श्यामल सुमन की दो कविताएँ
संदेश
भारत है वीरों की धरती, अगणित हुए नरेश।
मीरा, तुलसी, सूर, कबीरा, योगी और दरवेश।
एक हमारी राष्ट्र की भाषा, एक रहेगा देश।
कागा! ले जा यह संदेश, घर-घर दे जा यह संदेश।।
सोच की धरती भले अलग हों, राष्ट्र की धारा एक।
जैसे गंगा में मिल नदियाँ, हो जातीं हैं नेक।
रीति-नीति का भेद मिटाना, नूतन हो परिवेश।
कागा! ले जा यह संदेश, घर-घर दे जा यह संदेश।।
शासन का मन्दिर संसद है, लगता अब लाचार।
कुछ जनहित पर भाषण दे कर, करते हैं व्यापार।
रंगे सियारों को पहचाने, बदला जिसने वेष।
कागा! ले जा यह संदेश, घर-घर दे जा यह संदेश।।
वीर शहीदों के भारत का, सपने आज उदास।
कर्ज चुकाना है धरती का, मिल सब करें प्रयास।
घर-घर सुमन खिले खुशियों की, कहना नहीं बिशेष।
कागा! ले जा यह संदेश, घर-घर दे जा यह संदेश।।
मीरा, तुलसी, सूर, कबीरा, योगी और दरवेश।
एक हमारी राष्ट्र की भाषा, एक रहेगा देश।
कागा! ले जा यह संदेश, घर-घर दे जा यह संदेश।।
सोच की धरती भले अलग हों, राष्ट्र की धारा एक।
जैसे गंगा में मिल नदियाँ, हो जातीं हैं नेक।
रीति-नीति का भेद मिटाना, नूतन हो परिवेश।
कागा! ले जा यह संदेश, घर-घर दे जा यह संदेश।।
शासन का मन्दिर संसद है, लगता अब लाचार।
कुछ जनहित पर भाषण दे कर, करते हैं व्यापार।
रंगे सियारों को पहचाने, बदला जिसने वेष।
कागा! ले जा यह संदेश, घर-घर दे जा यह संदेश।।
वीर शहीदों के भारत का, सपने आज उदास।
कर्ज चुकाना है धरती का, मिल सब करें प्रयास।
घर-घर सुमन खिले खुशियों की, कहना नहीं बिशेष।
कागा! ले जा यह संदेश, घर-घर दे जा यह संदेश।।
कैसे बचेगा भारत देश?
है कुदाल सी नीयत प्रायः, बदल रहा परिवेश।
कैसे बचेगा भारत देश?
बड़े हुए लिख, पढ़ते, सुनते, यह धरती है पावन।
जहां पे कचड़े चुन चुन करके, चलता लाखों जीवन।
दिल्ली में नित होली दिवाली, नहीं गाँव का क्लेश।
कैसे बचेगा भारत देश?
है रक्षक से डर ऐसा कि, जन जन चौंक रहे हैं।
बहस कहाँ संसद में होती, लगता भौंक रहे हैं।
लोकतंत्र के इस मंदिर से, यह कैसा सन्देश?
कैसे बचेगा भारत देश?
बूढा एक तपस्वी आकर, बहुत दिनों पर बोला।
सत्ता-दल संग सभी विपक्षी, का सिंहासन डोला।
है गरीब भारत फिर कैसे, पैसा गया विदेश?
कैसे बचेगा भारत देश?
सजग सुमन हों अगर चमन के, होगा तभी निदान।
भाई भी हो भ्रष्ट अगर तो, क्यों उसका सम्मान?
आजादी के नव-विहान का, निकले तभी दिनेश।
ऐसे बचेगा भारत देश।।
कैसे बचेगा भारत देश?
बड़े हुए लिख, पढ़ते, सुनते, यह धरती है पावन।
जहां पे कचड़े चुन चुन करके, चलता लाखों जीवन।
दिल्ली में नित होली दिवाली, नहीं गाँव का क्लेश।
कैसे बचेगा भारत देश?
है रक्षक से डर ऐसा कि, जन जन चौंक रहे हैं।
बहस कहाँ संसद में होती, लगता भौंक रहे हैं।
लोकतंत्र के इस मंदिर से, यह कैसा सन्देश?
कैसे बचेगा भारत देश?
बूढा एक तपस्वी आकर, बहुत दिनों पर बोला।
सत्ता-दल संग सभी विपक्षी, का सिंहासन डोला।
है गरीब भारत फिर कैसे, पैसा गया विदेश?
कैसे बचेगा भारत देश?
सजग सुमन हों अगर चमन के, होगा तभी निदान।
भाई भी हो भ्रष्ट अगर तो, क्यों उसका सम्मान?
आजादी के नव-विहान का, निकले तभी दिनेश।
ऐसे बचेगा भारत देश।।