कहानी
मेरी अधूरी कहानी
बात उन दिनों की है जब मैं दसवीं कक्षा पास करके कॉलेज में पढ़ने गया। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण मुझे पापा के पास बेंगलूर आना पड़ा और इसी बीच वहीं काम भी करने लगा। समय मिलते ही मैं अपने सारे दोस्तों को मैसेज करता। शायरी का तो शौकीन था ही, हर रोज नई-नई शायरी दोस्तों को भेजता और वे लोग बदले में तारीफ भेजते। ज्यादातर बातें हम मैसेज के जरिए ही करते। इन सब के अलावा मैं अपनी चचेरी भाभी (सोनी) को भी मैसेज करता, वो खड़गपुर में भाई के साथ रहती हैं। हम दोनों जब भी बातें करते तो ऐसा नहीं लगता कि कोई देवर-भाभी बातें कर रहे हैं। ऐसा लगता मानो दो जिगरी दोस्त बातें कर रहे हैं।
एक दिन अचानक मेरे मोबाईल पर नए नबंर से एक प्यारा सा मैसेज आया। पढ़कर मै बहुत खुश हो गया। अगले ही पल मैं हैरान रह गया जब उस नए नंबर पर मैंने फोन किया पर फोन का जवाब न मिल सका। मैनें मैसेज किया ‘कौन हो तुम?’ उधर से जवाब आया ‘आपकी कोई अपनी दोस्त!’ मैंने नाम पूछा तो बताई नहीं, फिर कभी....कहकर फोन रख दी। मैंने सोचा शायद मेरा ही कोई दोस्त मुझे नए नंबर से परेशान कर रहा है। फिर मैंने रात को फोन किया, उसने फोन उठाया...और जैसे ही वह हैलो बोली...कि मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
‘मैंने पूछा कौन हो तुम और मेरा नंबर तुम्हें किसने दिया, कहाँ से बोल रही हो?’ मैंने एक ही साँस में सारे सवाल पूछ लिये। ‘उसने बताया उसका नाम पूजा है, वह मुझे पहले से जानती है। मेरे बारे में बहुत सारी बातें भी बताई...मैं दिखने में कैसा हूँ, मेरी हाइट कितनी है।’ मैंने पूछा कहाँ देखी? तो उसने कहा-चार महीने पहले मुजफ्फरपुर (बिहार) स्टेशन पर देखी थी। तभी से मेरा नंबर ढूँढ रही थी। मैं चौंक गया क्योंकि ठीक चार महीने पहले मैं अपनी मौसी को छोड़ने के लिए वहाँ गया था। शायद वहीं देखी होगी, मैं खयाली पुलाव पकाने लगा। मैं सोचने लगा कि एक अंजान लड़की ने अनजान जगह पर मुझे देखा और तब से मेरा नंबर ढूँढ रही है। पहले तो अनजान था पर अब मैं दोस्ती के नाते हमेशा उससे बातें करने लगा।
कुछ ही दिन हुए हमारे दोस्ती को कि इसी बीच उसका एक मैसेज आया जिसमें लिखा था, “मुझे माफ कर देना, मैं नहीं चाहती कि हमारी दोस्ती की शुरूआत झूठ से हो। सच तो यह है कि मैंने आपको कभी देखा ही नहीं। बस सोनी भाभी के फोन पर आपका मैसेज पढ़ी जो मुझे बहुत पसंद आया। इसके बाद भाभी से आपका नंबर लेकर मैसेज कर दी। मैंने सोचा अगर आपको पहले ही सब बता देती तो आपके बारे में इतना कुछ जानने का अवसर न मिलता। इस झूठ के लिए मुझे माफ कर देना और मेरी दोस्ती को स्वीकार करना।”
पढ़कर मुझे थोड़ा गुस्सा तो आया पर दोस्तों से इस बारे में मैंने बातें की। वे लोग भी उसकी तारीफ के पुल बाँधने लगे। मुझे सलाह दिए कि लड़की अच्छी है तभी तो उसने सब सच-सच बता दिया, और तो और दोस्ती भी करना चाहती है। ऐसे सच्चे दोस्त कम ही मिलते हैं। भाई जा, जाकर उससे फोन कर दोस्ती की नई शुरूआत कर। फिर क्या पूछना! दिल बाग-बाग हो उठा।
अगली सुबह मैंने मैसेज किया गुड मार्निंग दोस्त, फिर क्या था- उधर से भी सेम मैसेज आया जिसमें पूछा गया था “मुझे माफ तो कर दिया न!”
‘फिर से सॉरी एण्ड थैंक्यू, दोस्ती को आगे बढ़ाने के लिए।’
मैंने भी फिल्मी अंदाज में लिख भेजा।
‘दोस्ती में नो थैंक्स नो सॉरी।’
हमारी दोस्ती परवान चढ़ती गई। पहली बार घर जाते समय मैं उससे खड़कपुर रेलवे स्टेशन पर मिला। ट्रेन वहाँ ज्यादा देर नहीं रुकी। इसलिए बातें भी न हो सकीं, सिर्फ हाय-हैलो ही हो पाया। उस समय छठ-पूजा की तैयारियाँ चल रही थी, मैं घर पर ही था। भाभी प्रत्येक साल छठ-पूजा के समय गाँव आ जातीं, इस बार भी आईं पर अकेले नहीं पूजा भी साथ थी। मैं इतना खुश था कि बयां नहीं कर सकता। मैंने उसे अपनी माँ और बहनों से मिलवाया। पूरा दिन उसी के साथ रहा, भाभी कहाँ चूकने वाली थीं? वे भी ताने कसतीं- क्यों जी, क्या इसे यहीं छोड़ दूँ हमेशा के लिए? भाभी की ऐसी बातें सुनकर मेरे मन में लड्डू फूटने लगते। काश! ऐसा ही होता।
पूजा है ही ऐसी कि मन करता है देखता ही रहूँ। गोरा रंग, लम्बी नाक, लम्बा कद, पतली कमर। मानो कोई अप्सरा हो। मन ही मन मैं उसे चाहने लगा था। हमारे फोन की बैट्री और पैसा खत्म हो जाता पर बातें नहीं। हर साल छठ-पर्व पर पूजा भी भाभी के साथ मुझसे मिलने चली आती। लेकिन मेरी कभी हिम्मत ही नहीं हुई कि मैं भी कभी उसके घर जाऊँ। मैं जब भी गाँव आता, उससे स्टेशन पर ही मिलकर चला जाता। प्यार वो भी मुझसे करती पर बोलती नहीं थी, मैं भी बिहार का लड़का हूँ। उससे प्यार का इज़हार करवाकर ही रहा।
अब दोस्ती भूलकर प्यार मोहब्बत की बातें होने लगीं। बात शादी तक पहुँच गई। मैंने हिम्मत करके पड़ोसियों के जरिये प्यार और शादी की बात माँ तक पहुँचा दी। माँ ने इस रिश्ते को एक ही बार में खारिज कर दिया। इसका कारण था कि लड़की अपनी बिरादरी की नहीं थी। “पढ़ी-लिखी है, शहर की रहनेवाली है। गाँव के बारे में क्या जानती है?” (उनके ख़्याल से शायद पूजा घर-परिवार न संभाल सके।) उनको ऐसी लड़की चाहिए थी जो घर को संभाल सके। घर तो पूजा संभाल ही लेती पर माँ को कौन समझाए। पुराने ख़यालों वाली मेरी माँ जो एक बार बोल देती हैं, वहीं ब्रह्मवाक्य हो जाता था।
समय का पहिया अपनी गति से चलता रहा। मेरे शुभचिंतक, दोस्त, पड़ोसी सभी ने मुझे सलाह दी कि उसे भगा ले जाऊँ। माँ कुछ दिन नाराज़ रहेंगी पर समय के साथ सब ठीक हो जाएगा। मैं आगे-पीछे सोचने लगा कि- जैसे हर माँ का सपना होता है मेरी माँ के भी सपने होंगे। वे सोचती होंगी- मेरे बेटे की शादी होगी। बैंड-बाजे बजेंगे,
मैं नाचूँगी इत्यादि। मैंने भी सोच लिया- पूरे परिवार के सामने मेरी शादी होगी। मैं अपनी माँ के सपनों को नहीं तोड़ सकता।
एक दिन मैंने पूजा को अपने मन की बातें बता दी। वह सुनकर रोने लगी, रोया तो मैं भी था। कुछ सोचकर उसने कहा, ‘आपकी शादी किसी से भी हो पर आप हमेशा खुश रहना। माँ का दिल कभी मत तोड़ना, बीवी तो बहुत मिलेगीं पर माँ नहीं। आप वहीं शादी कीजिए जहाँ आपकी माँ चाहती हैं। जब तक हम दोनो में से किसी एक की शादी नहीं होती तब तक हम दोस्ती के नाते बातें तो कर ही सकते हैं। मैंने हाँ कहकर फोन काट दिया।’
फिर वो छठ-पूजा में गाँव नहीं आई। मैं भी उदास रहने लगा। हम दोनों ने क्या-क्या सपने देखे थे कि शादी होगी। शादी के बाद घर पर ही कोई काम करूँगा, वो बच्चों को ट्यूशन पढ़ाएगी और मैं दुकान चलाऊँगा। हम अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाएंगे। हमारे दो ही बच्चे रहेंगे वगैरह वगैरह...। सब बेकार कहते हैं, आदमी जो सोचता है वह पूरा होता है। बल्कि सच में सोचा हुआ काम कभी पूरा नहीं होता। मेरी कहानी जो मैंने सोची थी, वो अधूरी ही रह गई।
पत्र व्यवहार का पता-
Rajan Kumar
Village : Kevatasa,
Post- Kevatasa, Gayaghat
Dis. Muzaffarpur- 847107
(Bihar )
Mob. 7892759778, 9771382290
Email : rajankumar.lado143@gmail.com
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