Friday, July 10, 2009

पुस्तक-समीक्षा


'बढ़ते चरण शिखर की ओर' के समीक्षा सोपान पर : 'कृष्ण कुमार यादव'


समीक्षक: जवाहर लाल 'जलज', शंकर नगर, बाँदा (उ0प्र0)



'बढ़ते चरण शिखर की ओर' बहुमुखी प्रतिभा के धनी, समुत्कृष्ट सारस्वत-साधक, चिंतन की चेतना से मंडित, गहरी मानवीय संवेदनाओं से सिक्त, समकालीन यथार्थ बोध के जीवंत कवि एवं कुशल प्रशासक कृष्ण कुमार यादव के वृहत्तर व्यक्तित्व एवं कृतित्व को उद्धाटित करने वाला 148 पृष्ठीय महत्वपूर्ण व मजबूत दस्तावेज है, जिसका सम्पादन प्रखर लेखक व कवि पं0 दुर्गाचरण मिश्र ने किया है। सम्प्रति वे उ0प्र0 हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अर्थमंत्री के रूप में समलंकृत हैं। 'बढ़ते चरण शिखर की ओर' के प्रकाशक उमेश प्रकाशन लूकरगंज, इलाहाबाद और मुद्रक हिन्दुस्तान आर्ट प्रिन्टर्स, कर्नेलगंज, कानपुर है। समालोचना के उत्कर्ष, साहित्य मनीषी एवं शताधिक महत्वपूर्ण ग्रन्थों की भूमिका के लेखक आचार्य प्रवर सेवक वात्स्यायन ने भूमिका लिखकर इसकी मूल्यवत्ता का प्रतिपादन किया है जो सुग्राह्य है।

किसी विशिष्ट सर्जक के जीवन-वृतांत के सम्पूर्ण रेखांकनीय सन्दर्भों को एकत्रित करके संग्रहणीय दस्तावेज बना देना बहुत ही उपयोगी और महत्वपूर्ण कार्य है। इससे उस सर्जक को सम्यक् रूप से समझने में शोधार्थियों व अन्य सबके लिए अति सुगमता होती है। पं0 दुर्गाचरण मिश्र ने कृष्ण कुमार यादव जैसे बहुआयामी व्यक्तित्व एवं चर्चित सर्जक पर केन्द्रित पुस्तक 'बढ़ते चरण शिखर की ओर' का सम्पादन करके महनीय कार्य किया है, जिसके लिए वे साधुवाद के पात्र हैं।

कृष्ण कुमार यादव एक ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व का नाम है जो बहुत ही कम समय में मानवोचित गुणों और सृजनात्मकता की ऊँचाई छूने में सफल हुये। वे बाल्यकाल से ही महत्वाकांक्षी, लगनशील, श्रमशील व निष्ठावान रहे हैं। कठोर श्रम और साधना का ही सुखद परिणाम है कि उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा प्रथम बार में ही उत्तीर्ण की और भारतीय डाक सेवा के अधिकारी बने। इतनी बड़ी सफलता प्राप्त करने के बाद भी उन्होंने इसे प्रगति की इतिश्री भी नहीं मानी। शासकीय, सामाजिक व पारिवारिक दायित्वों का सम्यक निर्वाह करते हुए वे सर्जनात्मकता के लिए समाहुत हैं। 30 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने पाँच उत्कष्ट कृतियाँ सर्जना संसार को समर्पित कर दी हैं। 250 से अधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। अनेक वेबसाइटें उनकी रचनाधर्मिता की झांकी दिखाती हैं। अनेकानेक साहित्यिक उपक्रमों द्वारा वे सम्मानित व अनुशंसित हुए हैं। इतनी बड़ी उपलब्धियों को अर्जित कर लेने के बाद भी अभिमान उनके पास आने में बहुत डरता है। वे सहजता, सरलता और मृदुलता के सहारे अभीष्ट की ओर अग्रसर हैं।

कृष्ण कुमार यादव के अब तक के जीवन-वृत्तांत को पढ़कर लगता है कि प्रारम्भ से ही उनके मन में कीर्ति का किला रचाने और जीवन को अभीष्ट तक पहुँचाने की उत्कट आकांक्षा रही है। उनकी इसी महती आकांक्षा को पूर्ण करने हेतु सौभाग्यवश स्वयं 'आकांक्षा' ने ही उनका जीवन साथी के रूप में वरण किया। देववाणी संस्कृत की प्रवक्ता आकांक्षा यादव विदुषी हैं, कवयित्री व लेखिका हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रभूत मात्रा में उनकी रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं, सृजनात्मक उपलब्धियों के लिए उन्हें अनेक सम्मानों से अलंकृत किया गया है। यह मणिकांचन संयोग है कि कृष्ण कुमार भी वरेण्य साहित्यकार हैं और उनकी पत्नी आकांक्षा यादव भी। ऐसे में यह कहना नितांत समीचीन लगता है-

आकांक्षा ले आई भोर,
बढ़ते चरण शिखर की ओर।

'बढ़ते चरण शिखर की ओर' पुस्तक के आवरण पृष्ठ में अंकित युगीन गीतकार पद्मविभूषण गोपाल दास 'नीरज', प्रो0 सूर्य प्रसाद दीक्षित, पद्मश्री गिरिराज किशोर, डॉ0 रामदरश मिश्र, डॉ0 रमाकान्त श्रीवास्तव, सेवक वात्स्यायन, प्रो0 भागवत प्रसाद मिश्र 'नियाज' और पं0 बद्री नारायण तिवारी की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कवि कृष्ण कुमार के काव्य वैशिष्टय को उजागर एवं प्रखर करती हैं और उनकी महत्ता दर्शाती हैं। कृष्ण कुमार की कृतियों पर विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित समीक्षाओं एवं साक्षात्कारों को एक जगह समेट कर सम्पादक ने पुस्तक को और भी रोचक बना दिया है। पाठकों के बिना किसी रचनाकार का अस्तित्व शून्य में ही माना जाता है। प्रस्तुत पुस्तक में कृष्ण कुमार के कृतित्व का नीर-क्षीर विश्लेषण करती चिट्ठियाँ कई पहलुओं से परिचित कराती हैं। इस पुस्तक में संग्रहीत लेख 'चरित्र की ध्वनि शब्द से ऊँची होती है (पं0 बद्री नारायण तिवारी), जीवन को समग्रता में देखने की कायल कविताएं (डॉ0 सूर्य प्रसाद शुक्ल), काव्य संवेदना का भिन्न आस्वाद सहेजती कविताएं (यश मालवीय), विविध दायित्वों के गोवर्धन धारक (जितेन्द्र जौहर), भारत-भारती के जीवंत उपासक : कृष्ण्ा कुमार (डॉ0 विद्याभास्कर वाजपेयी), बड़ी संभावनाओं का कवि : कृष्ण कुमार यादव (रविनन्दन सिंह), रचनाधर्मिता बनी व्यक्तित्व का अभिन्न अंग (आकांक्षा यादव), समकालीन परिवेश को उकेरती कृष्ण कुमार की कहानियाँ (गोवर्धन यादव), बच्चों का सम्पूर्ण परिवेश सहेजती बाल कविताएं (सूर्य कुमार पाण्डेय), बाल शिक्षा का पथ निर्माण करती कविताएं (डा0 राष्ट्रबन्धु), सामाजिक सहानुभूति का मानस-संस्पर्श लिए कविताएं (डॉ0 राम स्वरूप त्रिपाठी) और समय की नजाकत पहचानती कविताएं (टी0पी0 सिंह) इत्यादि कृष्ण कुमार के महत्तर व्यक्तित्व व कृतित्व के विविध पक्षों का रेखांकन करते हैं।

कृष्ण कुमार यादव के आकर्षक व्यक्तित्व के अनुरूप पुस्तक का आवरण आकर्षक है। छपाई सुन्दर है। अशुध्दियों के दोष से दूर है। कुल मिलाकर 'बढ़ते चरण शिखर की ओर' पुस्तक अच्छी बन पड़ी है और पठनीय है। युवा प्रशासक-साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव के सम्पूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व को एक नजर में समझने के लिए पुस्तक अत्यन्त उपयोगी है। इस पुस्तक की उपयोगिता पर ये पंक्तियाँ अनायास निकल पड़ी हैं:-

कृष्ण कुमार सृजन-सिरमौर,
मिले न जब उनका कुछ छोर,
तब प्यारे यह पुस्तक पढ़ना,
बढ़ते चरण शिखर की ओर।

कृति: बढ़ते चरण शिखर की ओर
सम्पादक: दुर्गाचरण मिश्र,
पृष्ठ: 148
मूल्य: रू0 150
संस्करण: 2009
प्रकाशक: उमेश प्रकाशन, 100, लूकरगंज, इलाहाबाद