भोपाल, 6 अगस्त,2011। महामंडलेश्वर डा.स्वामी शाश्वतानंद गिरि का कहना है कि लोकमंगल अगर पत्रकारिता का उद्देश्य नहीं है तो वह व्यर्थ है। हमें हमारे सामाजिक संवाद और पत्रकारिता में लोकमंगल के तत्व को शामिल करना पड़ेगा। वे यहां माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल द्वारा ‘संवाद और पत्रकारिता का अध्यात्म’ विषय पर आयोजित व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अध्यात्म के बिना प्रेरणा संभव नहीं है। अध्यात्म ही किसी भी क्षेत्र में हमें लोकमंगल की प्रेरणा देता है।
उन्होंने कहा कि अरविंद घोष, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी भी पत्रकार थे किंतु उनकी पत्रकारिता, उनकी आत्मा का स्पंदन थी, आज जबकि पूंजी का स्पंदन ही पत्रकारिता की प्रेरणा बन रहा है। उन्होंने युवा पत्रकारों से आग्रह किया कि वे अपनी पत्रकारिता में सकारात्मकता को शामिल करें तभी हम भारत के मीडिया का मान बढ़ा सकेंगें। शरीर के तल पर मनुष्य और पशु में कोई अंतर नहीं, मूल्य ही हमें अलग करते हैं। हमारे लिए मनुष्यता बहुत महत्वपूर्ण है।
डा. गिरि ने कहा कि मन से लिखा और मन से बोला गया शब्द ही पढ़ा और सुना जाएगा। बुद्धि से लिखे और बोले हुए का कोई महत्व नहीं है, वह बुद्धि से ही पढ़ा और सुना जाएगा। हमारे लेखन में अगर हमारी आत्मा न होगी तो वह प्राणहीन हो जाएगा। प्रेमचंद और निराला जी का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि ये इसलिए दिल से पढ़े गए, क्योंकि उन्होंने दिल से लिखा। कार्यक्रम के अंत में विद्यार्थियों ने डा. गिरि से प्रश्न भी पूछे।
कार्यक्रम के प्रारंभ में कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला, रजिस्ट्रार डा. चंदर सोनाने, प्रो. आशीष जोशी, दीपक शर्मा, पवित्र श्रीवास्तव, पुष्पेंद्र पाल सिंह, डा. श्रीकांत सिंह, डा. पी. शशिकला, डा. आरती सारंग, वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा,पूर्व कुलसचिव पी. एन. साकल्ले आदि ने पुष्पहार से महामंडलेश्वर डा. गिरि का स्वागत किया। संचालन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया।
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