यदि विंडोज़ नहीं होता...
- डॉ. सी. जय शंकर बाबु
यदि विंडोज़ नहीं होता, मैं इस कदर सक्रिय न होता
यदि विंडोज़ नहीं होता, मैं इस कदर सफल नहीं होता...
यदि विंडोज़ नहीं होता, मैं इस तरह भारतीय भाषाओं में कंप्यूटर इंटरनेट के माध्यम से कुछ कहने में सफल नहीं होता, इसलिए मैं अपनी सफलता इस कहानी को भी विश्व में बहुप्रचलित एक भारतीय भाषा के माध्यम से कहना उचित समझता हूँ ।
जब 12 वर्ष की आयु में सातवीं की पढ़ाई के दौरान कंप्यूटर नाम की चीज़ के बारे में सुनने का मौका मुझे मिला, उसे देखने के लिए मन ललायित हो उठा । मगर मेरे गांव तक उसके पहुँचने में और बारह साल की प्रतीक्षा करनी पड़ी । इससे पहले ही जिला मुख्यालय स्थित औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में कंप्यूटर उपलब्ध होने तथा वहाँ इसमें प्रशिक्षण से संबंद्ध कोर्स चालू होने की बात सुनते ही मैंने अपना आवेदन भर दिया । मगर दुर्भाग्य से मुझे प्रवेश नहीं मिला । मगर मैं उसी संस्थान में मोटर गाडियों की मरम्मत से संबंधित प्रशिक्षण हासिल किया । उन दिनों में मैंने तय किया कि जब तक कंप्यूटर मेरे गांव तक पहुँच जाएगा, मुझे उसके भरपूर उपयोग की योजना बनानी है । जैसे ही गांव में कंप्यूटर पहुँचने की बात मैंने सुनी, उसी दिन उसे देखे बिना नहीं रह पाया । कंप्यूटर को देखते ही उसके अनुप्रयोगों को सीखने पुनः इच्छा जागृत हुई । इस हेतु मैंने अपने कष्ट की कमाई से चार हजार रुपए शुल्क भी प्रशिक्षण संस्थान के मालिक को चुकाया । उन दिनों में सामाजिक सेवा कार्यां में मेरी काफ़ी व्यस्तता बनी रहती थी । शुल्क जमा करने के बाद एक सप्ताह भर ही मैंने कंप्यूटर के विकास संबद्ध इतिहास की जानकारी हासिल की और कंप्यूटर पर डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम का थोड़ा-सा प्रशिक्षण हासिल किया । इसी बीच मुझे एक दक्षिण एशियाई युवा शिविर में शामिल होने हेतु नागालैंड जाना पड़ा । लगभग एक महीने की यात्राओं के बाद जब मैं पुनः अपना गाँव लौटा तब मेरे पास उतना समय नहीं रहा कि मैं अपना कंप्यूटर प्रशिक्षण जारी रख सकूँ । कंप्यूटर केंद्र के मालिक से ही मैंने जानकारी हासिल की कि उस समय विंडोज़ 3.1 नामक संस्करण में विडोज़ सॉफ़्टवेयर का भी प्रशिक्षण शुरू किया गया है । लेकिन मेरे पास समय की कमी से मुझे बड़ा अफ़सोस हुआ । उन्हीं दिनों में मैं लगातार सोच रहा था कि मानवीय मूल्यों के प्रचार हेतु तथा भारतीय भाषाओं के प्रसार हेतु एक पत्रिका का प्रकाशन किया जाना चाहिए । इस सोच को आखिर जब कार्यान्वित करना मैंने तय किया तब तक विंडोज़ 95 संस्करण मार्केट में उपलब्ध होने की जानकारी मुझे मिली । युग मानस के नाम से हिंदी पत्रिका के प्रकाशन की मैंने योजना बनाई । मेरे गांव में (गुंतकल, आंध्र प्रदेश) न हिंदी के कंपोजिंग की सुविधा थी, न ही ऑफ़सेट मुद्रण की । आखिर मैंने तय किया कि खुद कंप्यूटर पर ही अक्षरांकन (कंपोजिंग) करके हैदराबाद से ऑफ़सेट मुद्रण करवाऊँ । इस हेतु कंप्यूटर प्रशिक्षण केंद्र के मालिक से मालिक से मैंने अनुरोध किया कि वह विंडोज़ अद्यतन संस्कर खरीदे, साथ ही एडोब पेजमेकर एवं हिंदी श्री लिपि सॉफ़्टवेयर भी । उन दिनों में उन्हें इन सॉफ़्टवेयरों की ख़रीद हेतु काफ़ी पैसे की लगाने पढ़े थे । मैंने उन्हें आश्वस्त किया था कि मैं अपने द्वारा जमा किया गया चार हजार रुपए का शुल्क वापिस नहीं मांगूगा और साथ ही पत्रिका प्रकाशन का काम शुरू करते ही लगातार उनके कंप्यूटर को काम दूँगा जिससे कि उन्हें आय का एक स्थाई स्रोत बन जाए । आखिर वे मान गए और मेरे लिए आवश्यक तमाम साफ़्टवेयरों की खरीद की । मगर इन पर हिंदी में काम करने के लिए मुझे कोई नहीं मिल पाने से स्वयं मैंने ही वह काम शुरू किया । करके सीखना, क्रिया द्वारा सीखना, ग़लतियों से सीखना आदि प्रक्रियाओं के दौर से गुजरते हुए मैंने विडोज़ प्लैटफार्म आधारित एडोब पेजमेकर पर युग मानस पत्रिका का अक्षरांकन शुरू किया । इस रूप में युग मानस के प्रकाशन के समय विडोज़ 95 से जो मेरा परिचय हुआ, उसका क्रम बना रहा, आगे 98, एक्सपी, विस्टाज़ तक के संस्करणों की ख़ूबियों का लाभ उठाने का सौभाग्य मुझे मिला । युग मानस में मैंने अपने संपादकीयों के माध्यम से इस समस्या की ओर संकेत दिया था कि हिंदी के समक्ष मानक फांट की समस्या होने के कारण उसे पठनीयता एवं परिवर्तनीयता जैसी समस्याओं से गुजरना पड़ रहा है । इसी बीच विंडोज़ ने भारतीय भाषाओं के लिए अनुकूलन की प्रक्रिया भी शुरू कर दी । यह भारतीय भाषाओं के विकास के लिए निश्चय ही एक क्रांतिकारी पहल थी । विंडोज़ अब भारतीय भाषाओं के लिए पूरे समर्थन के साथ उपलब्ध है । जब यह सुविधा नहीं थी, मैंने तय किया था कि प्रौद्योगिकी की पढ़ाई करके खुद ऐसे फांट की खोज करूँ । मगर मेरी जरूरत को विंडोज़ ने पूरी कर दी है । यूनिकोड आधारित फांटों का उपयोग करते हुए तमाम प्रमुख भारतीय भाषाओं को विंडोज में स्थान मिल जाने से मुझे बड़ी खुशी हुई ।
अब मैं अपने कार्य के लिए इन सुविधाओं का भरपूर उपयोग करना ही नहीं इनके आधार पर वेब साइट भारतीय भाषाओं में बनाना, ई-मेल, चाटिंग आदि के लिए भारतीय भाषाओं का अधिकाधिक इस्तेमाल करना शुरू कर दिया । विंडोज में भारतीय भाषाओं के उपयोग की सुविधा उपलब्ध होने के बावजूद इसकी जानकारी अधिकांश लोगों में नहीं होने के कारण पठनीयता एवं परिवर्तनीयता की समस्यावाले पुराने सॉफ़्टवेयरों का ही प्रचलन को देखते हुए मुझे बड़ा अफ़सोस हुआ । तब मैंने यह प्रण किया कि मुझे अब इस दिशा में भी प्रचार-प्रसार अवश्य करना है । तब से लेकर आज तक मैं दो सौ से अधिक प्रशिक्षण कार्यक्रम भारत के विभिन्न भागों में आयोजित कर चुका हूँ । भारतीय भाषाओं के विकास के लिए विंडोज का भरपूर उपयोग करने की ओर लोगों को प्रवृत्त करना भी भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार संबंधी मेरी गतिविधियों का अभिन्न अंग बन गया है । अब मेरे मन में विडोज़ के प्रति जो भी कृतज्ञता भाव है, उसकी अभिव्यक्ति मैं विडोज़ के प्रचार-प्रसार के द्वारा करने का मौका मुझे मिल रहा है । विंडोज़ के कारण इंटरनेट में भारतीय भाषाओं के विकास का सपना साकार हो रहा है, इसके लिए विंडोज के समस्त टीम बधाई के पात्र है । विंडोज़ के साथ मेरा आजीवन संबंध बना रहेगा ।
चूँकि भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार के कार्य में विंडोज मेरे लिए सहायक रहा है, अतः मैं अपनी सफलता की यह कहानी भी एक प्रमुख भारतीय भाषा में ही कह रहा हूँ । भविष्य में इसे अन्य भाषाओं में भी अनुवाद करके प्रस्तुत करने की कोशिश मैं अवश्य करूँगा ।