माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय में भूमण्डलीकरण और हिन्दी-कविता विषयक व्याख्यान संपन्न
कविता को मानवता के पक्ष में खड़े होना है - डॉ. बाबू जोसफ
केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय की ओर से आयोजित प्राध्यापक व्याख्यानमाला कार्यक्रम के अन्तर्गत दिनांक 14 दिसम्बर 2012 को माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रो. बाबू जोसफ का व्याख्यान सम्पन्न हुआ। ’भूमण्डलीकरण और हिन्दी-कविता‘ विषयक व्याख्यान में प्रो. बाबू जोसफ ने कहा कि आज जब विश्व गाँव की परिकल्पना साकार हो रही है ऐसे में साहित्य की चुनौतियाँ और भी बढ़ गई हैं। कुमार अंबुज, वेदव्रत जोशी, राजेश जोशी, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना आदि की कविताओं पर सविस्तार बातचीत करते हुए डॉ. जोसफ ने कहा कि आज कविता की सबसे बड़ी आवश्यकता मानवता के पक्ष में खड़े होने की है। यह सच है कि कविता अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभा रही है। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि सुखाडि़या विश्वविद्यालय के हिन्दी-विभाग के अध्यक्ष और आचार्य प्रो.माधव हाड़ा ने कहा कि समय के साथ आ रहे बदलावों के प्रति यदि हम नकारात्मक रूख रखते हैं तो भी परिवर्तन होकर रहेगा। हमारे अवचेतन में आत्मसातीकरण की प्रवृत्ति है लेकिन बाहरी रूप से विरोध भी जारी रहता है ऐसा नहीं होना चाहिए। डॉ. एस.के. मिश्रा ने हिन्दी-कविता पर बाजारवाद के प्रभाव की चर्चा की। उन्होंने कहा कि बाजार आज की व्यवस्था का सच है इसे स्वीकार करना ही होगा। कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. प्रदीप पंजाबी ने कहा कि आज हम बाजार मुक्त समाज की कल्पना नहीं कर सकते हैं। आज के आर्थिक युग में बाजार हमारी आवश्यकता भी है। विभागाध्यक्ष डॉ.मलय पानेरी ने विषय-प्रवर्तन करते हुए कहा कि भूमण्डलीकरण का प्रभाव आम आदमी पर भी पड़ रहा है तो इससे मनुष्य सापेक्ष साहित्य के मुक्ति का प्रश्न ही पैदा नहीं होता है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. ममता पालीवाल ने भूमण्डलीकरण और साहित्य के अन्तर्संबंधों पर प्रकाश डाला। डॉ. राजेश शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कविता-रचना में निरन्तर हो रहे परिवर्तनों को आत्मसात् करने पर बल दिया।
प्रस्तुति-
मलय पानेरी
अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय
उदयपुर