Monday, October 19, 2009

संजीव 'सलिल' की तेवरियाँ


१.

ताज़ा-ताज़ा दिल के घाव.
सस्ता हुआ नमक का भाव..
मंझधारों-भँवरों को पार,
किया, किनारे डूबी नाव..
सौ चूहे खाने के बाद.
हुआ अहिंसा का है चाव..
ताक़तवर के चूम कदम.
निर्बल को दिखलाया ताव..
ठण्ड भगाई नेता ने,
जला झोपडी, बना अलाव..
डाकू तस्कर चोर खड़े
मतदाता क्या करे चुनाव..
अफसर रावण जन सीता.
कैसे होगा 'सलिल' निभाव..

***

२.

दिल ने हरदम चाहे फूल.
पर दिमाग ने बोए शूल..
मेहनतकश को कहें गलत.
अफसर काम न करते भूल..
सत्य दोगली है दुनिया.
नहीं सुहाते इसे उसूल..
पैर पटक मत नाहक तू.
सर जा बैठे उड़कर धूल..
बने तीन के तेरह भी.
डूबा रहे अपना धन मूल..
मंझधारों में विमल 'सलिल'.
गंदा करते हम जा कूल..
धरती पर रख पैर जमा.
'सलिल' न दिवा स्वप्न में झूल..
***

३.

खर्चे अधिक आय है कम.
दिल रोता, आँखें हैं नम..
पला शौक तमाखू का.
बना मौत का फंदा, यम..
जो करता जग उजियारा.
उसी दीप के नीचे तम..
सीमाओं की फिक्र नहीं.
ठोंक रहे संसद में ख़म..
जब पाया तो खुश न हुए.
खोया तो करते क्यों गम?
तन-तन रुचे न मन्दिर की.
कोठे की रुचती छम-छम..
वीर भोग्या वसुंधरा.
'सलिल' रखो हाथों में दम..
***

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