Thursday, March 25, 2010

शादी बिनु राधा किशन

श्यामल सुमन
अक्सर हो पाता नहीं मन से मन का मेल।
प्रायः अपने यूँ दिखे ज्यों पानी में तेल।।

निन्दा में संलग्न हैं लोग कई दिन रात।
दूजे का बस नाम है कहते अपनी बात।।

चमके सोने की तरह अब आँगन में धूप।
मजदूरों के तन जले पानी हुआ अनूप।।

आगे पीछे गाड़ियाँ शासक की यह शान।
आमलोग की भूख से वे बिल्कुल अन्जान।।

संसद बेबस हो गया अपराधी के हाथ।
जो थोड़े अच्छे बचे होते कभी न साथ।।

कई लोग समझा गए नहीं गगन पर थूक।
हो समक्ष अन्याय तो रहा न जाता मूक।।

मिली खबर कि आजकल शेर हुआ बीमार।
इसीलिए अब चल रही गीदड़ की सरकार।।

शादी बिनु राधा किशन तब रहते थे संग।
सुमन यकायक रो पड़ा देख नजरिया तंग।।

1 comment:

Ram Shiv Murti Yadav said...

बेहद रोचक, सार्थक और लाजवाब कवितायेँ.