Friday, December 11, 2015

‘पीली आँधी’ – विवाह के विधान तथा अर्थशास्त्र के सरोकार की तीसरी आँख

पीली आँधी – विवाह के विधान तथा अर्थशास्त्र के सरोकार की तीसरी आँख

-          सिजी सी.जी

ईश्वर की अमूर्त सृष्टि स्त्री की तहत्, आज इस आधुनातन युग में उत्कृष्टतम स्तर तक पहुँच तो गया है। किंतु पुरातन से लेकर स्त्री के प्रति जो दृष्टि थी, उसमें ज्यादा परिवर्तन तो नहीं आया है। पुरुष स्त्री को सदा उसकी अनुगामिनी बनाना चाहता है। सहगामिनी का जो स्त्री रूप उन्हें हमेशा खटकता है। पुरुष जाति, चाहे ऊँचे श्रेणी हो या नीचे, वे स्त्री के दबित, दमित रूप पर ही ज़्यादा आकृष्ट है। उनकेलिए यह जाति केवल वंश परिपालन का एक साधन मातृ रह गया है। पुरुष प्रधान समाज के भीतर के अहं कभी भी स्त्री की कामियाबी को स्वीकारने को तैयार नहीं रहा। बहुत अरसे से स्त्री इन सभी हालात से समझौता करके अपने को सहेज दिया है। फिर भी इतिहास परखे तो हमें बहुत सारे स्त्री रत्नों का दृष्टान्त मिल सकते है, जो अपने को व्यक्ति की दर्जा पाने के लिए सभी – असूल – वसूल, कायदे – कानून, रीति – संप्रदायों एवं रूढ़ियों को उखाड़कर खड़ी हुई है। पुराण निरखे तो वहाँ सीता देवी नज़र आते है। अपने पतिदेव की सहगामिनी बनकर, हर सुख-दुख में साथिन बनकर भी उन्हें दुनिया के सामने आरोपित एवं अपमानित होना पड़ा। अपने मान सम्मान को ठेस पहूँचा तो वह सिर ऊँचा करके अपनी आक्रोश भरी वाणी सुनाई। पूरे रामायण में सीता का उत्कृष्ट एवं विराट रूप हमें यह दिखाते है कि स्त्री महज पुरुष की कठपुतली नहीं। इतिहास में मीराबाई में ही पहले – पहल स्त्री विमर्श का बीज़ नज़र आते है। अपने प्यार एवं स्वतंत्र जीवन के खातिर वे पूरे समाज के नज़रों में गिरकर भी वे अपने विचारों पर अटल रही।
आज स्थिति बदल गयी। स्त्री का स्थान चार दीवारी के अन्दर नहीं बल्कि दुनिया के हर कोने में हैं। फिर भी समाज का स्त्री के प्रति जो नज़रिया है, उनमें बदलाव की ज़क ज़रूरत है। इस मुद्दे पर अन्यत्र उपन्यास लिखे गये है। समकालीन अनन्या लेखिका प्रभाखेतान के सभी उपन्यास स्त्री को आत्मनिर्भर होने की प्रीरणा देनेवाली है। उनकी प्रसिद्ध उपन्यास पीली आँधी भी इसका दस्तावेज़ है।राजस्थानी सनातनी मारवाड़ी परिवार का यथार्थ चित्रण है यह उपन्यास। यह व्यावसायिक दुनिया के तनाव भरी ज़िन्दगी का बयान करता है। मारवाड़ी स्त्रियों को सिर्फ अपने साज-श्रंगार, गहने, वेशभूषा एवं खाने – पीने का फिकर है। शिक्षा एवं आर्थिक स्वतंत्रता से वंचित उन लोगों की ज़िन्दगी में दबाव एवं दमन ही नसीब है।
पीली आँधी उपन्यास में तीन पीढ़ियों का चित्रण है। मारवाड़ियों के सामाजिक जीवन के हर पहलुओं का यथार्थ अंकन में प्रभाजी कामयाब हो गयी है। इस उपन्यास में विधवा समस्या, बालविवाह, अनमेल विवाह, माँ बनने की अदम्य इच्छा; समलैंगिकी समस्या, वैवाहिक जीवन की विडम्बनाएँ, नाजायज़ रिश्तो से उत्पन्न तनाव, सनातनी मारवाड़ी परिवार की रीति रिवाज़ें, 1935-50 के प्रकोप के कारण पड़े अकाल का तथा महँगाई – गरीबी का, कोलियारी व्यवसाय का उतार-चढ़ाव तथा आर्थिक परिवेश का यथार्थ चित्रण इस उपन्यास में हुआ है। पीली आँधी इस उपन्यास के बारे में श्री अरविन्द जैन कहते है विवाह के विधान और अर्थशास्त्र को समझने की दिशा में यह सार्थक एवं महत्वपूर्ण है।1 इस उपन्यास का मेरूदण्ड पद्मावती है। आधुनिक विचारों से संपन्न, फिर भी पुराने संप्रदायों एवं संस्कृति को छाती से लगाकर पूरे संयुक्त परिवार को पूरे अनुशासन के साथ अपने अच्छे संस्कारों से घर को एक पवित्र मंदिर सा बनाती है। परिवार के सभी सदस्यों को एक धागे में बाँधकर सब के सामने एक आदर्श व्यक्तित्व ले कर वे खड़ी होती है। निस्संतान होकर भी अपने देवर के बच्चों को अपना सा प्यार देता है। वह अत्यन्त संवेदनशील प्रेममयी, अनुशासन प्रिय आदर्श के रूप में इस उपन्यास में नज़र है। भरी जवानी में विधवा होकर भी वह अपने को संयमित रखती है। अपने सीमित दायरे कभी भी वह उल्लंधन नहीं करती। कोलियारी व्यवसाय संभालनेवाला पन्नालाल सुराणा के पवित्र प्यार को वह परिवार के खातिर टुकराते है।
रुँगटा परिवार की छोटी बहु सोमा, वेलहम देहरादून से पढ़ी – लिखी एक खूबसूरत, शोख – प्रखर दिमाग लड़की थी। अत्यन्त परिष्कृत एवं उत्कृष्ट विचारोंवाली। अपने परिवार में उसे पूरे छूट मिली थी। वे स्वतन्त्र एवं आत्मानिर्भर रहना चाहती थी। धनी परिवार के रिश्ते से जब माँ – बाप खुश हो जाते है तब सोमा को गौतम अच्छी नही लगी। वह खुलकर कहती है। लड़का मैनली नहीं लगता। उसकी कमर कितनी पतली है?”2 ऐसा कहकर वह शादी से साफ इनकर करती है। मगर रजवाड़ों के ढाट के सामने माँ-बाप इनकार नहीं कर पाई। आधुनिक ढंग की जिन्दगी जीनेवाली सीमा को ससुराल के तौर-तरीके बिलकुल असहनीय लगा। फिर भी वह ससुराल की रहन-सहन में अपने को ढालने को प्रयत्न करती रही। वैवाहिक जीवन की खुशी के लिए हर तरह की समझौता करने के लिए वह तैयार होती है। मगर पति गौतम उसे टुकराते रहे। इस भरे-पूरे घर में वे बिलकुल अकेली हो जाती है। माँ बनने की अदम्य इच्छा से वह तड्पती रही। प्रोफसर सुजितसेन के प्यार में खोकर वह गर्भवति हो जाती है। इतने बड़े खानदान को छोड़कर पूरे मान-सम्मान एवं गरिमा के साथ बच्चे को जन्म देना चाहती थी। सोमा आम औरत की तरह दम घुट कर और तड़प-तड़प कर जीना नहीं - चाहती।
मारवाड़ी परिवारों की स्त्रियों की ज़िन्दगी महज़ साज - श्रृंगार, वेश-भूषा, गहनों से लपेटने में रही। इस दायरे से बाहर उनकी अपनी कोइ चिन्ता तथा कदम नहीं। सच में सब अन्तर से असंत्रप्त थे। अपने नज़रों के सामने पति के नाजायज़ रिश्तों को देख कर भी वह कुछ नहीं कर सकती। महज आँसु गिराना जानती है। परिवार की खुशी के खातिर खुद की जिन्दगी को नकारने की स्त्री नियति को इस उपन्यास में बखूबी चित्रित किया है। सोमा की माँ और गौतम के बड़े भाई की पत्नी भी, अपने पति के गैर रिश्ते से ना खुश है। हर स्त्री अपने औलाद के खातिर या समाज भय से सबकुछ सहने के लिए तैयार होते है। आर्थिक एवं शैक्षिक निर्भरता ना होने के कारण वे स्त्रियाँ पति के नाजायज़ रिश्तों से व्यथित होकर भी अनदेखा करती है। इन सब के बीच सोमा पात्र अपनी खुशी एवं हक पाने के लिए लड़ती नज़र आती है। सोमा नारी पात्र प्रभाजी के चरित्र के बिलकुल निकट है। स्त्री की नियति और उसके शोषण की प्रक्रिया तब तक रहेगी जब तक उसके प्रति सामाजिक व्यवस्था में अमूल परिवर्तन नहीं होता। इस उपन्यास में पति को परमेश्वर मानकर बच्चों की परवरिश में अपनी पूरी जिन्दगी निचोड़नेवाली नारियों का भी चित्रण हैं।
सुजित सेन की पत्नी चित्रा इस उपन्यास में एक गौण पात्र होकर भी अपने पृथक व्यक्तित्व से सब के दिल में एक जगह पा सकी है। शिक्षित चित्रा जब पति की गैर-रिश्ते से अवगत हुआ तो पहले उसे बुरा लगा और दुख भी। मगर गर्भवति सीमा को वह अपने घर में आश्रय देती है। चित्रा ने ही उसी बी.एड़. की परीक्षा दिलवाई और फिर कॉलेज की नौकरी भी। जब सोमा चित्रा से पुछती है की सुजित की छोड़ने का तुम्हें दुख नहीं? तब वह कहती है कि हाँ दुःख तो हुआ था। सुजीत को घोखेबाज़ कहा था। फिर बाद में लगा कि यह धोखा तो मैं स्वयं को दे रही है। जब प्रेम ही नहीं, तब किस बात की जलालत? प्रेम की भीख नहीं माँगी जाती। मेरा अपना कोई आत्म-सम्मान नहीं? और फिर यह किस शास्त्र में लिखा है कि किसी से प्रेम करो तो ताउम्र करते जाओ।3 इस कथन में चित्रा की स्पष्टता, आत्मसम्मान, मान-गरिमा एवं आत्मनिर्भरता सब झलकते है। ऐसा श्रेष्ठ एवं ऊँचा सोच उसे त्याग के उत्कृष्ट शिखर तक पहूँचाती है। ऐसा आत्मदान सब की चिन्तन में नहीं हो सकता। चित्रा ने यह विचार कर अपने आप को संभाला है कि शाश्वत प्रेम किसी के बीच नहीं हो सकता। यह कल्पना महज एक आत्म सम्मोहन है। पूरे उपन्यास में मातृ चित्रा और सोमा ही शिक्षित – कामकाजी स्त्रियाँ है।
यह उपन्यास मारवाडी समाज के विस्थापन के दर्द को प्रस्तुत करते है। इसमें तीन पीढ़ियों की औरतें है जो अपने संघर्षमय, त्रस्तमय जीवन से रुबरु कराती है। इस उपन्यास की सोमा, सामाजिक, पारिवारिक रूढ़ी बंध मान-मर्यादा, नाक और नैतिकता की देहरी लाँघकर नज़र आती है। प्रभाजी ने सदियों से दबी कुचली स्त्री की चुपी को तोड़ना चाहती थी। परंपरागत स्त्री को परिवर्तित करके उसे सामाजिक, आर्थिक रूप में स्वतन्त्र करने का प्रबल कोशिश किया है। यह उपन्यास प्रमाणित करता है कि घर, परिवार, पति-बच्चे से हट कर भी स्त्री की दुनिया होती है, जो दुनिया उसकी अस्मिता, अस्तित्व एवं वजूद की है।
सारतः कहा जा सकता है कि प्रभाजी ने एक संपूर्ण नस्ल के संयुक्त परिवार का चित्रण करके राजस्थान के लोक जीवन की कहानी पर प्रकाश डाला है। मारवाड़ी स्त्री की बिखरती, टूटती, पिसती, घुटती, त्रसित, जिन्दगी की पीड़ा को उकेरने में प्रभाजी पूर्ण रूप से सफल हुए। प्रभाखेतान के उपन्यास की नायिकाएँ संघर्षशील रही है। साहसी, स्वावलंबी, आत्मसम्मान एवं आत्मविश्वास से भरी हुई एवं अपनी व्यक्तित्व के लिए लड़ती-झगडती नज़र आती है। काँटों भरी राहो से कदम बढ़ाते, सारी बाधाओं से टकराते सफल और साकार होने का चित्रण स्त्री जाती के लिए अत्यन्त प्रेरक है। प्रभाजी एसी नायिकाओं की सृजन से पूरे स्त्री जाति ऊपर उठाने की आत्म प्रेरणा देने में सफल रही।
संदर्भ सूची:
1. औरत अस्तित्व और अस्मिता – श्री अरविंद जैन – पृ.सं. 65
2. पीली आँधी – प्रभा खेतान – पृ.सं. 164
3. पीली आँधी – डॉ. प्रभाखेतान – पृ.सं. 256
हायक ग्रन्थ:
1. पीली आँधी – डॉ. प्रभाखेतान
2. प्रभाखेतान के साहित्य में नारी विमर्श – डॉ. कामिनीतिवारी
3. आजकल – मार्च 2014
4. हिंदी साहित्य में नारी संवेदना – डॉ. एन.जी. दौड गौडर, डॉ. डि.नी. पांडे
5. हिंदी उपन्यास का इतिहास – प्रो. गोपाल राय
6. प्रभाखेतान की उपन्यासों ने नारी – डॉ. अशोक मराठे।

सिजी सी.जी. कर्पगम विश्वविद्यालय, कोयम्बत्तूर डॉ. पद्मावती अम्माल के निर्देशन में पीएच.डी. के लिए शोधरत हैं ।

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