Saturday, October 24, 2009

दोहों की दुनिया



- संजीव 'सलिल'



देह नेह का गेह हो, तब हो आत्मानंद.
स्व अर्पित कर सर्व-हित, पा ले परमानंद..

मन से मन जोड़ा नहीं, तन से तन को जोड़.
बना लिया रिश्ता 'सलिल', पल में बैठे तोड़..

अनुबंधों को कह रहा, नाहक जग सम्बन्ध.
नेह-प्रेम की यदि नहीं, इनमें व्यापी गंध..

निज-हित हेतु दिखा रहे, जो जन झूठा प्यार.
हित न साधा तो कर रहे, वे पल में तकरार..

अपनापन सपना हुआ, नपना मतलब-स्वार्थ.
जपना माला प्यार की, जप ना- कर परमार्थ..

भला-बुरा कब कहाँ क्या, कौन सका पहचान?
जब जैसा जो घट रहा, वह हरि-इच्छा जान.

बहता पानी निर्मला, ठहरा तो हो गंद.
चेतन चेत न क्यों रहा?, 'सलिल' हुआ मति-मंद..

***

Monday, October 19, 2009

हिंदी अंत्याक्षरी प्रतियोगिता संपन्न




दीवाली के अवसर पर हिंदुस्तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन, आंचलिक कार्यालय, चेन्नई में हिंदी अंत्याक्षरी प्रतियोगिता संपन्न हुई । डॉ. विजया, हिंदी अधिकारी, भारतीय स्टेट बैंक, चेन्नई ने अंत्याक्षरी का आयोजन किया । इस प्रतियोगिता में सात टीम शामिल थे । विजेता टीमों को महाप्रबंधक, दक्षिणांचल श्री आर.राधाकृष्णन तथा श्री के.राधाकृष्णन, उप महाप्रबंधक, एलपीजी ने पुरस्कार प्रदान किए । आयोजन किया । कार्यक्रम का संयोजन डॉ. बशीर, उप प्रबंधक (राजभाषा) ने किया । दीपोत्सव के अवसर पर आयोजित इस प्रतियोगिता का कार्यालय में हिंदी की महक और चमक फैलाने में का विशिष्ट योगदान रहा ।

संजीव 'सलिल' की तेवरियाँ


१.

ताज़ा-ताज़ा दिल के घाव.
सस्ता हुआ नमक का भाव..
मंझधारों-भँवरों को पार,
किया, किनारे डूबी नाव..
सौ चूहे खाने के बाद.
हुआ अहिंसा का है चाव..
ताक़तवर के चूम कदम.
निर्बल को दिखलाया ताव..
ठण्ड भगाई नेता ने,
जला झोपडी, बना अलाव..
डाकू तस्कर चोर खड़े
मतदाता क्या करे चुनाव..
अफसर रावण जन सीता.
कैसे होगा 'सलिल' निभाव..

***

२.

दिल ने हरदम चाहे फूल.
पर दिमाग ने बोए शूल..
मेहनतकश को कहें गलत.
अफसर काम न करते भूल..
सत्य दोगली है दुनिया.
नहीं सुहाते इसे उसूल..
पैर पटक मत नाहक तू.
सर जा बैठे उड़कर धूल..
बने तीन के तेरह भी.
डूबा रहे अपना धन मूल..
मंझधारों में विमल 'सलिल'.
गंदा करते हम जा कूल..
धरती पर रख पैर जमा.
'सलिल' न दिवा स्वप्न में झूल..
***

३.

खर्चे अधिक आय है कम.
दिल रोता, आँखें हैं नम..
पला शौक तमाखू का.
बना मौत का फंदा, यम..
जो करता जग उजियारा.
उसी दीप के नीचे तम..
सीमाओं की फिक्र नहीं.
ठोंक रहे संसद में ख़म..
जब पाया तो खुश न हुए.
खोया तो करते क्यों गम?
तन-तन रुचे न मन्दिर की.
कोठे की रुचती छम-छम..
वीर भोग्या वसुंधरा.
'सलिल' रखो हाथों में दम..
***

Friday, October 16, 2009

दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ



दीप ज्योति बनकर हम


-आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'


दीप ज्योति बनकर हम
जग में नव प्रकाश फैलाएं.
आत्म और परमात्म मिलाकर
दीप-ज्योति बन जाएँ...

दस दिश प्रसरित हो प्रकाश
तम् तनिक न हो अवरोध.
सबको उन्नति का अवसर हो
स्वाभिमान का बोध.
पढने, बढ़ने, जीवन गढ़ने
का सबको अधिकार.
जितना पायें, शत गुण बाँटें
बढे परस्पर प्यार.
रवि सम तम् पी, बाँट उजाला
जग ज्योतित कर जाएँ.
अंतर्मन का दीप बालकर
दीपावली मनाएँ...

अंधकार की कारा काटें,
उजियारा हो मुक्त.
निज हित गौड़, साध्य सबका हित,
जन-गण हो संयुक्त.
श्रम-सीकर की विमल नर्मदा,
'सलिल' करे अवगाहन.
रचें शून्य से स्रष्टि समूची,
हर नर हो नारायण.
आत्म मिटा विश्वात्म बनें,
परमात्म प्राप्त कर पायें.
'मैं' को 'हम' में कर विलीन,
'सब' दीपावली मनाएँ...

एक दीप गर जले अकेला,
तूफां उसे बुझाता.
शत दीपो से जग रोशन हो,
अंधकार डर जाता.
शक्ति एकता में होती है,
जो चाहे वह कर दे.
माटी के नन्हें दीपक को
तम् हरने का वर दे.
बने अमावस भी पूनम,
यदि दीप साथ जल जाएँ.
स्नेह-साधना करें अनवरत
दीपावली मनाएँ...



दीवाली गीत

हिल-मिल
दीपावली मना रे...
*
चक्र समय का
सतत चल रहा,
स्वप्न नयन में
नित्य पल रहा.
सूरज-चंदा
उगा-ढल रहा.
तम प्रकाश के
तले पल रहा,
किन्तु निराश
न होना किंचित
नित नव
आशा-दीप जला रे.
हिल-मिल
दीपावली मना रे...

*

तन-दीपक
मन बाती प्यारे!
प्यास तेल को
मत छलका रे.
श्वासा की
चिंगारी लेकर,
आशा जीवन-
ज्योति जला रे.
मत उजास का
क्रय-विक्रय कर-
मुक्त हस्त से
'सलिल' लुटा रे.
हिल-मिल
दीपावली मना रे...

दोहों की दीपावली

दोहों की दीपावली, रमा भाव-रस खान.
श्री गणेश के बिम्ब को, 'सलिल' सार अनुमान..

दीप सदृश जलते रहें, करें तिमिर का पान.
सुख समृद्धि यश पा बनें, आप चन्द्र-दिनमान..

अँधियारे का पान कर करे उजाला दान.
मती का दीपक 'सलिल', सर्वाधिक गुणवान..

मन का दीपक लो जला तन की बाती डाल.
इच्छाओं का घृत जले, मन नाचे दे ताल..

दीप अलग सबके मगर, उजियारा है एक.
राह अलग हर पन्थ की, ईश्वर सबका एक..

बुझ जाती बाती 'सलिल', मिट जाता है दीप.
किन्तु यही सूर्य का वंशधर, प्रभु के रहे समीप..

दीप अलग सबके मगर, उजियारा है एक.
राह अलग हर पन्थ की, लेकिन एक विवेक..

दीपक बाती ज्योति को, सदा संग रख नाथ!
रहें हाथ जिस पथिक के, होगा वही सनाथ..

मृण्मय दीपक ने दिया, सारा जग उजियार.
तभी रहा जब परस्पर, आपस में सहकार..

राजमहल को रौशनी, दे कुटिया का दीप.
जैसे मोती भेंट दे, खुद मिट नन्हीं सीप..

दीप ब्रम्ह है, दीप हरी, दीप काल सच मान.
सत-शिव-सुन्दर है यही, सत-चित-आनंद गान..

मिले दीप से दीप तो, बने रात भी प्रात.
मिला हाथ से हाथ लो, दो शह भूलो मात..

ढली सांझ तो निशा को, दीप हुआ उपहार.
अँधियारे के द्वार पर, जगमग बन्दनवार..

रहा रमा में मन रमा, किसको याद गणेश.
बलिहारी है समय की, दिया जलाये दिनेश..

लीप-पोतकर कर लिया, जगमग सब घर-द्वार.
तनिक न सोचा मिट सके, मन की कभी दरार..

सरहद पर रौशन किये, शत चराग दे जान.
लक्ष्मी नहीं शहीद का, कर दीपक गुणगान..

दीवाली का दीप हर, जगमग करे प्रकाश.
दे संतोष समृद्धि सुख, अब मन का आकाश..

कुटिया में पाया जनम, राजमहल में मौत.
आशा-श्वासा बहन हैं, या आपस में सौत?.

पर उन्नति लख जल मरी, आप ईर्ष्या-डाह.
पर उन्नति हित जल मरी, बाती पाई वाह..

तूफानों से लड़-जला, अमर हो गया दीप.
तूफानों में पल जिया, मोती पाले सीप..

तन माटी का दीप है, बाती चलती श्वास.
आत्मा उर्मिल वर्तिका, घृत अंतर की आस..

जीते की जय बोलना, दुनिया का दस्तूर.
जलते दीपक को नमन, बुझते से जग दूर..

मातु-पिता दोनों गए, भू को तज सुरधाम.
स्मृति-दीपक बालकर, करता 'सलिल' प्रणाम..

जननि-जनक की याद है, जीवन का पाथेय.
दीप-ज्योति में बस हुए, जीवन-ज्योति विधेय..

नन्हें दीपक की लगन, तूफां को दे मात.
तिमिर रात का मिटाकर, 'सलिल' उगा दे प्रात..

दीप-ज्योति तन-मन 'सलिल', आत्मा दिव्य प्रकाश.
तेल कामना को जला, तू छू ले आकाश..

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आँखें गड़ाये ताकता हूँ आसमान को.
भगवान का आशीष लगे अब झरा-झरा..

माता-पिता गए तो लगा प्राण ही गए.
बेबस है 'सलिल' आज सभी से डरा-डरा..

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Wednesday, October 14, 2009

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, कोयंबत्तूर में हिंदी पखवाड़ा संपन्न














सरल हिंदी प्रयोग करते हुए हम राजभाषा के प्रयोग को बढ़ावा दे सकते हैं : बी.एस.वी. शर्मा

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, क्षेत्रीय कार्यालय, कोयंबत्तूर में दि. 1 सितंबर, 2009 से दि. 15 सितंबर, 2009 तक हिंदी पखवाड़ा उत्सव का आयोजन किया गया । सरकारी कामकाज में हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करने हेतु क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त श्री बी.एस.वी. शर्मा जी द्वारा क्षेत्र के सभी अधिकारियों तथा कर्मचारियों से अपील की गई । हिंदी पखवाड़ा के उपलक्ष्य में हिंदी प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देने तथा विभिन्न आयामों में स्टॉफ सदस्यों की कुशलता विकसित करने हेतु 18 विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया, जिनमें कार्यालय के अधिकांश अधिकारियों तथा कर्मचारियों ने भाग लिया । पखवाड़ा के दौरान ही केंद्रीय आयुक्त महोदय द्वारा कोयंबत्तूर क्षेत्रीय कार्यालय का दौरा किया गया था, तदवसर पर संपन्न उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक की अधिकांश कार्रवाई हिंदी में ही की गई थी । इसी दौरान एक विशेष हिंदी कार्यशाला का आयोजन भी किया गया जिसमें प्रतिभागियों को कंप्यूटर पर हिंदी में यूनिकोड फांटों के उपयोग के साथ कार्य करने का प्रशिक्षण दिया गया । प्रशिक्षित कर्मचारियों से कंप्यूटर पर अधिकाधिक कार्य हिंदी में करने की अपील भी की गई है । ध्यातव्य है कि कोयंबत्तूर क्षेत्र में हिंदी कार्यान्वयन में विशेष प्रगति दर्ज की गई है । कंप्यूटर पर हिंदी कार्य की मात्रा सुनिश्चित करने हेतु कई मानक मसौदें द्विभाषी रूप में बनाए गए हैं । इसके अलावा मानक मसौदों की सी.डी. (A Compact Disc of Bilingual Standard Drafts) भी बनाई गई है, जिसका वितरण कई कार्यालयों में किया गया है । चेक अग्रेषण पत्र तथा वेतन-पर्ची का द्विभाषी रूप में प्रयोग हो रहा है । नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, कोयंबत्तूर का संयोजन भी कर्मचारी भविष्य निधि संगठन द्वारा सफलतापूर्वक किया
जा रहा है । समिति को सक्रिय बनाने तथा उसकी गतिविधियों में तेजी लाने में समिति के अध्यक्ष श्री बी.एस.वी. शर्मा, क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त तथा सदस्य-सचिव डॉ. सी. जय शंकर बाबु, सहायक निदेशक (रा.भा.) द्वारा विशेष प्रयास किए जा रहे हैं । कंप्यूटर में राजभाषा प्रयोग को बढ़ावा देने तथा राजभाषा के विविध आयामों में विकास सुनिश्चित करने के लिए डॉ. सी. जय शंकर बाबु द्वारा बनाया गया राजभाषा साधन सी.डी. (A CD of Official Language Resources) के प्रयोग के साथ नराकास के सदस्य कार्यालयों में राजभाषा कार्यान्वयन में तेजी भी नज़र आई है । स्टॉफ-सदस्यों को बोलचाल की हिंदी सिखाने हेतु भी कार्यालय में कक्षाओं की व्यवस्था की गई है, जिसमें अधिकारी एवं कर्मचारी दिलचस्पी के साथ शामिल हो रहे हैं ।
पुरस्कार वितरण समारोह

हिंदी पखवाड़ा के उपलक्ष्य में आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कृत करने हेतु पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन दि. 14.10.2009 को अपराह्न 3 बजे आयोजित किया गया । कार्यक्रम का शुभारंभ श्रीमती भुवनेश्वरी के प्रार्थनागीत के साथ हुआ । सुश्री सी. अमुदा, क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त-II ने स्वागत भाषण दिया । तदवसर पर उन्होंने कहा कि बहुभाषी भारत में संपर्क भाषा के रूप में हिंदी की विशिष्ट भूमिका है । राष्ट्रीय एकता और अखंडता के साधन महत्वपूर्ण हिंदी भाषा का प्रयोग राजभाषा के रूप अवश्य किया जाना चाहिए । तदनंतर डॉ. सी. जय शंकर बाबु, सहायक निदेशक (राजभाषा) ने राजभाषा कार्यान्वयन की प्रगति का जायजा दिया ।
समारोह की अध्यक्षता श्री बी.एस.वी. शर्मा, क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त ने की । उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हिंदी हमारी राजभाषा है । सरल हिंदी प्रयोग करते हुए हम राजभाषा के प्रयोग को बढ़ावा दे सकते हैं । सरकारी कामकाज में हिंदी का प्रयोग करने हमारा संवैधानिक दायित्व है । इस दायित्व की पूर्ति हमारी निष्ठा पर निर्भर करती है । हम सरकारी कार्यों से संबंधित लक्ष्यों को जिस तरह हासिल कर रहे हैं, उसी तरह हिंदी प्रयोग संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए भी आवश्यक प्रयास किया जाए । उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी कामकाज में आज कंप्यूटर का ज्यादा प्रयोग हो रहा है, इसी दृष्टि से कंप्यूटर पर हिंदी प्रयोग का प्रशिक्षण भी अधिकांश कर्मचारियों को दिया गया है ।
समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित श्रीमती डॉ. वी. पद्मावती सहायक प्रोफ़ेसर, हिंदुस्तान महाविद्यालय ने अपने वक्तव्य में हिंदी के महत्व को रेखांकित करते हुए किया और कुछ जीवंत उदाहरण देते हुए हिंदी सीखने एवं उसका प्रयोग करने का अनुरोध करते हुए बहुभाषाई परिवेश में राजभाषा के रूप में हिंदी के महत्व पर प्रकाश डाला । अन्य भाषाओं की तरह हिंदी का सम्मान करना और सरकारी कामकाज उसका प्रयोग करना भी हमारा कर्त्तव्य है ।

प्रतियोगिताओं के विजेताओं को मुख्य अतिथि तथा क्षेत्रीय आयुक्त महोदय के करकमलों से पुरस्कार वितरण किए गए । कार्यालय के स्टॉफ सदस्यों तथा उनके बच्चों द्वारा रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी इस अवसर पर आयोजित किए गए । हिंदी सीखने की जरूरत पर जोर देने वाला हास्यमय नाटक एवं नन्हें बच्चों के नाच-गान, विभिन्न वेष-भूषाओं की प्रस्तुति विशेष आकर्षण रहे हैं । समारोह के अंत में डॉ. सी. जय शंकर बाबु, सहायक निदेशक (राजभाषा) ने धन्यवाद ज्ञापन किया । राष्ट्रगान के साथ समारोह सुसंपन्न हुआ ।
हिंदी पखवाड़ा के दौरान ही नहीं नियमित रूप से कार्यालय में अधिकाधिक कार्य हिंदी में करने हेतु स्टॉफ को प्रोत्साहित किया गया । कर्मचारियों में राजभाषा हिंदी के प्रति चेतना जगाने में हिंदी पखवाड़ा उत्सव का आयोजन सफल रहा ।

एचपीसीएल, गुंतकल डिपो में हिंदी कंप्यूटर कार्यशाला सुसंपन्न



हिंदुस्तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड, गुंतकल डिपो में दि.12.10.2009 को हिंदी कंप्यूटर प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसका उद्घाटन प्रभारी अधिकारी श्री रामप्रताप जी ने किया । डॉ. एस. बशीर, उप प्रबंधक (राजभाषा) ने कार्यशाला के उद्देश्य से अवगत कराते हुए कहा कि राजभाषा हिंदी का प्रचार-प्रसार हमारा कर्तव्य है । कंप्यूटर के प्रयोग से हिंदी में पत्रचार बढ़ाया जा सकता है । उन्होंने सभी प्रतिभागियों से अनुरोध किया कि कंप्यूटर प्रशिक्षण के बाद हिंदी का प्रयोग करते हुए हिंदी से संबंधित सभी निर्धारित लक्ष्य हासिल करने का प्रयास करें । प्रशिक्षण कार्यक्रम का संयोजन डॉ. बशीर जी ने किया और इसमें डिपो के अधिकारी श्री रामाराव जी ने सहयोग दिया । व्याख्याता के रूप में डॉ. सी. जय शंकर बाबु को आमंत्रित किया था, जिन्होंने कंप्यूटर पर हिंदी तथा अन्य भाषाओं के लिए उपलब्ध संसाधन, यूनिकोड प्रयोग, मैक्रोसॉफ्ट ऑफीस में हिंदी में शब्द-संसाधन आदि के संबंध में पवरपाइंट प्रस्तुति के साथ व्याख्यान दिया । इस कार्यशाला में दस अधिकारी उपस्थित थे । इन्हें हिंदी में टंकण, ई-मेल भेजने आदि के संबंध में व्यावहारिक सुझाव दिए गए । अंत में डॉ. बशीर जी ने धन्यवाद ज्ञापन किया । इस प्रशिक्षण कार्यक्रम से प्रतिभागियों को अपेक्षित प्रेरणा अवश्य मिली है, जिसका सुपरिणाम इनके द्वारा कंप्यूटर पर हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में कार्य करने का प्रयास किए जाने के रूप में फलीभूत होगा ।

Friday, October 9, 2009

पुदुच्चेरी में क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन एवं राजभाषा पुरस्कार वितरण संपन्न


राष्ट्रीय स्वाभिमान और सुविधा की दृष्टि से हिंदी ही उपयुक्त संपर्क भाषा होगी – अजय माकन


जवाहरलाल नेहरु स्नातकोत्तर चिकित्सकीय शिक्षा एवं शोध संस्थान (जिपमेर), पुदुच्चेरी के प्रेक्षागृह में क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन का उद्घाटन आज सुबह 10 बजे माननीय केंद्रीय गृह राज्यमंत्री श्री अजय माकन जी ने द्वीप प्रज्वलन के साथ किया ।
भारत एक विशाल देश है, जहाँ कई भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती है किंतु भारत की सभी भाषाओं की आत्मा एक ही है, जो भारतीयता का समान संदेश देती रही हैं । हमारी सामासिक संस्कृति का केंद्र बिंदु एक ही रहा है, भले ही इसकी अभिव्यक्ति का माध्यम विभिन्न भाषाएँ रही हों । हमारे महान देश में भाषाओं की विभिन्नता इसकी मूलभूत एकता में कभी बाधक नहीं रही है । इनके भीतर भारतीयता सतत रूप से प्रवाहित रही है । इस एकता में भारतीय भाषाओं में रचित साहित्य का बड़ा योगदान रहा है । यदि हम भारती की विभिन्न भाषाओं में रचित साहित्य पर दृष्टि डालें, तो यह तथ्य सहज ही स्पष्ट हो जाएगा कि कश्मीर से कन्याकुमारी और सौराष्ट्र से कामरूप तक सभी लेखकों और कवियों ने अपनी रचनाओं में समसामयिक विचारधारा से प्रभावित होकर अपनी-अपनी भाषाओं में अपने विचारों की अभिव्यक्ति की है ।
हमें संघ की राजभाषा हिंदी के साथ-साथ सभी अन्य भाषाओं-बोलियों का संरक्षण भी करना है ताकि विकास, रोजगार और पनर्वास की प्रक्रिया के कारण ये विलुप्त न हो जाए । भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं होती है । अपितु इससे बोलने वालों की संस्कृति और संस्कार भी जुड़े होते हैं ।
हमारे देश के संविधान ने हम सबके ऊपर भारतीय भाषाओं के विकास का दायित्व सौंपा है । इस जिम्मेदारी का निर्वाह हमें धैर्य, लगन और विवेकपूर्ण ढंग से करना है । कोई भी भाषा तभी समृद्ध हो सकती है और जनता द्वारा उसका तभी स्वागत होता है जब वह अपने आपको पुराने मापदंडों से बांध कर न रखे । हिंदी के स्वरूप में भी भारतीय समाज और संस्कृति की विविधता और एकता, विज्ञान और प्रौद्योगिकी की पारिभाषिक स्पष्टता, दर्शन और धर्म की व्यापकता प्रतिबिंबित होनी चाहिए । संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का व्यापक प्रयोग सदैव से ही होता रहा है । यहां तक कि अंग्रेजों को भी अपना शासन चलाने के लिए टूटी-फूटी ही सही पर हिंदी ही हितकर लगी और आज बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने उत्पादकों को बेचने के लिए हिंदी व अन्य भाषाओं का प्रयोग कर रही हैं । अप भारत के किसी भी प्रांत में चले जाएं, वहाँ आपकों हिंदी का प्रयोग अवश्य मिलेगा । हिंदी का व्यापक जनाधार और यह धीरे-धीरे परंतु निश्चित रूप से बढ़ता ही जा रहा है ।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वराज, स्वदेशी और स्वभाषा पर जोर दिया गया था । उस समय यह समझा गया था कि बिना स्वदेशी व स्वभाषा के स्वराज सार्थक नहीं होगा । हमारे राष्ट्रीय नेताओं की यह दृढ़ धारणा थी कि कोई भी देश अपनी स्वतंत्रता को अपनी भाषा के अभाव में मौलिक रूप से परिभाषित नहीं कर सकता, उसे अनुभव नहीं कर सकते । उन महापुरुषों की मान्यता थी कि यदि हमें भारत में एक राष्ट्र की भावना सुदृढ़ करनी है तो एक संपर्क भाषा होना नितांत आवश्यक है और राष्ट्रीय स्वाभिमान और सुविधा की दृष्टि से हिंदी ही उपयुक्त संपर्क भाषा होगी । उन महापुरुषों में नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी का नाम विशेष रूप से स्मरणीय है । उन्होंने कहा था “अगर आज हिंदी भाषा मान ली गई तो इसलिए नहीं कि वह किसी प्रांत विशेष की भाषा है, बल्कि इसलिए कि वह अपनी सरलता, व्यापकता तथा क्षमता के कारण सारे देश की भाषा है ।”
हिंदी और भारतीय भाषाओं के संवर्धन एवं विकास में दक्षिस भारत के संतों, मनीषियों आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । यहाँ के अनेक साहित्यकारों ने हिंदी साहित्य की सभी विधाओं पर उत्कृष्ट साहित्य की रचना की है । उनके कृतित्व व व्यक्तित्व से भारतीय संस्कृति, साहित्य, भाषा और कला को संबल मिला है जिससे जन-साधारण लाभान्वित हुआ है । हिंदी प्रचार-प्रसार के कार्य में स्वैच्छिक हिंदी संस्थाओं का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है । तमिलनाडु, केरल, आंद्र प्रदेश, कर्नाटक आदि प्रांतों की हिंदी की स्वैच्छिक संस्थाओं ने इस संबंध में अपनी विशिष्ट भूमिका निभाई है । इन संस्थाओं के माध्यम से हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं का पारस्परिक आदान-प्रदान, समन्वय एवं सामंजस्य बढ़ा है । परिणामस्वरूप हिंदीतर भाषा लोगों में हिंदी के प्रति इन संस्थाओं से जुड़े व्यक्तियों ने जिस निष्ठा एवं समर्पणभाव से राष्ट्रीय महत्व के इस कार्य को आगे बढ़ाया है, उसके लिए उनकी जितनी प्रशंसा की जाए, कम है ।
मैं मानता हूँ कि कोई भी राष्ट्र अपना भाषा के बिना गूंगा हो जाता है । विचारों की अभिव्यक्ति रुक जाती है । कोई भी लोकतांत्रिक व्यवस्था लोकभाषा के अभाव प्रभावहीन हो जाता है । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमने लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई है । हमारी व्यवस्था लोक-कल्याणकारी है । सरकार की कल्याणकारी योजनाएं तभी प्रभावी मानी जाएंगी जब आम जनता उनसे लाभान्वित होगी । इसके लिए आवश्यक है कि शासन का काम-काज आम जनता की भाषा में निष्पादित किया जाए ।
एक जनतांत्रिक देश की सरकार और शासन को, जनता की भावनाओं के प्रति निरंतर सजग रहना पड़ता है । शासन एवं प्रशासन और जनता के मध्य संपर्क के लिए भाषा का बहुत ज्यादा महत्व है । शासन के कार्यक्रमों की सफलता या विफलता तथा शासन की छवि, इस पर निर्भर होते हैं कि उन्हें जनता कि कितना सहयोग मिलता है । हिंदी देश या प्रांतों की सीमाओं से बंधी नहीं है । यह एक उदारशील भाषा है जो अन्य भाषाओं से नित नए शब्द ग्रहण कर और अधिक संपन्न हो रही है । इससे हिंदी का विकासोन्मुखी रूप प्रकट होता है । इसे देश के विकास के सभी पहलुओं से जोड़ना है । अतः यह आवश्यक है कि विभिन्न कार्यक्षेत्रों से संबंधित विषयों के अनुरूप हिंदी में कार्यालय-साहित्य का निर्माण हो ।
संघ के राजकीय कार्यों में हिंदी के प्रयोग को बढ़ाना हमारा संवैधानिक व नैतिक दायित्व है । केंद्रित कार्यालयों, उपक्रमों, बैंकों आदि में हिंदी के प्रयोग को बढ़ाना हमारा संवैधानिक व नैतिक दायित्व है । केंद्रीय कार्यालयों, उपक्रमों, बैंकों आदि में हिंगी के प्रयोग को बढ़ाने के लिए राजभाषा विभाग द्वारा विभिन्न योजनाएँ चलाई जाती हैं । प्रतिवर्ष एक वार्षक कार्यक्रम भी जारी किया जाता है । केंद्रीय सरकार के कार्यालयों में हिंदी का प्रयोग क्रमिक रूप से बढ़ रहा है लेकिन इसमें और तेजी लाने की आवश्यककता है । राजभाषा विभाग इस दिशा में प्रयत्नशील है । मुझे विश्वास है कि आप सभी के सहयोग से लक्ष्यों की प्राप्ति की प्राप्ति हो सकेगी ।
आज का युग सूचना प्रौद्योगिकी का युग है । हर क्षेत्र में इसका प्रयोग पढ़ता जा रहा है । हिंदी भाषा का प्रयोग बढ़ता जा रहा है । हिंदी भाषा का प्रयोग बढ़ाने के लिए भी सूचना प्रौद्योगिकी को अपनाना जरूरी हो गया है । अब तक कंप्यूटर पर हिंदी के प्रयोग के संबंध में आती रही अधिकांश समस्याओं का कारण मानक भाषा एनकोडिंग यानि यूनिकोड से भिन्न एनकोडिंग प्रयोग रहा है । आज के कंप्यूटर पर यूनिकोड में हिंदी प्रयोग करने की प्रभावी सुविधा उपलब्ध है । आवश्यकता है इन सुविधाओं के प्रयोग करने संबंधी जागरूकता की । अंग्रेजी प्रयोग को सूचना प्रौद्योगिकी में हुए विकास का पूरा लाभ मिला है । हिंदी प्रयोग के लिए भी ये सब सुविधाएँ उतनी ही सहजता से उपलब्ध हो सके इसके लिए अधिकारियों एवं विद्वानों को लेकर तीन समितियाँ गठित की गई है । ये समितियाँ हिंदी प्रयोगकर्ता की साफ्टवेयर संबंधी आवश्यकताओं की प्रभावी पूर्ति एवं हिंदी प्रयोगकर्ता में तकनीकी प्रयोग संबंधी जागरूकता पैदा करने के संबंध में सुझाव देंगी । मुझे यकीन है कि इन सुझावों पर अमल हिंदी प्रयोगकर्ता तक सूचना प्रौद्योगिकी में हुए विकास के लाभ को पहुँचाने में महत्वपूर्ण योगदान होगा ।
यह अच्छी बात है कि हम हर क्षेत्र में विशेष उपलब्धियाँ हासिल करने वालों को सम्मानित करते हैं । सम्मेलन में आज कई संगठनों ने पुरस्कार प्राप्त किए हैं । मैं पुरस्कार प्राप्त करने वालों को पुनः बधाई देता हूँ । पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं का यह दायित्व बनता है कि वे अपने पूरे संगठन में राजभाषा हिंदी के प्रयोग-प्रसार को स्थायी रूप दें और अन्य संगठनों के लिए उदाहरण प्रस्तुत करें । शेष संगठनों के वरिष्ठ अधिकारियों के अपेक्षा है कि वे संविधान द्वारा सौंपे गए इस दायित्व का निर्वाह उसी निष्ठा और तत्परता से करें जिस निष्ठा से वि अपने अन्य दायित्वों को निभाते हैं ।

अपने अध्यक्षीय भाषण में सचिव, राजभाषा विभाग डॉ. प्रदीप कुमार ने कहा कि वैश्वीकरण के दौर में हिंदी के भविष्य को लेकर चिंता के स्वर सर्वत्र सुनाई पड़ रहे हैं, मगर इस संबंध में किसी चिंता या परेशानी की जरूरत नहीं है । जब तक भारतीय संस्कृति का अस्तित्व रहेगा, तब तक हिंदी और भारतीय भाषाएँ जिंदा रहेंगी । आज विदेशी मुल्क हमारे देश की ओर आकर्षित हो रहे हैं । बहु-राष्ट्रीय कंपनियों के लिए भारत बहुत बड़ा बाजार है । ग्रामीण जनता के साथ उनकी भाषा में बातचीत करने में ही इन कंपनियों की सफलता निर्भर करेगी । इस आलोक में भारतीय भाषाओं का भविष्य उज्जवल है ।


केंद्रीय विद्यालय की नन्हीं छात्राओं द्वारा भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ । राजभाषा विभाग के सचिव डॉ. प्रदीप कुमार जी की अध्यक्षता में संपन्न उद्घाटन सत्र में राजभाषा विभाग के संयुक्त सचिव श्री डी.के. पांडेय जी ने स्वागत भाषण दिया । जिपमेर के निदेशक डॉ. के.एस.वी.के. सुब्बाराव जी ने विशिष्ट अतिथि के रूप में संबोधित किया । दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में राजभाषा कार्यान्वयन की अद्यतन स्थिति रिपोर्ट डॉ. वी. बालकृष्णन, उप निदेशक (कार्यान्वयन) ने प्रस्तुत की । अंत में केंद्रीय विद्यालय, पुदुच्चेरी के छात्र-छात्राओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति की ।
द्वितीय सत्र की अध्यक्षता राजभाषा विभाग के सचिव डॉ. प्रदीप कुमार जी ने किया । विचार-विमार्श पर केंद्रित इस सत्र में डॉ. बालशौरि रेड्डी जी ने तमिलनाडु में हिंदी के उद्भव और विकास पर तथा डॉ. एम.के. श्रीवास्तव, मुख्य चिकित्सा अधिकारी (वि.प्र.), ने भाषा, संस्कृति, समाज और स्वास्थ्य – एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर व्याख्यान दिए । इसी सत्र में दक्षिण क्षेत्र में राजभाषा कार्यान्वयन की रिपोर्ट डॉ. विश्वनाथ झा, उप निदेशक (कार्यान्वयन) ने प्रस्तुत की । अंत में डॉ. वी. बालकृष्णन, उप निदेशक (कार्यान्वयन) के धन्यवाद ज्ञापन के साथ सम्मेलन सुसंपन्न हुआ ।
दि.9 अक्तूबर, 2009 को पुदुच्चेरी में क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन के अवसर पर माननीय गृह राज्य मंत्री, श्री अजय माकन जी के करकमलों से राजभाषा पुरस्कार (वर्ष 2008-09) प्राप्त करनेवाले कार्यालयों की सूची इस प्रकार है ।
दक्षिण क्षेत्र (आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक)
सरकारी कार्यालय वर्ग
राष्ट्रीय रेशमकीट बीच संगठन, बैंगलूर – प्रथम
कुक्कुट परियोजना निदेशालय, हैदराबाद – द्वितीय
मुख्य नियंत्रण सुविधा, अंतरिक्ष विभाग, हासन – तृतीय
उपक्रम
भारतीय कपास निगम लिमिटेड, शाखा कार्यालय, आदिलाबाद – प्रथम
प्रतिभूति मुद्रणालय, हैदराबाद – द्वितीय
भारत संचार निगम लि., विजयवाडा – तृतीय
बैंक
कार्पोरेशन बैंक, आंचलिक कार्यालय, हुबली – प्रथम
कार्पेरेशन बैंक, आंचलिक कार्यालय, उडुपि – द्वितीय
भारतीय स्टेट बैंक, स्थानीय प्रधान कार्यालय, हैदराबाद – तृतीय
नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति
भद्रावती-शिमोगा (सरकार कार्यालय) – प्रथम
हैदराबाद (बैंक) – द्वितीय
बैंगलूर (कार्यालय) – तृतीय
दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र (तमिलनाडु, केरल, पांडिच्चेरी एवं लक्ष्यद्वीप केंद्रशासी प्रदेश)
सरकारी कार्यालय
मुख्य आयकर आयुक्त का कार्यालय, तिरुवनंतपुरम – प्रथम
राष्ट्रीय कैडेट कोर निदेशालय, केरल और लक्षद्वीप, तिरुवनंतपुरम – प्रथम
मुख्य आयकर आयुक्त का कार्यालय, कोचिन – तृतीय
उपक्रम
प्रधान महाप्रबंधक, भारत संचार निगम लिमिटेड, कोलिक्केड – प्रथम
हिंदुस्तान न्यूजप्रिंट लिमिटेड, कोट्टयम - द्वितीय
हिंदुस्तान इन्सेक्टिसाइड्स लिमिटेड, कोचिन – तृतीय
बैक
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, क्षेत्रीय कार्यालय, एरणाकुलम – प्रथम
सिंडिकेट बैंक, क्षेत्रीय कार्यालय, कोयंबत्तूर – द्वितीय
कार्पोरेशन बैंक, अंचल कार्यालय, कोचिन – तृतीय
नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति
कालीकट (कार्यालय) – प्रथम
चेन्नै (बैंक) – द्वितीय
पुदुच्ची (कार्यालय) – तृतीय

Sunday, October 4, 2009

बाढ़-पीड़ितों को तुरत मदद जरूरी

आंध्र, उत्तर कर्नाटक, दक्षिण पश्चिम महाराष्ट्र एवं गोवा प्रदेश के कई इलाके भयानक जल-प्रलय से पीड़ित हुई हैं । 100 साल में कभी इतनी भीषण बाढ़ इस इलाके में नहीं हुई थी । स्थानीय मीडिया के पूरी क्षेत्रीय चेतना के कारण तथा राष्ट्रीय मीडिया की उदासीनता के कारण देश-विदेश के कई लोग इस उत्पात की जानकारी तुरंत हासिल न कर पाए हैं, इस कारण बाढ़ पीड़ित लाखों लोग जो निराश्रय होकर, खाना, पानी तक के लिए तरस रहे हैं, मदद की राह देखते रह गए हैं, इनकी मदद के लिए मानवीयतापूर्ण तुरत मदद की जरूरत है ।