मन्नू भंडारी की
कहानियों में स्त्री शाक्तीकरण
(आपका बंटी के विशेष संदर्भ में)
- इ. जयलक्ष्मी*
‘आपका बंटी’ मन्नू भंडारी का बहुचर्चित उपन्यास है। नारी और माता के बीच
का आपसी द्वन्द्व ही इसकी कथावस्तु है। समाज की दिनों-दिन बढ़ती हुई समस्याओं का
रूप है बंटी। उसका असली नाम है अरूपबन्ना। पूरा उपन्यास उसकी ही कहानी है। बंटी आज
अनेक परिवारों में साँस लेता है। भिन्न-भिन्न संदर्भों में और भिन्न-भिन्न
स्थितियों में माँ-बाप के संघर्षों की टकराहट में सब से अधिक पिसता रहनेवाला
व्यक्ति बंटी ही है। क्योंकि वह दोनों से जुड़ा हुआ है। माँ-बाप के संघर्षों का
तनाव उसकी नस-नस में प्रवाहित है।
36 वर्ष की शकुन कालेज प्रिन्सिपल है। वह पदवी वह बड़ी निष्ठा से निभाती है।
नौ वर्षों के पहले उसका विवाह अजयबन्ना से हो गया, जो डिविशनल मैनेजर है। लेकिन
दुर्भाग्य की बात है कि उसके जीवन की आयु सिर्फ़ दो वर्ष ही है। विवाह के दो
वर्षों के बाद पति-पत्नी के बीच में मनमुटाव होता है और शकुन अजय से अलग होकर
कालेज हास्टल में बंटी के साथ रहती है। वर्ष में दो एक बार अजय पुत्र को देखने आता
है। और सरकीट हाउस में रहकर लौट जाता है। नौकर के द्वारा शकुन बंटी को पिता के पास
पहुँचा देती है। पति-पत्नी दोनों आपस में बातें नहीं करते। उन दोनों के बीच की खाई
पाटने से बंटी भी सेतु नहीं बन सकता।
परिस्थिति भी शकुन को इतनी कर्कश और कठोर बना देती है। न जाने वह अन्दर ही
अन्दर कितनी आँधी तूफ़ान झेलती रहती है। अपने जीवन को बढ़ाने की अपेक्षा अजय को
गिराना ही उसका लक्ष्य है। उसकी एक मात्र कामना यह है कि अजय हारकर उसके सामने
घुटना टेक लें। उसके लिए वह तरह-तरह के दाँव-पेंच खेलती है। कभी कठोरता से और कभी
कोमलता से, कभी बंटी को हथियार के रूप में इस्तेमाल करती है तो कभी अपने जीवन के
आधार के रूप में। लेकिन उसका सारा प्रयत्न मिट्टी में मिल जाता है। अजय उससे तलाक
लेना चाहता है। चाचा के द्वारा तलाक पत्र मिला तो शकुन स्तब्ध रह जाती है। चाचा ने
यह भी बताया कि अजय और मीरा का विवाह होनेवाला है, वह गर्भिणी है।
लेकिन शकुन स्वतंत्र व्यक्तित्व की नारी है। वह अपने को संभालती है। उसे मालूम
हो गया कि अजय की प्रतीक्षा में ज़िन्दगी बरबाद करना मूर्खता है। बेटे का जीवन
बनाने के लिए अपने को स्वाहा करनेवाली माँ नहीं है वह। वह इस निर्णय पर पहुँचती है
कि सारी ज़िन्दगी तनाव में काटने से भी उससे मुक्त होना ही अच्छा है। संबंध को
निभाने के लिए अपने को खत्म करने की अपेक्षा संबंध को खत्म करना ही उचित है। वह
सोचती है ‘अगर अजय दूसरी स्त्री से संबंध जोड़कर नयी ज़िन्दगी शुरू कर
सकता है तो मैं क्यों नहीं कर सकती।’ क्योंकि उसमें सौंदर्य है, उमंग है, उल्लास है। उसके मन में
प्रतिशोध की आग धधकती है। फलतः वह डॉक्टर जोशी से नया संबंध जोड़ती है, जिनकी
पत्नी दो बच्चों को उनके हाथ में छोड़कर मर गयी थी। डॉक्टर का आना-जाना और शकुन से
बातें करना बंटी से सहा नहीं जाता। वह शकुन से विद्रोह करने लगा कि डॉक्टर मेरा
पापा नहीं, मेरा पापा अजयबन्ना है। जब बंटी उसके मार्ग का काँटा बन गया तो वह उसे
भी उखाड फेंकती है और अजय के नाम पत्र लिखकर बंटी को उसके साथ कोलकत्ता भेज देती
है। उसे मालूम है कि बंटी मीरा को मम्मी नहीं मान सकता। वह निश्चय ही अजय से
विद्रोह करेगा और उसके सुखी जीवन में भी रोडा अटकाएगा। वह सोचती है ‘बंटी के कारण मैं जो परेशानी महसूस करती हूँ, वह अजय भी महसूस करे।’
कहानी के अंत में ही हम समझ सकते हैं कि शकुन में एक ममतामयी माँ छिपी रहती
है। बंटी के वियोग में वह ऐसा दुख महसूस करती है, जिसे वह किसी के साथ बाँट नहीं
सकती है। बंटी का खाली कमरा और उसकी छोड़ी हुई चीज़ें देखकर उसका मातृ हृदय
टुकड़ा-टुकड़ा हो जाता है। उसे समझाने में डॉक्टर जोशी भी असमर्थ हो जाते हैं।
बीच-बीच में यही चिन्ता उसे सताती रहती है कि यहाँ जैसे मम्मी के साथ नया पापा है
वैसे वहाँ पापा के साथ नयी मम्मी भी है। वह मम्मी के रहते बिना मम्मी के, और पापा
के रहते बिना पापा के रह जाएगा।
शकुन के जीवन में दो विरोधी स्थितियाँ हैं – मिथ और यथार्थता। माँ की ममता के
आगे वहाँ एक ओर उस राजकुमार की कहानी है, जो सातों समुद्र पारकर माता के प्रति
अपनी निष्ठा प्रामाणित करता है। दूसरी ओर वह सोनल राजकुमारी की कथा है, जो भूख
लगने पर वेश बदलकर अपने बच्चों को खाकर भूख मिटाती है।
इस प्रकार नारी और माता का आपसी द्वन्द्व ही शकुन को वर्मान रूप देता है।
परिस्थिति ही उसे कठोर और कर्कश बना देती है। शकुन के कार्य में यह उक्ति सार्थक
ही है। वज्रादपि कठोरानी मृदूनी कुसुमादपि है। अर्थात स्त्री एक ओर वज्र के समान
कठोर है तो दूसरी ओर फूल के समान कोमल भी है। परिस्थिति से वह देवी भी बन सकती है
और राक्षसी भी।
मन्नूजी ‘आपका बंटी’ में नारी के तीन रूप दर्शाये
हैं। एक ओर वह स्वतंत्र व्यक्तित्व और आकांक्षाओं से युक्त सुशिक्षित एवं सुसभ्य
नारी है तो दूसरी ओर ममतामयी माता भी है। कालेज में वह जितनी उग्र प्रिन्सिपल है
घर में उतनी सौम्य माता भी है। तीसरी ओर देखें तो प्रतिशोध की अग्नि में जलनेवाली
प्रतिकार की मूर्ति भी है।
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इ. जयलक्ष्मी, कर्पगम विश्वविद्यालय, कोयम्बत्तूर, तमिलनाडु में डॉ. के.पी. पद्मावति अम्माल के निर्देशन में
शोधरत हैं ।
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