Monday, February 16, 2009

कविता

पसंद


- श्यामल सुमन

हाल पूछा आपने तो, पूछना अच्छा लगा।
बह रही उल्टी हवा से, जूझना अच्छा लगा।।

दुख ही दुख जीवन का सच है, लोग कहते हैं यही।
दुख में भी सुख की झलक को, ढ़ूँढ़ना अच्छा लगा।।

हैं अधिक तन चूर थककर, खुशबू से तर कुछ बदन।
इत्र से बेहतर पसीना, सूँघना अच्छा लगा।।

रिश्ते टूटेंगे बनेंगे, जिंदगी की राह में।
साथ अपनों का मिला तो, घूमना अच्छा लगा।।

घर की रौनक जो थी अब तक, घर बसाने को चली।
जाते जाते उसके सर को, चूमना अच्छा लगा।।

कब हमारे, चाँदनी के बीच बदली आ गयी।
कुछ पलों तक चाँद का भी, रूठना अच्छा लगा।।

दे गया संकेत पतझड़, आगमन ऋतुराज का।
तब भ्रमर के संग सुमन को, झूमना अच्छा लगा।।

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