मुक्तिका:
संजीव
*
हाथ माटी में सनाया मैंने
ये दिया तब ही बनाया मैंने
खुद से खुद को न मिलाया मैंने
या खुदा तुझको भुलाया मैंने
बिदा बहनों को कर दिया लेकिन
किया उनको ना पराया मैंने
वक़्त ने लाखों दिये ज़ख्म मगर
नहीं बेकस को सताया मैंने
छू सकूँ आसमां को इस खातिर
मन को फौलाद बनाया मैंने ।
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