Wednesday, March 31, 2010
हिंदुस्तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन लि., चेन्नै के महाप्रबंधक से स्नेह-भेंट
हाइकु
=
कोई किसी का
सलिल न अपना
न ही पराया.
=
मेरे स्वर ने
कविता रचकर
तुमको गाया.
=
मैं तुम दो से
एक बन गए हैं
नीर-क्षीर हो.
=
हँसे चमन
नयन न हो नम
रहे अमन.
=
कविता: पथ-प्रदर्शक
मूल्य के आख्यानकों को कंठगत कर
'तत्त्वमसि' के ऋचा-सूत्रों को पचाया
शुभ्र भगवा श्वेत के परिधान में
पा गया पद श्री विभूषित आर्य का
मैं पथ-प्रदर्शक.
कर्म की निरपेक्षता के स्वांग भर
विश्व के उत्पात का मैं मूल वाहक
द्वेष-ईर्ष्या-कलह के विस्फोट से
बन गया हिरोशिमा यह विश्व
मैं पथ प्रदर्शक.
पर न पाया जगत का वह सार
जिससे कर सकूँ अभिमान निज पर
लोक सम्मत संहिताओं से पराजित
पड़ा हूँ भू-व्योम मध्य त्रिशंकु सा
मैं पथ प्रदर्शक.
Friday, March 26, 2010
हिंदी पत्रिका ‘कोंगु निधि’ का विमोचन
हिंदी पत्रिका ‘कोंगु निधि’ का विमोचन
पत्रिका के संपादक डॉ. सी. जय शंकर बाबु, सहायक निदेशक (राजभाषा) एवं सदस्य सचिव, नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, कोयंबत्तूर ने कहा कि तमिलनाडु से प्रकाशित कोंगु निधि पत्रिका के केवल दो अंकों में बड़ी लोकप्रियता मिली है । उन्होंने बताया कि पत्रिका में प्रकाशित अधिकांश रचनाएँ तमिल एवं मलयालम भाषियों द्वारा लिखी गई हैं जिनमें अधिकांश पदधारियों ने कार्यालय में ही हिंदी सीखी है । सीखी हुई भाषा में स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत करना हिंदी के प्रति उनकी आत्मीयता का प्रतीक है ।
पत्रिका के संबंध में श्री आंड्रयू प्रभु (क्षेत्रीय आयुक्त, सेलम), श्री एम. मधिअळगन (क्षेत्रीय आयुक्त, तिरुच्ची), सश्री सी. अमुदा (क्षेत्रीय आयुक्त, कोयंबत्तूर), श्री नवीन कुमार कनौजिया (क्षेत्रीय आयुक्त, कोयंबत्तूर) आदि ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए पत्रिका की स्तरीयता व सुंदरता की तारीफ़ की । इस कार्यक्रम में क्षेत्र के वरिष्ठ अधिकारी, सहायक आयुक्त आदि उपस्थित थे ।
अंत में पत्रिका के संपादक डॉ. सी. जय शंकर बाबु द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम सुसंपन्न हुआ ।
अ.भा. बाल, युवा एवं वरिष्ट प्रतिभा प्रदर्शन व सम्मान समारोह
कार्यक्रम: सुगम गायन, सम्मान हेतु चुनी गई दिल्ली, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश आदि की प्रतिभाओं/मंचस्थ अतिथियों द्वारा गीत/कविताओं की प्रस्तुति एवं प्रतिभाओं का सम्मान साथ में किशोर कृत कार्टून संग्रह खरी-खरी का विमोचन
क, श्री तेजिन्द्र, कैथल
चैन्नै में हिंदी काव्य-गोष्ठी
ऑयल एंड नैचुरल गैस, चेन्नै कार्यालय के सम्मेलन कक्ष में दिनांक 26 मार्च, 2010 को एक भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन संपन्न हुआ । कवि सम्मेलन में उपस्थित कवियों का स्वागत करते हुए श्री एन मणि, उपमहाप्रबंधक (मा.सं.) ने कहा, ‘‘राजभाषा के प्रचार प्रसार के लिए मनोरंजन तथा प्रेरणा देने वाले कार्यक्रमों की अति आवश्यकता है ।’’ कवि सम्मेलन में चेन्नै शहर के नौ प्रतिष्ठित कवि, ओएनजीसी के बाईस कवि थे इनमें से ग्याहर कवि हिंदीतर भाषी थे ।
कवि सम्मेलन का संचालन श्री जगदंबा प्रसाद, प्रबंधक (राजभाषा) ने किया तथा धन्यवाद श्री वी. रमास्वामी, प्रबंधक (मा.सं.) ने दिया ।
सम्मेलन में चेन्नै के कवियों की सूची
1- श्री कोमल सिंह चौधरी, उपनिदेशक, हिंदी शिक्षण योजना
2- श्री ए.श्रीनिवासन, हिंदी अधिकारी, दक्षिण रेल
3- श्री पी.आर. वासुदेवन, हिंदी अधिकारी, महालेखाकार का कार्यालय
4- श्री नीरज, व्यवसाई, स्वतंत्र लेखन
5- डॉ. मधुधवन, प्रोफेसर, स्टेलामेरी कॉलेज
6- डॉ.बशीर, प्रबंधक (राजभाषा) हिंदुस्तान पेट्रोलियम
7- सुश्री अर्चना, हिंदुस्तान पेट्रोंलियम
8- श्री गिरीश पांडे, आयुक्त आयकर,चेन्नै
9- डॉ. अशोक कुमार द्विवेदी
10-श्रीमती लता वेंकटेश, आकाशवाणी
ओएनजीसी के हिंदीतर भाषी कवि
1- श्री मधुसूदन पिल्लै
2- श्री जयन्त कुमार,मिश्रा, पुस्तकालयाध्यक्ष
3- श्री राधाकृष्णन,उपप्रबंधक (मा.सं.)
4-श्रीमती जयंती,वरि. मा.सं.अधिकारी
5- श्री येशुदास,प्रबंधक(मा.सं.)
6.श्री रमास्वामी,प्रबंधक(मा.सं.)
7- श्री गोपू,निजी सचिव
8-श्री हेगड़े, अधीक्षण अभियंता(वेधन)
9- श्री इन्वशेखरण, निजी सचिव
10- डॉ.एन वी एल एन प्रसाद, प्रबंधक(प्रोगागिंग)
11- श्री रमेश, मुख्य अभियंता(वेधन)
12- श्रीमती पुष्पा राजगोपालन
13-श्रीमती रेमामदनमोहन
ओएनजीसी के हिंदी भाषी कवि
1-श्री भीष्म कुमार, मुख्य प्रबंधक(आगार)
2- श्री राकेश गोस्वामी, मुख्य भूभौतिकी विद्
3-श्री एच.सी.धिल्डियाल, मुख्य रसायनज्ञ
4-श्री ए.के.सिंह, मुख्य भूभौतिकी विद्
5-श्री ए.के.शर्मा, प्रबंधक(औ.सं.)
6- श्री निर्विकार पाठक, मुख्य भूभौतिकी विद्
7-श्री जगदम्बा प्रसाद, प्रबंधक(राजभाषा)
8-श्री बी.एन.सिंह, मुख्य भूभौतिकी विद्
9-श्री आनन्द कुमार, प्रबंधक(सुरक्ष)
Thursday, March 25, 2010
शादी बिनु राधा किशन
प्रायः अपने यूँ दिखे ज्यों पानी में तेल।।
निन्दा में संलग्न हैं लोग कई दिन रात।
दूजे का बस नाम है कहते अपनी बात।।
चमके सोने की तरह अब आँगन में धूप।
मजदूरों के तन जले पानी हुआ अनूप।।
आगे पीछे गाड़ियाँ शासक की यह शान।
आमलोग की भूख से वे बिल्कुल अन्जान।।
संसद बेबस हो गया अपराधी के हाथ।
जो थोड़े अच्छे बचे होते कभी न साथ।।
कई लोग समझा गए नहीं गगन पर थूक।
हो समक्ष अन्याय तो रहा न जाता मूक।।
मिली खबर कि आजकल शेर हुआ बीमार।
इसीलिए अब चल रही गीदड़ की सरकार।।
शादी बिनु राधा किशन तब रहते थे संग।
सुमन यकायक रो पड़ा देख नजरिया तंग।।
Tuesday, March 23, 2010
दोहे - मुक्तक :
8संजीव सलिल
पर्वत शिखरों पर बसी धूप-छाँव सँग शाम.
वृक्षों पर कलरव करें, पंछी पा आराम..
*
बिना दाम मेहनत करे, रवि बँधुआ मजदूर.
आसमान चुप सिसकता, शोषण है भरपूर..
*
आँख मिचौली खेलते, बदल-सूरज संग.
यह भगा वह पकड़ता, देखे धरती दंग..
*
पवन सबल निर्बल लता, वह चलता है दाँव.
यह थर-थर-थर कांपती, रहे डगमगा पाँव..
*
कली-भ्रमर मद-मस्त हैं, दुनिया से बेफिक्र.
त्रस्त तितलियाँ हो रहीं, सुन-सुनकर निज ज़िक्र..
*
सदा सुहागिन रच रही, प्रणय ऋचाएँ झूम.
जूही-चमेली चकित चित, तकें 'सलिल' मासूम..
*
धूल जड़ों को पोसकर, खिला रही है धूल.
सिसक रही सिकता 'सलिल', मिले फूल से शूल..
समय बदला तो समय के साथ ही प्रतिमान बदले.
प्रीत तो बदली नहीं पर प्रीत के अनुगान बदले.
हैं वही अरमान मन में, है वही मुस्कान लब पर-
वही सुर हैं वही सरगम 'सलिल' लेकिन गान बदले..
*
रूप हो तुम रंग हो तुम सच कहूँ रस धार हो तुम.
आरसी तुम हो नियति की प्रकृति का श्रृंगार हो तुम..
भूल जाऊँ क्यों न खुद को जब तेरा दीदार पाऊँ-
'सलिल' लहरों में समाहित प्रिये कलकल-धार हो तुम..
*
नारी ही नारी को रोके इस दुनिया में आने से.
क्या होगा कानून बनाकर खुद को ही भरमाने से?.
दिल-दिमाग बदल सकें गर, मान्यताएँ भी हम बदलें-
'सलिल' ज़िंदगी तभी हँसेगी, क्या होगा पछताने से?
*
ममता को सस्मता का पलड़े में कैसे हम तौल सकेंगे.
मासूमों से कानूनों की परिभाषा क्या बोल सकेंगे?
जिन्हें चाहिए लाड-प्यार की सरस हवा के शीतल झोंके-
'सलिल' सिर्फ सुविधा देकर साँसों में मिसरी घोल सकेंगे?
*
Saturday, March 20, 2010
काव्य सरिता
पूजा की महिमा
-डी. अर्चना, चेन्नई/D.ARCHANA, CHENNAI
हर घर में, मन मंदिर में
नवग्रह पूजा की महिमा अपार हो
नवग्रह लक्ष्मियों की कृपा से
हर मन का, सपना साकार हो।
"सर्वेजना सुखिनो भंवतु"
***
नोट महात्म्य
- संजीव 'सलिल'
नोटों की माला पहन, लड़िये आम चुनाव.
नोट लुटा कर वोट लें, बढ़ा रहेगा भाव..
'सलिल' नोट के हार से, हुई हार भी जीत.
जो न रहे पहचानते, वे बन बैठे मीत..
गधा नोट-माला पहिन, मिले- बोलिए बाप.
बाप नोट-बिन मिले तो, नमन न करते आप..
पढ़े-लिखे से फेल हों, नोट रखे से पास.
सूखी कॉपी जाँचकर, टीचर पाए त्रास..
नोट देख चंगा करे, डॉक्टर तुरत हुज़ूर.
आग बबूला नोट बिन, तुरत भगाए दूर..
नोटों की माला पहिन, होगा तुरत विवाह,
नोट फेंक गृह-लक्ष्मी, हँसकर करे निबाह..
घरवाली साली सदृश, करती मृदु व्यवहार.
'सलिल' देखती जब डला, नोटों का गलहार..
***
Wednesday, March 17, 2010
कृष्ण कुमार यादव को अक्षर शिल्पी सम्मान-2010
म0प्र0 के प्रतिष्ठित राजेश्वरी प्रकाशन, गुना ने युवा साहित्यकार एवं भारतीय डाक सेवा के अधिकारी श्री कृष्ण कुमार यादव को उनके विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और प्रशासन के साथ-साथ सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु अक्षर शिल्पी सम्मान-2010 से विभूषित किया है। अंडमान व निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएं पद पर पदस्थ श्री यादव की रचनाएं देश की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं और इसके साथ ही आपकी अब तक कुल 5 पुस्तकें- अभिलाषा (काव्य संग्रह), अभिव्यक्तियों के बहाने (निबंध संग्रह), अनुभूतियां और विमर्श (निबंध संग्रह) और इंडिया पोस्टः 150 ग्लोरियस ईयर्स, क्रांति यज्ञः 1857 से 1947 की गाथा प्रकाशित हो चुकी हैं। शोधार्थियों हेतु हाल ही में आपके जीवन पर एक पुस्तक बढ़ते चरण शिखर की ओर - कृष्ण कुमार यादव भी प्रकाशित हुई है।
हाल ही में श्री कृष्ण कुमार यादव को भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा महात्मा ज्योतिबा फुले फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2009, भारतीय बाल कल्याण संस्थान द्वारा प्यारे मोहन स्मृति सम्मान, ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा काव्य शिरोमणि-2009 एवं महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला सम्मान, साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी, प्रतापगढ द्वारा विवेकानंद सम्मान, महिमा प्रकाशन, दुर्ग-छत्तीसगढ द्वारा महिमा साहित्य भूषण सम्मान व आल इंडिया नवोदय परिवार द्वारा भी अखिल भारतीय स्तर पर साहित्यिक योगदान हेतु सम्मानित किया गया है।
- गोवर्धन यादव, संयोजक-राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, छिंदवाड़ा
Tuesday, March 16, 2010
Sunday, March 7, 2010
स्व. श्रीमती मिथलेश श्रीवास्तव स्मृति समारोह
पोस्टर प्रदर्शनी का अवलोकन करते मंत्री महोदय।
माननीय केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री श्री प्रदीप जैन आदित्य के साथ मंच पर विभिन्न प्रतिभाओं सर्वश्री मुकेश बच्चन, विजयलक्ष्मी श्रीवास्तव, अरुण श्रीवास्तव, किशोर, राकेश श्रीवास्तव एवं अतुल सिन्हा।
झाँसी। यहाँ स्व. श्रीमती मिथलेश श्रीवास्तव की स्मृति में चित्रांश ज्योति द्वारा अनेक साहित्यिक/सांस्कृतिक कार्यक्रमों एवं सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखननीय कार्य कर रही समाज की विभिन्न प्रतिभाओं सहित लघु पत्रकारिता के क्षेत्र में लंबे समय से काम कर रहे लघु समाचार पत्रों के दो संपादकों सर्वश्री विनोद बब्बर (संपादक-राष्ट्रकिंकर, नई दिल्ली) एवं श्री वाई. के. बंसल (संपादक-निधि मेल, झाँसी) को मिथलेश-रामेश्वर पत्रकारिता सम्मान भी प्रदान किया गया। इस अवसर पर समाज के मेधावी छात्र-छात्राओं का भी अभिनंदन किया गया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में समारोह के अति विशिष्ट अतिथि केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री श्री प्रदीप जैन आदित्य एवं विशिष्ट अतिथि श्री करुणेश श्रीवास्तव (डिप्टी सीएमई-रेलवे) व श्री हरि बल्लभ खरे (राष्ट्रीय मंत्री, अ. भा. कायस्थ सभा), श्रीमती रमा श्रीवास्तव (संचालक-मदर टेरेसा स्कूल) आदि अतिथियों ने स्व. श्रीमती मिथलेश श्रीवास्तव के चित्र पर पुष्प चढ़ाकर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके पश्चात माननीय मंत्री महोदय ने दिल्ली के श्री किशोर श्रीवास्तव की 25वें वर्ष में चल रही कार्टून एवं लघु रचनाओं की जन चेतना पोस्टर प्रदर्शनी 'खरी-खरी' का उद्धाटन किया।
बाद में अपने वक्तव्य में श्री प्रदीप जैन आदित्य ने स्व. श्रीमती मिथलेश श्रीवास्तव के कार्यों को याद करते हुए प्रतिभाओं को आगे लाने में चित्रांश ज्योति के निरंतर चल रहे प्रयासों की प्रशंसा की व समारोह के संयोजक श्री अरुण श्रीवास्तव 'मुन्नाजी' की, सादा जीवन बिताते हुए समाज के लिए किए जाने वाले उच्च व सार्थक कार्यो की सराहना की। उन्होंने खरी-खरी प्रदर्शनी में कार्टूनों आदि के माध्यम से विभिन्न सामाजिक विसंगतियों की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करने की भी प्रशंसा की।
समारोह का संचालन दूरदर्शन अधिकारी श्री मुकेश सक्सेना ने किया एवं अंत में चित्रांश ज्योति की संपादक श्रीमती विजय लक्ष्मी श्रीवास्तव व संयोजक श्री अरुण श्रीवास्तव ने अतिथियों के प्रति अपना आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर चित्रांश परिवार के सैकड़ों सदस्यों ने उपस्थित होकर समारोह को विशेष गरिमा प्रदान की।
Saturday, March 6, 2010
कविता
अहा ! दिल में खिलती कलियाँ .
आज यौवना का परिणय है,
अपने सपनों में तन्मय है .
लेकर भाव पूर्ण समर्पण,
करना है यह तन मन अर्पण .
पल्लव मन गुंजारित हर्षित,
लज्जा नारी सुलभ समर्पित .
मृदु-क्रीड़ा, आलिंगन, चुंबन,
रोम रोम में भरते कंपन .
अधीर हृदय की प्रणय पुकार,
उष्ण स्पर्श की मधु झंकार .
पुष्प सुवासित महका जीवन,
सात रंग से बहका जीवन .
किलकारी से खिला संसार,
खुशियों का न पारावार .
जग जीवन ने डाला भार,
कर्तव्यों का बोझ अपार .
मीत की मन में प्रीत अथाह,
देखे लेकिन कैसे राह .
अब शिथिल हुआ है बाहुपाश,
भटका मन है बृहत आकाश .
++++++++++++++++++
मन में कोंपल फूट रही हैं,
सिंधु तरंगे उमड़ रही हैं .
माही को पाने की चाह,
बंधन पावन शुभ्र विवाह .
उन्माद अतुल रूप की राह,
काम तरंगित रुधिर प्रवाह .
भाव भंगिमा अंग उभार,
मोहित करतीं हृदय अपार .
सुरभि सांस में अधर विनोद,
रूप आलिंगन मदिर प्रमोद .
तन मन पर कर पति अधिकार,
आत्मिक सुख पौरुष संसार .
निसर्ग मिलन प्रकृति उपहार,
जीवन नन्हा हुआ साकार .
जग जीवन ने डाला भार,
कर्तव्यों का बोझ अपार .
भूल गया वह बाग बहार,
पाने को सारा संसार .
जग में हो उसका उत्थान,
सभी करें उसका सम्मान .
अब शिथिल हुआ है बाहुपाश,
भटका मन है बृहत आकाश .
Friday, March 5, 2010
कविता
बकवास
- श्यामल सुमन
शासन के जो भी प्रकार हैं, लोकतंत्र है खास।
जनहित की बातों को लेकिन कहते हैं बकवास।
पैर के नीचे की जमीन भी खिसकायी जाती है,
ऐसी चालाकी भाषण में बढ़ जाती है प्यास।।
जनता का शासन है फिर भी जनता ही लाचार।
वीआईपी कारण दहशत का, सुन दिल्ली सरकार।
चौखट पर बाजार खड़ा है आम लोग मजबूर,
कौन बचायेगा भारत को सिस्टम ही बेकार।।
दूजे अपने बन सकते पर अपनों से आघात।
अपने सचमुच अपने हों तो बेहतर ये सौगात।
रिश्ते बनते व्यवहारों से, नहीं खून से केवल,
खून के रिश्ते, खूनी रिश्ते बन करते प्रतिघात।।
जो बातें हम मंच से कहते क्या वैसा व्यवहार।
सुमन झाँकता अपने अन्दर खुद लगता बीमार।
प्रायः लोग किया करते हैं अच्छी अच्छी बातें,
कोशिश करते कैसे छीने दूजे का अधिकार।।
नवगीत
नवगीत
- संजीव 'सलिल'
*
आँखें रहते सूर हो गए,
जब हम खुद से दूर हो गए.
खुद से खुद की भेंट हुई तो-
जग-जीवन के नूर हो गए...
*
सबलों के आगे झुकते सब.
रब के आगे झुकता है नब.
वहम अहम् का मिटा सकें तो-
मोह न पाते दुनिया के ढब.
जब यह सत्य समझ में आया-
भ्रम-मरीचिका दूर हो गए...
*
सुख में दुनिया लगी सगी है.
दुःख में तनिक न प्रेम पगी है.
खुली आँख तो रहो सुरक्षित-
बंद आँख तो ठगा-ठगी है.
दिल पर लगी चोट तब जाना-
'सलिल' सस्वर संतूर हो गए...