री दिनेश माली(ब्रजराजनगर, ओडिसा) हिन्दी के

प्रकाशक श्री शांति स्वरूप शर्मा (यश पब्लिकेशंस, दिल्ली), युवा लेखिका अलका

सैनी (चंडीगढ़) आदि को उनकी उल्लेखनीय सेवा के लिए सृजनश्री से सम्मानित किया

जायेगा ।



रायपुर से डॉ. सुधीर शर्मा की रपट