Sunday, August 23, 2009

गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएँ



भोले घर बाजे बधाई

स्व. शांति देवी वर्मा

मंगल बेला आयी, भोले घर बाजे बधाई ...


गौर मैया ने लालन जनमे,
गणपति नाम धराई.
भोले घर बाजे बधाई ...

द्वारे बन्दनवार सजे हैं,
कदली खम्ब लगाई.
भोले घर बाजे बधाई ...

हरे-हरे गोबर इन्द्राणी अंगना लीपें,
मोतियन चौक पुराई.
भोले घर बाजे बधाई ...

स्वर्ण कलश ब्रम्हाणी लिए हैं,
चौमुख दिया जलाई.
भोले घर बाजे बधाई ...

लक्ष्मी जी पालना झुलावें,
झूलें गणेश सुखदायी.
भोले घर बाजे बधाई ...
(प्रस्तुति - आचार्य संजीव सलिल)

गणेश चतुर्थी की हार्दिक मंगलकामनाएँ


Wednesday, August 19, 2009

‘कंप्यूटर और हिंदी' विषय पर कार्यशाला

आदरणीय डॉ. सी. जय शंकर बाबू

कृपया मैंने आपके ब्लाग पर आपके बारे में पढा । राष्ट्रभाषा सेवा का आपका कार्य प्रशंसनीय है ।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की 23 व 24 सितंबर 2009 को ‌'कंप्यूटर एवं हिन्दी' विषय पर एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन करने जा रहा है, जिसका विवरण निम्नवत है:-

‘कंप्यूटर और हिंदी ‘ विषय पर कार्यशाला
आज देश तथा समाज की प्रगति में कंप्यूटर तथा इंटरनेट की एक महत्वपूर्ण भूमिका है । इस कार्यशाला का उद्देश्य हिंदी भाषा में कंप्यूटर तथा इंटरनेट का प्रयोग किये जाने को सरल तथा लोकप्रिय बनाना है ताकि हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाले करोड़ों भारतीय लोग कंप्यूटर तथा इंटरनेट का प्रयोग सरलता से कर सकें ।
दिनांक तथा कार्यक्रम की अनुसूची ( बुद्धवार, 23 सिंतबर, 2009)
सत्रसमयविवरण
-09.00पंजीकरण
109.30परिचयात्मक व्याख्यान प्रथम (हिन्दी भाषा और कंप्यूटर)
210.30परिचयात्मक व्याख्यान द्वितीय
-11.30जलपान
-12.00उद्‍घाटन
-01.30भोजन अवकाश
303.00हिंदी सॉफ्टवेयअर, लाभ तथा कमियाँ व सुधार
404.00नये हिंदी सॉफ्टवेयरों का विकास
05.00चाय

दिनांक तथा कार्यक्रम की अनुसूची ( बृहस्पतिवार, 24 सिंतबर, 2009)
सत्रसमयविवरण
-09.30जलपान
510.00ओ.सी.आर
611.00मशीनी अनुवाद
712.00ई-गवर्नेंस, वर्तमान परिदृश्य, भविष्य तथा संभावनायें
-01.00भोजन अवकाश
803.00हिंदी और वैव डिजाइनिंग व ई-मेल आदि
04.00परिचर्चा
-05.00शाम की चाय

सहभागिता;-
भारत (संघ) की राजभाषा हिंदी होने के कारण, संघीय सरकार के सभी संगठनों में, कंप्यूटर पर हिन्दी में कार्य किया जाना कार्यालय कार्य का एक आवश्यक अंग बन गया है साथ ही यह भी निश्चित है कि कंप्यूटर पर हिंदी का प्रयोग बढ़ने से, उन्नति, समृद्धि व ज्ञान के प्रसार की दिशा में अनेक नयी संभावनाएं जन्म ले रहीं हैं । अत: यह कार्यशाला उन सभी लोगों के लिये प्रस्तावित है जो हिंदी में कंप्यूटर-कार्य करते हैं, उसके महत्व को समझते हैं या कंफ्यूटर पर हिंदी के प्रयोग से संबंधित विविध-प्रकार के तकनीकी पक्षों से जुड़े हुये हैं ।

पंजीकरण शुल्क:-
कार्यशाला में प्रतिभागिता के लिये 500/- रुपये पंजीकरण शुल्क रखा गया है । विशेषज्ञों के शोध/प्रायोगिक पत्र, जलपान, भोजन और आवास की व्यवस्था संस्थान द्वारा की जायेगी । रुड़की आने-जाने का व्यय प्रतिभागी को स्वयं वहन करना होगा ।

नामांकन की अंतिम तिथि:- 11 सितंबर, 2009 है ।
कृपया निम्नलिखित सूचना डाक या iitr.hindicell@gmail.com पर ई-मेल द्वारा हिन्दी प्रकोष्ठ आई.आई.टी रुड़की को भेजने का कष्ट करें ।

नाम (स्पष्ट अक्षरों में)----------------------------------------------------------पद-------------------------

संस्था/ संगठन---------------------------------------------------------------------------------------------

डाक का पता----------------------------------------------------------------------------------------------

फोन नं०---------------------------फैक्स नं०-------------------------------------------ई-मेल------------

पंजीकरण शुल्क: रु.500/ - प्रति व्यक्ति , कुलसचिव, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की के नाम , भारतीय स्टेट बैंक या पंजाब नेशनल बैंक की आई.आई.टी. रुड़की शाखा पर देय बैंक ड्राफ्ट/ कोट बैंक चैक के द्वारा ।


प्रतिभागी की संस्था के सक्षम अधिकारी हस्ताक्षर
के हस्ताक्षर एवं मोहर
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अध्यक्ष:- प्रोफेसर इन्द्रमणि मिश्र, अध्यक्ष हिन्दी प्रकोष्ठ, आई.आई.टी. रुड़की, फोन नं० (01332) 285096(कार्यालय), 285720 (निवास) , मोबाईल 9412025464 ई-मेल iitr.hindicell@gmail.com
संयोजक:- प्रोफेसर आर.सी.मित्तल, गणित विभाग, आई.आई.टी. रुड़की, फोन नं० (01332) 285392(कार्यालय), 285193 (निवास) , मोबाईल 9319912030 ई-मेल rcmmmfma@iitr.ernet.in
कोषाध्यक्ष: डॉ. नागेन्द्र कुमार, प्रभारी हिन्दी प्रकोष्ठ, आई.आई.टी. रुड़की, फोन नं० (01332) 285096(कार्यालय), 28519 (निवास) , मोबाईल ई-मेल iitr.hindicell@gmail.com

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हमारा निवेदन है कि इस कार्यशाला में आप स्वंय भाग लें तथा अपनी नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति के अन्य सदस्य संस्थानों को भी भाग लेने हेतु प्रेरित करने की कृपा करें ।
आपके सहयोग हेतु हम आपके आभारी होंगें ।
सादर,
डॉ. नागेन्द्र कुमार
एसोसिएट प्रोफेसर एवं प्रभारी हिन्दी प्रकोष्ठ
आई.आई. टी रुड़की
फोन: 01332-285096

Thursday, August 13, 2009

जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ



श्री कृष्ण भजन


स्व. शांति देवी वर्मा



हरि को बन्ना बनावें

हरि को बन्ना बनावें, गोकुल की गुपियाँ...

कमलनयन में कजरा लगावें, मीठी-मीठी करें बतियाँ.
हरि को बन्ना बनावें, गोकुल की गुपियाँ...

कान्हा को कण में कुंडल पिन्हावें, नाक सुहाए नथुनिया.
हरि को बन्ना बनावें, गोकुल की गुपियाँ...

हरि को पान का बीडा खिलावें, लगते अधर कमल कलियाँ.
हरि को बन्ना बनावें, गोकुल की गुपियाँ...

किशन-कंठ में हार सुहाए, बांह बाजूबंद नौनगिया.
हरि को बन्ना बनावें, गोकुल की गुपियाँ...

दोउ तन मां कंगना बांधे, मेंहदी रचाएं रंगीली सखियाँ.
हरि को बन्ना बनावें, गोकुल की गुपियाँ...

धोकर पैर खडाऊं पिन्हावें, पहने न- छेड़ें गोपाल रसिया.
हरि को बन्ना बनावें, गोकुल की गुपियाँ...

अंग सजाये धोती-अंगरखा, श्याम-पीट छवि भली बनिया.
हरि को बन्ना बनावें, गोकुल की गुपियाँ...

शीश मोर का मुकुट सजावें, बेला चमेली जुही की कलियाँ.
हरि को बन्ना बनावें, गोकुल की गुपियाँ...

वनमाली है चित्त-चुरैया, 'शान्ति' पांय सबकी अँखियाँ.
हरि को बन्ना बनावें, गोकुल की गुपियाँ...

***

प्रस्तुति - आचार्य संजीव सलिल

अरुण मितल 'अद्भुत' राजेश चेतन काव्य पुरस्कार से सम्मानित






शनिवार ८ अगस्त सायं सांस्कृतिक मंच, भिवानी द्वारा राज्य स्तरीय राजेश चेतन काव्य पुरस्कार समारोह एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। समारोह में वन पर्यटन मंत्री किरण चौधरी मुख्यातिथि थी। कार्यक्रम में राजेश चेतन काव्य पुरस्कार ओज के युवा हस्ताक्षर अरुण मितल 'अद्भुत' को प्रदान किया गया दिया गया। अरुण अद्भुत को यह पुरस्कार उनकी साहित्यिक प्रतिभा तथा साहित्य के प्रति उनके अप्रतिम समर्पण के लिए दिया गया. राजेश चेतन काव्य पुरस्कार हरियाणा राज्य के उस कवि को दिया जाता है जिसका काव्य के क्षेत्र मे उल्लेखनीय योगदान रहा हो। जो काव्य पाठ मे समर्थ, समाज व राष्ट्र के लिए समर्पण भाव वाला हो। इस पुरस्कार मे मञ्च की ओर से 5100 रु॰ शाल, प्रतीक चिन्ह व प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता हैं। यह पुरस्कार प्रति वर्ष कवि राजेश 'चेतन' के जन्मदिवस पर 8 अगस्त को आयोजित कवि सम्मेलन में दिया जाता है। सम्मान समारोह के बाद कवि सम्मेलन में अलग-अलग अंदाज में कवियों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत की और वर्तमान व्यवस्था पर जमकर कटाक्ष किए। पुरस्कार समारोह के बाद एक भव्य कवि सम्मलेन का आयोजन किया गया, जिसमे देश के प्रख्यात कवियों ने काव्य पाठ किया. वैसे मंच पर युवा कवियों की प्रस्तुतियों को विशेष रूप से सराहा गया. कवि सम्मेलन की शुरूआत दिल्ली के कवि की। जिगर माँ बड़ी आग है कविता को श्रोताओं ने खूब पसंद किया, इस कविता की कुछ पंक्तियाँ थी:


आज आम आदमी की पेट की आग
इस तरह जल रही थी
की उसके सामने जिगर की आग बुझ गयी थी
आज इंसान जिगर की आग में नहीं
पेट की आग के लिए भाग रहा है
और अपने परिवार की पेट की आग मिटने के लिए
दिन का चैन खो रहा है और रातों में जाग रहा है


ओज के युवा हस्ताक्षर कलाम भारती ने आतंकवाद, मजहब की लड़ाई पर करारा प्रहार किया उनकी कविता की पंक्तियां थी
मंदिरों में गूंजते है पुण्य स्वर आरती के,
मज्जिदों में होती है पवन अजान है।
शुभ हो जाता प्रभात गिरजा की घंटियों से
गुरूद्वारे देते गुरुओं का दिव्य मान है।
गीता, पुराण, बाइबल हो या गुरुग्रंथ
पाते सभी भारत में आदर सम्मान है
कार्यक्रम में सम्मानित कवि ओज के युवा हस्ताक्षर अरुण मित्तल अद्भुत ने अपनी कविता 'जो सींच गए खून से धरती' पढ़कर समस्त सभागार को राष्ट्रीयता के रंगों में डुबो दिया उनकी इन पंक्तियों पर विशेष रूप से श्रोताओं का आर्शीवाद मिला
गांधी, सुभाष, नेहरु, पटेल, देखो छाई ये वीरानी
अशफाक भगत बिस्मिल तुमको, फिर याद करें हिन्दुस्तानी
है कहा वीर आजाद और वो खुदीराम सा बलिदानी
जब लाल बहादुर याद करूं, आँखों में भर आता पानी
उनके इन शेरों को भी खूब दाद मिली :
जो उजालों में मिलेंगे शाम को
वो सुबह जैसा कहेंगे शाम को
इन चिरागों में किसी का है लहू
खुद ब खुद ये जल उठेंगे शाम को
न ही मंजिल रास्ता कोई नहीं
सच है फिर मेरा खुदा कोई नहीं
है बड़ा ये गावं भी वो गावं भी
तीन रंगों से बड़ा कोई नहीं
वरिष्ठ कवि राजेश चेतन जैन ने अपनी कविता "उसके बस की बात नही" माध्यम से अमेरिका, पाकिस्तान, चीन पर निशाने साधे। उन्होंने इस कविता में राजनेताओं के चरित्र को भी लपेटा और वर्तमान व्यवस्था को बदलने का परामर्श भी दिया। उनकी कविता की कुछ विशेष पंक्तियाँ थी:
बात बात में बात बनाना उनके बस की बात नही।
घर के लोगों को समझाना उनके बस की बात नही॥
जात पात का हाथी लेकर हाथ हिलाना आता है।
उस हाथी पर दिल्ली आना उनके बस की बात नही॥

मनमोहन जी हर चुनाव में पी॰ एम॰ तो बन सकते हैं।
लोक सभा का एम॰ पी॰ बनना उनके बस की बात नही॥
मंच संचालन कर रहे कवि चिराग जैन ने अपनी गजल कुछ इस अंदाज़ में पढ़ी:
जहां हमको जन्नत का मंजर मिला है
वहां तुमको बस पत्थर मिला है,
कोई तेरी रहमत को माने ने माने,
तेरा नाम सबकी जुवा पर मिला है।
अनपढ़ माँ नाम की उनकी विशेष कविता ने श्रोताओं का माँ के प्रति नमन कराया. इस कविता अंतिम पंक्तियों ने सचमुच एक अनमोल सन्देश से श्रोताओं के मस्तिष्क को झंकृत कर दिया :
सच ! कोई भी माँ अनपढ़ नहीं होती
सयानी होती है
क्योंकि
बहुत साड़ी डिग्रियां बटोरने के बावजूद
बेटियों को उसी से सीखना पड़ता है
की गृहस्थी कैसे चलानी होती है
दिल्ली की ही व्यंगकार बलजीत कौर तन्हा ने जूतों की महिमा सुनाई उनकी पंक्तियाँ थी जूते ने आज पांव में आने से किया इंकार,
बोला तुम कवि हो तो पहले सुनो मेरी पुकार,
नही चाहता किसी पीएम पर डाला जाऊं,
नही चाहता किसी पर डाला जाऊं,
गर चाहते हो मुझे मारना तो मेरी चाहता को समझ जाओ,
जूता उठाना तुम बाद में
पहले कसाव को चौराहे पर लटकाओ।
बलजीत कौर की जिन्दा शहीद कविता में शहीद की माँ और बहन को जिन्दा शहीद मानकर किये हुए प्रयोग से सभागार में उपस्थित सभी श्रोताओं की आँखें नाम हो गयी.
हास्य कवि बागी चाचा ने वर्तमान परिवेश के परीक्षा ढर्रे पर जम कर कटाक्ष किए। उन्होंने राष्ट्र धरम की भी बात की उनकी रचना थी
तोड़ दे अब जाति ओर धर्म की मचान को,
भूल जा अभी तू गीता और पुराण को,
बट चुकी है यह धरती आज तुकड़ों में बहुत,
धर्म तू बना ने अपना पूरे आसमान को।
उनकी हास्य कविताओं 'जूता', मुर्गासन, पेड़ और पुत्र पर भी लोगों ने खूब आनंद लिया. "जूता कविता की विशेष पंक्तियाँ थी :
एक भ्रष्टाचारी की उतारने को आरती
जूते को पानी में भिगोया
पानी से निकलते ही
जूता टप्प टप्प रोया
स्थानीय कवि हनुमान प्रसाद अग्निमुख ने अपनी कविता के माध्यम से पाकिस्तान को दो-दो हाथ करने की चेतावनी दी। उनकी काव्य पाठ के दौरान पंडाल निरंतर तालियों से गूंजता रहा।
चंडीगढ़ साहित्य अकादमी के सचिव माधव कौशिक ने भी सारगर्भित काव्य पाठ कर उपस्थित जनों का मन मोहा। कार्यक्रम की अध्यक्षता गणेश गुप्ता ने की। इस अवसर पर नगर परिषद चेयरपर्सन सेवा देवी ढिल्लो विशिष्ट अतिथि थी। चन्द्रभान सुईवाला स्वागत अध्यक्ष थे। कवि सम्मेलन के समापन पर सांस्कृतिक मंच के अध्यक्ष डॉ. बीबी दीक्षित, महासचिव जगत नारायण भारद्वाज ने सभी का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम के संयोजक दीवान चंद रहेजा व शशि परमार ने सफल आयोजन के लिए मंच के सदस्य व पदाधिकारियों को बधाई दी। सभी ने युवा कवि अरुण मित्तल अद्भुत को सम्मान प्राप्त करने पर बधाई दी और उनके उज्जवल भविष्य की कामना की .

Wednesday, August 5, 2009

कविता




तेरे बोल

-हरिहर झा

तेरे बोल से निकले तूफ़ानों ने
ऊधम मचाये बहुत
मुँह फुलाकर
जहाँ से मुड़ गई
ऊजली चाँदनी
लम्बे केशों सी
काली पड़ गई

तू कल ही तो
बतिया रही थी
खूसट एरे गैरो से;
और तब खिल उठी थी मेरे
मन की मुरझाई लता
जब तूने बीच में ही मोड़ दी
शीतल धार मेरी ओर
कलकल नदी की हवाओं में
तू उमंग में भर कर
फुदक रही थी
एक रंगीन चिड़िया की तरह
इन बाहों की
टहनियों पर ;
चेहरे पर चटकीले रंग देख कर
मैं मुस्काया, पुलकित भी हुआ
कि
फिर अचानक दो लाल वेषधारी
होंठों के पीछे बत्तीस की टीम
गले की गुफा से निकलती जुबान का हमला
दिमाग की नसों को ऐसा दबोचा
कि झटका खा गई
मेरे हौसलों की दीवारें ;
झुक गई बुलन्दियाँ मीनारों की
चल गया बुलडोज़र ऐसा
कि मैं कुछ ढूंढता रहा मलबे में ।

Tuesday, August 4, 2009

रक्षा बंधन की शुभकामनाएँ



रक्षा बंधन के दोहे

- आचार्य संजीव सलिल



चित-पट दो पर एक है, दोनों का अस्तित्व.
भाई-बहिन अद्वैत का, लिए द्वैत में तत्व..
***
दो तन पर मन एक हैं, सुख-दुःख भी हैं एक.
यह फिसले तो वह 'सलिल', सार्थक हो बन टेक..
***
यह सलिला है वह सलिल, नेह नर्मदा धार.
इसकी नौका पार हो, पा उसकी पतवार..
***
यह उसकी रक्षा करे, वह इस पर दे जान.
'सलिल' स्नेह' को स्नेह दे, कर दे जान निसार..
***
शन्नो पूजा निर्मला, अजित दिशा मिल साथ.
संगीता मंजू सदा, रहें उठाये माथ.
****
दोहा राखी बाँधिए, हिन्दयुग्म के हाथ.
सब को दोहा सिद्ध हो, विनय 'सलिल' की नाथ..
***
राखी की साखी यही, संबंधों का मूल.
'सलिल' स्नेह-विश्वास है, शंका कर निर्मूल..
***
सावन मन भावन लगे, लाये बरखा मीत.
रक्षा बंधन-कजलियाँ, बाँटें सबको प्रीत..
*******
मन से मन का मेल ही, राखी का त्यौहार.
मिले स्नेह को स्नेह का, नित स्नेहिल उपहार..
*******
निधि ऋतु सुषमा अनन्या, करें अर्चना नित्य.
बढे भाई के नेह नित, वर दो यही अनित्य..
*******
आकांक्षा हर भाई की, मिले बहिन का प्यार.
राखी सजे कलाई पर, खुशियाँ मिलें अपार..
*******
गीता देती ज्ञान यह, कर्म न करना भूल.
स्वार्थरहित संबंध ही, है हर सुख का मूल..
*******
मेघ भाई धरती बहिन, मना रहे त्यौहार.
वर्षा का इसने दिया. है उसको उपहार..
*******
हम शिल्पी साहित्य के, रखें स्नेह-संबंध.
हिंदी-हित का हो नहीं, 'सलिल' भंग अनुबंध..
*******
राखी पर मत कीजिये, स्वार्थ-सिद्धि व्यापार.
बाँध- बँधाकर बसायें, 'सलिल' स्नेह संसार..
******
भैया-बहिना सूर्य-शशि, होकर भिन्न अभिन्न.
'सलिल' रहें दोनों सुखी, कभी न हों वे खिन्न..
*******

श्यामल सुमन की तीन कविताएँ

नजर


नजर मिली क्या तेरी नजर से
गयी न सूरत मेरी नजर से

नजर लगे न तुम्हें किसी की
खुदा बचाये बुरी नजर से

नजर की बातें नजर ही जाने
सुनी है बातें कभी नजर से

नजर उठाना नजर झुकाना
वो कनखियाँ भी दिखी नजर से

वो तेरा जाना नजर चुरा के
नजर न आई कहीं नजर से

नजर मिला के हो सारी बातें
नयी चमक फिर उठी नजर से

नजर दिखा के किया है घायल
और मुस्कुराना नयी नजर से

नजर न आना बहुत दिनों तक
छलक पड़े कुछ इसी नजर से

भला करे क्यों नजर को टेढ़ी
कभी न गिरना किसी नजर से

नजर पे चढ़ के सुमन करे क्या
नजर है रचना खुली नजर से

भागमभाग

बाहर बारिश अन्दर आग
अभी शेष भीतर अनुराग

परदेशी बालम आयेंगे
कुछ बोला है छत पर काग

सब रिश्तों के मोल अलग हैं
नारी माँगे अमर सुहाग

भाव इतर और शब्द इतर हैं
रंग मिलेगा गाकर राग

खोने का संकेत है सोना
छोड़ नींद को उठकर जाग

उदर भरण ही लक्ष्य जहाँ हो
मची वहाँ पर भागमभाग

इक दूजे का हक जो छीना
लेना अपना लड़कर भाग

घाव भले तन पर लग जाये
कभी न रखना मन पर दाग

देखो नजर बदल के दुनिया
लगता कितना सुन्दर बाग

सुमन खिले हैं सबकी खातिर
लूट रहा क्यों भ्रमर पराग

मन

हर मन का उच्चारण है
मन उलझन का कारण है

मन से मन की सुन बातें जो
मन में करता धारण है

ऐसे मन वाले को अक्सर
मन कहता साधारण है

मन लेकिन मनमानी करता
मन का मानव चारण है

टूटे मन को मन जोड़े तो
मन का कष्ट निवारण है

गर विवेक मन-मीत बने तो
मन-सीमा निर्धारण है

सुमन देखता मन-दर्पण में
कुछ भी नहीं अकारण है

Sunday, August 2, 2009

मैत्री दिवस

सभी मित्रों को

मैत्री दिवस की

शुभकामनाएँ

गीतिका

- आचार्य संजीव सलिल, जबलपुर ।

जानता सच और जो सच पर अड़ा है.

मानिए सच वह हकीकत में बड़ा है.

प्राण! की बाहों का जिसको है सहारा

सदा जीता जंग, जब-जब भी लड़ा है.

मन समंदर कौन-कब है नाप पाया?

कौन जाने विष-अमिय कितना पड़ा है?

नहीं जग के काम आया ज्ञान-गुण तो

व्यर्थ जैसे धन ज़मीं-नीचे गडा है.

देव-दानव हमीं में हैं 'सलिल' बसते

तम-उजाला साथ ही पाया खडा है.